फुलवारी की चुड़ैल
फुलवारी की चुड़ैल


ये कहानी सन 1920 की है।
10 साल की छोटी बच्ची नेहा भरी दोपहरी में अपने घर के आँगन में खेल रही थी, उसका घर ना तो छोटा था, ना ही ज्यादा बड़ा, उसके घर के सामने एक बहुत बड़ा और घना बगीचा था। जो दूसरी तरफ नदी के किनारे तक फैला हुआ था, उस नदी से कुछ दूरी पर ही एक फूलों का बड़ी सी फुलवारी थी या जंगलों में फुलवारी थी कहा नहीं जा सकता।
वहां लोग बहुत कम ही जाते थे यूं कह ले की जाते ही नहीं थे, गुलाब सूरजमुखी गेंदा चमेली गुलहाजारा के साथ साथ बबुल बेर नागफनी और धतूरा जैसे पेड़ और झाड़ियाँ भी थी नदी के करीब होने के कारण बहुत से जंगली पेड़ो का बसेरा भी था। लोग तो दिन भी नहीं जाते थे पर जानवर फूल पत्तियाँ खाने की लालच में अक्सर वहां चली जाया करती थी।
उस दोपहरी में नेहा अपने आँगन में शायद अपने किसी मिट्टी के खिलौने से खेल रही थी उसकी माँ घर में सो रही थी और पिता सचिदानंद पंडित थे तो वो दूसरे गाँव पूजा करवाने गए हुए थे।अचानक एक तितली नेहा के आँगन में आ गई और उसके मिट्टी के खिलौने के इर्द गिर्द मंडराने लगी, उस तितली का रंग सुनहरा था, जिसपर किनारे काले रंगो की लाइन बनी हुई थी और लाल रंग की गोल गोल धब्बे उसके पंखों पर थी। वो तितली और तितलियों से बड़ी और आकर्षक थी, जब नेहा ने इतनी बड़ी तितली को पास देखा तो उसे पकड़ने लगी। फिर वो अपना खिलौना भूल के उस तितली के साथ ही पकड़म पकड़ाई खेलने लगी। नेहा को पता भी नहीं चला की वो कब उस तितली के पीछे पीछे घर से बाहर आ गई थी। वो तो तितली को पकड़ने में इतनी खो गई की वो उसके पीछे ये ...ये ....रुक ....रुक ... करती हुई भागती रही। उस तितली ने बगीचा पार किया नदी के किनारे पहुंची, और फिर उसी जंगल वाले फुलवारी में घुस गई नेहा को तो कुछ भी पता नहीं था वो तो बीएस तितली पकड़ लेना चाहती थी।
उस भरी दोपहरी में इंसान तो क्या एक जानवर भी दूर दूर तक नजर नहीं आ रहे थे, नेहा बेतहाशा उस तितली को पकड़ने के चक्कर में अपने छोटे छोटे कदमों से उस फुलवारी में घुस गई। तितली भी कुछ आगे जाके एक सूरजमुखी के फूल पर बैठ गई अब नेहा अपनी नज़रे उस तितली पर गड़ाए धीरे धीरे छोटे छोटे कदमों से उस तितली की तरफ बढ़ने लगी। उस बच्ची को कुछ पता भी नहीं था की वो किस बिहड़ जंगल में आ गई, नेहा से तो बड़े बड़े वहां के पौधे थे, नेहा तो दिख भी नहीं रही थी। नेहा उस तितली के करीब पहुंच गई थी उसने अपना हाथ तितली को पकड़ने के लिए आगे बढ़ाया। पर तितली अभी थोड़ी और दूर थी, तो नेहा ने अपना पिछले पैर धीरे से आगे बढ़ाकर तितली को पकड़ने के लिए आगे बढ़ी पर नेहा का पैर आगे ही नहीं बढ़ा शायद कहीं फँस गया था। नेहा ने सोचा की मैं अपना पैर पहले निकल लूँ जहाँ भी फँसा है फिर तितली को पकड़ूँगी,पर जैसे ही नेहा पीछे मुड़कर देखी तो उसका पैर फँसा नहीं था। उसके पैर को किसी हाथ ने पकड़ रखा था, काली सी जली हुई लकड़ी की तरह हाथ उसमे काले गंदे लम्बे लम्बे नाख़ून वाले हाथ देख के तो अच्छे अच्छा की जान लेने के लिए बहुत था। नेहा डर के मारे चीखने चिल्लाने लगी, पर उसकी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं था, वो पैरो को खींचने लगी की शायद उसके पैर छूट जाये पर ये संभव नहीं जान पड़ रहा था। पैर तो नहीं छूटा पर उस खींच तान में नेहा धड़ाम से गिर गई, और चीख चीख कर रोने लगी, उस हाथ में अब धीरे धीरे हरकत होने लगी।
नेहा फिर खड़ी होकर पैरो को रोती रोती खींचने लगी पर नेहा के ऐसे पैरो को खींचने से उस हाथ के साथ साथ एक सडी सी लाश निकलने लगी। नेहा रोती चिल्लाती रही और पैरो को खींचती रही, और वो लाश बाहर आती रही .... जब लाश पूरी बाहर आ गई तो उस लाश की हालत ये थी की वो देख के मुर्दा भी मर जाए। शक्ल और शरीर पर कहीं मांस के लोथड़े लटक रहे थे, तो कही हड्डियाँ दिख रही थी, अभी भी उसकी नसे साफ़ दिख रही थी, जो की पूरे शरीर में फैली हुई थी। और उसका दिल किसी खुटी पर लटके हुए थैले के समान नसों से लटक रहा था, उसका दिल छाती के पास से थोड़ा नीचे पेट पर लटकते हुए पहुंच रहा था। अब वो पूरी की पूरी लाश बाहर आ चुकी थी और खड़ी होने की कोशिश करने लगी जिस कारण नेहा का पैर छूट चुका था पर नेहा ये सब देख कर होशो हवास खो चुकी थी। वो सब देख समझ रही थी पर अब ना रो रही थी ना चिल्ला रही थी और ना ही भाग रही थी, वो एक जगह पुतला बने खड़ी थी।
आप सब समझ ही सकते है 10 साल की बच्ची पर क्या बीत रही होगी ...वो लाश खड़ी हो गई और उसके शरीर में माँस भरने लगा, और वो एक औरत बन गई उसका चेहरा भरा भरा बड़ी बड़ी आँखें, आँखों में मोटे मोटे काजल, लम्बे लम्बे घने और गीले खुले बिखरे बाल, बड़ी सी बिंदी और सिंदूर से भरा माथा, खुनी लाल रंग की साड़ी, हाथों में भरी भरी कांच की लाल चूड़ियां। पैरो में मोटे मोटे पायल पहनी एक भयानक औरत में बदल गई और एक जोर का अट्ठास करती हुई हँसने लगी। तभी नेहा को होश आया और वो अपने घर भागती भागती आई और अपने आँगन में आकर बेहोश हो के गिर गई।
नेहा की माँ ने आवाज़ सुनकर दौड़कर आँगन में आई, आँगन में नेहा को बेहोश देखकर घबराकर रोने लगी। उसकी माँ का रोना सुन के सारे पड़ोसी इकट्ठा होने लगे, नेहा को कमरे में ले जाया गया और उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारे गए, तो नेहा को होश आ गया। उठते ही नेहा डर के मारे माँ को गले लगाकर रोने लगी, माँ ने उसे चुप कराया तो नेहा ने अपनी सारी आप बीती सबको बता दिया। सबने बोला वो जगह ठीक नहीं है, संभल कर रहना कोई भी बात हो तो हमें बुला लेना। नेहा की माँ को तो डर ये था कि नेहा के पापा भी घर पर नहीं थे, अगर कोई बात हो जाये तो वो दोनों अकेले क्या करेंगे, अब नेहा और उसकी माँ पंडित जी का इंतज़ार करने लगे।
उस रात अच्छे से खिड़की दरवाज़े बंद करके दोनों सोये, तक़रीबन 12 बजे कुछ हलचल हुई, पहले गाँव में लोग 8-9 बजे तक सब सो जाते थे। आवाज़ सुनते ही नेहा की माँ के कान खड़े हो गए, बाहर से कोई औरत भारी आवाज़ में बोल रही थी कि अपने घर को मंत्रो से बांध रखी है की मैं अंदर ना आ सकूँ। ये कहकर हँसने लगी और दरवाज़े के छेड़ से मिट्टी कंकड़ सब घर के अंदर फेंकने लगी, नेहा की माँ घर के अंदर सहमी सहमी भगवान का नाम लेती रही। ये सब 12 बजे रात से लेकर सुबह 3 बजे तक चलता रहा, उसके बाद सब शांत हो गया तो नेहा की माँ भी थोड़े देर के लिए सो गई, नेहा और उसकी माँ 6 बजे जगी। तो अपने कामों में लग गई किसी से अब तक उसकी माँ ने कुछ भी नहीं बताया कि कल रात क्या हुआ था। करीब 10 बजे तक नेहा के पापा पंडित सचिदानंद घर आ गए, उन्हें देखकर दोनों उनसे लिपट कर रोने लगे, नेहा ने सारी बात पापा को बता दी।
और उसकी माँ ने रात के हादसे के बारे में सब बता दिया, पंडित जी ने लम्बी सांस भरते हुए कहा - अच्छा हुआ मैंने अपने घर को तंत्र विद्या से बाँध दिया था। क्योंकि मैं घर से अधिकतर बाहर ही रहता हूँ, तो मेरे मन में तुम लोगो की चिंता होती थी कि कोई अनहोनी ना हो जाए, इसीलिए मैंने घर को बाँध दिया था। अब आज रात उसको आने दो, फिर देखते है कौन है वो कौन सी चुड़ैल है।
रात हुई माँ और नेहा घर के अंदर सोई और पंडित जी आँगन में खाट बिछा कर सोये, रात 12 बजे फिर से वो चुड़ैल आई। पंडित जी की मालाये और ताबीज से एक अलग ही सुरक्षा घेरा निकल रही थी जिस कारण वो चुड़ैल घर से बहार ही खड़ी होकर हँस रही थी। हँसी को सुनकर पंडित जी की आँखें खुल गई, पंडित जी ने पहले से ही एक परात में आग जला कर उसमे कुछ अद्भुत चीज़े डाली हुई थी जैसे ही चुड़ैल ने आँगन में कदम रखी कि पंडित जी ने उस आग जिसमे पहले से तंत्र साधना करके कई चीज़े स्वाहा की जा चुकी थी। उसमे लाल मिर्च डालकर माँ काली का नाम लेते हुए उस चुड़ैल के ऊपर पूरा का पूरा आग फेंक दिए। वो चुड़ैल छटपटाती रही चिल्लाती रही, अगले 10 मिनट में वो चुड़ैल भस्म हो चुकी थी, अब वो वापस लौट के कभी नहीं आई। पंडित जी ने बताया कि उस चुड़ैल को आज से 5 साल पहले मैंने ही अपने तंत्र विद्या से मारा था और गाँव के लोगो ने उसकी लाश को वही फुलवारी में दफ़ना दिया था। उस टाइम ये चुड़ैल नहीं डायन थी जो पहले अपने बच्चों की बलि देने के बाद गाँव के लोगो के बच्चों की बलि देने लगी। ये बातें जब सबको पता चली तो उससे बचने का यही रास्ता निकला गया। शायद किसी तरह वो जिन्दा रह गई और ज़मीन के अंदर पड़ी रही, और मेरी बेटी को अकेले देखकर उसके पीछे पड़ गई ! उसे सता कर मुझसे बदला लेना चाहती थी, पर जीत हमेशा अच्छाई की होती है इसलिए इस बार फिर से वो मारी गई।
वो चुड़ैल अब कभी वापस नहीं आई........