rekha karri

Inspirational

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माँ का ग़ुस्सा

माँ का ग़ुस्सा

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प्रणति गाँव के अपने घर को किराये पर देकर बेटे के बुलाने पर उसके घर पहुँची। यहाँ आकर उसे अच्छा लग रहा था । बेटा बहू दोनों नौकरी पर चले जाते थे। अपने बच्चों को अपने हाथ से खाना बनाकर खिलाना उसे अच्छा लगता था इसलिए वह बहू से कोई काम नहीं करवाती थी वैसे भी सिर्फ़ खाना बनाने का काम ही करना पड़ता था बाक़ी सारे काम करने के लिए बाई आती थी । एक दिन सुबह प्रणति रसोई में खाना बना रही थी कि उसे बहू की बातें सुनाई दीं वह कामवाली बाई को काम पर आने के लिए मना कर रही थी यह कहकर कि हम अपना काम खुद कर लेंगे । अब तुम्हें आने की ज़रूरत नहीं है ।

प्रणति ने भी सोचा बहू को अपना काम खुद करना पसंद है । दूसरे दिन सुबह उसने कहा माँ आप बाहर के काम कर दीजिए मैं खाना बना देती हूँ । प्रणति को लगा ठीक है दूसरे काम दोनों के जाने के बाद आराम से कर दूँगी क्योंकि खाना तो बहू सुहानी बना ही देगी ।

एक हफ़्ते तक ठीक चला फिर धीरे-धीरे सुहानी ने खाना बनाने का काम भी सास पर डाल दिया था । प्रणति ने सोचा चलो अपने ही घर के काम हैं कर लेती हूँ ।

प्रणति धीरे-धीरे बीमार पड़ने लगी । सुहानी और सुंदर ने कहा कि आप गाँव के घर में आराम कीजिए वहाँ के वातावरण में आप जल्दी ठीक हो जाओगे ऐसा कहते हुए उसे गाँव भेज दिया था ।

प्रणति को समझ आ गया था कि उसके आते ही सुहानी ने कामवाली को क्यों हटा दिया था और अब वह आए दिन बीमार पड़ रही है तो उसे ही काम करना पड़ रहा है इसलिए गाँव भेज दिया है ।

प्रणति के यहाँ आने के बाद एक दिन उसने देखा दोनों पति पत्नी उसके दरवाज़े के पास हाथ जोड़कर खड़े हुए हैं और विनती करने लगे कि अब हमें अपनी गलती का एहसास हो गया है चलिए ना सुहानी माँ बनने वाली है हमें आपके साथ की ज़रूरत है । कहते हैं ना कि असल से सूद प्यारा होता है इसलिए बहू के माँ बनने की बात ने उसकी पिछली बातों को भुला दिया और वह उनके साथ चली गई ।

उनके घर एक बहुत सा खूबसूरत बच्चे ने जन्म लिया था । प्रणति ने एक साल तक उनकी सेवा की और बेटा बहू से कहा कि मैं बच्चे को लेकर गाँव चली जाती हूँ तुम दोनों यहीं रहो । वे लोग मान गए वह गाँव आकर उसकी पूरी तरह से देखभाल करने लगी । बेटा बहू हफ़्ते में एक दिन आकर बच्चे को देख उसके साथ समय बिताकर चले जाते थे । उसे माँ पापा बुलवाने की कोशिश करते थे वह सिर्फ़ दादी कहता था ।

सुहानी ने एक बार बच्चे को माँ कहकर ना बुलाने पर एक चपत भी लगा दी थी । प्रणति के मना करने पर उसके साथ लड़ने लगी कि आपने हमारे बच्चे को हम से छीन रहीं हैं अब मैं अपने बच्चे को आप के पास छोड़कर नहीं जाऊँगी । वैसे भी अब उसे स्कूल में भर्ती कराना है ।

प्रणति को बहुत ग़ुस्सा आया उसने कहा ठीक है एक पाँच लाख यहाँ रखो और अपने बच्चे को ले जाओ। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि यह कैसी जिद है ।

सुंदर ने कहा- यह क्या है माँ क्या कह रही हो ।

प्रणति- देखो सुंदर तुम्हारे बेटे को मैंने तीन साल पाला है उसके लिए तुम दोनों ने मुझे एक पैसा भी नहीं दिया सोचा भी नहीं था कि माँ बच्चे को कैसे पालेगी ।

आज जब वह बड़ा हो गया तो उसे स्कूल में जॉइन करने के लिए लाखों की फीस उसकी देखभाल के लिए आया का तनख़्वाह यह सब देने के लिए तैयार हो गए हो तो तुम लोग मेरे पैसे भी दे सकते हो ।

सुंदर- वह बात नहीं है माँ हमारा बेटा हमारा होकर भी हमारा नहीं है । हमें डर है कि वह कुछ दिनों तक यहीं रहा तो हमें माँ पापा भी नहीं कहेगा इसलिए इसे हम हमेशा हमारे साथ रखना चाहते हैं ।

सुहानी कहने लगी कि आपको शर्म करना चाहिए कि पोते को पालने के लिए पैसे माँग रही हैं ।

प्रणति हाँ तुमने तो मुझे नौकरानी बना दिया था वह भूल गई हो क्या मैं इतनी नासमझ नहीं हूँ मुझे पता है कि तुमने नौकरों को नौकरी से क्यों निकाल दिया था । आज भी बेटे को ले जाने की बात कर रहे हो पर तुम दोनों में से किसी के भी मुँह से नहीं निकला कि माँ आप अकेले कैसे रहोगे हमारे साथ चलो । सुहानी चुप हो गई । प्रणति को लगा

कि वे लोग जरूर बुलाएँगे लेकिन वे बच्चे को बिना माँ को पैसे दिए लेकर चले गए । माँ को मालूम हो गया था कि उन्हें उसकी ज़रूरत नहीं है ।

दूसरे दिन सुबह पोते की आवाज़ सुनाई दी थी कि दादी आप कहाँ हैं । उनकी आँखें भर आई थी उन्हें लगा कि उनके मन का वहम है परंतु यह वहम नहीं था बेटा पोते को लेकर आया और उनके पैर पर गिरकर कहने लगा था कि माँ हमें माफ कर दो हमारे साथ चलो ।

माँ तो माँ ही होती है वह उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गई थी यह कहते हुए कि देखना इसकी परवरिश मैं इतने अच्छे से करूँगी कि तुम लोगों को मेरे समान भुगतना नहीं पड़ेगा । बेटा बहू को अपने किए पर पछतावा हो रहा था ।



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