फटाफट
फटाफट
"बाबा आप इस वर्दी में कितने अच्छे लगते हैं, बड़ा होकर मैं भी पहनूँ... ।"
वर्दी पर हाथ फेरते हुए बोला था नन्हा विश्वास।
"क्यों नहीं मेरे लाल पर ये सिर्फ वर्दी नहीं है मेरे बच्चे ये हमारी हिम्मत है, हमारा स्वाभिमान है, बहुत पवित्र है ये, तू इसे जरूर पहनेगा।"
रामशरण विश्वास को बता रहा था।
"बस बाबा मैं जल्दी से बड़ा हो जाऊँगा, फिर ये वर्दी पहन कर फौजी .......और फिर ठाय- ठाय.... दुश्मन को मार कर ही घर आऊँगा। मैं तो सारे काम फटाफट करूँगा।"
दस साल पहले की ये बात, कल की सी लग रही थी।
"जो कहा वो कर दिखाया फटाफट...।"
कहते हुए रामशरण ने गीले कोरों को साफ किया और शहीद विश्वास को अन्तिम सलामी दी।
अभी- अभी तिरंगे में लिपटा शहीद विश्वास का शरीर श्रद्धांजलि के लिए आँगन में रखा गया था।
