फसाना

फसाना

7 mins
661


  

शबाना का ससुराल आजगढ़ और खुद रहने वाली राजस्थान के एक छोटे से गांव कवास की यानि कि उसका मायका कवास में है। अब आप पूछेंगे - भाई शबाना आखिर आजमगढ़ कैसे पहुंच गई ? कहानी ये है- अब्दुल आजमगढ़ से काम के सिलसिले में बाड़मेर आया था जब वहां रिफाइनरी तेल निकला था तब जो टीम आई थी उनके कर्मचारियों में अब्दुल भी था वहीं पे दिहाड़ी पर शबाना भी काम करती थी, बस दोनों में प्यार हो गया, हो गई शादी। शबाना का कोई था नहीं, एक दूर का चाचा था, उसकी तो बला टली। सालभर वहीं कवास में रहा फिर घर से फोन पर समाचार मिला कि उसके अबू बीमार है इसलिए बुलाया था, जाना पड़ा। अपने अबू के ठीक होने के बाद मुम्बई आ गया काम के लिए, गांव में खेती-बाड़ी थी उसके अबू और छोटा भाई इरफान संभालते थे पर इतनी जमीन तो थी नहीं जो सबका गुजारा हो सके। कुछ काम तो करना ही था, पहले भी वो मुम्बई में ही काम करता था। खेती में वैसे भी उसकी रूचि नहीं थी, पहले एक लकड़ी के कारखाने में काम करता ही था, अभी भी वहीं जाने वाला था, सेठ को फोन करके पता कर लिया था, सेठ ने पहले तो खूब गुस्सा किया - काम बीच में छोड़ कर तू चला गया था, काम की कितनी मारा-मारी थी, टाइम पर कारीगर मिला नहीं, मालूम मेरा कितना नुक्सान हुआ।अब फिर कोई गड़बड़ किया और पहले की तरह भाग गया तो ?

उसने भी माफी मांगकर कभी न छोड़ने का वादा किया और सेठ को भी आदमी की सख्त जरूरत थी सो ना-नुकर तो किया पर मान गया। शबाना को कुछ समय के लिए परिवार में रहना चाहिए ऐसा सोचकर उसे वहीं छोड़ आया, शबाना भी खुशी-खुशी मान गई, घर में सबके साथ घुल-मिल कर रहती थी उसकी हम-उम्र एक ननंद थी रज़िया, अभी शादी नहीं हुई थी उससे तीन साल छोटी भी थी फिर भी दोनों में अच्छी पटती थी वैसे सब घरवाले भी खुश ही थे उससे। एक साल वहां रही, रज़िया की शादी पक्की हुई तब शादी में बीस दिन की छुट्टी पर आया। सेठ को उस पर विश्वास नहीं हो रहा था कि फिर कहीं पिछली बार की तरह न करे, सेठ ने कहा भी मुझे तेरा जरा भी भरोसा नहीं है, बीस दिन मतलब बीस दिन, इक्कीस भी किया तो फिर इधर नहीं आना, मैं रखने वाला नहीं। अब्दुल ने बहुत मिन्नतें की, भरोसा दिलाया, अपनी खोली की चाबी सेठ को दी और एक महीने का पगार भी जमा रखा, फिर भरे गले से बोला - अब तो भरोसा करो बीस नहीं, पंद्रह दिन में ही वापस आ जाऊंगा। सेठ को दया आ गई - अरे भाई अपनी बहन का शादी बरोबर करके बीस दिन में आ जाना पर इक्कीस नहीं, समझा ना, अब्दुल ने हां में गर्दन हिलाई और वहां से सीएसटी चला गया।

सच में वादे का पक्का निकला पंद्रह दिन में ही आ गया।रिक्शे से उतरकर सेठ से चाबी मांगी तो देखकर आश्चर्य से बोला - तू आ गया ! चल अच्छा हुआ, वैसे भी बहुत मारा-मारी है काम की, तू कल से आ जा काम पे।

दूसरे दिन काम पर आ गया आते हुए साथ में शादी की मिठाई भी ले आया सबने बधाई दी मिठाई सबने बड़े प्यार से खाई।सेठ ने तारीफ करते हुए कहा- अपनी यू पी की मिठाई जैसी यहां कहां ! शबाना ने भी तीन घरों में साफ-सफाई का काम पकड़ा लेकिन जब अब्दुल को पता चला तो कहा - देख शबो, मैं जितना कमा रहा हूं, काफी है कोई जरूरत लोगों के यहां झूठे बर्तन, कपड़े वगैरह साफ करने की , नहीं।मुझे नहीं जमता है ये सब, , छोड़दो अगर कुछ काम करना ही है तो तुम्हें सिलाई तो आती है, तुमने आजमगढ़ में रज़िया के साथ सिलाई सीखी है ना !

 सीखी तो क्या हुआ मशीन बिना कोई सिलाई होती हैं ? तुम भी ना,

 मशीन किश्तों पर ले लेंगे, मेरे दोस्त किशोर ने अभी परसों ही ली है उससे पता करके ले लेंगे अब तो खुश मॅडम ! दो दिन बाद मशीन भी आ गई लेकिन शबाना ने कहा - यह महीना तो मुझे पूरा करना ही पड़ेगा, बोलना भी तो पड़ेगा छोड़ने से पहले। इस दरमियान काफी लोगों को बताया सिलाई के बारे में। धीरे-धीरे सिलाई का काम भी मिलने लगा। एक-डेढ़ साल में अच्छा काम जम गया। इस बार गांव में खेती भी अच्छी हुई थी। चारों तरफ से थोड़ा ठीक हुआ तो घरवालों का आना-जाना लगा रहा। बहन - बहनोई आकर गये लगभग एक महीना भर रहे।हर छुट्टी वाले दिन घुमाकर लाता, वे गये तो भाई और उसकी बीवी आ गये, भाई पूरे दो महीने रहकर गया। शबाना जितनी अच्छी रही लेकिन अब परिवार वालों के आने के बाद तो उसका पारा हाई रहने लगा, कभी ठीक से बात नहीं करती तो कभी खाना नहीं बनाती, बीमारी का बहाना करके बिस्तर पर पड़ी रहती जब ननंद थी तब वो, और जब देवरानी थी तब वो खाना बनाती। अब्दुल उसके रवैये को समझ रहा था, बहन के जाने के बाद बहुत समझाया भी दोनों में आये दिन लड़ाई होती बिना बात की बात में ! वो परेशान हो गया था, घरवालों के सामने शर्मिंदगी महसूस करता मगर शबाना अब फसाना बन गई थी। उसका कहना था इतनी छोटी-सी खोली साथ में एक छोटी-सी मोरी, इती-सी जगह में सब लोग कैसे रहें सब लोगों के सोने के लिए जगह पूरी ही नहीं पड़ती, तुम्हें पता नहीं चलता क्या ? 

सब पता चलता है लेकिन यहां इससे ज्यादा बड़ी की तो मेरी हैसियत नहीं है , घर वाले तो आयेंगे ही ! वे लोग भी तो गांव बड़े बड़े घरों में रहते हैं भले ही आधा कच्चा-पक्का है लेकिन जगह तो खुली है फिर भी उन्होंने कभी नाक - भौं तक नहीं सिकोड़ी ना ही कभी कोई शिकायत की और तुम हो कि उन लोगों के आने पर कैसा व्यवहार करती हो, तुम्हें जरा भी नहीं लगता कि तुम अच्छा नहीं कर रही हो ?

नहीं मुझे कुछ नहीं लगता सब नरक लगता है अरे इससे तो मेरा कवास अच्छा !

तो चली जा कहते हुए पांव पटकता हुआ निकल गया और शबाना उस घड़ी को कोस रही थी जब अब्दुल से प्यार हुआ था ! सोच रही थी अब अम्मी-अबू आने वाले हैं।कैसे होगा ! जी करता है चली जाऊं लेकिन कहां जाऊं।वहां तो मैं बोझ से कम नहीं हूं इतने सालों में किसी ने भी नहीं पूछा - मरी हूं कि जिन्दा।किसे पड़ी है!

बकरी ईद पर अम्मी-अबू आये, हफ्ताभर तो उनके साथ मुहब्बत से रही और फिर वही फसाना ! कभी कुछ तो कभी कुछ ! अभी कल ही की बात है, अम्मी ने पूछा - दुल्हन, आज हमारे साथ बाजार चलोगी ? तड़क के ना में जवाब दे दिया - मुझे काम है, थोड़ी देर बाद पड़ोस की कमला ने कहा - शबाना, मेरे साथ बाजार चल ना , बिना किसी ना-नुकर के जाने के तैयार हो गई ! अम्मी को बड़ा खराब लगा फिर भी उन्होंने शांति से कहा - तुम तो आज नहीं जाने वाली थी ना।तो अब, ?

मेरी मर्ज़ी है मैं जाऊं न जाऊं आपको उससे क्या ? अगर आपको चलना है तो चलिए, मैंने कौन-सा मना किया है !

 दुल्हन हमसे ऐसे टेढ़ा-मेढ़ा बोलने की जरूरत नहीं है हमने ऐसा कुछ नहीं कहा है, हम थोड़े दिनों के लिए आये है चले जायेंगे अपने घर !

पूरे दो महीने हो जायेंगे चार दिन बाद और आपको ये थोड़े दिन लगते हैं ? तौबा-तौबा।झूठ बोलते हुए अल्ला से तो डरिये ! आखिरकार बेचारी अम्मी कुछ नहीं बोली और बाहर जाकर गली में ओटे पर बैठी विचारों में डूब गई, शबाना जाने लगी तो बोली - चलना है तो चलिए फिर मत कहिएगा कि मुझे बोला नहीं, शाम को अपने बेटे के आगे शिकायत करने मत बैठ जाइयेगा वरना बेकार ही मुझसे झगड़ा करने लग जायेंगे ! 

 बेचारी अम्मी की आंखें भर आईं लेकिन बोलीं कुछ नहीं, ,,,,फायदा भी क्या ? सोच रही थी - अब अपने गांव लौट जाना चाहिए, देख लिया बेटे का संसार, बस हो गया अब, जब हम बोझ है तो काहे के लिए रहें अपना घर भला। यहां नरक जैसा ही तो है सब गली में बहती हुई गंदी नालियां घर में भी तो न हवा का कोई ठिकाना और ना ही जगह का, वो तो बेटे के मोह में पड़े थे कि चलो गर्मी तक रुक जाते हैं बरसात में चले जायेंगे।पर नहीं, अब नहीं। 

 रात के खाने के बाद अब्दुल से कहा - बचवा हमारी टिकिट बना दो, काफी समय हो रहा है।दो महीने हो जायेंगे।

क्यों वहां तो रहते ही हो कुछ दिन और रुक जाओ ना !

हां इतनी जल्दी क्या है।बेटा कह रहा है तो रुक जाइये ना, यहां क्या कभी है, इतना बड़ा मकान और क्या चाहिए आपको ? 

अब्दुल उसकी तानेकशी को खूब समझ रहा था, समझ तो अम्मी-अबू भी रहे थे मगर बोले कुछ नहीं।बोलने से झगड़ा ही होता।बेकार ही मन दुखी होता ! दूसरे दिन इनकी टिकिट बन गई थी दस दिन बाद की। इस वक्त सभी कुछ सोच रहे थे सबके मन में कोई न कोई तकलीफ थी शबाना को छोड़ कर वो खुश थी - चलो सुकून से रहने को मिलेगा वरना, ओहोओओओ या अल्लाह !

वाकई शबाना, अब वो शबाना नहीं रही जो उसकी मुहब्बत थी बल्कि तिजारत भरा जबरदस्त फसाना बनकर रह गई थी ! बेचारा अब्दुल !


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance