ये प्रेम वर्जित है
ये प्रेम वर्जित है
ऋतू और कीर्ति जो कदम उठा चुकी थीं वो सामाजिक दृष्टि से एक अपराध था जिसकी कोई मान्यता नहीं थी, लेकिन एक दूसरे के प्रेम में पागल उन दोनों को कोई अपराध बोध नहीं था, उनके मन में अगर कुछ अब था तो वो था एक दूसरे के लिए अटूट प्रेम और समर्पण जिसको सारी बेड़ियाँ तोड़कर उन्होंने निभाया था।
समलैंगिक रिश्ते में आ चुकी थी कीर्ति और ऋतु !
ऋतू घर में सबसे बड़ी थी। उसके लिए लड़के देखने भी शुरू कर दिए गए थे, हालांकि अभी कॉलेज का पहला ही साल था, लेकिन ऋतू की माँ को लगता था कि अभी से देखेंगे तब जाकर कोई अच्छा लड़का मिल पायेगा। ऋतू का कॉलेज जाना उसकी दादी को नहीं भाता था। वो अक्सर कहती थीं,"इतनी उम्र में तो हमारा भी ब्याह हो गया था, अब कितना पढ़ाएगी इसे लड़का देख कर शादी कर दे कोई उंच नीच हो गयी तो फिर संभाल ना पाएगी"।
आये दिन ऋतू की दादी उसकी माँ को ताने मारती रहती थीं। ऋतू को इन बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था वो खुद ही लड़कों की तरह रहती थी, उसकी चाल ढाल सब लड़कों जैसी थी। माँ कुछ कहती शादी को लेकर, तो अक्सर टाल जाती थी और कहती थी कि," मुझे नहीं करनी ये शादी क्या होगा उसके बाद बस घर बच्चे मुझसे न होगा माँ" कहती हुई अपने काम में मस्त हो जाती थी।
दादी पुराने ख्यालातों की थीं, तो अक्सर घर में माहौल गरम हो जाता था, इस वजह से वो ज़्यादा समय बाहर ही बिताने लगी थी। उसके साथ ही पड़ती थी,कीर्ति बहुत ही सौम्य स्वभाव की लड़की थी वो। ऋतु और कीर्ति ने स्कूल की पढ़ाई भी साथ ही की थी।तो दोनों एक दूसरे को बखूबी समझतीं थीं।
समय के साथ ये दोस्ती कब प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला। कीर्ति ने तो एक दिन ऋतु को बता दिया था कि,"मुझे लड़के नहीं, लड़कियां पसंद हैं। ऋतु ने कीर्ति की बात को बड़ी संजीदगी से समझा ! उनमें बहुत गहरी मित्रता हो गयी थी। दोनों को दिनों दिन एक दूसरे की आदत सी पड़ गयी थी, कुछ बात होती तो सीधे एक दूसरे के घर चली जाती थी या फ़ोन पर सब बताकर ही उनको चैन आता था।
कीर्ति की माँ नहीं थी और पिताजी शराब के आदी थे तो कीर्ति को भी जैसे अपनी सारी दुनिया ऋतू में दिखती थी। ऋतू और कीर्ति के बीच की घनिष्ठता बहुत बड़ी मिसाल थी कभी कीर्ति को ज़रूरत पड़ती थी तो ऋतू बिना कोई परवाह किये उसकी मदद करती थी।
साल भर बीता दोनों बीए द्वितीय वर्ष में आ गयीं थीं। उनके बीच मेलजोल बहुत बढ़ गया था। इतना ज़्यादा कि दोनों रोज़ जब तक मिल नहीं लेती थीं, उनको अच्छा नहीं लगता था
कीर्ति खुद को बेहद सुरक्षित महसूस करती थी, ऋतु के साथ, कीर्ति के पिताजी को ऋतु से ज़्यादा मेलजोल पसंद नहीं आता था उनको लगता था लड़की घर पर ध्यान नहीं देती है आजकल ! एकदिन तो ऋतु के सामने ही कीर्ति को बहुत डाँटा, ऋतु तक को सीधे कह दिया कि," यहाँ आना जाना थोड़ा कम करो, अपनी दोस्ती यारी सब कॉलेज तक ही रखो " कहकर अंदर चले ! कीर्ति ऋतु के गले लग कर बहुत रोयी। उस वक़्त ऋतु को ना जाने क्या महसूस हुआ उसने मन में ठान लिया था, कि अब वो हमेशा कीर्ति का ध्यान रखेगी। उसके लिए ऋतु के मन में अजीब सा अहसास जग रहा था
पूरे दिन वो यही सोचती रही थी,अगले दिन माँ की आवाज़ से उसकी आँख खुली, सुबह के ८ :३० बज चुके थे वो तपाक से उठी कॉलेज के लिए, आज देर हो गयी थी, नहा कर निकली तो दादी कि आवाज़ आयी, " आज कॉलेज मत जा, तुझे देखने आज लड़के वाले आ रहे है। और हाँ कोई ढंग का सलवार कमीज़ अपनी बहन से ले कर पहन लेना, चल जा अब तैयारी कर ले " कहकर अपनी माला जपने में व्यस्त हो गईं।
ऋतू के लिए तो जैसे तूफ़ान सा उठ खड़ा हुआ था, तुरंत रसोई में भागी माँ के पास, "माँ ये सब क्या है मैंने कहा था ना मुझे नहीं करनी है शादी "। माँ ने बड़े प्यार से समझाया,"बेटा हर लड़की को अपने घर एक दिन जाना हैं तेरी छोटी बहन कि शादी भी तभी होगी जब तेरी होगी पापा के रिटायर होने से पहले तुम दोनों के हाथ पीले हो जाएँ तो अच्छा ही है ना"कहकर ऋतु की माँ तैयारी में जुट गयीं थीं ऋतु चुपचाप अपनी तैयारी में लग तो गयी, लेकिन उसको बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था।
उसने कीर्ति को बताने के लिए फ़ोन मिलाया, लेकिन उसका भी फ़ोन नहीं उठ रहा था। थोड़ी देर बाद लड़के वाले आये बातचीत शुरू हुई,ऋतु बहुत देर बुलाने पर आयी थी। खैर लड़के वाले बातचीत पूरी होने के बाद निकल गए थे शाम होने को थी आज ऋतु का मन बहुत उदास था। एक तो सुबह से कीर्ति से भी बात नहीं हुई थी, वो सीधे कीर्ति के घर पहुँच गयी थी। उसको सब कुछ बताने के लिए लेकिन कीर्ति के घर में ताला लगा देख कर और मायूस हो गयी थी। फिर कई बार फ़ोन किया उसने तो फ़ोन नहीं उठा था। उसे बहुत गुस्सा भी आ रहा था।
चुपचाप घर लौट कर अपने कमरे में लेट गयी थी। दिमाग में उसके बस कीर्ति का ही ख्याल था कुछ देर बाद कीर्ति ने कॉल करके बताया की, "पापा की तबियत बहुत खराब है,उनको सुबह हार्ट अटैक आया तभी से में हॉस्पिटल में हूँ बस मेरे साथ मेर चाचा जी ही हैं ",और कहकर रोने लगी, ऋतु तुरंत हॉस्पिटल पहुँच गयी थी। ऋतु को देखकर जैसे कीर्ति में जान आ गयी थी, कीर्ति के चाचा ने उसको घर जाने के लिए कहा, दोनों वापस कीर्ति के घर आ गयीं थी, कीर्ति ने भी उस दिन ऋतू को उसके घर ही रुकने को कह दिया था।
दोनो ने मिलकर खाना खाया और बातें करने लगीं थी ऋतु ने सुबह कि सारी बात जब कीर्ति को बताई कीर्ति कुछ मायूस हो गयी थी चुप चाप ऋतु कि गोद मैं सर रख कर लेट गयी ऋतु मैं तुरंत पूछा तुझे क्या हुआ अरे अभी कहीं नहीं जा रही मैं, अभी तो बस लड़का ही देखा है और मैंने अभी लड़के से कह भी दिया है कि पढ़ाई पूरी करके ही मैं शादी करुँगी, फिर शादी तो होनी ही है, कहकर ऋतू उसके सिर पर हाथ फेरने लगी, लेकिन कीर्ति उदास हो गयी थी।
थोड़ी देर में दोनो बात करते करते सो गए थे सुबह होते ही कीर्ति चाय बना लायी थी। चाय पीते पीते कीर्ति ने कहा, "क्या ऐसा नहीं हो सकता हम दोनो साथ रहें, हम एक दूसरे से शादी कर लें।"
सुनते ही ऋतू बहुत हँसी थी हँसते हँसते बोली,"पागल ऐसा कभी होता है" !वो सच में आज पहली बार कीर्ति कि किसी बात पर हँस रही थी। कीर्ति उसके करीब आ कर बोली," मैं मज़ाक नहीं कर रही हूँ। ऋतु थोड़ा सकपका गयी थी कीर्ति ने उसके दोनों हाथों को अपने हाथ मैं लेकर कहा, "मैं सच मैं मज़ाक नहीं कर रही हूँ ऋतु, मैं तुझसे दूर नहीं रह पाऊंगी ना ही किसी और से शादी कर पाउंगी, में बहुत दिन से तुझसे कहना चाह रही हूँ लेकिन ऐसा नहीं कर पा रही थी, आज अकेले है तो कह दिया, में सच में तेरे बिना नहीं रह पाउंगी" कह कर ऋतु के गले से लग गयी, ऋतु को भी आज उसके मन की बात सुनकर सुखद लग रहा था।दोनों बहुत देर तक एक दूसरे के गले लग कर बैठे रहे।
यहीं से शायद पहली बार उन दोनो के बीच उस प्रेम का आगाज़ हो चुका था, जो सामाजिक तौर पर माननीय नहीं था।आज उन दोनो ने अपनी दोस्ती को नया आयाम दे डाला था,उन दोनों की अतरंगता बेहद बढ़ गई थी और बेपरवाह होकर वो एक दूसरे का साथ देने लगीं थीं। ऐसा बहुत दिन चला और वो दोनों अपने इस बढ़ते रिश्ते में बेहद खुश थे, शायद दोनों एक दूसरे के पूरक बन चुके थे, कसमें खा चुके थे कि अब हम एक दूसरे के साथ ही रहेंगे चाहे कुछ भी हो।
ऋतु और कीर्ति अब लगभग पूरे दिन साथ ही रहते थे।शायद इनके रिश्ते को भनक दोनों के परिवारों जो भी लग चुकी थी, दोनों को खूब समझाया गया, लेकिन दोनों एक दूसरे को पूरी तरह समर्पित कर चुके थे।
जब इनके रिश्ते की रज़ामंदी नहीं मिली, तो दोनों ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया था। कीर्ति के पिताजी ने कीर्ति को चाचा के साथ भेजे का फैसला कर लिया था।
ये सब होता उससे पहले ही ऋतु और कीर्ति ने मौका पाकर घर छोड़ दिया, बदनामी के डर से घरवालों ने भी खोजबीन करना उचित नहीं समझा, दोनों का पता नहीं चला वो कहाँ गयीं।
प्यार के इस सफर में दोनों सहेलियां साथ थी, नहीं था कोई तो ये समाज,उनके परिवार वाले ! इन दोनों ने समाज की उन बेड़ियों को तोड़कर अपने लिए एक दूसरे को चुना। वो अब एक दूसरे के लिए और साथ में जीना चाहती थीं !
ये कैसा फैसला साबित हुआ उनका ये कोई नहीं जानता, लेकिन एक दूसरे के प्यार में डूबी दो सहेलियाँ आज साथ हैं, ये था असाधारण प्रेम और समर्पण उनका एक दूसरे के लिए।
