Anita Sharma

Tragedy

5.0  

Anita Sharma

Tragedy

ये कहाँ आ गए हम

ये कहाँ आ गए हम

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आधुनिकता ने किस कदर युवाओं कि मानसिकता को दिग्भ्रमित किया है कि इस अंधी दौड़ में किशोरावस्था से ही ऐसी प्रवृत्ति जन्म ले लेती है जहाँ खुद अपनी धुन में रमे ये युवा कब राह भटक जाते है खुद उन्हें ही इस बात का इल्म नहीं है।क्या कारण है इसके पीछे ये अभी समझने में वक़्त कितना ये भी बात बेमानी सी लगती है ।

असल में देखा जाए तो बहुत बार इस पर सामजिक तौर पर वैचारिक मतभेद उभर कर आते हैं,लेकिन सही आधार क्या है ,उन वक्तव्यों का मेरी समझ के परे है !

कॉलेज के दिनों कि ही बात है, हमारे साथ ही पढ़ती थीं रूचि और समीक्षा बेहद आधुनिक परिवेश में पली बड़ी और ये कहने में भी कोताही नहीं कि कॉलेज आना उनके लिए फैशन परेड़ में शामिल होना जैसा ही था।ख़ैर सबका अपना तरीका होता है हालाँकि पढ़ने में बेहद होशियार थी साथ ही कॉलेज कि कितनी ही प्रतियोगिताओं में अव्वल रहती थी। हम लोग जब भी साथ बैठा करते थे बातों बातों में ऐसा महसूस होता था कि इनके ख्याल कितने अलग हैं सबसे! ज़िन्दगी को देखने का नजरिया भी बिल्कुल अलग हमारे साथ की कुछ लडकियां तो उनको ऊँचे खानदान की बिगड़ैल लडकियां बोलती थीं , लेकिन हमको यही लगता था की सबको अपनी ज़िन्दगी अपने तरीके से जीने का अधिकार है! कोई क्या करता है इससे किसी को क्या सरोकार होना चाहिए बस इसी सोच के साथ हम सबके विचारों का आदर करते थे नए सत्र कि शुरुआत थी, स्कूल से कॉलेज का सफर शुरू हो चुका था ।घर में हमारे, हिदायत दे दी गयीं थी कि भविष्य को बनाने की कवायद शुरू कर दो क्योंकि इसी पर तुम्हारा जीवन टिका है, कुछ अच्छा करोगी तो तुम्हारे काम ही आएगा बस यही दिमाग में रख कर हम पढ़ाई में लगे रहते थे । लेकिन हमारा ध्यान अक्सर रूचि और समीक्षा की तरफ चला जाता था वो कॉलेज में खूब मस्ती करती थीं यूँ कहो कोई परवाह नहीं लड़कों के साथ घंटों बतियाना कक्षा बंक करके कैंटीन में समय बिताना उनके ज़िन्दगी में एक ज़रूरी काम की तरह ही था। उसी ग्रुप में थे राज और अरुण जो बिल्कुल समीक्षा और रूचि की तरह थे शायद इसलिए उन लोगों में घनिष्ठता बहुत बढ़ गयी समय बीतने के साथ हम स्नातक तृतीय वर्ष मैं आ चुके थे सभी बहुत खुश थे। कुछ हमारे साथ के बच्चे तो स्नातक के बाद कॉलेज छोड़ने वाले थे । इसलिए सभी ने मिलकर सोचा क्यों न ट्रिप पर चला जाए !पहले तो कुछ साथियों ने आनाकानी कि लेकिन घर मैं सभी ने बात करके हामी भर दी थी , तो तय हुआ कि हम सभी मनाली जाएंगे ।असल मैं रवि के पिताजी टूरिज्म मैं डायरेक्टर पद पर आसीन थे , तो जगह को लेकर भी कोई समस्या नहीं हुई हम सभी दस दिन के ट्रिप के लिए रवाना हो गए हम सभी बहुत मज़े कर रहे थे । पहली सर्द रात इतनी खूबसूरत वादियों के बीच में बहुत अच्छा सा महसूस हो रहा था ।हम हल्की रोशनी में नहायी उन वादियों को एकटक निहार रहे थे।

अरे !"तुम अकेली क्यों खड़ी हो, यहाँ सभी के साथ आकर बैठो ,"समीक्षा ने हमको आवाज़ देकर बुलाया .हम तुरंत उनकी तरफ चल दिए वहां बॉनफायर के आसपास वो सभी बैठ कर ड्रिंक्स का आनंद ले रहे थे ।

हम वहां बैठ तो गए लेकिन उनमें से कुछ को शराब पीते देख कर हमें तो जैसे सांप ही सूँघ गया था ।

लेकिन हमने अपने लिए चाय मंगवाई और बाकी सहेलियों से बात करने लगे बीच बीच में हमारी निगाह उन चारों पर चली जाती थी। बड़ा अजीब सा लगा पहली बार हम मन ही मन सोचने लगे ऐसी भी क्या आज़ादी शराब और लड़कों के साथ गलबहियां डाल कर बैठो!

 ये कैसी उन्मुक्तता है विचारों की हमको बहुत अजीब सा लगा।

ख़ैर हम थोड़ी देर बैठ कर बाकी सहेलियों के साथ गपशप करने के बाद सोने के लिए जाने लगे हमने जाने से पहले उनको भी टोका लेकिन वो सभी नशे में पूरी तरह से धुत होकर अश्लीलता के परम उत्कर्ष पर थे ।जैसे लोक लाज का भय ही ख़त्म हो चुका था उनके अंदर से। हम सब अंदर आ चुके थे ।हम सभी को खराब लग रहा था हमको पूरी रात अच्छे से नींद नहीं आयी सोचा इनको समझाएँगे ।

सुबह उठते ही हम नाश्ते के बाद सीधे उनसे बात करने के लिए उनके कमरे में पहुँचे वो अभी भी सहज महसूस नहीं कर पा रहीं थीं ।उनको चाय देकर हमने उनसे बात शुरू करनी चाही तो उन्होंने सरदर्द का बहाना कर टाल दिया। हम वापस अपने कमरे में आ गए और हमने सोच लिया कि अब कुछ नहीं कहेंगे !

लेकिन मन नहीं माना तो शाम को फिर से रूचि के पास बैठ गए हमने उसको समझाना चाहा वो हम पर बहुत ज़ोर से हंसने लगी और बोली तुम कुस दुनिया में हो ये ज़िन्दगी इतनी खूबसूरत है मस्ती में जियो कल का क्या पता देख करुणा माँ को फुर्सत नहीं पार्टीज से पापा को बिज़नेस से मेरे लिए दोस्त ही मेरी ज़िन्दगी हैं और लाइफ एक है हर काम एक बार ज़रूर करना चाहिए बस ये फंडा है मेरा। शायद उसके खयालात या कहें घर के हालात ज़्यादा ही स्वछंदता लिए हुए थे और हम नाकाम रहे उसको समझाने में।बस दस दिन बीते हम सब वापस आ चुके थे।हमने थोड़ा किनारा भी कर लिया था, उन दोनों से! स्नातक की पढ़ाई के बाद पिताजी ने हमे आगे की पढ़ाई के लिए पूना भेज दिया और लगभग पुराने दोस्तों से मिलना जुलना बंद ही हो गया था।हमने साइकोलॉजी विषय में परास्नातक करने के लिए सोचा था ।बस वर्ष बीते अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद हमने एक इंस्टिट्यूट में साइकोलोजिस्ट के तौर पर ज्वॉइन कर लिया था ।

अक्सर सर्वे के लिए भी हम और प्राइवेट संस्थानों में जाते रहते थे ।इसी सिलसिले में एक नशा उन्मूलन केंद्र में हमको लेक्चर के लिए बुलवाया गया हम बहुत खुश थे कि जहाँ से हमारी शिक्षा की शुरुआत हुई थी उसी शहर में आज हम एक माननीय शख़्सियत के रूप में जाएँगे।हमें वहां सम्मानित किया गया और हमने अपना भाषण समाप्त करने के बाद उन सभी लोगों से मिलने कि इच्छा जाहिर कि जो वहां भर्ती थे हमसे हालत नहीं देखी जा रही थी ये आज के युवाओं को क्या हो गया है हम यही सोच रहे थे कुछ को तो बाँध कर रखा गया था।

घूमते हुए हम थोड़ा आगे पहुंचे हमारी निगाह एक लड़के पर पड़ी हमको कुछ जाना पहचाना सा तो लगा लेकिन हम आगे बढ़ गइतने में पीछे से हमे किसीने आवाज़ लगायी करुणा!हम अपना नाम सुनकर चौंक गए थे। हमने पलट कर देखा तो हमको उसी लड़के ने आवाज़ दी थी कुछ जाना पहचाना तो लग रहा था लेकिन इतना जीर्ण शीर्ण शरीर आँखें अंदर धसीं हुई किसी विकृत आदमी जैसा प्रतीत हो रहा था फिर भी हम उसकी तरफ मुड़े और हमने सहानुभूति दिखाते हुए पूछा कैसे जानते हो हमवो धीरे से मुस्कुराया और बोला," हाँ ! क्यों पहचानोगी मुझे अब मैं खुद ही अपने को नहीं पहचान पाता भूल गयीं साथ ही पड़ते थे हम रवि हूँ मैंमैं स्तब्ध रह गयी रवि इस हाल में ?

खुद को सँभालते मैंने उससे पूछ ही लिया "आखिर तुम्हारी ये हालत कैसे हुई सब बताओ मुझे ! इतने संभ्रांत परिवार के लड़के होकर यहाँ?"सब बर्बाद हो गया मेरी ज़िन्दगी परिवार सब ख़त्म हो गया कोई साथ नहीं है अब मेरे !

कहता कहता वो रुआँसा हो गया …..

"सँभालो खुद को मुझे पूरी बात बताओ हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊँ" उसने जो बताया मेरे लिए तो जैसे एक अजीब सी उलझन थी

वो बोला "तुमको याद है !अरुण समीक्षा और रूचि हम चारों ने कॉलेज छोड़ा नहीं था। तुम तो चली गयीं थीं हम लोग अक्सर टूर प्लान करते रहते थे ,महीने मैं एक बार तो बन ही जाता था। रूचि से मैं प्यार करने लगा था ।उसका हर वक़्त साथ रहना मुझे अच्छा लगता था। पापा बाहर होते थे तो मेरे घर पर हम चारों मिलते थे नहीं तो अरुण के कमरे मैं ही चले जाते थे । हमारी देखा देखी समीक्षा और अरुण मैं भी नज़दीकियां बढ गयीं थी ।हम लोग खूब मस्ती करते थे सच कहूँ तो घर भी जाना अच्छा नहीं लगता था ।एक दूसरे की इतनी आदत पढ़ चुकी थी अरुण का तो तुमको पता ही था कि वो ज़्यादा अच्छे घर से नहीं था तो मैं उसकी मदद कर देता था कॉलेज को पढाई ख़त्म हुई तो मुझको पापा ने बिज़नेस खुलवा दिया था मैं ज़्यादा समय दे नहीं पा रहा था बिज़नेस को तो घर में पापा से अक्सर लड़ाई हो जाती थी वो भी नाराज़गी में मुझसे गलत बोलते अरुण को बताता तो वो भी पापा को गलत ठहराता था मुझे भी यही लगता था कि मेरी ज़िंदगी को में अपने हिसाब से ही जिऊँगा पापा की हर हिदायत को नज़रअंदाज़ कर देता था इसी बीच अरुण के एक दोस्त ने हम सभी को हिमाचल बुलायहम चारों ने सोचा चलो थोड़ा मन बदल जाएगा हम लोग चले गए। अरुण के दोस्त के यहाँ ही हम रुके थेदिन भर हम लोग खूब घूमें शाम को वो अपने फार्म हाउस ओर हम सबको ले गया वहां पहुंचे तो देखा वहां पहले सही बहुत सारे कपल्स हैं ।

अरुण से पूछा तो वो बोला इसके यहाँ तो ऐसे ही पार्टी चलती रहती हैं अपने को क्या हम तो मस्ती करने आये हैं हम लोग भी उन्ही मैं शामिल हो गए रूचि तो वहां खड़े लड़के लड़कियों के साथ डांस करने लगी उन्ही मैं से एक लड़का उठ कर आया उसने मुझे सिगरेट ऑफर की दोस्ती के नाते मैंने भी लेकर काश लगाने शुरू कर दिए सब कुछ बड़ा अच्छा सा लग रहा था मुझे शायद उस दिन कुछ ज़्यादा ही नशा हो गया था हम सभी फिर उन्ही लोगों के साथ मिल गए रात भर नाच गाना चलता रहा और वहीँ ढेर हो गए थे हम सभी देर सुबह आँख खुली तो देखा सभी इधर उधर सोये पड़े हैं मैंने रूचि को आवाज़ लगाई वो वहां नहीं थी मैं वहां से उठ कर बाहर देखने पहुंचा बाहर लॉबी में राघव बैठा "आओ यार !बैठो कुछ पिओगे " मुझसे वो बोला मैंने मना करते हुए उससे रूचि के बारे में पूछा तो उसने अपने कमरे की तरफ इशारा करते हुए कहा वहां सो रही हैं। 

"बहुत मस्त हैं तेरी गर्लफ्रैंड यार"....कहकर मुस्कुराने लगा

मेरा दिमाग खराब हो गया था, में तुरंत अरुण के पास पहुंचा और उसको सब कुछ कहा पर ये क्या वो भी जैसे उसके साथ ही था। अरुण मुझे उल्टा समझाने बैठ गया देख,"यार यहाँ कोई किसी का नहीं।" ये जितने भी कपल्स तुझे दिख रहे हैं, इनमें से सभी आते किसी और के साथ हैं ,मस्ती करते हैं, चले जाते हैं! अलग दुनिया है ये !कोई टेंशन नहीं तू क्या रूचि रूचि लगाए जा रहा है वो तो खुद ही उसके साथ गयी है।"

मुझे रूचि पर भी गुस्सा आ रहा था इतने में अरुण ने मेरी तरफ सिगरेट बढ़ा दी । शायद वही दिन मेरी ज़िंदगी पूरी तरह से उलटी दिशा में चल पड़ी थी । दिमाग काम नहीं कर रहा था सुबह सुबह ही मैंने चार पांच सिगरेट फूंक दी थी। मैं भी नयी दुनिया में जैसे उड़ान भरने लगा था आये थे एक हफ्ते के लिए इधर पूरा महीना हो चला था । न जाने यहाँ से जाने का मन नहीं कर रहा था रूचि और समीक्षा भी बहुत बदल सी गयीं थी इधर पापा के फ़ोन लगातार आ रहे थे बस दिमाग में आया कि वापस चला जाए रूचि ने साथ चलने से मना कर दिया था बड़ी मुश्किल से उसको भी समझा बुझा कर चलने को तैयार किया। वापस लौटने से पहले राघव ने बुलाया और मुझे कहा कि" कभी कोई भी ज़रूरत पड़े तो ज़रूर बताना!मैं हामी भर कर वापस अपने कमरे में आ गया। वो तीनो उसके साथ बहुत देर तक बैठे बातें करते रहे हम सब वापस आ गघर पहुँच कर भी ऐसा लग रहा था कि कहाँ आ गए पापा से रोज़ अनबन होने लगी बिज़नेस भी ठप्प सा ही पड़ गया था सच कहूँ तो घर के क्लेश में मुझमें बहुत चिढ़चिढ़ाहट घर कर गयी थी बहुत कमज़ोर महसूस कर रहा था रह रह कर बस राघव ही दिमाग में आ रहमैं अरुण के पास पहुँचा और घर का सारा हाल बताया कि पापा से अनबन चल रही है, बिज़नेस भी ठीक नहीं चल रहा। मैंने उससे राघव से कुछ मदद लेने के लिए कहा।अरुण ने राघव को फ़ोन मिलाया तो राघव ने बिज़नेस मैं साथ लेने के लिए हामी भर दी ।

मैं भी घर से गुस्से मैं निकल गया कि "अब कभी वापस नहीं आऊँगा अपने दम पर ही कुछ करूँगा !क्या पता था कि ज़िन्दगी गर्त मैं जा रही है !मैं अरुण के साथ हिमाचल पहुँच गया उसने अपने साथ ही काम पर लगा लिया था ।शुरू मैं अजीब लगा क्यूंकि वो ड्रग सप्लाई का काम करता था लेकिन हाथ मैं जब थोड़े काम के ज़्यादा पैसे मिले तो हम दोनों ही रम गए इस काम में। साल भर के अंदर गाडी बंगला खुद खरीद लिया। ऐश की ज़िन्दगी लग रही थी ।

शुरू मैं ज़्यादा मेहनत भी नहीं और पैसा ही पैसा हम दोनों ने रूचि और समीक्षा कि भी वहीँ बुला लिया। रूचि मेरे साथ और समीक्षा अरुण के साथ ही रहने लगी हम चारों बेपरवाह अपनी दुनिया में मस्त रहने लगे थे अलग दुनिया थी शायद जैसी हम चारों को पसंद थी कोई रोकटोक नहीं बस जो दिल में आये करो!


लेकिन कहते है कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना भी पड़ता है।हुआ भी वही राघव अक्सर रूचि से मिलने घर आने लगा था। मुझे अटपटा तो लगता था लेकिन एहसानों टेल दबा तो मैं ही था तो न चाहते हुए भी मैं नज़रअंदाज़ करने लगा राघव आता और रूचि के साथ रात बिताता इसी टेंशन मैं मैंने भी ड्रग्स लेना शुरू कर दिया था मैं तो जैसे पूरी तरह डूब चुका था नशे में रूचि भी मुझसे कतराने लगी थी अब उसका ज़्यादा समय राघव के साथ ही बीतने लगा था इस बीच अरुण को राघव ने ड्रग सप्लाई के लिए कुवैत जाने के लिए कहा अरुण वहां जाने के लिए तैयार हो गया उसके जाने के बाद समीक्षा को बहुत अकेलापन महसूस होने लगा था कई बार परेशान होती तो मेरे साथ अपनी बातें शेयर कर लेती थी। रूचि राघव के साथ ज़्यादातर बाहर रहने लगी थी उसको अपनी आज़ादी और मस्ती से ही मतलब था।


एक दिन मैं और समीक्षा बैठे बैठे अपने पुराने दिनों को याद करने लगे मैं उस वक़्त नशे मैं था शायद मैं खुद को रोक नहीं पाया और समीक्षा के करीब पहुँच गया हम दोनों ही शायद इतने टूटे हुए थे चाहकर भी खुद को रोक नहीं पाए बस ये क्रम जैसे रोज़ का ही हो गया था हम अपनी ज़िन्दगी का खालीपन एक दूसरे के साथ दूर करने लगे थे । जब कभी दिमाग में आता तो लगता भी था कहाँ आ चुका हूँ, लेकिन अगले ही पल सब भूल जाता ।

महीना भर हो चला था अरुण भी वापस आने वाला था लेकिन अचानक खबर मिली कि वो पुलिस की गिरफ्त मैं है राघव और रूचि का भी पता नहीं चला था वो भी गायब हो गए थे। 

रेड के डर से मुझे खुद से ज़्यादा समीक्षा की चिंता सता रही थी।मैंने सोचा मेरा क्या है लेकिन समीक्षा की ज़िन्दगी बर्बाद नहीं होनी चाहिए सोचा उसको समझा बुझा कर यहाँ से निकाल देता हूँ ! मैं सीधे उसके कमरे में पहुँचा ,वहाँ जो नज़ारा देखा मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी ! समीक्षा पंखे से लटकी हुई थी मैं अपना सर पकड़ कर बैठ गया अरुण की गिरफ्तारी को लेकर शायद वो खुद को संभाल नहीं पायी थी और उसने ये कदम उठा लिया था। मैंने साथ के एक लड़के को फ़ोन मिलाया…पुलिस आयी... हज़ारों सवाल मुझसे पूछे जा रहे थे ,खुलासे पर खुलासे हो रहे थे ,मेरे पापा को भी बुलवा लिया गया पापा बहुत नाराज़ थे और में बहुत शर्मिन्दा! पुलिस वालों ने जांच पड़ताल होने तक मुझे शहर में ही रहने की हिदायत दे डाली थी ।पापा के पास में रहने लगा था, लेकिन ड्रग्स की वजह से बेचैनी होती रहती थी । कुछ समय तक तो ऐसे चलता रहा फिर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने दोस्त से मँगा कर ड्रग्स लेने शुरू कर दिए पापा ने यहाँ मेरा इलाज़ शुरू करवा दिया । एक साल से यहाँ एडमिट हूँ उधर राघव और रुचि भी पकडे गए थे कुछ समय बएक लम्बी सांस खींचते हुए रवि बोला "बस यही सब है मेरी बर्बादी की कहानी ,लेकिन समीक्षा का दुःख है मुझे वो इतनी बुरी भी नहीं थी,रूचि और राघव एच आई वी पॉजिटिव है,उसकी ज़िन्दगी का खुलापन उसको कहाँ ले गया और में देखो यहाँ ,"कहते हुए रवि सर झुका कर बैठ गया।हम उसको समझाकर वहां से चल दिए । मन में सोच रहे थे कितना समझाते थे,इन लोगों को शायद तब इन लोगों ने हमारी बात सुनी होती तो आज शायद ये भी अपनी ज़िन्दगी में सफल होते!युवा बहुत मनमानी करते हैं । ये दिग्भ्रमित होते युवा अपनी मनमानी से ज़िन्दगी सँवारने के चक्कर में खुद को किस ओर लेकर जा रहे हैं! असफलताएँ उनके मन पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है ।लक्ष्य पाने की लालसा में तनाव ग्रसित होते इन युवाओं में उत्तेजना नशा लालच हिंसा आपराधिक प्रवृत्ति और कामवासना बढ़ती ही जा रही है। जिसका सीधा असर उनकी मनोदशा को बिगाड़ रहा है ।ये वास्तविक रूप से एक चिंतनीय विषय है!

ये कहाँ आ गए हैं हम?हम खुद से यही सवाल कर रहे थे! पर जवाब कौन देगा नहीं जानते??





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