फोटोशोप्ड
फोटोशोप्ड
बड़े से हाॅल में नए लेखकों का जमावड़ा था। सभी अपनी-अपनी रचना लेकर वरिष्ठ लेखकों के सामने चेहरे चमकाने में भिड़े हुए थे। तभी एक खूबसूरत महिला ने अपनी रचना को वरिष्ठ लेखक के आगे विनम्रतापूर्वक बढ़ाया।
वरिष्ठ ने उनकी रचना को गौर से पढ़ते हुए कहा , ”मैडम, यह आपकी.. रच...? कहते-कहते जैसे कुछ बातें उनके गले में अटक कर रह गईं। लेखिका घबराई, पसीने की टघार से उसके चेहरे का मेकउप उतरने लगा। उसने आहिस्ता से कहा, “ जी सर, मेरी रचना है। आपको मेरी कथा अच्छी...नहीं लगी? “
“ मैडम जी, आजकल मार्केट में ‘ फोटोशोप्ड’ आलेख की होड़ लगी है।”
“फोटोसोप्ड? वो क्या...? सर,मैं समझी नहीं ?” लेखिका एक बार लेखक को देखती,और एक बार उनके हाथ में पड़ी अपनी रचना को|
” शायद, आपको पता न हो...हमारे ‘फेसबुक बाबा’ के प्रताप से आजकल लोगों में लेखक एवं कवि बनने का होड़ सा लग गया है। ‘फेसबुक बाबा’ सही में औढरदानी हैं। उनका फ्री फंड चल रहा है, बिना टेंशन के उनसे कुछ भी लिया जा सकता है। जैसे--किसी रचना से आँख, किसी से नाक, किसी से होंठ , सभी को मिलाकर इंस्टेंट बना डाली एक खुबसूरत कथा। “
मुस्कुरा कर कहते हुए , रचना को लेखिका के हाथ में थमा कर वरिष्ठ लेखक कुर्सी से उठ गये|