sushil pandey

Tragedy

4.6  

sushil pandey

Tragedy

पंछियों के शोर से जाना की •••

पंछियों के शोर से जाना की •••

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आज सुबह हर रोज से थोड़ा जल्दी और सबसे बड़ी बात मुझे याद नही कितने सालों बाद पंछियों के शोर से नींद खुली।


कैसे कहूँ ठीक नही है कहना, क्योंकि है तो महामारी ही, पर कोरोना का सद्भाव ही था ये इंसानियत के लिए, हाँ ये भी ठीक है इसके दुर्भाव भी बहुत है लाखों लोगो को काल निगल गया इसी के कारण।


पर सच मानिए ये जरूरी हो चला था हजारो करोड़ खर्च करके भी सरकारें जो न कर पाईं वो कोरोना ने पिछले तीन महीने मे करके दिखा दिया। दिल्ली मे करीब-करीब गंदे नाले का शक्ल लेती यमुना अब छोटी ही सही नदी कहलाने लायक हो चली है। 


लुधियाना से 300 किमी दूर स्थित हिमालय नंगी आंखों से दिखने लगा है।


चाय का कप लेकर कभी घर की बालकनी से बाहर झांकिये श्रीमान स्वच्छ और नीला आसमान आपका स्वागत करता मिलेगा, दिल्ली के अब तक के 40-45 वर्षीय युवक ने अपनी जिंदगी मे ये कल्पना भी नही किया होगा।


जर्मनी के विशेषज्ञों का कहना है कि युरोप मे 14 वीं शताब्दी मे आया ब्लेक डेथ हो या दक्षिणी अमेरिका मे आया छोटा चेचक इतिहास गवाह है कि हर महामारी मानवों के लिए तो काल बनकर आयी पर मानवता की उम्र को बढ़ा गई।


स्पेनिश फ्लूऐंजा हो या वर्ड फ्लू, प्लेग हो या स्वाइन फ्लू सबने ही संसार की लगभग आधी आबादी को खत्म कर दिया इंसान तो बहुत मरे पर इंसानियत की उम्र को ये अपनी भी उम्र दे गयीं।


*कह ले मुझे तू कातिल या,*

       *फिर समझो शातिर नजराना,*

*जो जन्म दिया तूने ही मुझको,*

       * तो फिर क्या मुझसे घबराना।*

*दोष नही कुछ मेरा इसमे, *

        *हूं तनिक नही अपराधी मै,*

*जो काल को तूने जन्मा है,* 

        *तो सीख मुझी से मरजाना।।*


मुझे याद नही आता कि अपने जन्म के बाद से कभी भी प्रकृति को अपनी चिंता का कारण बनाया होगा मैने।


मेरी चिंता का हमेशा कारण अपना धन, अपनी संपत्ति, अपना खाना,अपनी गाड़ी ही रही कभी अपना बच्चा तो कभी अपना भाई था पर मैने कभी अपने बच्चे और अपने भाई को सलामत रखने वाले पानी और आक्सीजन को अपनी चिंता का कारण नही बनाया। 


पर क्या आपने बनाया कभी?? नही न! मुझे पता है आपका जबाब यही होगा।


हाँ सच हमने गंगा, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी की कभी अपनी मां की तरह खातिरदारी नही की। क्यों नही करते हम चिंता इनकी जैसे मेरी मां ने मुझे जिंदा रखने के लिए वो सब कुछ दिया जो जरूरी था।


तो क्या इन नदियों ने हमारे पूर्वजों और हमारे लिए जीवन के अत्यधिक आवश्यक सामग्री मुहैया नही कराया हमे?


तो क्या वातावरण ने सांस, खाना और पानी का इंतजाम नही किया हमारे लिए?


हाँ माँ ने दुध पिलाया हमे, तो क्या पानी और आक्सीजन की महत्ता को हम दुध से कम करके आंकते है? क्योंकि इसकी अभी तक बोली नही लगी है बाजार मे?


हम कोयले की चिंता करते हैं हम पेट्रोल की चिंता करते है मतलब हम हर उस चीज को अपनी प्राथमिकताओं मे रखते जिसकी कीमत हमे चुकानी पड़ती है? पानी और हवा की महत्ता को न समझने का मुख्य कारण उसकी मुफ्त उपलब्धता है? अगर ऐसा है तो सच मानिए इनकी कीमत हमे एक दिन जिंदगी बचाने के लिए भी जिंदगी देकर चुकानी पडे़गी।


किसी ने ठीक ही कहा है कि ....


*सभी जिम्मेदार हैं कुदरत के कत्ल मे।*

*वरना यूं ही हवायें जहरली नही होती।।*


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