Kameshwari Karri

Classics

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Kameshwari Karri

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पिया तोसे नैना लागी रे

पिया तोसे नैना लागी रे

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डॉक्टर शैलेंद्र ग़ुस्से से अपने कपड़े एक झोली में डालकर मेन डोर को ज़ोर से बंद कर घर से बाहर निकल जाता है। उसने डोर इतने ज़ोर से बंद किया कि बच्चों को लेकर कमरे में दुबक कर बैठी लीला चौंक गई। बच्चे ज़ोर से हे !हे !हे !!!!कहकर चिल्लाते हुए बाहर आ गए ऐसे लग रहा था जैसे पिंजरे में बंद पंछी को आज़ाद करें तो वह आसमान में गहरी साँस लेकर ऊँची उड़ान भरने लगती है। लीला को भी अच्छा लग रहा था।बच्चों को खुश देखकर फिर भी अपने डर का निवारण करने के लिए दरवाज़ा खोल कर बाहर आती है और देखती है कि कहीं वह वापस तो नहीं आ रहा है। 

लीला ने मनोविज्ञान में एम. ए किया था। भवानी प्रसाद की तीन लड़कियाँ और दो लड़के थे। उन्होंने ने अपने सभी बच्चों को बहुत ही अच्छे से पढ़ाया। बड़ी बेटी कमला डॉक्टर है दूसरी लीला मनोविज्ञान में एम ए किया है और तीसरी बेटी विमला बैंक मैनेजर की नौकरी कर रही है। बड़ा बेटा और छोटा बेटा दोनों बेकरी देख लेते हैं जो उन्हें पिता से विरासत में मिली है। बड़े बेटे ने एम बी ए किया छोटे ने होटल मेनेजमेंट का कोर्स किया। सभी लड़कियों और लड़कों की शादियाँ करा दी गई। 

आप सोच रहे होंगे कि अब इसमें कौनसी बड़ी बात है। रुकिए अभी कहानी यहीं से शुरू होती है। भवानी प्रसाद की एकलौती बहन है राजेश्वरी जिन्हें वे बहुत मानते हैं। अपनी बहन से इतना प्यार करते हैं कि उसकी शादी उन्होंने अपने मित्र सोमेश्वर से करवाई। उन्हें मालूम था कि सोमेश्वर बहुत ही अच्छा है।राजेश्वरी उससे शादी करके बहुत खुश रहेंगी। उनकी सोच सही निकली राजेश्वरी का जीवन खुशहाल था। उसके दो बेटे और दो बेटियाँ हैं। शैलेंद्र दूसरा बेटा था जो डॉक्टर था। डॉक्टर तो है पर बहुत ग़ुस्से वाला !!उसकी नाक पर ग़ुस्सा रहता है।राजेश्वरी को उसके शादी की फ़िक्र रहती थी कि मालूम नहीं कैसी लड़की मिलेगी।इसके ग़ुस्से को सहने वाली होनी चाहिए। राजेश्वरी भाई के घर आते जाते रहती थी।उसकी नज़र लीला पर पडी जो सीधी सादी थी बातें भी ऐसे करती थी जैसे ज़बान ही नहीं है गऊ के समान थी।पढ़ी लिखी है पर संस्कार कूट कूट कर भरे हैं। उसे लगा भाई से बात करूँ क्योंकि इनके पास बुआ के लड़के के साथ शादी हो सकती है। जब उसने भाई से कहा शैलेंद्र के लिए मैं लीला का हाथ माँगना चाहती हूँ भैया !!अगर आपकी सहमति है तो दोनों का विवाह कर देंगे। घर में किसी को भी आपत्ति नहीं थी क्योंकि शैलेंद्र को सब अच्छे से जानते थे। सिर्फ़ एक ग़ुस्सा ही उसमें बुरी आदत थी और कोई बुरी आदतें उसमें नहीं थी। सबको लीला पर विश्वास था कि वह अपने व्यवहार से उसके ग़ुस्से पर क़ाबू पा लेगी। परिवार के सदस्यों की सम्मति पाते ही शैलेंद्र और लीला का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ। भवानी प्रसाद समझ रहे थे कि शैलेंद्र से लीला का विवाह करके उन्होंने बहुत अच्छा काम किया पर उन्हें नहीं मालूम था कि उन्होंने लीला को आग में झोंक दिया है। 

शादी होते ही शैलेंद्र लीला को लेकर नाइजीरिया चला गया।वह उस समय वहाँ काम करता था। नाइजीरिया में शैलेंद्र का एक लेब भी था। लीला ने वहाँ पहुँच कर उस लेब की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।टेक्नीशियन की सहायता से वह काम करने लगी। शैलेंद्र तो अस्पताल चला जाता था। लीला खाना भी बहुत अच्छा बनाती थी। आए दिन शैलेंद्र अपने दोस्तों को दावत पर बुला लेता था पर सारा काम लीला को ही करना पड़ता था। उसकी हर बात मानने के कारण शैलेंद्र को ग़ुस्सा भी नहीं आता था। एक साल बाद गर्भवती लीला को उसके पिता आ कर ले गए। लीला ने बेटे को जन्म दिया। उसका नाम मोक्ष रखा। शैलेंद्र को ख़ुशी हुई या नहीं मालूम नहीं पर उसने अपनी कोई बात भी ज़ाहिर नहीं की। दो साल बाद लीला की एक लड़की भी हो गई। जिसको सब प्यार से परी बुलाते थे असली नाम प्राजक्ता था। लीला दोनों बच्चों में व्यस्त हो गई। शैलेंद्र को अब धीरे-धीरे लीला पर ग़ुस्सा आने लगा और उसने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। आए दिन वह बच्चों को सताने लगा उसे मालूम हो गया कि बच्चे लीला की जान हैं। लीला को सजा देनी है तो बच्चों को सताओ इसे शैलेंद्र ने आदत बना लिया। 

 एक दिन की बात है जब परी बहुत छोटी थी। मोक्ष लिविंग रूम में पढ़ाई कर रहा था। शैलेंद्र बाहर से आया और आते ही लीला चाय नाश्ता लाओ कहते हुए टी वी लगा लिया। ऊँची आवाज़ में गाने बजने लगे। लीला चाय नाश्ता लेकर आई और मोक्ष से कहा कल तुम्हारी परीक्षा है कमरे जाकर पढ़ो। शैलेंद्र उससे कहने लगा नहीं यहीं बैठकर पढ़ो। माँ की बात सुनकर जब मोक्ष अपनी जगह से उठा भी नहीं था कि शैलेंद्र ने वहीं बैठकर खेल रही परी को एक हाथ से उठाया और बालकनी में जाकर खड़ा हो गया कि मेरी बात नहीं मानोगे तो परी को बॉलकनी से नीचे फेंक दूँगा ओह !!!! 

लीला और मोक्ष को काटो तो खून नहीं दोनों शैलेंद्र के पाँव पकड़कर रोने लगे फिर कभी भी उसकी बात को नहीं टालेंगे उसकी बात सुनेंगे कहने के बाद उसने परी को नीचे बिठाया। जब तक शैलेंद्र घर में रहता बच्चे और लीला दोनों ही सहमे हुए रहते थे। शैलेंद्र दो तीन दिन के लिए बाहर काम पर जाता था। एक दिन जब शैलेंद्र बाहर गया हुआ था काम पर उसके पिता उन लोगों से मिलने आए थे। शैलेंद्र के न होने से बच्चों ने उनके साथ ख़ुशी ख़ुशी अपना समय बिताया। एक दिन खाना खाते हुए लीला के शरीर पर लगे घावों को देख सोमेश्वर ने लीला से पूछताछ की कि क्या बात है बेटा यह घाव कैसे? लीला के कुछ कहने से पहले ही मोक्ष ने उन्हें अपनी पिता की सारी करतूतों के बारे में दादा जी को बता दिया। सोमेश्वर को बहुत बुरा लगा उन्होंने ने लीला से कहा तुम पढ़ी लिखी हो तुम्हें इतना सहन करने की क्या ज़रूरत है बेटा। हमें बताती हम कुछ तो फ़ैसला लेते तुम्हारे लिए। 

चुपचाप रोने के अलावा लीला ने कुछ नहीं कहा। 

रात को किसी के रोने की आवाज़ से सोमेश्वर की नींद खुली देखा शैलेंद्र के कमरे से लीला के रोने की आवाज़ आ रही थी। सोमेश्वर उठे और उनके कमरे की तरफ़ जाने लगे तो उन्हें बच्चों के कमरे से दोनों बच्चों के सिसकने की आवाज़ भी सुनाई दी। उन्हें शैलेंद्र पर बहुत ग़ुस्सा आया उन्होंने शैलेंद्र के कमरे का दरवाज़ा खोला तो वे हैरान रह गए और उन्हें अपने आप पर शर्म आई कि शैलेंद्र जैसा दरिंदा उनका अपना बेटा है। उसने लीला के हाथ पैर बाँध दिया था और सिगरेट से उसके बदन पर जला रहा था। दौड़कर वे वहाँ पहुँचे और शैलेंद्र को धक्का देकर वहाँ से अलग किया और लीला के हाथ खोल दिया। शैलेंद्र ग़ुस्से से लाल पीला हो रहा था। उसने आव देखा न ताव पिता के गले को पकड़ कर दीवार तक ले गया और उनके गले को दबाने लगा। सोमेश्वर को लगा आज उनका अंतिम समय आ गया है। लीला ने पीछे से शैलेंद्र को धक्का दिया तब उसे होश आया। लीला और पिता को वहीं छोड़कर वह घर से बाहर चला गया। 

 अब सोमेश्वर ने कुछ नहीं कहा सीधे अपने दोस्त लीला के पिता को फ़ोन किया कि मैं लीला और उसके बच्चों को लेकर आ रहा हूँ आकर पूरी बात बताऊँगा कहते हुए लीला से कहा चल बेटा अपने घर चल इस नालायक और दरिंदे आदमी के साथ रहने की कोई ज़रूरत नहीं है। लीला ने कहा मैं जब शैलेंद्र घर पर नहीं है तब उसे छोड़कर नहीं आ सकती उसके आने के बाद उसे बताकर आऊँगी। सोमेश्वर ने कहा बेटा मैं और तुम्हारे पिता हम दोनों का यही फ़ैसला है कि तुम अपने बच्चों को लेकर भारत आ जाओ।हमारे जीते जी तुम्हें कोई तकलीफ़ नहीं होगी।लीला से भारत वापस आने का वादा लेकर बुझे मन से सोमेश्वर भारत के लिए रवाना हो गए। 

सोमेश्वर जी के जाने के बाद शैलेंद्र आया। लीला ने अपने और अपने बच्चों का सामान पहले से ही पैक कर लिया था। बच्चे बहुत ही खुश थे।बच्चों को खुश देखकर लीला ने अपने में हिम्मत जुटाई और शैलेंद्र से कहा मैं भारत वापस जा रही हूँ। अब यहाँ नहीं रहूँगी। 

शैलेंद्र चुपचाप लीला को देखता रहा उसके मुँह से कुछ नहीं निकला। वह सदमे में था। उसने कभी सोचा नहीं था कि लीला ऐसा कदम उठा सकती है। लीला ने टेक्सी बुलाया और अपना सामान उसमें रखा और दोनों बच्चों का हाथ थाम लिया और पीछे मुड़कर नहीं देखा जैसे वह पीछे मुड़कर उस डरावने सपने को फिर से अपनी ज़िंदगी में नहीं दोहराना चाहती हो। 

रेडियो से ‘पिया तोसे नैना लागे रे ‘ गाना बज रहा था जो कभी लीला का पसंदीदा गाना हुआ करता था।वह अक्सर उसे गुनगुनाती थी। आज उस गाने से जैसे नफ़रत सी हो गई थी। टेक्सी में बैठकर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और ड्राइवर से चलने को कहा !


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