Deepak Kaushik

Inspirational Others

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फुटपाथ

फुटपाथ

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फुटपाथ का ये हिस्सा कुछ ज्यादा ही महत्त्वपूर्ण था। इसलिए नहीं कि ये हिस्सा कालोनी का मुख्य मार्ग था। अपितु इसलिए कि यह हिस्सा चौराहे पर स्थित था। इस चौराहे पर जो दो मुख्य मार्ग एक दूसरे को काटते थे उनमें से एक कालोनी के समानांतर चलते हुए एक तरफ तो कालोनी के अंत में जाकर समाप्त हो जाता था तो दूसरी तरफ कालोनी के अंत तक जाकर कालोनी के भीतर की तरफ मुड़ जाता था। दूसरा मुख्य मार्ग एक तरफ तो शहर को जोड़ता था तो दूसरी तरफ कालोनी के भीतर जाकर अनेकों शाखाओं में फूट कर कालोनी के प्रत्येक घर तक जाता था। फुटपाथ का ये हिस्सा चूंकि पूरी कालोनी को शहर से जोड़ता था इसलिए कालोनी से शहर जाने वाले या शहर से कालोनी में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस चौराहे से गुजरना ही पड़ता था।


फुटपाथ के इस हिस्से का दूसरा महत्व यह था कि इस स्थान पर कुछ विशेष लोग अड्डा जमाया करते थे। इन अड्डेबाजों के तीन अलग-अलग गुट थे। पहला गुट था लंगड़े मन्ना भिखारी का। इस गुट में मन्ना भिखारी के अतिरिक्त ठेले पर सब्जी बेचने वाले, कबाड़ी वाले, सफाई कर्मी जैसे लोग थे। चौराहे के एक कोने पर हनुमान जी का एक मंदिर था। मंदिर के बाहर ही मन्ना भिखारी ने बांस की खपच्चियों और फटे-चीथड़ों की सहायता से एक झोपड़ी बना रखी थी। इसी में मन्ना भिखारी अधिकांश समय पड़ा रहकर भीख मांगा करता था। भीख मांगना तो बहाना था। इसका असली धंधा तो चरस-गांजे का था। इसके गुट में शामिल लोग वही थे जो इस नशे के लती थे। मंगल शनि को जब कालोनी के बहुत सारे लोग मंदिर में प्रसाद चढ़ाने आते तब यह भीख मांगता दिखाई देता था। इसकी भीख मांगने की शैली भी कुछ अजीब सी थी। ये एक फटा पुराना चादर बिछा कर बैठ जाता। जैसा कि अमूमन सभी भिखारी करते हैं। सामने एक अल्युमिनियम की छोटी सी परात। ये भी अमूमन सभी भिखारी रखते हैं। मन्ना भिखारी आते-जाते दर्शनार्थियों को तंग नहीं करता। ये बस 'भगवान-भगवान" की रट लगाता रहता है जो लोगों को "भोगवान-भोगवान" जैसा सुनाई देता है। इससे कुछ लोगों को इसके बंगाली होने का भ्रम होता है। परंतु ये बंगाली नहीं है। जो लोग इसका इतिहास जानते हैं उन्हें पता है कि इसका जन्म यहीं हुआ है। पहले इसकी मां भी यहीं भीख मांगा करती थी। इसके पिता का कोई पता नहीं था। मन्ना अक्सर लोगों के हाथों की रेखाएं पढ़ा करता था। उसकी बतायी बातें बहुधा सत्य भी हो जाया करती थीं। इस लिहाज से बहुतेरे कालोनी वासी यह मानते थे कि हो न हो मन्ना हनुमान मंदिर के दिवंगत पुजारी का ही बेटा है। वैसे भी अरूप हो चुके पुजारी जब तक जीवित रहे थे तब तक उनकी मन्ना पर काफी कृपा दृष्टि बनी रही थी। मन्ना के पास एक काम और भी था। इसके पास दुनिया भर की सूचनाएं आती रहती थी। अंत: ये गाहे-बगाहे मुखबिरी का काम भी कर लेता था।


दूसरा गुट पांच-सात वृद्धों का है। ये सभी अपनी-अपनी नौकरी या व्यवसाय से निवृत्त लोग हैं। इनकी कोई विशेष कहानी नहीं है। वहीं ढ़ाक के तीन पात। किसी की बेटी की शादी नहीं हो रही है तो किसी के बेटे को नौकरी नहीं मिल रही है। किसी का बेटा हाथ से निकला जा रहा है तो किसी की बेटी। सबके अपने-अपने अलग-अलग किस्से थे। परंतु एक-दो बातें ऐसी थीं जिसमें सभी एक मत थे। वो बातें ये थीं कि ये गुट शेष दोनों गुटों को अच्छी दृष्टि से नहीं देखता था। मन्ना भिखारी का नशे का व्यापार और दूसरे गुट के यहां उठने-बैठने मात्र से ही इस गुट को चिढ़ थी। इनकी दृष्टि में ये गुट आवारा लड़कों का था। अक्सर ये आपस में बात करते कि इनके पास कोई काम-धाम है या नहीं?


जी हां! सही समझा आपने। ये गुट युवा लड़कों का है। इस गुट में कोई पन्द्रह-बीस लड़के हैं। सभी बीस से पच्चीस के वय के हैं। परंतु इनमें से केवल चार-पांच युवक ही हैं जो यहां नियमित रूप से आकर बैठते हैं। वस्तुत: हनुमान मंदिर के दूसरी तरफ वाली सड़क के नीचे से एक नाला बहता था। स्वाभाविक रूप से नाले के ऊपर सड़क के दोनों किनारों पर दीवारनुमा रेलिंग उठायी गई थी। इन दोनों रेलिंगों में से एक पर युवकों का अड्डा था और दूसरे पर वृद्धों का। तीसरे गुट के स्थायी सदस्यों में प्रधान था चंदन। यह लंबे-चौड़े शरीर और शांत स्वभाव का व्यक्ति था। जिम जाता था। जिससे इसका बदन खूब गठीला हो गया था। जब कभी गुट के सदस्यों में मतभेद या संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती थी तब उसकी मध्यस्थता और निपटारे का उत्तरदायित्व यही उठाता था। यह अपने शरीर सौष्ठव के कारण सेना या अर्द्धसैनिक बल में जाना चाहता था। दूसरा मुख्य सदस्य था दिवाकर। यह किसी कंपनी में सेल्समैन हो गया था और ठीक-ठाक पैसे कमा रहा था। शेष तीनों अभी विद्यार्थी ही थे। इस गुट के पास एक विशेष काम था। आती-जाती लड़कियों को देखना और आहें भरना। ना-ना! इससे ये मत समझिए कि ये ग़लत चाल-चलन के युवा हैं। उम्र का तकाजा है। दूर से देखते हैं और मन की भड़ास निकालते हैं। पास जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। चंदन लड़कियों के चक्कर में नहीं पड़ता। परंतु गुट के सदस्यों की तड़प का आनंद अवश्य लेता था। यही कुछ हाल दिवाकर का था। परंतु चूंकि ये सारे दिन बाजार में व्यतीत करता था और कमाने भी लगा था इसलिए इसका आत्मविश्वास बढ़ गया था। जरूरत पड़ने पर लड़कियों से बातचीत कर सकता था। परंतु अनावश्यक बात कर पाना विशेष कर किसी लड़की को पटा पाना इसके भी बस की बात नहीं थी।


इन तीनों गुटों के मध्य किसी प्रकार का संवाद नहीं था। यहां तक कि ये एक-दूसरे से अभिवादन भी नहीं करते थे।


एक सुबह।

कोई आठ बजे का समय था। तीनों गुट अपने-अपने रोजमर्रा के काम में लगे थे। सड़कों पर रोज की भांति ही चहल-पहल थी। लोग अपने-अपने काम पर जा रहे थे। रोज की तरह ही स्कूल जाने वाले छात्र-छात्राएं अपने-अपने विद्यालयों को जा रहे थे। एक तरफ से उन्नीस-बीस वय की कॉलेज जाने वाली तीन छात्राएं साइकिलों से आ रहीं थीं। दूसरी तरफ से एक मिनी ट्रक आ रहा था। सब कुछ सही-सही चल रहा था कि अचानक लड़कियों के पास पहुंचते ही ट्रक का संतुलन बिगड़ा और एक लड़की के पास जाकर रुक गया। परंतु रुकते-रुकते भी उसने लड़की को अपनी चपेट में ले लिया। पहले साइकिल जमीन पर गिरी फिर लड़की। गिरते-गिरते लड़की का कुर्ता ट्रक की बाड़ी से फंसा और उसके अंतर्वस्त्रों सहित फट गया। लड़की जब भूमि पर गिरी तब उसका वक्ष अनावृत्त हो चुका था।


कई प्रतिक्रया एक साथ हुई। गुट नं० दो के कई सदस्यों की आंखों में अचानक से चमक आ गई। उनकी दृष्टि लड़की के अनावृत्त, कौमार्य से भरपूर वक्षस्थल से चिपक गई। कुछ सदस्य यथा संभव शीघ्र चलते हुए लड़की तक पहुंचे। गुट नं० दो से अधिकांश समय शांत रहने वाले चंदन ने लपक कर ट्रक से ड्राइवर को पकड़ कर नीचे खींच लिया और पीटना शुरू कर दिया। हमेशा लड़कियों को देखकर चटकारे लेने वाले विनय और दूसरे युवकों ने क्लीनर को थामा। दिवाकर एक कार की तरफ लपक गया ताकि लड़की को समय से चिकित्सालय पहुंचाया जा सके। गुट नं० एक का मन्ना भिखारी भी लपक कर आया और अपने मैले-कुचैले गमछे से युवती के अनावृत्त वक्ष को ढंक दिया। जो वृद्ध जन लड़की के समीप आते थे उनमें से एक डॉक्टर थे। उन्होंने उस युवती नाड़ी आदि परीक्षण कर कहा-

"जीवित है। समय पर उपचार मिल जाने से बच जायेगी।"

"दिवाकर ने एक कार रोक ली है।"

गुट नं० एक के एक सदस्य ने कहा। लड़की को आनन-फानन में कार में चढ़ाया गया। दो युवक कार बैठे।

"अंकल! आप भी साथ चले जाइए। क्या पता रास्ते में आपकी जरूरत पड़ ही जाए।"

एक युवक ने डाक्टर साहब से कहा। डॉक्टर साहब भी कार में सवार हो गए।

"पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करवानी होगी।"

डॉक्टर साहब ने कार में सवार होते-होते कहा।

"उसकी जिम्मेदारी मेरी।"

मन्ना ने कहा और तत्काल ही थाने की तरफ चल पड़ा।


इस घटना के अगले दिन।


तीनो गुटों ने एक-दूसरे का अभिवादन किया। एक-दूसरे से हाल-चाल पूछा। भले ही सामाजिक प्रतिष्ठा और वय ने इनके बीच की दूरी को स्थायी रूप से खत्म न किया हो। परंतु अब ये एक-दूसरे से अंजान नहीं थे।



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