मर्यादा
मर्यादा
देखने में मात्र साढ़े तीन अक्षर लंबा ये शब्द अपने भीतर कई अनसुनी दर्द भरी कहानियां लिए हुए है। सबसे अधिक अगर किसी के जीवन पर इस शब्द का असर हुआ है तो वो है नारी। प्राचीन समय से अब तक जब भी किसी
घर में लड़की जन्म लेती है तो उसे बचपन से लेकर जवानी तक मर्यादा में रहने की सीख दी जाती है और इसमें निश्चित रूप से कोई बुराई भी नहीं है। किंतु ये शब्द अभिशाप तब बन जाता है जब केवल औरत पे इस शब्द को थोपा जाता है। मर्यादा के नाम पर जब उसे शिक्षा से वंचित रखा जाता है, अपने सपने पूरा करने के लिए घर से दूर पढ़ने के लिए नहीं भेजा जाता है, कोई उसे बुरी दृष्टि से देखे तो भी दोष औरत पे ही मढ दिया जाता है, वो भले ही नजरें झुकाए बाजार से जा रही हो, किंतु जब उसे कोई छेड़े तो उस मनचले के खिलाफ कार्रवाई न कर के उल्टा औरत को मर्यादा का पाठ पढ़ाया जाता है, एक ही घर में एक ही मां की कोख से जने भाई बहन में से जब बहन के सपनों का मर्यादा के नाम पर गला घोंटा जाता है........,
तब
केवल तब ये शब्द जरूरत से ज्यादा भारी और तकलीफ देने वाला हो जाता है।
अगर यही मर्यादा का पाठ, बहन भाई दोनों को सिखाया जाए तो निश्चित रूप से, समाज में होने वाले आधे से अधिक बुराइयों पर विजय प्राप्त की जा सकेगी।
