पहली नज़र का प्यार - 2
पहली नज़र का प्यार - 2
आज नंदिनी अपनी प्रेम कहानी का दूसरा पन्ना लिखने जा रही थी। घर के सबसे शांत कोने में बैठकर, खिड़की से बाहर झांकते हुए, नंदिनी एक बार फिर यादों के सफर में कहीं खो गई।
नंदिनी लिखती है........
उस दिन शाम को जब स्कूल से में घर वापस लौटी तो रोज़ की तरह मां ने मेरे लिए खाना परोसा। अक्सर इसी वक्त पर हर दिन में मां को अपनी पूरी दिनचर्या सुनाया करती थी। मां मेरी अब तक की सबसे प्यारी सहेली थी। तो लाज़मी था की मैं मां से कुछ भी नहीं छिपाती थी।
खाना खाने के बाद मैं अपना स्कूल होमवर्क करने में व्यस्त हो गई थी। अपना सभी काम समाप्त करने के बाद मां ने मुझे और मेरे छोटे भाई को सब्जी खरीदने के लिए बाजार भेज दिया। मुझे आज भी अच्छी तरह याद है को उस दिन मैंने सफेद रंग का सलवार सूट पहना हुआ था जो मुझ पर बहुत फब रहा था, ऐसा मेरी मां ne मुझसे बाजार जाते हुए कहा था। उन दिनों मेरे बाल बहुत लंबे थे, लगभग कमर तक पहुंचते थे। सफेद सूट और दो चोटियां और साथ में जरी वाला सफेद दुपट्टा, कसम से बहुत ज्यादा खूबसूरत लग रहा था।
खैर, मैं और रोनित बाज़ार के लिए रवाना हुए।
अभी सब्जी मंडी में हमने कदम रखा ही tha की राहुल सर से राबता हो गया। उन्होंने मुझे देख लिया था और बदले में मैंने नमस्ते करते हुए सर झुका लिया था। मुझे लगा की शायद ये मुलाकात इतनी ही है। तो मैं मेरे भाई के साथ आगे बढ़ गई। कुछ कदम बाद मैंने अचानक पीछे मुड़ कर देखा तो राहुल सर को मेरे पीछे चलते पाया। हालांकि हम दोनों में फासला अब भी बहुत था।
पर मैंने सोचा शायद सर भी कुछ सब्जी खरीदने आए हैं। इसीलिए मैंने उनकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया। जैसे ही मैं सब्जी लेने के बाद घर जाने के लिए उद्यत हुई, मेरे कदमों के साथ मैंने किसी और के कदमों को पाया। वो कोई और नहीं बल्कि राहुल सर ही थे। ये देखकर की सर एकदम मेरे साथ में ही खड़े हैं, मेरे मन में एक अजीब सी स्तभधता छाई। मैंने रोनित का हाथ पकड़ कर अपना रास्ता बदल दिया। पर कुछ ही कदम चलने के बाद मुझे आवाज सुनाई दी," नंदिनी........ नंदिनी।" मेरे आगे बढ़ते कदमों ने सहसा खुद को रोक लिया। एक पल ठहर कर मैंने लंबी गहरी सांस ली, क्योंकि ये आवाज किसी और की नहीं बल्कि राहुल सर की ही थी। अब तक उनका जो भी मेरे प्रति व्यवहार रहा, उनका मेरे साथ खड़े होना और मेरा पीछा करना, कहीं न कहीं मेरे मन में अब थोड़ा भय उत्पन्न हो गया था। एक अजीब सी झिझक के साथ में राहुल सर की ओर मुड़ी और मैंने येस सर बोल कर जवाब दिया। तो राहुल सर ने गुफ्तगू का सिलसिला कुछ यूं शुरू किया......
आप गाती बहुत अच्छा हैं।
जी, थैंक यू सो मच सर, मैंने अभिवादन करते हुए जवाब दिया।
राहुल सर: आपका घर कहां है?
मैं: बस कुछ ही दूरी पर है।
राहुल सर: आपके परिवार में कौन कौन हैं?
मैं: मेरे परिवार में मेरे मम्मी , पापा , भाई और में खुद हूं। मैंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।
बस ऐसे ही सवालातों में वो छोटा सा सफर साथ में तय हुआ। जाते जाते राहुल सर मुस्कुराते हुए बाय कहते हुए चले गए। इसके बाद रोनित ने मुझसे सवालों का सिलसिला शुरू कर दिया।
दीदी ये कौन थे और तुम इन्हें कैसे जानती हो?
रोनित के साथ साथ मैंने मां को भी बताया था कि अभी सब्जी लेते समय मुझे बाजार में राहुल सर मिले।
मां ने बस इतना कहा था, की तुम अब बड़ी हो रही हो, इसीलिए जब भी किसी से मिलो या बात करो तो बस अपनी सीमा में रह कर। जब तक चीज़ें सीमा में होती हैं, तब तक अच्छी होती है। किंतु सीमा लांघते ही वही चीज सबसे अधिक बुरी बन जाती है। मां की इस बात को मैं कुछ - कुछ समझ पाई थी। बदले में मैं एक उधेड़बुन में खो गई। मां मेरे पास आकर बोली, तुम समझ गई न, मेरा कहने का क्या मतलब है। मैंने बस हां में सिर हिलाया था।
मां को याद कर, उनकी करुणा और चिंता से भरे शब्दों का आज बरसों बाद भी वही एहसास था, जो उस छोटे से पल में था।
इसी के साथ नंदिनी आज का पन्ना भर चुकी थी और डायरी को बड़े ही प्यार के साथ बंद कर के किचन में चाय बनाने चली गई।

