प्लान
प्लान
"और मुझे बर्फ का गोला भी खाना है, काला खट्टा वाला ", थोड़ा और इतराते हुए उसने कहा।
" जो हुक्म मलिका-ए-आलिया, गुलाम आपकी हर ख़्वाहिश को पूरा करेगा।" यह सुनकर उसने फोन पर ही एक प्यार भरी मुस्कान उछाल दी।
" अच्छा यह बताओ, कौन सी ड्रेस पहनूं , वह नीली वाली पहन लूं जो अभी खरीदी थी।"
" नहीं, नीली नहीं, तुम तो वह पीला सूट पहनो जिसके साथ लहरिये का दुपट्टा है।"
"लहरिये का दुपट्टा! मगर मेरे पास तो ऐसा कोई दुपट्टा नहीं।", वह सोच में पड़ गई।
" नहीं है क्या, चलो कोई बात नहीं फिर तुम लहरिये की साड़ी पहन लो। बरसात में बहुत अच्छा लगता है लहरिया।", उसको ज्यादा सोचने का वक्त दिए बिना ही उसने कहा।
वह फिर से मुस्कुरा दी। " लो ठीक है, मैं तैयार हो जाती हूँ। तुम कितने बजे तक आ रहे हो?" उसकी आवाज़ में खनक आ गई थी।
" आज!", वह थोड़ा गंभीर हो गया। " तुम आज चलने की कह रही हो क्या! सॉरी डियर, आज नहीं, कल या परसों चलते हैं।"
" मगर मैं तो आज का कह रही थी, कल भी तो बोला था तुमसे। तब भी तुमने मना कर दिया था।", वह ठुनकते हुए बोली।
" यार, समझा करो। तुम बस शुरू हो जाती हो। हम कल चलेंगे। ठीक है! आज मुझे पापा के साथ कहीं जाना है। चलो बाय, कल बात करते हैं।"और उसने फोन काट दिया।
"लेकिन , कल मौसम बदल गया तो!", उसने जैसे खुद से ही कहा और मोबाइल साइड में रखकर अभी- अभी निकाली लहरिये की साड़ी को वापिस अलमारी में लटका दिया।

