पिता का घोंसला
पिता का घोंसला
रमेश छुट्टियों में बच्चों के साथ शहर से गाँव आया था।
घर में खिड़की पर चिड़ियों एक घोसला बना था। रमेश ने देखा घोसलें में से कुछ दिनों से आवाजें नही आ रही थीं। मुझे लगा अब इसे हटा देना चाहिए। घोंसला ऊँचा था। रमेश ने टेबिल पर कुर्सी रखी और उस पर चढ़ने लगा। रमेश के 75 साल के पिता जी जो आज भी शारीरिक रूप से रमेश से ज्यादा तंदुरुस्त हैं चिल्लाए।
"रुक जा रमेश तुझ से नही बनेगा,मुझे मालूम है तू हर काम थतर मतर करता है। हट मैं निकालता हूँ। "
और वो उचक कर उस कुर्सी पर चढ़ गए जैसे कोई नौजवान चढ़ता है।
रमेश अवाक सा उनको देख रहा था। समझ भी रहा था कि उन्होंने उसे क्यों चढ़ने नही दिया। उन्हें डर था कि कहीं रमेश उस ऊँचाई से गिर न जाए। क्योंकि उनकी नजर में रमेश आज भी बच्चा था और कोई भी काम उनके स्तर से नही कर पाता था।
वह बहुत बड़ा घोंसला था और इस तरह से बनाया था कि अंदर बहुत मुलायम तिनके थे और वो गद्देदार बिस्तर से भी ज्यादा मुलायम लग रहा था।
उसको देख कर पिताजी ने मेरी बेटी को
आवाज़ लगाई।
"बिट्टो देखो चूजों के मम्मी पापा ने उनके लिए कितना आराम दायक घर बनाया है। "
बिट्टो दौड़ती हुई आई और खुशी से चीख पड़ी"हाँ दादाजी ये तो बहुत मुलायम है। "
दादाजी वो सब कहाँ गए,चूजे और उनके मम्मी पापा। "
बिट्टो ने उत्सुकता पूर्वक प्रश्न किया।
"बेटा चूजे बड़े हो गए,अपने पैरों पर खड़े हो गए और उड़ गए" दादाजी ने गहरी साँस लेकर कहा।
"और उनके मम्मी पापा । "
बिट्टो ने बड़ी मासूमियत से पूछा।
"बेटा मम्मी पापा अपने चूजों के बगैर नही रह पाए होंगे इस कारण से उन्होंने भी घर छोड़ दिया, जब तक बच्चे रहते हैं तब तक ही घर है वरना वो तो वीरान जंगल जैसा लगता है। "
माँ बाप कितने अरमानों से अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करते है और बच्चे उन्हें छोड़ कर चले जाते हैं। पास बैठ कर दो बात भी नही करते अच्छे से। "
दादा जी कनखियों से रमेश को देखते जा रहे थे और अपनी पोती को सीख दे रहे थे।
रमेश को मालूम है कि उनकी इस सीख में उसके लिए भी एक संदेश था।