आपकी मुस्कान( भाग-1)
आपकी मुस्कान( भाग-1)
कॉलेज का पहला दिन था। सब कुछ नया—क्लासरूम, दोस्त, किताबें… और एक चेहरा।
वो पहली बार सामने से आई। नीली सलवार, खुले बाल, और चेहरे पर एक ऐसी मासूम सी मुस्कान, जो सीधे दिल में उतर गई। मैं कुछ कह नहीं पाया, बस उसे जाते हुए देखता रह गया।
हर दिन वही कहानी—वो आती, मुस्कराती, और मैं उसे देखकर चुपचाप मुस्कराता।
एक दिन हिम्मत करके पूछ ही लिया,
"तुम हर वक्त इतना खूबसूरत कैसे मुस्कराती हो?"
वो हँसी और बोली,
"क्योंकि कोई है जो मुझे देखकर रोज मुस्कराता है।"
मैं हक्का-बक्का रह गया। कुछ कहने से पहले ही वो चली गई, और मेरी मुस्कान उसके पीछे-पीछे…
दिन बीतते गए, दोस्ती गहरी होती गई। पर मैं कभी कह नहीं पाया कि उसकी मुस्कान मेरी दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ है।
एक दिन उसने खुद कहा,
"मुझे किसी ने बताया था, मुस्कान बांटने से बढ़ती है। तुमने मेरी मुस्कान को संजोया है, अब उसे संभाल कर रखना… हमेशा के लिए।"
वो पल आज भी मेरी सबसे प्यारी याद बनकर दिल में है।
मुस्कान से मुहब्बत तक (भाग 2)
मुस्कान से मोहब्बत तक कॉलेज के आखिरी साल में जब सब अपने-अपने करियर की बातें कर रहे थे, मैं अब भी उसी मुस्कान में उलझा बैठा था।
वो अब मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी। साथ बैठना, साथ हँसना, उसके चाय में कम चीनी डालना, और मेरी कॉफी में ज्यादा—सबकुछ अपना-सा लगता था। एक दिन बारिश हो रही थी। हम लाइब्रेरी की खिड़की के पास बैठे थे।
वो बाहर देख रही थी, और मैं... उसे। मैंने कहा, "तुम्हारी मुस्कान... अब सिर्फ अच्छी नहीं लगती, ज़रूरी सी लगने लगी है।" वो चौंकी, फिर मुस्कराई—वो ही मुस्कान, जो हर बार मेरी हिम्मत बढ़ा देती थी। "तो अब क्या करोगे?"
उसने पूछा। मैंने उसका हाथ थामा और कहा, "अब उस मुस्कान की जिम्मेदारी लेना चाहता हूँ... हर रोज़।" वो कुछ नहीं बोली, बस हल्के से सिर झुका लिया।
उसकी मुस्कान थोड़ी शर्माई, थोड़ी खिली हुई, और पूरी तरह मेरी थी। उसी दिन, उस बारिश में, पहली बार उसकी मुस्कान मेरी मोहब्बत बन गई। ---
