पहली मुलाक़ात
पहली मुलाक़ात
पहली मुलाक़ात बारिश की रिमझिम में दिल्ली का कनॉट प्लेस कुछ ज़्यादा ही हसीन लग रहा था। भीगे रास्तों पर चलते हुए वह लड़की, नीले दुपट्टे में लिपटी, जैसे खुद किसी कविता का मुखड़ा हो। मैं, आरव, पहली बार किसी अनजानी सी पर इतनी अपनी लगने वाली लड़की से मिलने जा रहा था — नेहा। हमारी पहचान ऑनलाइन हुई थी। हफ्तों की बातचीत के बाद, आज पहली बार मिलने का दिन था। मन में घबराहट भी थी और उम्मीद भी। वो आई, मुस्कुराई, और एक हल्की सी "हाय" कहकर बैठ गई। "तुम्हें बारिश पसंद है?" मैंने पूछा। "हाँ," उसने कहा, "क्योंकि ये पुराने ग़म भी धो देती है और नए एहसास भी जगा देती है।" उसकी आवाज़ में वो नमी थी जो किसी पुराने खत की तरह मन को छू जाती है। हमने कॉफी पी, कुछ किताबों की बातें कीं, कुछ खामोशियां भी साझा कीं — और उन खामोशियों में शायद सबसे ज़्यादा बातें हुईं। वो पहली मुलाक़ात थी, लेकिन दिल ने जैसे मान लिया कि यह कोई आखिरी नहीं होगी।
