माई काश आज तू होती!
माई काश आज तू होती!
अरे! "उठ जा निकम्मे पड़े-पड़े खटिया तोड़ता रहता है...काम का ना काज का,दुश्मन अनाज का! यूँ बिस्तर पर पड़े कब तक पेट भरेगा,"चूल्हा फूंकती हल्कू की माई चिल्लाईं!"
खाना तैयार कर फिर हल्कू के पास आकर बोलीं,"यूँ पलंग पर पसरे कोई धन्ना सेठ न बना...कब तक मेरे आसरे ज़िन्दगी काटेगा लल्ला?अब मुझमें इतना हिल्ला नहीं कि इतना कर सकूँ,चल लल्ला धूप चढ़ आई...उठकर कुछ खा ले और गइया दुह लेना! सानी मैं लगाकर आ जाती हूँ!सानी देकर मैं मुन्नी के घर जा रही सुना है तबियत कुछ ठीक नहीं उसकी!
पोए को सानी देने को घेर में पहुँची...तो देखा दो बैलों में से एक कुछ बिफरा सा था, खूंटे से छूटा खड़ा था...उसको नज़रअंदाज़ करते हुए हल्कू की माँ ने सानी लगाकर और सब पशु खोल दिए!सब तो आ गए लेकिन हीरा वहीँ का वहीँ खड़ा रहा, जैसे ही हल्कू की माँ ने उसको खींचा वो कुलांचे भरने लगा मानो चिड़ा बैठा हो और अचानक मोती से भिड़ गया...माँ कुछ समझ पाती इतने में गुस्सैल बैल की टक्कर से ज़मीन पर आ गिरी,
बैल तो कुछ देर में शांत हो गए परन्तु हल्कू की माँ में हलचल बंद हो चुकी थी,पास ही बैठा जबरा बहुत तेज़ी से भौंकने लगा पालतू तो नहीं था, लेकिन हल्कू की माँ कुछ न कुछ उसे खिलाती रहती थी...तो वही रहता था!
लगातार जबरा की आवाज़ सुनकर हल्कू की तन्द्रा टूट गयी,
हादसे से अनजान अंगड़ाई भरता हुआ कोठरी से निकल कर चिल्लाया,"अरे जबरा ! काहे गला फाड़े डाल ...बोलते बोलते माँ को जमीन पर गिरा देख अवाक रह गया !
माई...माई...माई कहता हुआ माँ के पास दौड़कर माँ को जेठ में भरकर हूकरे मारकर रोने लगा! कुछ हल्का सा होश में आयी माँ बुदबुदायी ...हल्ल कू...आअह्ह्ह...हल्कू ध्यान रखख्ख ना बैल भूखे थे तबहिं बिगड़ गए रे आआह्ह्ह्ह लल्ला आ'लस न करियो...और माई शांत हो गयी!
गाँव में खबर फैलते ही सब हल्कू से मिलने पहुंचे लेकिन सब उसे ही कोस रहे थे...तरस खा रहे थे तो बस माँ पर! हल्कू सर झुकाये...माथा पकडे चुप्पी साधे...सब सुन रहा था ! करता भी क्या सुनने के अलावा! सब कुछ ख़त्म सा हो गया था उसके लिए,लेकिन क्रोध आ रहा था उसको हीरा पर !
वो हीरा को ही मानो ज़िम्मेदार मान रहा था बस फिर क्या था कुल्हाड़ी लेकर हीरा को मारने का प्रण कर बाहर निकला ही था कि मुन्नी काकी को सामने से आता देख कुल्हाड़ी छोड़ उनको पकड़कर रोने लगा ! मुन्नी काकी ने प्यार से बैठाया और खाने की थाली उसके सामने रखती हुई बोलीं... "लल्ला माई तो चली गयी पर उसके उसूल कहीं न गए, अब रोने से माई ना लौटने की बस तू रोज़ मेहनत कर जो तेरी माई कहती थी! ये पोये अब सब तुझे देखने हैं फिर हाथ में धोती में बँधा कुछ जमा धन था!"
मुन्नी काकी हल्कू के हाथ में थमाकर बोलने लगी,"लल्ला असली धन तो तू खो चूका फिर भी कुछ बचत तेरी माई की तुझे दिए जा रही हूँ ,
बस !अब सब तुझे ही करना है."
हल्कू बहुत दुखी तो था , लेकिन उसको एहसास भी हो रहा था कि असली गुनहगार तो वो खुद है ये बेज़ुबान क्या जाने ! माँ यूँ ही नहीं लगी रहती थी !
अब हल्कू ने माँ से मन ही मन माफ़ी माँगी और जैसा वो कहती थी...वही करने लगा , इसमें जबरा भी रोज़ उसका साथ देता था, सुबह उठाने से लेकर खेत के कामों में बराबर उसके साथ रहता था! हल्कू की मेहनत और लगन रंग लाने लगी...वाकई अब निठल्ला हल्कू गाँव भर में सेठ हल्कू के नाम से जाना जाने लगा सभी अब उसके प्रति उदार भाव दिखाने लगे!
ये सब हल्कू को अच्छा तो लगता लेकिन माई के जाने का गम उसको बहुत परेशान करता !सब कुछ होते हुए भी आज माँ के लिए ही हुड़कता था !
बस याद करते बरबस मुँह से निकल पड़ता था,"माई काश आज तू होती!"