STORYMIRROR

Anita Sharma

Tragedy

4  

Anita Sharma

Tragedy

सिसकता प्रेम

सिसकता प्रेम

10 mins
434

"मुझे देशपांडे जी के बारे में पूछना है आपसे। मुझे  उनकी हालत में कोई बेहतरी नज़र नहीं आ रही।"फिक्रमंद आंखों ने पूछा।


"आप कौन हैं उनके ?" मैं उन झील सी गहरी आँखों में डूबने से बचने के प्रयास में था।


"मेरा नाम प्रभा है। मैं मिस्टर देशपांडे की पत्नी हूँ।" अब मेरा चौंकना स्वाभाविक था।

अगर देशपांडे की पत्नी प्रभा उसके साथ है तो फिर वह किस सदमे से पागल हुआ जाता है ?

____________________________

एक प्रश्नचिन्ह मेरे मस्तक पर ठहर गया था आकर।

आखिर मिस्टर देशपांडेय जी कि हालत...प्रभा जी में कोई कमी ...कोई धोखा.... या आपसी मनमुटाव कि वजह…!

कश्मकश में डूबा सा मैं खुद से सवाल किये जा रहा था कि मेरी चुप्पी तोड़ी प्रभा जी ने एक बार फिर पूछकर ,"डॉ क्या आप मुझे बताएँगे अब उनकी हालत कैसी है ...और कब तक सामान्य हो पाएंगे वो!


प्रभा की आवाज़ में अजीब सा दर्द और भारी चिंता महसूस हो रही थी।मैं अभी भी असमंजस में था …या ये कहूं बात सुन भी रहा था और नहीं भी…!

थोड़ा भ्रम था लेकिन कुछ-कुछ समझ आ रहा था प्रभा के हाव भाव से!


मुझे एक मरीज़ को देखना था,तो प्रभा से थोड़ी देर में मिलने को कहकर में कमरे से बाहर आ गया।असल में….मैं देशपांडे जी की इस हालत का कारण जानना चाहता था…!कभी कभी कुछ वाकये ज़िन्दगी में सामने आते हैं कि खुद ब खुद आपकी जिज्ञासा बढ़ जाती है।


मैं कुछ देर बाद लौटा देखा प्रभा जी वही गलियारे में बड़ी तेज़ी से चक्कर काट रही हैं।अजीब से पशोपेश में घूमती प्रभा किसी घने मेघ मानिंद अंदर ही अंदर घुमड़ती बहुत चिंतित लग रही थी।मैं जैसे ही करीब पहुँचता हूँ तो हतप्रभ रह जाता हूँ ...थोड़ी देर पहले एक आत्मविश्वासी और बेबाक लड़की जिस को समझ रहा था...वो बहुत लाचार नज़र आ रही थी...आँखों में भरे आँसू और चेहरे पर बेचैनी के भाव ।


मैंने आते ही प्रभा को पूछा,"क्या डॉ सैनी से मुलाकात हुई प्रभा जी दरअसल आपको पूरी जानकारी वही दे पाएंगे ।"


मेरी बात को जैसे अनसुना करते हुए प्रभा ने हड़बड़ाते लहज़े में बिना कुछ पूछे ही बताना शुरू कर दिया,"डॉ साहब देखिये इनको ऐसा कुछ नहीं की जो ठीक ना हो सके...ना ही किसी बीमारी ने इनको घेरा है कभी।"


बस एक अजीब सी उलझन इनके दिल मे घर कर गयी है, सौरभ मुझे धोखेबाज़ समझते हैं ...आज जो भी कर रही हूँ...इनके लिए ही तो बस आप कैसे भी करके इनको सामान्य स्थिति में लाने की कोशिश कीजिये…क्यूंकि मुझसे इनकी ये स्थिति देखी नहीं जाती ।"

बहुत खुश थे हम...कहते-कहते प्रभा फफक फफक कर रो पड़ी।


मैंने उनको ढांढस बांधते हुए कहा,"चिंता ना करें आप….ठीक हो जाएंगे सौरभ जी !


थोड़ा सम्भालिये अपने आपको...कहते हुए मैंने चैम्बर में बैठकर बात करने के लिए आग्रह किया तभी मैंने वार्ड बॉय को बुलाकर डॉ सैनी को बुला भेजा ।साथ ही पानी का गिलास प्रभा के आगे रख दिया। 


लीजिये !पानी पीजिये और आराम से बताईये मुझे….अगर आप को आपत्ति ना हो तो कुछ बातें आपसे जानना चाहूंगा...शायद इलाज में सहयोग मिल जाए !


जी ज़रूर पूछिए ...क्यूंकि मैं चाहती हूँ जल्द से जल्द ये ठीक हो जाएँ क्यूंकि बहुत जल्द इनका देखा सपना पूरा होने जा रहा और जो सपना साथ मिलकर देखा हमने …बोलते बोलते अचानक वो रुआंसी हो आयी…. शांत हो गई...एक बेजान बुत सी चुप्पी लिए प्रभा अचानक रो पड़ी।


मैंने प्रभा को फिर टोका,"प्रभा सौरभ के बारे में आप कुछ बता रहीं थीं ।


जी…सौरभ और मैं कॉलेज में साथ ही पढ़ते थे। सौरभ पढ़ाई में तो अव्वलथे ही बहुत अच्छे व्यक्तित्व वाले इंसान भी थे...हमेशा सबकी मदद करना...सबके चहेते थे कॉलेज में।

लेकिन सौरभ बहुत सादगी से रहते थे। परिवेश गाँव का था तो ज़्यादा बन ठन के रहना...दिखावा करना उनकी आदत में शामिल नहीं था ...यही बात मुझे इनके करीब लाती गई ।


सौरभ को जब ये पता लगा तो बहुत खुश हुए हमेशा दिल खोलकर मेरी तारीफें करते थे...हम दोनों का ज़्यादातर वक़्त साथ ही गुज़रता था।


हर बात के लिए उन्हें बस मैं ही समझ आती थी...गुस्सा करती तो बोलते,"माँ लगती हो बिलकुल डांटते हुए!

जब कभी गलती माफ़ कर देती तो बोलते बिलकुल बहिन बन जाती हो...झट से माफ़ कर देती हो!

कभी किसी बात की ज़िद करती तो बोलने लगते ऐसा लग रहा मेरी बेटी मेरे सामने ज़िद कर रही!


एक लम्बी गहरी सांस लेकर प्रभा बुझी हुई मुस्कान फेरते हुए बोली... उम्मीदें हमेशा दो राहे पर खड़ा कर देती रिश्तों को।


तभी डॉ सैनी आ जाते हैं और मैं उनको प्रभा से मिलवाता हूँ ।अब तक की हुई बात उनको बताकर प्रभा से अपनी बात पूरी करने के लिए कहता हूँ।


कॉलेज का आखिरी साल था...मैंने घर में माँ को ये बात बता दी थी ।और माँ से इस बारे में पिताजी से बात करने के लिए कह भी दिया था क्यूंकि जानती थी...शहर के नामी बिजनेसमैन रतनलाल अरोड़ा की बेटी होने के नाते सीधे मुझे अनुमति नहीं मिलती विवाह की।


"क्या आप रतनलाल अरोड़ा जी की बेटी हो!"अचंभित अंदाज़ में डॉ सैनी ने पूछा


जी...वो मेरे पिता है , बहुत बड़ा नाम है और ऐसी स्थिति में मेरा होना सबको अचरज में डाल देता है।


ख़ैर…..कुछ दिक्कतें हुई क्यूंकि रहन सहन थोड़ा बेमेल था। मेरे पिताजी जाने माने बिज़नेस मैन और सौरभ के पिताजी किसान थे। लेकिन पिताजी सौरभ से मिलने के बाद उनसे प्रभावित हो गए थे बस हमारी शादी हो गयी।


सौरभ ने भी जॉब ज्वाइन कर ली थी। मैं हर हाल मैं खुश थी, लेकिन सौरभ को हमेशा लगता था कि शायद मैं खुश नहीं हूँ । इतने ऐशो आराम में पली बढ़ी हूँ तो आये दिन नए प्रयास करते रहते थे कि बस मुझे कोई कमी ना हो।


सौरभ भी वक़्त के साथ कुछ-कुछ बदलते गए...एक शाम अचानक पूछ बैठे, तुम खुश तो हो न... सोचता हूँ नौकरी छोड़कर कोई बिज़नेस कर लूँ...मन करता है मेरी भी एक कंपनी हो और इतना पैसा कमाऊँ कि तुम अपनी हर ख्वाहिश पूरी कर सको...मैंने हँसते ही यूँ ही बात को टाल दिया कि मैं ऐसे भी खुश हूँ ….लेकिन कहीं न कहीं मन में एक बात घर कर गयी कि मुझे इनके लिए कुछ करना है…।

मुझे महसूस हुआ कि शायद करना बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन खुद पर यकीन नहीं करते कि कर सकते हैं।कहीं न कहीं हीन भावना का शिकार हो रहे थे।


बिना इनको बताये मैंने सरप्राइज देने के तर्ज़ पर एक कंपनी इनके नाम से शुरू की… पहले सोचा कि एक मुकाम हासिल हो जाए तब सौरभ को सौंप दूंगी कंपनी ...क्यूंकि मुझे भी अपने पिताजी की मदद लेनी पड़ती और सौरभ कभी नहीं हामी भरते ।

इधर कुछ महीनो से अपने माता पिता से मिल ना पाने के कारण सौरभ को माता पिता की भी नाराज़गी उनको झेलनी पड़ रही थी।

ख़ैर सोचा कुछ जाता है...होता कुछ और है...मैं दिन रात लगन से कंपनी ज़माने में रम गयी...वक़्त के साथ कड़ी मेहनत रंग लायी और हमारी कंपनी भी शहर की अग्रणी कंपनियों में जगह बना रही थी।  

इस दौरान मेरे और सौरभ के बीच थोड़ी तल्खी ने घर बना लिया था । सौरभ को लगने लगा कि मैं कुछ छुपा रही हूँ...अपनी जॉब से ज़्यादा ये मुझपर निगाह रखने लगे ...अक्सर इनसे छुपकर कंपनी के सारे कॉल करने पड़ते थे।


सब कुछ जैसे उल्टा साबित हुआ ...आये दिन नाराज़गी इनकी मुझे परेशान तो करती थी लेकिन भरोसा था ,जब हकीकत जानेंगे तो बहुत खुश होंगे ...इसी धुन में बस मैं अपने काम में लगी रही।


आखिरकार हमारे बीच छोटी छोटी तल्खियों ने कब लड़ाई का रूप ले लिया पता नहीं चला।

इस द्वन्द मैं भूल बैठी कि गलती कहाँ है! समाधान क्या है?एक अनजानी गलती मेरी ज़िन्दगी में ज़हर घोल देगी कभी नही सोचा था।


मेरे पिताजी सब जानते थे... मैं क्या कर रही हूँ ,

पिताजी के एक मित्र का बेटा अनुभव जो एम.बी.ए. था, वो मेरे काम में मेरी मदद भी कर रहा था । उसको लेकर भी घर में बहुत क्लेश होने लगा। इनको थोड़ी डिप्रेशन की शिकायत होने लगी थी शायद...क्यूंकि इनके बर्ताव में बहुत तब्दीली आ गयी थी। कम बोलते थे...गुस्सा बहुत करने लगे थे।

मुझे भी चिंता हुई तो लगा अब सच बता दूँ और इनको कंपनी की कुर्सी सौंप दूँ...जब बात थोड़ी बिगड़ने लगी तो पिताजी और मैंने मिलकर इनको सब बताने के लिए एक सरप्राइज पार्टी रखी।

पार्टी की सारी व्यवस्था हो गयी और बस सौरभ के आने का इंतज़ार था मैं खुश थी कि जब सौरभ ये सब जानेंगे तो बहुत खुश होंगे और उनका सारा वहम आज ख़त्म हो जाएगा।


घंटी बजते ही मैं दरवाजे की तरफ भागी... बहुत खुश थी मैं !दरवाजा खुलते ही सौरभ ने मुझे नज़रअंदाज किया और घर के अंदर प्रवेश कर गए...तय प्रोग्राम के अनुसार पूरा हॉल रौशनी से जगमगा उठा ।लेकिन वहां तो कुछ और ही होने वाला था…सौरभ को शायद डिप्रेशन का पहला अटैक तब ही आया था।


अचानक एक तेज़ आवाज़ से पल भर को सन्नाटा पसर गया…. सौरभ का ऑफिस बैग का सारा सामन ज़मीन पर….अपना लैपटॉप और ऑफिस बैग ज़मीन पर पटक कर गुस्से में तिलमिलाए सौरभ ज़ोर ज़ोर से चीखने लगे।

प्रभा तुम भी ऐसी निकली...मुझे नहीं पता था,तुम बेवफाई करोगी….मैं कुछ कहने को आगे बढ़ी उससे पहले अनुभव की तरफ...इशारा करते हुए बोले यही है ना वो...जिसकी वजह से मेरे लिए वक़्त नहीं...क्या कमी रखी थी मैंने?


वहां में दिन रात मेहनत करके तुम्हारे लिए एक एक ख़ुशी जुटा रहा हूँ और तुम यहाँ...पार्टी..!रक्तवर्ण आँखों से मुझे घूरते हुए सौरभ बोले अटक अटक कर बोल रहे थे ।कुछ सुनने को ही तैयार नहीं थे जैसे।हर रिश्ता तुमसे ही बना बैठा था बोलते बोलते चीखने लगे।


भरी पार्टी में जहाँ हम सौरभ को कंपनी की चाबियां सौंपने वाले थे ...वहां वो एक पागल जैसा बर्ताव कर रहे थे ....उन्होंने पी भी ली थी शायद …!

मैं अवाक खड़ी थी और पिताजी की नज़रें शर्म से झुकी हुई थी...एक पल को महसूस हुआ….मेरी गलती की वजह से आज पिताजी को कितना शर्मिंदा होना पड़ा और एक बेवकूफी की वजह से सौरभ की ये हालत हो गयी।


उन्होंने जो शर्मसार किया हम लोगों को….ना हम समझ पाए...ना ही सौरभ ...पिताजी आज भी नाराज़ हैं और अब सौरभ की ये हालत सिर्फ एक गलती!

मेरा इनके लिए कुछ करना मुझपर भारी पड़ जाएगा,कभी नहीं सोचा था ...तब से दोहरा रहे हैं ऐसे ...किसी को भी देखकर... प्रभा...प्रभा...करने लगते हैं और बाकी आपके सामने है सारी स्थिति ...क्या करूँ मैं ...नहीं समझ पा रही।


एक नामी गिरामी कंपनी का मालिक ...ऐसी हालत में ...कहते हुए कहते कहते प्रभा दोनों हाथ मुँह पर रख कर सिसकने लगी ।


हम दोनों अचरज से एक दूसरे को देख रहे थे...शायद दोनों के मन में संशय था सही और गलत को लेकर...लेकिन अगर स्थिति देखें तो प्रभा पर यकीन करने के अलावा कोई चारा भी नहीं था । 

आखिर प्रभा की बातों को आधार मान कर हमने मि.देशपांडेय के शीघ्र अतिशीघ्र स्वस्थ होने का आश्वासन देकर प्रभा को घर जाने को कहा और डॉ सैनी और मैं अपने-अपने राउंड पर निकल गए ।


कुसूर किसी का नहीं पर सज़ा सब पा रहे थे। कहीं न कहीं गहरा प्रेम संग होते हुए भी विरह की सिसकियाँ ले रहा था।

क्रमश:


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy