Nisha Singh

Drama

4.3  

Nisha Singh

Drama

पंछी

पंछी

3 mins
329


चेप्टर -6 भाग-1


शनिवार की शाम… हम तीनों के नाम। हर शनिवार हम तीनों मेरे घर की छत पर डेरा जमाते हैं। कॉफी और नाश्ते का दौर चलता है, इसी बीच ढेर सारी बातें, और बातें…।

‘अवनी… अवनी…’

अंशिका की आवाज ने मुझे जैसे नींद से जगा दिया, शायद वह दोनों बाहर गेट पर आ गई थी। मैंने गेट खोला तो दोनों जल्दी से ऐसे अंदर आए जैसे अलीबाबा के खजाने का गेट खुला हो और लूटने का दूसरा मौका नहीं मिलेगा।

‘चल, जल्दी से…’ पिया ने मेरा हाथ पकड़कर खींचा।

‘अरे! चलती हूँ यार… गेट तो बंद करने दे।’

गेट बंद करके हम तीनों छत पर पहुंचे। मैं सारे इंतज़ाम पहले ही कर चुकी थी। मैट बिछा के, नाश्ता लगा दिया था बस कॉफी लाने की देर थी अब वह तो गर्म-गर्म ही अच्छी लगती है।

‘चलो… तुम लोग बैठो मैं कॉफ़ी लेकर आती हूँ।’

‘नहीं… आज तो चाय पीएंगे।’ पिया ने नई फरमाइश कर दी।

‘ठीक है तो मैं चाय ही बना लाती हूँ।’

‘नहीं… कोई जरूरत नहीं है चाय बनाने की कॉफी ही ठीक है।’

इससे पहले कि मैं जा पाती, अंशिका ने मुझे टोक दिया।

‘ठीक है… तो कॉफी लाती हूँ।’ कहते हुए मैं सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी।

‘तूने चाय की मना क्यों किया? हर बार कॉफी ही पीते हैं।’ पिया ने अंशिका को धीरे से कहा पर मुझे सुनाई दे ही गया, अपने मतलब की बात किसे सुनाई नहीं देती। मुझे पता था कि क्यों मना किया था। कॉफी बनाने में किचन में गई तो देखा मम्मी नानी के साथ फोन पर बातों में बिज़ी हैं। कॉफी बनाते हुए 6 महीने पुराना वाकया दिमाग में घूम गया।

अंशिका से एक गलती हो गई एक दिन, पिया उस दिन हमारे साथ नहीं थी, उसने मुझसे चाय बनाने के लिए कहा। मैंने बना दी… चाय, पर जैसे ही उसने चाय पी या पीने की कोशिश की, कह सकते हैं मरते-मरते बची। अरे… जहर नहीं मिलाया था, चाय थोड़ी स्ट्रांग हो गई थी… मतलब थोड़ी ज्यादा ही स्ट्रांग, कह सकते हैं कि कड़वी लग रही थी। यहां मेरे दिमाग में ये वाकया खत्म हुआ और वहाँ मेरी कॉफी बन गई।

‘कॉफी हाजिर है... मेहरबान, कद्रदान।’ कॉफी की ट्रे मैंने उन तीनों के आगे करते हुए कहा।

‘तू तो बस कॉफी ही पिलाया कर हमें…।’ पिया ने अपने अपनी कॉफी लेते हुए कहा।

‘हाँ, यही तो मैं कह रही थी, यही चाय चाय की रट लगा रही थी, कॉफी ही बेस्ट है।’ अंशिका ने कुछ ऐसे लहज़े में कहा कि मुझे हँसी आ गई। अपना कप लेकर मैं उनके साथ ही बैठ गई।

‘तू हंस क्यों रही है?’ दोनों ने एक साथ पूछा।

‘मुझे पता है कि मैं चाय बुरी बनाती हूँ। तुझे अंशिका ने बता दिया होगा उस दिन का इंसीडेंट…’ मैंने पिया की तरफ देखते हुए कहा।

‘मैंने सोचा तू बुरा मान जाएगी इसीलिए मैंने तेरे सामने नहीं कहा।’ अंशिका ने बड़ी ही मासूमियत से कहा, कहते हुए एक बच्चे जैसी लग रही थी।

‘अरे नहीं यार… मुझे पता है कि मुझे चाय बनानी नहीं आती, बुरी चाय बनाती हूँ इसमें बुरा क्या मानना?’

‘पक्का… तुझे बुरा नहीं लगेगा?’ अंशिका ने कहा तो मुझे उसके इरादे कुछ ठीक नहीं लगे। शायद कुछ था जो वह मुझ से कहना चाह रही थी।

‘हां… तू बोल, मुझे बुरा नहीं लगेगा…’

‘तो सुन… क्या कहा तूने कि तू बुरी चाय बनाती है, तू बुरी चाय नहीं बनाती तू बहुत बुरी चाय बनाती है और इतनी बुरी चाय बनाती है जहर भी फीका पड़ जाए तेरी चाय के सामने… उस दिन तेरे हाथ की चाय पी कर मर गई होती है मैं… आज के बाद भूलकर भी चाय मत बनाना तू…’ एक साथ उसने अपने दिल का गुबार निकाल दिया।

जैसे ही उसकी बात खत्म हुई मैंने पिया की तरफ देखा पिया ने मेरी तरफ देखा, हम दोनों ने अंशिका की तरफ देखा और इतनी जोर से हम दोनों खिलखिला कर हंसे कि पड़ोस की छत पर एक आंटी खड़ी थी उनका पूरा ध्यान सड़क से हटकर हम तीनों की तरफ आ गया।

‘अच्छा… ये बताओ तुम दोनों का आगे का क्या प्लान है?’ पिया ने हम दोनों से पूछा। 



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