जंगल जा रहे हैं
जंगल जा रहे हैं
जंगल जा रहे हैं (हास्य संस्करण)
गाँव के चार मित्र—रवि, मीरा, सुशील और पायल—ने एक दिन ऐलान कर दिया, “बस बहुत हुआ घर में बैठना, अब जंगल चलेंगे!”
मीरा बोली, “पर मच्छर?”
रवि ने छाती ठोककर कहा, “मच्छर हमसे डरते हैं!”
पायल ने पूछा, “साँप?”
सुशील बोला, “साँप हमें देखकर रास्ता बदल लेते हैं!”
फिर मीरा ने आखिरी सवाल पूछा, “और अगर भालू मिल गया तो?”
सब एक साथ बोले, “तो सेल्फी लेंगे!”
चारों एक पुराना नक्शा लेकर जंगल में घुस पड़े, जो उन्होंने किसी चिप्स के पैकेट से निकाला था—शायद प्रमोशन चल रहा था: "खजाना ढूंढो, इनाम पाओ!"
जंगल में पहुँचते ही रवि को लगा वह ट्रेकर बन गया है। उसने हर 5 मिनट में कहा, “हम उत्तर की ओर बढ़ रहे हैं”—जबकि उसके फोन का कम्पास सिग्नल ढूंढ रहा था।
थोड़ी देर बाद सुशील बोला, “मुझे लगता है हमने रास्ता भटका दिया है।”
मीरा बोली, “तुम्हें ये हर बार लगता है, जब तुम्हें भूख लगती है।”
भूख लगी तो पायल ने बैग से निकाले पराँठे, लेकिन सबके हाथ धोने से पहले ही एक बंदर आकर पूरा बैग लेकर भाग गया।
रवि चिल्लाया, “उसके पास खजाने का नक्शा भी था!”
मीरा बोली, “अब बंदर ही खजाना ढूंढेगा। हमें तो घर लौटना चाहिए।”
लौटते वक्त सबकी चप्पलें कीचड़ में फँस गईं, पायल पेड़ से लटकी झूला बन गई बेल से गिर पड़ी, और रवि को एक मेंढक ने ‘किस’ करने की कोशिश की (रवि अब भी दावा करता है कि वो राजकुमारी थी)।
अंत में चारों जैसे-तैसे गाँव लौटे, कपड़े कीचड़ में सने, लेकिन हँसी रोक नहीं पाए।
मीरा ने कहा, “खजाना तो मिला नहीं…”
रवि बोला, “मिला ना! यादों का खजाना!”
और पायल बोली, “हाँ, और बंदर ने हमारे पराँठे भी खा लिए… यादें बड़ी ‘स्वादिष्ट’ होंगी उसके लिए भी!”
