प्राउड ऑफ़ यू पापा
प्राउड ऑफ़ यू पापा


मेरे पापा
सबसे पहले तो मैं आपको ये बता दूँ कि मैं अब कॉलेज जाने लगी हूँ। जानती हूँ कि फ़िलहाल आपको छुट्टी नहीं मिलेगी इसलिये ज़िद नहीं कर रही कि आप मेरा कॉलेज देखने आओ। वैसे भी ऐसी छोटी मोटी बातों के लिये ज़िद करना आपने सिखाया भी कहाँ है...
आप सोच रहे होंगे कि फोन पे बात हो तो जाती है फिर मैंने ये ख़त क्यों लिखा है? व्हाट्स एप्प के ज़माने में जब मैं आपको मैसेज कर सकती हूँ तो मैंने ये लम्बी चौड़ी चिट्ठी क्यों लिखी है?
चलिये बताती हूँ...
मैं शायद 3 साल की थी (मुझे तो याद नहीं पर आपको याद होगा) एक अंकल ख़ाकी कपड़े पहन के आये थे। एक चिट्ठी लेकर। चिट्ठी आपके लिये थी। जोइनिंग लेटर था जो आर्मी की तरफ़ से आपके लिये आया था। उस चिट्ठी के साथ साथ हमें गांव में छोड़ कर आप चले गये।
उस दिन के बाद हमें 2 वर्दी वालों का इंतज़ार रहने लगा। एक आप और एक वो खाकी वर्दी वाले अंकल जो आपकी चिट्ठियाँ लाया करते थे। कभी आप तो कभी आपकी चिट्ठी, ये सिलसिला काफ़ी वक़्त तक जारी रहा।
उस वक़्त शायद मैं 10 साल की थी। आपकी चिट्ठी आई थी। माँ ने बताया कि आप चाहते है कि हम शहर जाकर रहें जिससे मेरी और छोटू की पढ़ाई अच्छे से हो सके। फिर हम शहर आ गये।
शहर आ के हम बहुत खुश थे क्योंकि यहाँ फोन था। हम जब चाहें तब आपसे बात कर सकते थे। बता सकते थे कि आज हम दोनों भाई बहन में लड़ाई हो गई, बता सकते थे कि आज हमें किस टीचर ने डांटा, बता सकते थे कि इस बार आप अपने साथ क्या क्या लेकर आयें, बता सकते थे कि हमारे दोस्त कौन कौन हैं और कैसे हैं? पर पापा एक ख़ालीपन सा महसूस होता था। यूँ तो गाँव में भी आपकी याद आती थी पर शहर आने के बाद आपकी कमीं और खलने लगी थी।
और आज जा कर इस बात का एहसास हुआ कि आपकी कमी क्यों इतना खलने लगी। आज जब कुछ ढूंढते वक़्त माँ ने पुरानी चिट्ठियों का पुलिंदा बक्से से निकाल कर बाहर रखा तो मैंने उसे खोल लिया। माँ अपने काम में बिज़ी हो गई और म
ैंने पुरानी सारी चिट्ठियाँ खोल कर पढ़नी शुरू कर दीं। हर चिट्ठी अपने आप में बीते वक़्त की यादों को समेटे थी। शायद इसी लिये माँ ने अभी तक इनको सम्भाल के रखा था।
पढ़ते पढ़ते मुझे लगा कि चिट्ठी में लिखी बातों का असर ज्यादा होता है बजाय फोन पे कोई बात कहने के। इसीलिए जो कहना है वो चिट्ठी के ज़रिये कह रही हूँ।
पापा मैं आपसे हमेशा शिकायत करती थी ना कि मेरी सहेलियों के पापा उनको स्कूल छोड़ने जाते हैं लेने आते हैं, मुझे बुरा लगता है। पर पापा मैंने आपको कभी नहीं बता पाया कि मुझे कितनी खुशी होती है जब मैं आपका वर्दी वाला फोटो अपनी सहेलियों को दिखाती हूँ और कहती हूँ कि ये मेरे पापा हैं। मैं आपसे कहती हूँ कि आप कभी पेरेंट्स टीचर वाली मीटिंग में नहीं गये माँ हमेशा अकेली जाती थी। बहुत गुस्सा आता था उस वक़्त कि क्या जरूरत थी आपको आर्मी में जाने की। पर पापा जब भी टीचर क्लास में पढ़ाते वक़्त देश के वीर सैनिकों का ज़िक्र करती थी तो मेरे सामने आपका चेहरा घूम जाता था। उस वक़्त महसूस होती थी आपकी वर्दी की कीमत। तब एहसास होता था कि कितनी बेशकीमती है ये, किस्मत वालों को ही नसीब होती है। आपका आर्मी वाला रवैया जब आप घर में चलाते थे तब भी बहुत खीज होती थी पर पापा आज आपकी सिखाई हुई इन्हीं अच्छी आदतों के चलते हम अपने सपने पूरे कर पा रहे हैं।
हमने भले ही अपना बचपन आपके बिना जिया है। भले ही हम दुनियाँ से अकेले लड़े हैं। एक पिता की ज़रूरत पड़ने पर हम कई बार आपको याद कर के रोये हैं पर हमें आप पे नाज़ है पापा कि हमारे पापा एक वीर योद्धा हैं।
आप ये कभी मत सोचना कि आपके साथ ना होने की वजह से हम वो नहीं सीख पाये जो बच्चे अपने पिता के साये में सीखते हैं। एक अच्छे इंसान बनते हैं। पापा आपने हमे बहुत अच्छा इंसान बनाया है। अपने अच्छे कामों से हमें जीना सिखाया है।
थैंक्यू पापा एण्ड प्राउड ऑफ़ यू रियली प्राउड ऑफ़ यू
बाकी की बातें मिलने पर...
आपकी
छुटकी