Anita Sharma

Romance

3.3  

Anita Sharma

Romance

फुलवा

फुलवा

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हिमाचल की सुन्दर वादियों के बीच एक छोटा सा गाँव है कसौल, गज़ब की सुंदरता बरबस ही सबका ध्यान अपनी ओर खींचती है। उसी गाँव में रहती थी हमारी फुलवा बहुत ख़ूबसूरत थी वो, अगर उसकी तारीफ करें तो शायद शब्द भी कम पड़ जाएँ, वो झील सी नीली आँखें, लम्बे रेशमी काले बाल,दूध सी गोरी रंगत, किसी कवि की कल्पना से कम नहीं थी, हमारी फुलवा, लगता था मानो स्वर्ग से कोई अप्सरा उतर आयी हो, दिन भर पूरे गाँव में हँसती खेलती रहती थी।

कोई फूलो, कोई गुड्डो, तो कोई गोरिया कह कर बुलाया करता था। थी बहुत ग़रीब परिवार की लेकिन सपने बहुत बड़े देखा करती थी। सबको अक्सर कहती फिरती थी, मुझे तो लेने दूर देश से कोई राजकुमार ही आएगा, माता पिता सुनते तो हमेशा हँस कर टाल देते थे बस प्यार से आशीर्वाद ज़रूर देते थे कि बेटी तुम जहाँ भी रहो बस खुश रहो भगवान तुमको हर बुरी नज़र से बचाए । बस इतना सुनते ही माता पिता के गले लग जाती थी और कहने लग जाती थी मैं आपको छोड़ कर नहीं जाने वाली।

बस ऐसे ही दिन गुज़र रहे थे, फुलवा उन्नीस बरस की हो चली थी। माता पिता को भी फ़िक्र होने लगी थी, एक दिन फुलवा की माँ ने उसके पिताजी से कहा कल जब घोड़ा गाडी लेकर जाओ तो पास के गाँव निकल जाना भाई ने किसी लड़के में बारे में बताया है। कह कर गए थे जल्दी देख लो नहीं तो हाथ से निकल जाएगा। हमारी फुलवा को तो उसके माता पिता देख चुके है, याद नहीं आपको पिछले साल कमली चाची के यहाँ शादी थी वहाँ अपनी फुलवा ने कितना काम किया था।

वहीं नज़र पड़ी थी लड़के की माँ की, सुनते हैं हमसे बहुत अच्छा कमाता है और कोई माँग जाँच भी नहीं है उनकी हमारी, फुलवा सच में भाग्यशाली है, वरना कहाँ खुद रिश्ता आता है चलकर। ऐसे ही बात करते दोनों सो गए। आज और दिन से जल्दी दोनों उठ गए थे। फुलवा कि माँ ने भी जल्दी से कुछ मीठा बाँध कर दे दिया कि, लड़के के यहाँ जाओ तो खाली हाथ मत जाना ये ले जाना कुछ जमा किये थे रुपये तो उसी से सामान लाकर बना दिए थे। पिताजी ने फुलवा को आवाज़ लगायी और उसको गले से लगाकर घर से निकल गए। फुलवा के पिताजी उस जगह आने वाले विदेशियों को घुमाने का काम करते थे। लेकिन आज उन्होंने सोचा सीधे पहले उस लड़के के परिवार से मिल लेता हूँ। लौटते में कोई मिलेगा तो उसको लेता आऊंगा और घुमा दूँगा,सोचते हुए सीधे उसके पिताजी लड़के के घर पहुँच गए।

घर ठीक ठाक लगा उन्हें, अंदर पहुँच कर उन्होंने बातचीत शुरू की लड़के की माँ बहुत खुश थी, क्यूँकि फुलवा को बहू के रूप में तो उसी दिन से सोच कर बैठी थीं जब पहली बार उन्होंने उसको देखा था। काफी देर बातचीत के बाद उन्होंने लड़के को आवाज़ लगायी तो देख कर थोड़ा मायूस हो गए थे लड़के की उम्र तो बहुत ज़्यादा लग रही थी उनका मन थोड़ा उदास हो गया था की मैं अपनी फूल सी बच्ची का विवाह यहाँ नहीं कर सकता अब जो लिखा हो उसकी किस्मत में लेकिन यहाँ नहीं, सोचकर फुलवा के पिता वहां से लौट गए बस वो घर के लिए चल पड़े।

उधेड़ बुन में लगे चले जा रहे थे की आज का दिन ही खराब रहा न लड़के की बात बनी ना ही आज कोई कमाई कर पाया, अचानक उन्हें किसी ने आवाज़ दे कर पुकारा, उन्होंने घोड़ागाड़ी को रोका और पलट कर देखा तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा उन्होंने सोचा लो में तो भूल ही गया था की आज कुछ कमाई नहीं हुई है चलो अच्छा ही हुआ एक सवारी ही सही कुछ रुपये तो हाथ आयेंगे, ये सोच कर के फुलवा के पिताजी ने उस विदेशी को अपनी घोड़ा गाडी में बिठा लिया और चल पड़े। दिखने में तो नौजवान सा दिख रहा था।

फुलवा के पिताजी ने पूछा इशारे से 'वेयर ? (कुछ टूटी फूटी अंग्रेजी के ही जानकार थे फुलवा के पिताजी ), उसका जवाब था 'कसोल', बस अब तो वो बहुत खुश थे कि चलो आज ज्यादा मेहनत भी नहीं पड़ी, मुसाफ़िर भी मिल ही गया तो कमाई भी हो ही जाएगी, बस हल्की फुल्की बातचीत दोनों करते रहे, कुछ देर में ही कसोल पहुँच गए थे। अब फुलवा के पिताजी के मन में आया कि पहले घर होकर फिर मुसाफिर कि घुमा देता हूँ सब जगह। उन्होंने घर के सामने गाड़ी रोक उस विदेशी मुसाफिऱ को कुछ देर रुकने के लिए कहा और घर के अंदर चले गए, वो मुसाफ़िर गाड़ी से नीचे उतरकर आसपास की खूबसूरती की तस्वीरें अपने कैमरे में उतारने लगा, वो तस्वीरें खीँच ही रहा था कि उसकी नज़र कहीं ठिठक गयी और वो तस्वीरें खींचते खींचते बुत सा खड़ा रह गया था।

मुँह से बस उसके यही निकला 'अमेजिंग व्हाट अ ब्यूटी। वो एकटक उसको निहारने लगा इतने में फुलवा भी करीब आ चुकी थी समझ गयी थी, शायद पिताजी का कोई मुसाफ़िर ही होगा। पास आते ही उसने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया लेकिन वो विदेशी नौजवान तो बस अपलक उसको निहार रहा था। बस फिर क्या था फुलवा ने ज़ोर से चुटकी बजाई और ज़ोर से हंसती हुई घर के अंदर भाग पड़ी नौजवान थोड़ा सकपका गया था, लेकिन मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

ना जाने मन में उसके फुलवा के लिए शायद आकर्षण पैदा हो गया था। इतने में फुलवा के पिताजी बाहर आ गए और गाड़ी पर चढ़ने ही वाले थे कि वो मुसाफ़िर पानी मांगने लगा, फुलवा के पिताजी ने फुलवा को आवाज़ लगा कर पानी लाने के लिए कहा," असल में निकलने से पहले वो एक बार फिर उसको देखना चाहता था" आधा दिन बीत चुका था लेकिन फुलवा के पिताजी ने सोचा चलो थोड़ा आसपास तो घुमा ही लूँगा वो लोग निकल पड़े वो विदेशी नौजवान तो बस उसमें ही खोया था जैसे, इधर घूमते घूमते रात हो चली थी, फुलवा के पिताजी ने उससे पूछा कि वो कहाँ ठहरेगा, "वो तपाक से बोल उठा 'कैन आय स्टे एट यॉर होम"!

उनको थोड़ा अजीब तो लगा लेकिन फिर भी उन्होंने हामी भर ही दी थी ठण्ड भी थोड़ी बढ़ गई थी वो घर लौट आये थे देर रात हो चली थी। उन्होंने खाना खिलाकर उसकी सोने कि व्यवस्था करवा दी थी।उस नौजवान कि फुलवा का हँसता हुआ चेहरा याद आ रहा था शायद रात भर सोया भी नहीं था वो,उसने सोच लिया था कि इस लड़की के पिताजी से सुबह बात कर ही लेता हूँ । सुबह होते ही सब के लिये चाय और नाश्ता रखा गया वो नौजवान बस फुलवा को ही निहार रहा था,"बहुत प्यारी लग रही थी फुलवा भीगे बालों में" ।नाश्ता करते करते उस नौजवान ने फुलवा के पिताजी से सीधे बोल दिया," आई वांट टू मैरी योर डॉटर" । फुलवा के पिताजी ने मना करते हुए सर हिला दिया । अब उसको कैसे समझाते ? लेकिन उस नौजवान में ठान लिया था, वो कैसे भी करके अब उसी से शादी करना चाहता था, फुलवा के पिताजी की उसने अपने मन की बात कह दी थी।

हालाँकि फुलवा के पिताजी ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और उसको लेकर घुमाने के लिए निकल पड़े, उनके मन में यही था थोड़ी देर में घुमा कर छोड़ दूँगा, तो अपने आप ही वापस लौट जाएगा परदेसी का क्या भरोसा! बस फिर क्या था, वो लगभग कसौल घूम चुके थे। फुलवा के पिताजी ने उसको छोड़ दिया था, लेकिन उस नौजवान ने तो जैसे पक्का इरादा कर लिया था। उसने वहीँ कुछ दिन रहने का मन बना लिया था। फुलवा के घर के करीब ही उसको रहने की जगह मिल गई थी।

उसी घर में संजीव नाम का जो लड़का था, उसकी अंग्रेजी भाषा में अच्छी पकड़ थी । स्टीव को अपनी बात समझाने का एक जरिया मिल गया था,और हाँ स्टीव ने संजीव से हिंदी सीखना शुरू कर दिया था,बीस दिन बीते थे लगभग स्टीव भी हिंदी काफी हद तक सीख चुका था, उसने अपने माता पिता जो भी बुलवा लिया था पूरी तैयारी के साथ अब वो जाना चाहता था। रविवार का दिन था स्टीव के माता पिता आ चुके थे सभी ने सोचा आज चलकर बात कर ही लेते है उनका इकलौता बेटा जो था स्टीव सभी में वहीँ से ढेर सारे तोहफ़े खरीदे और फुलवा के घर चल पड़े फुलवा की माँ बाहर बैठ कर कुछ बन रही थीं, अचानक विदेशियों की टोली सी देख कर वो घबराकर अंदर चली गई और फुलवा के पिताजी को बुला लायीं, फुलवा के पिताजी बाहर निकले कुछ कहते उससे पहले ही उनकी नज़र स्टीव पर पड़ी उन्हें समझते देर न लगी। ख़ैर उन्होंने आदर के साथ सभी को अंदर बुलाया स्टीव ने पूरी स्तिथि उनको समझा दी वो स्टीव को हिंदी बोलते देखकर चौंक गए थे, लेकिन फिर भी वो तैयार नहीं थे साथ में संजीव और उसके माता पिता भी थे काफी देर बातचीत में बात आखिर उन्होंने रज़ामंदी दे दी थी, अब बात थी शादी कहाँ होगी और कैसे होगी, तो स्टीव के माता पिता ने स्टीव से इच्छा ज़ाहिर की कि हम सभी नूज़ीलैण्ड चलते हैं,"स्टीव वहीँ रहता था"। फुलवा के पिताजी तैयार तो नहीं थे लेकिन स्टीव की माँ के बार बार आग्रह करने पर मान गए और स्टीव से उसके पिता ने सभी के पासपोर्ट तैयार करवाने से लेकर सबको ले जाने कि ज़िम्मेदारी खुद ले ली थी।

आखिर वो दिन आया जब फुलवा के सपनो का राजकुमार उसको लेकर जा रहा था। नूज़ीलैण्ड पहुँचते ही फुलवा और उसके माता पिता जैसे सन्न रह गए, वो गगनचुम्बी इमारतें, दमकती गाड़ियाँ सब कुछ तो अलग था उनके गाँव से ! घर पहुँचे तो जैसे लगा किसी महल में आ गए हों, घर में कितने नौकर थे।

फुलवा हमारी बहुत खुश रहेगी,बार बार यही सोच रहे थे। स्टीव की माँ ने फुलवा को अंग्रेजी से लेकर शहरी रहन सहन के सभी तौर तरीके सिखाने शुरू कर दिए थे स्टीव भी बहुत ख्याल रखता था शुरू शुरू में मुश्किलों तो आयीं लेकिन धीरे धीरे फुलवा में बदलाव दिखने लगा था, अब उसकी बात करने में खाने पीने कपड़ों में शहरी झलक दिखने लगी थी, सच में बदल गयी थी हमारी फुलवा, फुलवा के माता पिता तो बहुत खुश थे, अब शादी की तारीख तय हो गयी थी फुलवा बहुत खुश थी स्टीव को पाकर, दोनों में अच्छा तालमेल दिखने लगा था, स्टीव के घर में सभी लोग आधुनिक तो थे लेकिन बहुत सरल स्वभाव के थे, तो घुलने मिलने में तकलीफ नहीं हुई आपस में दो परिवारों को, स्टीव भी फुलवा में लिए कितना कुछ कर रहा था शायद फुलवा के लिए सपने जैसा ही तो था।

शादी से पांच दिन पहले स्टीव ने अपनी बैचलर पार्टी रखी थी, पार्टी के दौरान ही उसे ख्याल आया क्यूँ न फुलवा के लिए भी में कुछ ऐसा करूँ जो उसके लिए यादगार बन जाए फिर क्या था उसने तुरंत अपने दोस्तों से ज़िक्र किया, हालांकि मुश्किल थी अब उसकी सहेलियाँ तो नहीं थी वहाँ तो उसके दोस्तों ने कुछ अपनी महिला मित्रों के साथ मिलकर फुलवा की सरप्राइज बचेलोरेट पार्टी की तैयारी की।

शादी से ठीक दो दिन पहले स्टीव खरीददारी के बहाने बाहर ले आया उसको सुन्दर सा शिफॉन का गाउन दिलाया, एक सुन्दर सा मेल खाता हुआ टीआरा दिलाकर उसको उस जगह पर लेकर निकल पड़ा जहाँ उसके लिए वो सरप्राइज उसने रखा था, रास्ते में फुलवा में पूछा तो उसने बस ये कह कर टाल दिया कुछ नहीं बस थोड़ी देर बैठेगें कहीं, कहकर तेज़ आवाज़ में गाने चला दिए।

उस जगह के पास ही एक होटल था स्टीव ने फुलवा को कहा में चाहता हूँ तुम ये सब अभी पहनो। सुनकर फुलवा भी तुरंत मान गयी क्यूँकि स्टीव उसके लिए कितना कुछ कर रहा था। फुलवा ने होटल जाकर अपने कपड़े बदले और आ गयी, उस रूप में गज़ब की सुन्दर दिख रही थी, स्टीव ने उसकी आँखों में पट्टी बाँध दी थी, और उसको वहाँ की तरफ लेकर चल पड़ा, पहुँचते ही जैसे उसने उसकी आँखों पर से पट्टी हटायी फुलवा देख कर दंग रह गयी उसने तो कभी सोचा ही नहीं था ऐसा भी कुछ होता है।

सभी लड़कियों उसका जिस तरह स्वागत किया, सभी ने मिलकर खूब मस्ती की वहाँ पहली बार ज़िन्दगी में कुछ ऐसा भी देखा था। स्टीव ने वहीँ उसको अंगूठी पहनायी, स्टीव के सभी दोस्तों की महिला मित्रों ने मिलकर जो धमाल मचाया वो फुलवा के लिए यादगार पल बन गया था, कुछ देर उनकी पार्टी ख़त्म हो गयी।

फुलवा का मन कुछ देर और रुकने का हुआ स्टीव ने कहा तुम यहाँ रुको में तब तक गाड़ी लेकर आता हूँ फुलवा चलते हुए समुद्र में किनारे चलते चलते पहुँच गयी टकराती लहरों के बीच में खड़ी यही सोच रही थी सपने भी पूरे होते है ?

मैं कितनी खुशनसीब हूँ जो मुझे स्टीव मिले, हमेशा याद रहेगा ये दिन, स्टीव आप कितने अच्छे हो मन ही मन धन्यवाद कर रही थी, इतने में स्टीव की गाडी के हॉर्न से उसका ध्यान टूटा और वो गाडी में जाकर बैठ गई। कहते हैं ना सपने साकार भी होते हैं, हमारी फुलवा को ही लीजिये बचपन से ही जिस राजकुमार की कल्पना वो करती थी वो उसकी जिंदगी में आया भी और शायद कुछ ऐसे आश्चर्य भी लाया जो शायद उसने कभी सोचा नहीं था उसी में एक था हमारी फुलवा की बैचलरेट सरप्राइज पार्टी का वो मौका जो फुलवा के लिए सच में कुछ अलग था।


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