Anita Sharma

Thriller

0.8  

Anita Sharma

Thriller

वो कौन था

वो कौन था

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दुनिया में ऐसे जाने कितनी वारदातों मैं बारे मैं हम पढ़ते और सुनते रहते हैं, लेकिन कुछ या तो ऐसे होते हैं जिनको सुलझाते सालों बीत जाते हैं या फ़िर इतने ज़्यादा जटिल होते है, अपने आप मैं ही, कि जिनको सुलझाना या समझना बड़ी बड़ी जाँच एजेंसियों के लिए भी टेढ़ी खीर साबित होता है । ऐसा ही एक वारदात मुझे याद है हमारे ही सोसाइटी के पास हुई थी जो आज तक अनसुलझी है। कितनी जांच हुई अभी तक लेकिन शायद सुराग कोई ऐसा हाथ नहीं लगा पुलिस के अब तक तो शायद केस की फाइल भी बंद हो चुकी है ... बात काफी साल पहले की है मैं और नमन जब नया घर ढूँढ रहे थे पूना में इनका तबादला हुआ था। कोई जानता भी नहीं था तो सोचा कि अपने लिए घर देख लेते हैं, हम दोनों ने कितना तलाश किया लेकिन बहुत महंगे थे घर वहां! अपने बजट के मुताबिक मिलना मुश्किल हो रहा था। कितनी खोजबीन के बाद हमको बनेरपाषा लिंक रोड पर बसी एक सोसाइटी में ही घर मिल गया हालाँकि इलाके में इतनी बसावट नहीं थी, रास्ते भी कुछ सुनसान पड़ते थे लेकिन मजबूरी थी उस वक़्त तो वहीँ रहने का विचार बन ही गया था । सच बताऊँ दिन तो कट जाता था लेकिन रात में मुझे बहुत डर लगता था , बाहर बालकनी तक भी जाने में डर लगता था। वो सुनसान सी रात में आती झींगुर की टिर्रर्र टिरररट्ट, हवा की सायें सायें अजीब सा डर पैदा करती थीं। मजबूरी ना होती तो कभी ना लेती ,अक्सर नमन के सामने बड़बड़ाती रहती थी , वो बेचारे चुपचाप सुनते रहते थे , करते भी क्या परेशान तो वो भी थे, मुझे अकेला छोड़कर जाते थे, तो दस बार फ़ोन मिला लेते थे , खोज खबर लेते रहते थे वहां करीब डेढ़ सौ फ्लैट बने थे ,लेकिन मुश्किल से पचास फ्लैट ही बिक पाए थे। हाँ! मेरे आसपास भी लगभग बारह घर ऐसे थे जिनमें लोग रहने लग गए थे , नमन मुझे यही समझा कर भरोसा दिलाते रहते थे,"नियति तुम चिंता मत करो जल्दी ही सभी घर बिक जाएँगे और यहाँ भी खूब अच्छा लगने लगेगा।"

दिन बीतने लगे थे । मैंने थोड़ा आसपास मेलजोल बढ़ाना शुरू कर दिया था। दो तीन सहेलियां भी बन गईं थीं। अब थोड़ा ठीक लगने लगा था वहीँ दूसरे ब्लॉक से एक बुज़ुर्ग दंपत्ति रोज़ हमारे ब्लॉक में ही आ जाते थे, वो घर से ही बेकरी चलाते थे। बच्चे उनके थे नहीं, तो हम लोगों के साथ कुछ समय गुज़ारने चले आते थे। हम लोग भी जो बन पड़ता था मिल कर एक दूसरे के लिए करते रहते थे थोड़ा डर भी ख़त्म होने लगा था।

उस दिन रविवार था, नमन ने दो दिन के लिए ऑफिस से छुट्टी ले ली थी, कुछ घर का सामान भी लेना था और साथ ही नमन ने ख़ास मेरे लिए छुट्टी ली थी , बहुत दिनों से हम साथ कहीं घूमे ही नहीं थे। हम जल्दी सुबह लोनावाला के लिए निकल गए थे ,सोचा कल लौटते वक़्त अपना सारा सामान लेते हुए वापस आ जाएंगे बहुत अच्छा लग रहा था। हमने लोनावाला में बहुत मस्ती की शादी के पूरे तीन साल बाद ऐसा मौका मिल पाया था। बड़ा यादगार रहा था सफर, खूब यादें अपनी हमने कैमरे में कैद की थीं । यही सोच कर ना जाने कब दोबारा मौका मिले , लौटते में सभी ज़रूरी सामान भी भर लिया था गाड़ी में! दोपहर दो बजे के करीब हम घर लौट आये थे । नमन मुझे चाय के लिए बोलकर कमरे में चले गए मैंने जल्दी जल्दी सफ़ाई की और चाय बनाकर बालकनी में आ गयी,"नमन आ जाओ चाय बन गई है"।मैंने नमन की वहीँ से आवाज़ लगायी ! नमन और मैं चाय पी ही रहे थे मेरी सहेली करुणा ने आवाज़ लगाई और जल्दी नीचे आने की कहा । मैं थोड़ी देर मैं आने को कहकर अंदर बचा काम निपटाने चली गई। नमन आराम करने चले गए दो दिन के थके थे,फिर सुबह ऑफिस भी जाना था । पौन घंटे के बाद मैं नीचे पार्क में पहुँच गयी करुणा बैठी इंतज़ार ही कर रही थी। पूछने लगी हमारी लोनावाला ट्रिप के बारे में , थोड़ी देर हम ऐसे ही बात करने लगे तब तक और दो सहेलियाँ आ गयी थीं । हम हँसी मज़ाक कर ही रहे थे अचानक मुझे याद आया रोज़ की तरह आज अंकल आंटी नहीं आये थे। मैंने करुणा से पूछा तो वो बोली," अरे वो तो कल भी नहीं आये थे"। मुझे थोड़ी चिंता होने लगी थी मैंने उनसे फिर पूछा क्या तुमने कॉल लगाया उनके घर ? उसने हामी भरते हुए कहा," हाँ बाबा मैंने कॉल भी किया था पर किसी ने उठाया नहीं" । मेरी थोड़ी चिंता बढ़ गयी थी, सब ठीक तो होगा ना दिमाग में ख्याल आ रहे थे अजीब से ! उतने में ही करुणा में मुझे टोकते हुए कहा," नियति मैंने मौसी को भेजा था ,लेकिन उसने आकर बताया कि वहां तो ताला लगा है"। मेरा माता ठनका मैंने चौंकते हुए कहा ,ताला ?लेकिन उनका तो कोई रिश्ता ऐसा नहीं आसपास, बताया था उन्होंने, इसलिए तो कहीं जाते नहीं थे ,परसों तक तो मैं भी मिली ही थी तब तक तो उन्होंने कुछ बताया नहीं कि उनको कहीं जाना है अजीब तो लगा लेकिन फिर सोचा हो सकता है किसी से मिलने निकल गए हों , ख़ैर काफी देर हो गयी थी। हम सभी अपने घर चले गए। घर जाकर नमन को मैंने सब कुछ बताया उन्होंने समझाकर मुझे सो जाने को कह दिया सच बताऊँ रात भर सो नहीं पाई ठीक से...सुबह उठकर नमन का नाश्ता लगाके उनके पास ही बैठ गयी थी दिमाग थोड़ा परेशान था । नमन से जल्दी आने को कहा था मैंने , उन्होंने प्यार से हाथ फेरते हुए कहा कुछ सोचो मत, "नियति सब ठीक है , ठीक से सोई नहीं हो ना थोड़ा आराम कर लो फिर ठीक लगेगा" । कहकर नमन चले गए।

मैंने दरवाज़ा लगाया और टीवी देखने बैठ गयी कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला ? अचानक बड़ी तेज़ पुलिस की गाडी के सायरन को सुनकर मेरी आँख खुल गयी, मुझे लगा शायद गश्त पर होंगे, घडी देखी तो दोपहर करीब १ बजे के आसपास का समय था , मैं ने सोचा इस वक़्त कोई गश्त थोड़े ही लगाता है थकान की वजह से रात का भ्रम हो गया था । लेकिन अगले ही पल मैं चौंक गयी बाहर एक नहीं दो तीन गाड़ियों का शोर लग रहा था साथ ही एम्बुलेंस का सायरन भी सुनायी दे रहा था मैं तुरंत बालकनी की तरफ भागी देखने के लिए लेकिन ज़्यादा कुछ स्पष्ट दिखाई नहीं पड़ा मैंने तुरंत करुणा को फ़ोन लगाया करुणा ने फ़ोन उठाया तो लेकिन , थोड़ी देर में बात करने को कहकर फ़ोन रख दिया था। मेरे मन में उस बुज़ुर्ग दंपति को लेकर बुरे ख्याल आने लगे थे , और हुआ भी वही दस मिनट बीते करुणा ने फ़ोन किया और बताया की वर्मा बेकरी वाले अंकल आंटी का क़त्ल कर दिया गया है। ताला तोड़कर उनकी लाश को निकाला गया है," देख बाकी बाद में बताती हूँ" कहकर करुणा में फ़ोन रख दिया मैं बहुत घबरा गयी थी । मैंने नमन को फ़ोन लगाया और बस घर जल्दी आने को कह दिया। दिन के तीन बजे थे, फोरेंसिक जाँच अधिकारी भी वहाँ आ चुके थे , आसपास के लोगों से पूछताछ शुरू हो गयी थी , सब यही सोच रहे थे आखिर ऐसा किसने किया होगा किस वजह से कोई आया और इस हादसे को अंजाम दे गया ? नमन भी जल्दी घर आ गए थे। मैं बहुत डर गयी थी नमन के आते ही मैं उनके गले से लग कर रोने लगी। नमन हाथ मुँह धोकर सीधे दो न . ब्लॉक में गए । वहां बड़ी सघन पूछताछ चल रही थी। नमन ने भी जानकारी दी सभी, "कैसे दो दिन पहले तक उनको सभी ने देखा था," साथ ही जितना उनके बारे में पता था नमन उन्हें बताकर चले आये थे । बहुत बुरा लग रहा था, आखिर दोनों ने किसी का क्या बिगाड़ा था जो ऐसा कुछ हो गया। नमन ने बताया की दोनों की लाशें आसपास ही थीं । पास ही खाना भी रखा था दोनों शायद खाना ही खा रहे थे। पुलिस के मुताबिक हत्या करीब दोपहर डेढ़ से दो बजे के बीच हुई थी , मेरे दिमाग़ में आया उसी के आसपास तो हम लोनावला निकले थे। हे ,भगवान कितने सरल स्वभाव के तो थे , शायद ही किसी से कुछ कहते थे। कुछ भी हो बहुत बुरा हुआ था , मुझे बहुत बेचैनी हो रही थी ! पुलिस और जांच एजेंसी से आये लोग सभी उपलब्ध जांच के लिए नमूने जुटाने में लगे थे । उनके यहाँ बाहर से भी सामान लेने लोग आते थे । रोज़ की तरह माली , मौसी (काम वाली बाई) और सफाईवाले सबके घरों में आते ही थे। उन सभी को पूछताछ के लिए अगले दिन आने को कहा गया। शाम ६:३० में आसपास दोनों की लाशों को पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाया गया मैं उस वक्त करुणा के घर चली गयी थी। देख कर बहुत दुःख हो रहा था ।ब्लॉक न .दो को सील कर दिया गया था , अपने आसपास ऐसा कुछ हो जाता है तो सच में सबकी नींद उड़ जाती है। जाँच के दौरान कुछ जली हुई सिगरेट पड़ी मिली थी , दूसरे कमरे मैं पलंग के नीचे एक मिटटी खोदने कि कुदाल भी मिली थी लेकिन हत्या मैं इसका इस्तमाल नहीं हुआ था क्यूंकि दम घुटने से हत्या का कारण सामने आया था , साथ ही कोई चोट का निशान ऐसा नहीं मिला था शरीर पर, ऊपर से शातिर ने घर पर ताला जड़ दिया था कि किसी को शक़ न हो और इतनी चालाकी से सब कुछ किया की सबूत जुटाना भी भारी पड़ रहा था , माली पर शक था थोड़ा तो बातचीत मैं सामने आया कि वो अपने यहाँ खुद ही पेड़ पौधों कि देख रेख करते थे माली ने कहा मेरी तो दुआ सलाम ही होती थी बाबूजी से काफी देर बातचीत होने के बाद भी उस पर शक निराधार ही निकला था ,क्यूंकि आसपास किसी भी व्यक्ति ने उसके खिलाफ नहीं कहा क्यूंकि जब से ये सोसाइटी बसी थी तभी से वो यहाँ लगा हुआ था । सफाई वाला भी हफ्ते कि छुट्टी पर गया हुआ था तो उस पर तो सवाल उठता ही नहीं था। रोज़ के आनेवालों में बची थी तो मौसी ,उसने भी बताया था कि वो सुबह १० बजे घर का काम करके निकल गयी थी , ऊपर वाले माले पर भी दो घर मैं काम करती थी उसने बताया आंटी को खाना बनाते छोड़कर गयी थी वो , आगे बोली कि उसको कुछ ज़्यादा बात नहीं हुई थी। उस दिन ऊपर वाले माले से काम करके जब लौटी तो ताला लगा था, मैं यही सोच कर चली गयी कि अपना बेकरी के लिए सामान लेने गए होंगे , मौसी ने जाँच अधिकारियों को बताया कि ,"वो दो बार जाती थी सुबह ९ बजे और शाम ३ बजे" उस दिन ताला लगा था तो मैं भी घर चली गयी थी , और इनसे सामान लेने दिन भर में कई ग्राहक आते थे ,लेकिन ये किसने किया वो नहीं जानती। ख़ैर जांच अधिकारियों कि जो भी सबूत मिले उस आधार पर हर जगह पूछताछ की गयी । हर आने जाने वाले लोगों पर नज़र रखी जा रही थी। कितनी ही कोशिश कि जा रही थी । सबसे बड़ी बात कोई लूटपाट नहीं हुई थी घर में सामान भी बिखरा नहीं था, बस वहां खाने कि दो प्लेट जिसमें खाना सिर्फ आधा ही ख़त्म हुआ था। फिर १० बजे तक मौसी भी थी, तो ऐसा क्या कारण हुआ कि किसी ने गला दबा कर उनकी हत्या को अंजाम दे दिया, घर में जो कुदाल मिली थी वो अंकल बागवानी के लिए खुद ही इस्तेमाल करते थे। बस यही जांच अधिकारीयों के लिए जटिलता पैदा कर रहा था ऊपर से कोई मिलने जुलने वाला सामने नहीं आया , कितने हफ़्तों इसी तरह पूछताछ का सिलसिला चलता रहा ,कोई सबूत इतना ख़ास नहीं मिल पाया जिससे कुछ पता लग पाता , धीरे धीरे जांच की गति धीमी होती चली गयी , आज भी ये सवाल हम सभी के दिमाग में उठता है, आखिर कौन था वो ? उसने क्यूँ ऐसा किया ? क्या वर्मा अंकल का कोई ऐसा दुश्मन था ? या उनका अपना ही कोई ऐसा था जिसने इस घटना को अंजाम दिया ? ऐसे कितने सवाल आज भी हम लोगों के मन में उठते है। अब तो पूरा इलाका भी बस चुका है , शायद ये केस भी बंद किया जा चुका है , ब्लॉक न .२ की वो घटना आज भी हमारे लिए रहस्य ही है आखिर कौन था वो ? क्या मेरी इस कहानी ने आपको ये सोचने की मज़बूर किया की आखिर कौन था वो ? क्या मेरी कहानी से कुछ रोमांच पैदा हुआ आपके ज़हन में ?


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