समुन्द्र तट की सीख
समुन्द्र तट की सीख
समुन्दर तट की सीख
एक बार की बात है, एक युवा लड़का — आरव — जो जीवन में असफलताओं से टूट चुका था, थककर छुट्टी पर समुद्र तट पर आ गया।
उसका सपना था बड़ा लेखक बनने का, पर लगातार रिजेक्शन और ताने सुनकर उसने कलम छोड़ दी थी।
समुन्दर की लहरें बार-बार किनारे से टकरा रही थीं।
आरव बालू पर बैठा उन्हें देख रहा था। लहरें आतीं, ज़ोर से टकरातीं और लौट जातीं — फिर दोबारा आतीं, फिर टकरातीं।
पास ही एक वृद्ध मछुआरा जाल समेट रहा था।
उसने आरव को देखकर मुस्कुराते हुए पूछा,
"क्यों बेटा, उदास क्यों हो?"
आरव बोला,
"सब कोशिश की, पर कुछ नहीं हुआ। लोग कहते हैं मैं फेल हो गया।
अब तो हार मान ली है।"
वृद्ध हँसते हुए समुद्र की ओर इशारा करता है,
"देख रहा है इस समुन्दर को? ये हर बार आता है, टकराता है, लौटता है... पर रुकता नहीं। तू क्यों रुक गया?"
आरव चुप रहा।
वृद्ध आगे बोला,
"अगर समुन्दर भी हार मान जाए, तो किनारे नहीं बनते। और तू तो इंसान है, तू तो लहर से भी ज़्यादा जिद्दी हो सकता है।
बस एक बार फिर कोशिश कर!"
उस दिन आरव ने ठान लिया —
"मैं फिर लिखूंगा, बार-बार टकराऊंगा, जब तक एक दिन मेरी लहर इतिहास न बना दे।"
सालों बाद वही आरव एक प्रसिद्ध लेखक बना, और उस समुद्र तट पर फिर आया। बालू पर बैठकर उसने अपनी किताब का पहला पन्ना खोला —
"यह किताब उस लहर को समर्पित है — जिसने मुझे फिर से उठना सिखाया।"
---
सीख:
>
"जीवन भी समुद्र की तरह है — जितनी बार गिरो, उतनी बार उठो। ठहराव नहीं, लहर बनो।"
