Meeta Joshi

Inspirational

4.5  

Meeta Joshi

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उड़ान

उड़ान

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"आज उड़ान संस्था को बने पचास-वर्ष हो चुके हैं। आप सभी इस बात से भलीभांँति परिचित हैं। ये संस्था महिलाओं की मदद के लिए खोली गई थी। किसी तरह की प्रताड़ना, राय या अकेला पड़ने पर, उनकी मदद के हर सम्भव प्रयास किए जाते हैं। जब मैंने ये संस्था शुरू की थी तब बहुत कम महिलाएंँ यहाँ तक पहुँच पाती थीं। मदद लेने में डरती थीं। लोगों ने कईं बार मुझसे पूछा ये "उड़ान-आभा की" जो नाम दिया है, ये आभा कौन है?मैं हर बार चुप रह जाता। आज उस इंसान से आप लोगों का परिचय करवाना चाहता हूँ जिसके संघर्ष को देख, मैने उड़ान को 'उड़ान-आभा की' नाम दिया। जी हाँ आप सभी उस शख्सियत से परिचित हैं। कभी लेखिका के रूप में, तो कभी समाज सेवी संस्था से जुड़े होने के कारण या कभी मोटिवेशनल वक्ता के रूप में। आज हमारे बीच उपस्थित हैं सुप्रसिद्ध समाज सेविका 'आभा जोशी' जिनकी ज़िन्दगी अपने आप में एक मिसाल है उनकी ज़िंदगी हमें प्रेरणा देती हैं। आइये आभा जी, आज आपके संघर्ष की कहानी आपकी जुबानी सुना लोगों को एक और प्रेरणादायक संदेश दे दीजिए। "

सभी की नजर आभा जी को देखने के लिए उत्सुक थी। लोगों की कल्पना थी एक बिंदास महिला की। लेकिन उनकी सोच के विपरीत, हल्के रंग की साड़ी में एक पतली-दुबली काया, जब स्टेज की तरफ बढ़ी तो सब आश्चर्य में थे। बालों की सफेदी उनकी उम्र बयाँ कर रही थी। शांत सी, गंभीर महिला जब स्टेज पर जा सबसे रूबरू हुई तो चेहरे पर एक अलग ही कांति थी। स्वाभिमान, गुरुर, और नाम के अनुरूप आभा उनके चेहरे पर दिखाई दे रही थी।

"नमस्कार, मैं आभा जोशी। मीडिया से मुझे हमेशा से ही परहेज रहा है, ये मानती आई हूँ कि आपका व्यक्तित्व आपकी पहचान हो। यहाँ सभी तरह की महिलाएंँ हैं। वीरेन जी ने मेरी मदद करने के बाद उड़ान संस्था को मेरा नाम दिया। उम्र बीत गई पर कभी उनका भी आभार प्रकट नहीं कर पाई ।

सबसे पहले तो अपना उदाहण देते हुए आपसे कहना चाहूँगी कभी बिचारी मत बनिए क्योंकि ये सहानुभूति का शब्द आपकी आत्मा का आप पर से नियंत्रण खो देता है। हर इंसान की अपनी तकलीफ बड़ी है शायद मेरी कहानी आपके लिए सामान्य हो लेकिन जिन हालात से मैं निकली, बेचारगी को छोड़ने के बाद ही मैंने सफलता पाई।

माँ यही कोई तेरह-चौदह साल की रही होंगी, उनके पिताजी ने अपने मित्र के बेटे से विवाह तय कर दिया। पढ़ाई-लिखाई में होशियार माँ, उस वक्त शादी का अर्थ भी नहीं जानती थी। विदाई की रस्म अधूरी थी। गौना छह -साल बाद तय हुआ। सुना था पिताजी माँ से नौ साल बड़े थे। माँ की पढ़ाई चालू रही। पता चला जिस आदमी के साथ विवाह बंधन में बंधी थी, गलत संगत के चलते उसने पढ़ाई छोड़ दी। माँ जब तक विदा होकर गई तब तक पिताजी को अनगिनत बीमारियां लग चुकी थीं। साल भर में मैं पैदा हुई। बदकिस्मती देखिए होश संभाल भी नहीं पाई थी किडनी खराब होने की वजह से पिताजी दुनिया छोड़कर चले गए। घरवालों ने माँ को अपशकुनी कह घर से निकाल दिया। उन्होंने पीहर में आ पढ़ाई जारी रखी। जो आता उसके मुंँह में एक ही शब्द होता , "बिचारी विदा होकर ही क्यों गई किस्मत ही फूट गई और ये बच्ची, बिचारी क्या किस्मत लेकर पैदा हुई। "होश संभाला तो हर जना बिचारी शब्द कह सहानुभूति दर्शाता और मैं हमदर्दी पाने के लिए उससे लिपट जाती। घर में कमाने वाले बस नाना थे। कुछ समय बाद बीमार पड़ गए। मामा ने पढ़ाई छोड़ कमाना शुरू किया। आज अचानक माँ के लिए रिश्ता आया है। बहुत पैसे वाला परिवार है तीन बच्चे हैं। नाना-नानी दोनों यही चाहते है कि माँ हाँ कह दे। लड़का उम्र का थोड़ा ज्यादा है पर सरकारी नौकरी है। शादी शुदा हैं। पहली बीवी बीमारी के रहते चल बसी। आगे बढ़ने से पहले माँ से मिलना चाहते हैं।

"मैं तुम पर कोई दबाव नहीं डाल रहा और शादी करने से पहले तुम्हें सब कुछ सच बताना चाहता हूँ। तीन बच्चे हैं मेरे, बस उन्हीं के लिए माँ चाहिए लेकिन मेरी एक ही मांँग है तुम अकेली आओगी। हाँ तुम्हारी बच्ची की पढ़ाई का खाने-पीने का खर्चा मैं आजीवन उठाने को तैयार हूंँ, बशर्ते वो यहीं रहे क्योंकि तुम अपनी बच्ची के साथ रहकर मेरे बच्चों की माँ कभी नहीं बन पाओगी। "

कहते हैं माँ ने तुनक कर उन्हें घर से निकाल दिया था। इस बीच मामा की शादी हो गई और वो अलग चले गए। नानाजी को सदमा लगा, वो कौमा में चले गए। स्थिति ये थी कि कभी कभी घर में खाने को भी नहीं होता था। माँ को जब कोई रास्ता न सूझा तो वो सुधीर जी के पास गईं, " मैं आपसे शादी को तैयार हूँ यदि आप मेरी बेटी के साथ मेरे घर का भी  खर्चा उठाएंँगे। मैं आपको कभी शिकायत का मौका नही दूँगी। यही नहीं आप चाहते थे ना मैं अपनी बेटी से कभी नहीं मिलूँ । ऐसा ही होगा। "

शादी हो गई। माँ एक संम्पन्न घर में चली गई और नानी के साथ रह गई मैं, 'आभा'-नहीं बेचारी आभा। जब कोई नया मित्र बनता या किसी के घर वाले प्यार से बोलते तो उन्हें अपना सारा किस्सा सुना देती और जब वो 'ओहो बेचारी' कह सीने से लगाते तो मुझे लगता इतने लोग हैं तो सही मुझे प्यार करने वाले, मुझ बेचारी को। नाना जी चले गए। नानी बीमार थी। जाने से पहले मुझे खुश देखना चाहती थी। सुंदरता और पढ़ाई के चर्चे दूर-दूर तक थे। एक रईस घर के बेटे ने फिदा हो शादी का प्रस्ताव रखा। मुझ बिचारी का जितना उपयोग कर सकता था किया। पता चला प्रेम किसी औऱ से करता है और ये बात घर वाले भी जानते हैं। समझ चुकी थी हादसे मेरे जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। मुझे बेचारगी तक लेकर ही जाएंँगे। आज पुलिस थाने से फ़ोन आया ये आपके पति हैं? एक्सीडेंट में मारे गए। जहाँ परिवार का एक सदस्य मेरा परिचित था। आज उसके जाने के बाद जेठ-जेठानी, सास-ससुर सब आ गए। जेठजी से तेरह साल छोटे थे । जेठानी सौम्य सी, माँ सी शक्ल की, गले लगा बोलीं, "तुम हमारा ही हिस्सा हो कभी ख़ुदको अकेला मत समझना। "

सास के मुँह में एक ही बात रहती, "बिचारा क्या सोच कर घर बसाया था जिसकी किस्मत ही फूटी थी उसी को ले आया। "

आज जेठजी ने प्यार से सीने से लगाकर कहा, "बेचारी इतनी सी उम्र में इतने बड़े हादसे की शिकार हो गई। ख़ुदको कभी अकेला मत समझना। "

जेठानी जी अक्सर कुछ खोई सी रहतीं जब जेठजी की सच्चाई पता चली तो उनसे घृणा सी होने लगी। पति की जगह नौकरी लग गई आज आफिस का पहला दिन था।

आज ऑफिस गई तो वहाँ वीरेन जी से मिलना हुआ। सौम्य से व्यक्तित्व के और आकर्षक छवि वाले। मैं जल्द ही उनसे प्रभावित हो गई।

लंच टाइम में पियोन ने आकर कहा, "एक उम्रदराज महिला पास वाले कॉफी शॉप में आपको बुला रही हैं। "

कौन होंगी?मैं किसी को नहीं जानती। सोचते हुए वहांँ पहुँची।

वहाँ पहुँची तो बेंच पर एक महिला इंतजार कर रही थी। उसने मुझे देख आवाज लगाई, "आभुली ", पलट कर देखा भी नहीं कि आँसू टप-टप गिरने लगे। "आभुली" आज इतने सालों बाद, ये प्रेम भरा नाम न जाने कब सुना था जबसे माँ गई आभुली, बिचारी आभा हो गई थी। दिलकी धड़कन बढ़ गई गले लग इतना रोई, "क्यों कहते हैं माँ मुझे बेचारी, तू हैं ना फिर भी। "

माँ ने आँसू पौंछते हुए कहा , "सिर्फ आज मिलने आए हूँ जमाई जी का पता चला। तुझे ये कहने आई हूँ कि कमजोर मत पड़ना। तेरी माँ तो बेचारी थी। कोई सहारा न था, पढ़ी-लिखी न थी पर तेरी परवरिश, शिक्षा तुझे सब मिल सके इसलिए खुद की भावनाओं का सौदा कर दिया । "तेरी जेठानी का फ़ोन आया था एक बार उससे मिलने आओ , सो चली आई। तेरे आगे कोई मजबूरी नहीं हैं बस ये बेचारी बन जिस दिन गले लगाने वाले के कंधों को झिड़क देगी आगे बढ़ जाएगी। आगे से खुद के लिए लड़, खुद के लिए जी , लेकिन स्वाभिमान से, सहारे से नहीं। ये सहारा देने वाले सौदा करते हैं। भावनाओं का सौदा, जज़्बातों का सौदा। मैं तो बिक गई तुझे खड़ा करने के लिए। तू कभी अपना सौदा मत करना। "

माँ कह चली गई । कुछ दिनों से बेचैनी सी थी । डॉ को दिखाया तो पता चला एक नन्ही जान मेरे अंदर पल रही है। बस उसी दिन बेचारगी का चोला उतार फेंका ये सोच कि माँ के त्याग का फल देना है। मुझे माँ से कभी नफरत नहीं हुई। हमेशा उसकी बेचारगी की छवि मेरे अंदर रही। मेरा बच्चा कभी बिचारा नहीं बनेगा। आज खुद्दारी से जेठजी को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया। पर अपने पराए में भेद कभी जान.ही न पाई।

वीरेन जी ने लाख मदद की। जानते-समझते हुए भी कभी उन्हें अपना न बना पाई और इस सच्चे इंसान ने हमेशा मेरा साथ दिया।

बस फिर मेरे कदमों में बस प्रसिद्धि थी और मैं आभा आपके सामने।

अपने ऊपर अत्याचार न करने दें। बेचारगी से क्षण भर को तो सहानुभूति मिलती है पर उसके बदले आप अपना न जाने क्या-क्या खो देते हैं। मैं बस इतना ही कहना चाहूँगी लड़ो और आगे बढ़ो कभी बिचारी मत बनो।


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