Anita Sharma

Inspirational

4.0  

Anita Sharma

Inspirational

परी अल्पना की परिकल्पना

परी अल्पना की परिकल्पना

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ये कहानी है खूबसूरती कि मिसाल गोकर्ण नामक गाँव की! हाल ही में गाँव में रहने वाले आदर्श का विवाह अल्पना से हुआ था। आदर्श गोकर्ण के एक संभ्रांत राय खानदान से था, और मेडिकल की पढ़ाई करके विदेश से लौटा था...लेकिन उसकी शादी को लेकर काफी सुगबुगाहट थी कि इतने बड़े खानदान के इकलौते वारिस की शादी एक मामूली परिवार की लड़की से क्यों हुई?

इतना ही नहीं अंदर ही अंदर ये तक बातें होने लगीं थी कि लगता है लड़के में कुछ तो कमी होगी जो ऐसे शादी की गयी है। उपहास उड़ाने में कोई कमी नहीं थी लोगों के, "देखो एक तो मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की ऊपर से दहेज़ में घोड़ा लेकर आयी है।" कहते हैं न जितने मुँह उतनी बातें तो ऐसे ही चर्चा का विषय बनी हुई थी अल्पना और आदर्श की शादी इधर उनके करीबी मित्र भी गुट में बैठे इसी बात पर चर्चा कर रहे थे क्यूंकि कहीं ना कहीं नाराज़गी भी थी कि इकलौते बेटे कि शादी की और किसी को बुलाया भी नहीं जिनमें सबसे आगे थे माथुर साहब क्यूंकि वो तो खुलकर बोल रहे थे कि, "इतनी रहीसी का क्या फायदा जो चंद दोस्तों को भी राय साहब भूल गए !" बत्तीसी निपोरते हुए माथुर साहब ने खिल्ली उड़ाने के लहज़े में कहा! तभी पास बैठे उनके एक मित्र जयचंद ने टोकते हुए कहा, "अरे माथुर साहब कल चल तो रहे हैं प्रीतिभोज में...वहीं पूछ लेंगे राय साहब से!

इतने में माथुर साहब की पत्नी चाय ले आती हैं और सभी मिलकर चाय नाश्ते का आनंद उठाने लगते हैं। असल में माथुर साहब और राय साहब पुराने मित्र थे लेकिन कुछ विवाद के चलते उठना बैठना कम हो गया था। हालांकि एक ही गाँव में रहने के कारण व्यवहार तो चल ही रहा था। चाय की आखिरी चुस्की लेते हुए माथुर साहब अपनी पत्नी से बोले,"सुनिए ज़रा कल के जलसे के लिए हमारे कपड़े तैयार कर दीजियेगा और हाँ अपनी भी तैयारी अच्छे से कर लीजियेगा सुना हैं गाँव के ही नहीं शहर से भी कुछ रसूखदार परिवार सम्मिलित होने वाले हैं, मैं ज़रा टहल कर आता हूँ! कहते हुए मित्र के साथ माथुर साहब निकल गए।

टहलते टहलते आधे रास्ते पहुँचते हैं तभी आदर्श को देख कर रुक जाते हैं आदर्श तुरंत आकर दोनों के पैर छूता है आशीर्वाद देते हुए थोड़े कटाक्ष के लहज़े में माथुर साहब बोलते है, "बधाई हो आदर्श बेटा, लेकिन एक बात की नाराज़गी है हमें...शादी भी कर लाये और बुलाया भी नहीं किसी को!...आखिर क्या बात है, तुम तो इतने काबिल डॉ हो घर में भी कोई कमी नहीं फिर... बीच में बात काटते हुए आदर्श बड़ी विनम्रता से बोला, "कुछ परिस्थितिवश या यूँ समझ लीजिये सब कुछ आनन फानन में हुआ कि किसी को निमंत्रण ही नहीं दे पाए लेकिन कल तो आप सभी को आना है।" काफी काम बाकी है मैं अभी चलता हूँ...पैर छूकर आदर्श आगे बढ़ जाता है!

अगली सुबह राय साहब का नौकर पूरे गाँव में निमंत्रण दोहराने के लिए घूमता है । पूरे गाँव में एक अलग ही रौनक दिख रही थी। शाम होते ही रिसेप्शन स्थल पर लोगों का आना शुरू हो चुका है,

माथुर साहब अपने पूरे परिवार के साथ शिरकत करते हैं जैसे ही स्वागत द्वार पर पहुँचते हैं, बड़ी गर्मजोशी से राय साहब गले लगते हैं और आँखों में सहजता लिए हुए कहते हैं, "आज बहुत दिनों बाद मिलना हुआ। एक साथ सबको देखकर बहुत अच्छा लगा!आप लोग अंदर चलिए बस हम आते हैं।" कहते हुए उनको गुलाब थमा देते हैं...माथुर साहब सपरिवार मंच की तरफ बढ़ जाते हैं...अल्पना और आदर्श आगे बढ़ कर चरण वंदन करते हैं, अल्पनाा के हाथ में शगुन का लिफाफा थमाते हुए माथुर साहब की पत्नी कहती हैं, "बहुत खूबसूरत है हमारी बहू, आदर्श कहाँ से ढूंढ कर लाये हो! भाभी बता रही थीं तुमने अपनी पसंद से शादी की है, "सुनकर आदर्श हामी भरते हुए सिर हिला देता है। अल्पना भी शरमाते हुए मुस्कुराने लगती है, अचानक आदर्श के फ़ोन की घंटी बजती है और आदर्श धीरे से अल्पना को कान में कुछ कहता है, अल्पना बिना देर किये सबको प्रणाम करती है और सास ससुर की आज्ञा लेकर आयोजन स्थल से निकल जाती है….

 सब अचरज में पड़ जाते हैं! लेकिन राय साहब और उनके परिवार के चेहरे पर कोई शिकन नहीं!

आदर्श बड़ी शालीनता से सभी का ध्यान रख रहा है, खाना खाकर राय साहब की मित्र मंडली एकत्रित होती है...पुरानी यादों का सिलसिला शुरू होता, हँसी ठहाकों के बीच राय साहब कहते हैं, "जयचंद के परिवार से कोई नहीं पहुँचा, आदर्श तुम्हें कल मिले थे...तुमने बताया था ज़रा पूछो तो सब ठीक है ना! फ़ोन मिलाते हैं लेकिन फ़ोन उठता नहीं है तो…

माथुर साहब टोकते हुए कहते हैं,"कल हम साथ ही थे शाम को हो सकता है कोई काम लग गया हो।" फिर बात बदलते हुए राय साहब से कहते हैं, "भाई आयोजन बहुत बढ़िया रहा लेकिन बुरा ना मानो तो कुछ पूछूँ, "ऐसे अचानक शादी की बात समझ नहीं आयी!

राय साहब एक हलकी सी मुस्कान देते हुए बोलना शुरू करते हैं," असल में अल्पना की माँ और आदर्श की माँ साथ ही पढ़ाई करते थे। अल्पना की माँ शादी के बाद विदेश चली गयीं थीं अभी पिछले साल जब आदर्श की माँ अपने घर गयीं थीं, तब अल्पना की माँ से मिलीं थी वहींअल्पना से मुलाकात हुई थी अल्पना बहुत ही होनहार लड़की है विदेश से मेडिकल की पढ़ाई की है उसने...कुछ कारणवश अल्पना के माता पिता संग नहीं रह पाए, अल्पना अपने ननिहाल में पली बढ़ी हैं लेकिन मेडिकल की पढ़ाई अल्पना ने विदेश में रहकर की थी और गोल्ड मेडलिस्ट है बिटिया हमारी! इतना ही नहीं घुड़सवारी में भी राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी है! पवन अल्पना के लिए पशु नहीं एक सखा जैसा ही है बहू की माँ ही पवन को लाईंथी तो अल्पना को एक अलग सा जुड़ाव भी है और अपना घुड़सवारी के उत्कृष्ट प्रदर्शन का श्रेय अल्पना पवन को ही देतीं हैं इसलिए हम लोग उसको अपने साथ ही ले आये आखिर बच्चों की ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है!


और रही दोनों के विवाह की बात तो...आदर्श जब अपनी माँ को लिवाने गए थे, तो वहीं अल्पना से मिले थे आजकल के बच्चे हैं दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी, विचार भी खूब मिलते थे पिछले महीने अल्पना की माँ गुज़र गयीं घर में और कोई था नहीं...अल्पना की माँ की मरने से पहले इच्छा थी कि अल्पना को हम अपने घर की बहू बना लें तो बस हमने दोनों बच्चों की रज़ामंदी लेकर अल्पना की माँ के सामने ही विवाह संपन्न करा दिया, बस इसलिए किसी को बताने का समय नहीं मिला...लेकिन उम्मीद है आप लोग समझ सकते हो सबकुछ...सुनकर निःशब्द तो थे माथुर साहब फिर भी पूछ बैठे, "सब ठीक है चलो घर बस गया लड़के का...वैसे अभी अचानक बहु को कहाँ जाना पड़ गया आयोजन के बीच में कहाँ चली गयी आखिर?

"अरे! पास के जिला अस्पताल गयी है बहू, अचानक कोई गंभीर स्थिति में मरीज़ दाखिल हुआ था, तो बहू के पास वहीं से कॉल आयी थी अपनी ज़िम्मेदारियों के प्रति बहुत सजग है अल्पना, "कहते हुए फूले नहीं समा रहे थे राय साहब ! मानो बहुत गर्वित महसूस कर रहे हों।


वैसे होते भी क्यों ना इतना काबिल बेटा और होनहार बहू पाकर ऐसे भाव तो आ ही जाते हैं अपना सा मुँह लेकर अपनी शर्मिंदगी को छुपाये हुए माथुर साहब उठ जाते हैं और एक बार फिर बधाई देकर घर को निकल जाते हैं…लेकिन कहीं ना कहीं मन में संतुष्ट नहीं थे क्यूँकि अभी भी यही सोच रहे थे कि शायद राय साहब ज़रूरत से ज़्यादा तारीफ कर रहे थे! हल्की सी कुढ़न महसूस होने लगी थी माथुर साहब को...


कार्यक्रम समाप्त होने को है बहू को देरी होते देख आदर्श की माँ कहती हैं, "अरे आदर्श...ज़रा फ़ोन मिलाओ तो बहू को, इतनी देर कैसे हो रही है! सब ठीक तो है बेटा या एक काम करो जाकर ले ही आओ उसको...इतनी देर रात नई जगह पर ठीक नहीं और बीच रास्ता भी सुनसान ही पड़ता है कहती हुई काम समेटने के लिए नौकर को आवाज़ देकर घर को निकल जाती हैं।

Day6

आदर्श फ़ोन मिलाता हैं तो कॉल लगता नहीं हैं तो सोचता हैं पिताजी को घर छोड़कर खुद ही ले आता हूँ काफी रात भी हो गयी थी। आदर्श पिताजी को लेकर घर को निकल जाता है... माँ बाहर ही टहल रही होती हैं, चिंता के भाव उनके चेहरे पर साफ़ झलक रहे थे ,मन ही मन बड़बड़ाती जा रही थी कि माहौल वैसे ही ठीक नहीं और रात बे रात नहीं नवेली बहू घर से बाहर हैं…

इतने में आदर्श और राय साहब पहुँच जाते हैं थोड़े क्रोध भाव लिए घूरने लगतीं हैं…


आदर्श के  सामने पहुँचते ही कहने लग जाती हैं, "देख बेटा मानती हूँ कि काम भी ज़रूरी हैं लेकिन अभी यहाँ उसको ज़्यादा दिन तो हुए नहीं हैं कोई पहचानता भी नहीं है...ऊपर से इतनी मेहनत ! मेरे हिसाब से अभी से कोई काम करने की क्या ज़रूरत है, नई नई शादी हुई है...देख मैंने कहा तो नहीं कुछ पर सही कहूँ तो ठीक नहीं लगा मुझे!

मुँह सिकोड़ते हुए बुदबुदाने लगती हैं, "सब मेहमान देख रहे थे...पढ़े लिखे परिवार तो हैं बेटा अपने गाँव में, लेकिन मानसिकता तो पुरानी ही है ना और हमें तो बेटा सब कुछ देखकर चलना है!"


आदर्श बड़े प्यार से माँ के दोनों गालों को प्यार से पकड़कर कहने लगता हैं ," मेरी प्यारी माँ ...मानता हूँ... सब समझता भी हूँ कि आपकी चिंता आपके हमारे प्रति प्यार के कारण ही तो हैं लेकिन माँ कर्मशील बने रहो...अपनी पहचान बनाओ...ये शिक्षा आप ही कि तो हैं और हम सब के लिए गर्व की बात हैं...अल्पना इतनी हिम्मती और कर्मठ हैं, चिंता मत करो! अभी ले आता हूँ उसको , आप आराम करो!" कहते हुए माँ को गले से लगा लेता हैं और आज्ञा लेकर जाने के लिए निकलने लगता हैं!

तभी फ़ोन की घंटी बजती हैं उधर से अल्पना की आवाज़ आती हैं, "आदर्श मुझे थोड़ी देर और लगेगी कोई अपने ही गांव के बुज़ुर्ग हैं जिन्हें दिल का दौरा आया था। तो इसी चक्कर में कॉल नहीं कर पायी...अभी थोड़ी देर और रुकना पड़ेगा मुझे कुछ और जांच भी करनी हैं, बाकी घर आकर बताती हूँ ।


आदर्श चौंक कर पूछता है, "अपने गाँव से कौन?

तब तक कॉल कट जाती है आदर्श माँ पिता को सारी स्थिति बताता है सब चिंतित हो जाते है!


एक घंटे बाद थकी हारी अल्पना घर पहुँचती है, पस्त सी आकर बैठ जाती है...सुन्दर काका पानी लेकर आते हैं । अल्पना आँखें मूंदकर बैठ जाती है इतने में माँ पिता और आदर्श हॉल में प्रवेश करते हैं। अल्पना हल्की सी झपकी लग जाती है, माँ की आवाज़ से उठ खड़ी होती है अल्पना…!


"कोई बात नहीं अल्पना आराम से बैठो...थक गयी होगी बेटा और कुछ खाया भी नहीं है ! पहले कुछ खा लो और सो जाना फिर…!

बहुत रात हो गयी है!" कहती हुई अल्पना के सर को सहलाने लगती हैं!


अल्पना सब भूलकर माँ को बताने लगती है, "माँ बहुत मुश्किल से जान बची है, अभी भी निगरानी में ही रखा जाएगा उनको...कोई जयचंद नाम के बुज़ुर्ग भर्ती हुए थे, बहुत तो रहीं थी उनकी पत्नी बस कोशिश करती रही कि …


जयचंद नाम सुनते ही राय साहब परेशान हो जाते हैं, और अल्पना को बीच में टोकते हुए बोलने लगते हैं...अरे! बड़े अच्छे मित्र हैं मेरे...अभी कैसी है उनकी तबीयत!"


...जी अब तक तो स्थिति सम्भली हुई है। बाकी प्रभु पर पूरा भरोसा है कि जल्दी  ही उनको आराम आएगा...अस्पताल में काफी अभाव होने के बावजूद मैंने उनकी जान बचाने का हर संभव प्रयास किया है...उम्मीद है जल्दी ठीक हो जाएंगे," अल्पना आश्वस्त करते हुए कहती है !


बोलते बोलते अचानक उसके दिमाग में विचार आता है लेकिन कुछ सोचकर वो चुप हो जाती है! आदर्श उसके चेहरे के भाव को पढ़ लेता है लेकिन सोचता है कि बाद में पूछेगा...थोड़ी देर बात करके सभी सोने चले जाते हैं!...

सुबह उठते उठते काफी देर हो जाती है सभी को लेकिन एक अलग सा माहौल है घर में। राय साहब बेहद खुश हैं…

अचानक दरवाजे क़ो कोई खटखटाता है...सुन्दर काका दौड़ते दरवाज़ा खोलते हैं सामने जयचंद जी का छोटा बेटा खड़ा होता है। अंदर आकर राय साहब के पैर छूकर उनके हाथ में मिठाई थमा देता है…ख़ुशी से अल्पना कि तारीफ करते हुए बोलता है,"ताऊजी अगर कल भाभी माँ नहीं होती तो ना जाने क्या होता, पिताजी को होश आ गया है सुबह बस उनसे मिलकर यहाँ चला आया!

भाभी माँ तो भगवान तुल्य साबित हुई।

राय साहब बहुत खुश होते हैं कहीं ना कहीं अल्पना जैसी बहु पाकर उनको बहुत अच्छा महसूस हो रहा था कुछ देर बात कर जयचंद जी का बेटा चला जाता है

Day 7

राय साहब अपनी आराम कुर्सी पर बैठे अखबार उलट पुलट कर रहे होते हैं इतने में अल्पना और आदर्श आकर उनके पैर छूते हैं आशीर्वाद देते हुए आदर्श को बैठने का इशारा करते हैं आदर्श पिताजी के पास बैठ जाता है और अल्पना चाय नाश्ता लेने चली जाती है माँ भी पूजा समाप्त कर वहीँ आ जातीं हैं तभी आदर्श राय साहब को रात कि घटना के बारे मैं बताने लगता है कि कैसे जयचंद जी की जान बची है हाँ अभी आया था उनका बेटा बड़ी तारीफ कर रहा था बहू की सच मैं जीवन धन्य हो गया बेटा और हाँ आदर्श की माँ आप भी अब निश्चिंत हो जाइए बहू के रूप मैं बेटा ही पाया है हमने !

राय साहब अल्पना के व्यक्तित्व के बारे में बात करके ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे थे। तब तक अल्पना भी चाय नाश्ता लेकर आ जाती है, "लीजिये माँ पापा चाय नाश्ता कीजिये आप लोग ! आज आपकी पसंद का हलवा और पालक के पकोड़े बनाये मैंने…

और हाँ पापा वो सुन्दर काका को मैंने पवन को पानी और चारा देने के लिए भेज दिया है तो आप परेशान न होना बहुत देर हो गयी थी तो मैं आपसे पूछ नहीं पायी

अरे ! कोई बात नहीं बेटा, अब ये तुम्हारा घर भी है!" और सुनो बेटा मैंने मिस्त्री को बुलवा भेजा है आदर्श और तुम जाकर पवन के लिए जो कमरा बनवाना है देख कर बता देना और जगह भी ठीक से देख लो!" 

कहते हुए राय साहब आदर्श की माँ की तरफ इशारा करते हैं झट से आदर्श की माँ हाथ मैं रखे कंगन अल्पना को नेग के रूप मैं पहना कर आशीर्वाद देती हैं।

ये लो अल्पना तुम्हारा पहली रसोई का नेग सदा खुश रहो बिटिया भावुक सी हो जाती हैं आदर्श की माँ और गले लगा लेती हैं अल्पना को!


बातों बातों में आदर्श कहता है, "पिताजी मैं आपसे कुछ बात करना चाहता था...असल में हम दोनों ही सोच रहे थे! अल्पना भी बहुत कुछ करना चाहती हैं लेकिन ये अच्छी बात है कि गाँव में रहकर ही हम ये काम करने के लिए सोच रहे हैं इससे ना केवल अपने गाँव का भी भला होगा बल्कि आसपास के गाँव के लोग भी यहाँ लाभ ले सकेंगे!

कल जो हुआ उसके बाद से ये विचार आया कि क्यों न हम अपने ही गाँव में एक अस्पताल खुलवा दें जिसमें सभी आधुनिक उपकरण हो और दवाइयों का इंतज़ाम हो...अल्पना और मैं मिलकर संभाल ही लेंगे कल जैसे तैसे अल्पना की समझ बूझ से जान बच गयी चाचा की...नहीं तो अनर्थ ही हो जाता समय पर सही इलाज न मिलता तो,

आप तो जानते हो जिला अस्पताल का हाल...माँ की पथरी के इलाज के लिए भी शहर ही भागना पड़ता है ," 

सोच तो तुम ठीक रहे हो चलो बात करता हूँ गाँव में सभी से कहते हुए राय साहब खेतों की तरफ चल देते हैं सभी घर के कामों में व्यस्त हो जाते हैं।

इधर जयचंद जी की तबीयत की खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल जाती है , जयचंद जी का बेटा अल्पना के तारीफों के पुल बांधते नहीं थक रहा था पूरे गाँव में उलट अब अल्पना की वाहवाही हो रही थी!

वक़्त बीतने के साथ अल्पना और आदर्श की मेहनत से गाँव में बेहतर सुविधाओं से सुसज्जित अस्पताल खुल जाता है इतना ही नहीं गाँव की पड़ी बेकार ज़मीन पर एक विद्यालय और मिनी स्टेडियम की भी नींव डाल देता है आदर्श! सभी अल्पना और आदर्श की इस पहल की बहुत सराहना करते हैं और सहयोग करने का वादा भी करते हैं…


अल्पना सभी को जागरूक करने का बीड़ा स्वयं अपने कन्धों पर ले लेती है...पढ़ाई के अलावा घुड़सवारी भी सिखा रही थी अल्पना आदर्श का भी पूरा सहयोग मिल रहा था वक़्त ने करवटें लीं...

धीरे धीरे मानो गोकर्ण गाँव की तस्वीर ही बदल रही थी...एक अलग ही बदलाव आ चुका था गाँव में।

राय साहब की उम्र भी हो चली थी। आदर्श की माँ का देहावसान हो चुका था…इन्हीं कुछ सालों में आदर्श और अल्पना के जीवन में बदलाव आ चुका था...दो बेटों का जन्म उनकी पढ़ाई ज़िम्मेदारियों को निभाते अब आदर्श और अल्पना पूरी तरह से गाँव की सेवा में पूर्णरूपेण समर्पित थे । एक चिकित्सक के रूप में वक़्त देते हुए पूरा परिवार भी अल्पना ने संभाल रखा था। गाँव भर में अल्पना के प्रति सभी का नजरिया बदल चुका था!

सभी उसके हुनर और मेहनत का लोहा मान रहे थे। गाँव की लड़कियाँ अल्पना को एक प्रेरणास्रोत्र के रूप देख रहीं थी क्यूंकि अल्पना ने बहू होते हुए भी एक मिसाल कायम की थी…विदेश में पली बड़ी लड़की कितने संघर्ष करने के बाद भी लक्ष्य को नहीं भूली...साथ ही ये जज़्बा विवाह उपरान्त भी कायम था!


आँगन में पड़ी वही आराम कुर्सी है लेकिन राय साहब की जगह आदर्श ने ले ली है पास ही बैठी अल्पना किसी किताब में मग्न हैं चेहरे पर प्रौढ़ावस्था झलकने लगी थी ...साल दर साल ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करते अल्पना अब कुछ थकान महसूस करने लगी है...तभी घोड़े की हिनहिनाहट से उसकी चुप्पी टूटती है ।अल्पना चेहरे पर मंद सी मुस्कराहट लिए उधर देखती है सुल्तान की सवारी कर लौटा अल्पना-आदर्श का बेटा युवराज आकर माँ के पैर छूता है सुल्तान दोनों पैर ऊपर उठा कर ज़ोर से हिनहिनाता हुआ अल्पना का अभिवादन करता है । अल्पना पवन के अक्स को सुल्तान में ही देख कर भावुक हो जाती है...हाथ में किताब लिए आँगन में पड़ी आराम कुर्सी पर आँख मूंदे बैठी अल्पना बीते वक़्त के संघर्षों को शायद याद कर रही है,कहीं न कहीं बहुत गौरान्वित भी महसूस कर रही है और सुकून में भी है कि उसकी परिकल्पना आज यथार्थ में उसके सामने है...

जिस तरह से आदर्श की जीवन संगिनी अल्पना ने सूझबूझ और प्रेम से अपनी परिकल्पनाओं की आधारशिला रख कर उसको यथार्थ रूप दिया था वो अपने आप में एक मिसाल थी आखिर आदर्श की अल्पना गाँव के लिए परी ही साबित हुई थी!



साल दर साल ज़िम्मेदारियों का निर्वाह करते अल्पना कुछ थकान महसूस करने लगी है...हाथ में किताब लिए आँगन में पड़ी आराम कुर्सी पर आँख मूंदे बैठी अल्पना बीते वक़्त को शायद याद कर रही है लेकिन सुकून है कि उसकी परिकल्पना आज यथार्थ में उसके सामने है।


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