पहले प्यार से शादी तक
पहले प्यार से शादी तक
"आज शाम को जल्दी घर आ जाना, तुम्हारे लिए एक रिश्ता देखा है। उसी लड़की और उसके परिवार से मिलने जाना है।" माँ ने शेखर को बताया।
शेखर का माँ की बात सुनते ही मुंह बन गया। अभी दो साल ही तो हुए हैं उस नौकरी शुरू करे। अभी और दो साल तक वो शादी नहीं करना चाहता था। कुछ कहने के लिए उसने मुंह खोला ही था कि माँ के आँखों से झलकते गुस्से ने उसे अच्छे से समझा दिया कि आज उसकी एक भी नहीं चलेगी। सो उसने चुपचाप कहा,"जी माँ, आ जाऊँगा तीन बजे तक।"
शाम को शेखर और उसके मम्मी पापा सब लड़की यानी शिखा के घर गए। शिखा दो बहने थीं। बड़ी शिखा और छोटी निधि। दोनों में सिर्फ एक साल का अंतर था। शिखा ने पढ़ाई पूरी करके अभी छह महीने पहले ही नौकरी करना शुरू किया था और निधि की पढ़ाई भी पूरी होने वाली थी।
दरवाज़ा शिखा के पापा ने खोला और उन्हें बड़े आदर से अंदर लेकर गए। पानी पीकर हाल चाल जानने के बाद शिखा को बाहर बुलाया गया। निधि शिखा को लेकर बाहर आई। दोनों बहने यूं तो बड़ी प्यारी थी और उनके नाक नक्शे तीखे थे पर शिखा कुछ ज्यादा ही सुन्दर थी।
शेखर के मम्मी पापा को देखते ही शिखा पसंद आ गई पर शेखर की निगाहें तो अपनी बहन शिखा को छेड़ती हुई निधि की शैतान निगाहों में खो गई। अब उसे समझ आया कि शायर लोग किसे पहली नज़र का प्यार कहते हैं। पर शेखर के सामने बहुत बड़ी दुविधा थी। सबसे पहले तो उसे पता था कि बड़ी बहन के लिए आए हुए रिश्ते वाले अगर छोटी को पसंद करेंगे तो पूरे परिवार का मुंह बन जाएगा और जिसमें निधि तो अभी पढ़ ही रही थी। दूसरे उसे अपनी माँ का भी पता था कि शिखा की सुंदरता के सामने वो निधि को स्वीकार नहीं करेंगी। लेकिन वो शिखा को कभी सच्चे मन से अपना नहीं पाएगा ये भी उसे पता था।
सो जब माँ और पापा ने अकेले में उससे रिश्ते के बारे में पूछा तो उसने कहा कि आप कह दो कि हम दो तीन दिन तक जवाब देंगे। माँ बड़ी गुस्सा हुई पर यहां शेखर ने उनकी एक नहीं मानी। माँ ने किसी तरह शिखा के घरवालों को ये बताया। उन लोगों का भी सुनते ही मुंह बन गया क्योंकि शिखा में ऐसी कोई कमी नहीं थी बल्कि शिखा जैसी लड़कियों के तो रिश्तों कि लाइन लगी होती है सो उनका बुरा मानना स्वाभाविक था। माँ शेखर से बहुत नाराज़ थी। लेकिन शेखर भी क्या करता। शिखा को ना कहकर निधि के लिए हां बोलने की इजाज़त उसके संस्कार भी नहीं दे रहे थे।
अगले दिन शेखर ने अपने ऑफ़िस में बात करके छह महीने के लिए अपने शहर से बाहर का प्रोजेक्ट मांग लिया। माँ ने जब उससे शिखा के बारे में पूछा तो उसने कहा कि अभी तो ऑफ़िस वाले बाहर भेज रहे हैं और मैं इस बीच रिश्ता नहीं कर सकता। उसके पापा ने भी उसका ही साथ दिया सो माँ कुछ कर नहीं पाई लेकिन हर बात में वो नाराज़गी जता ही देती थी।
अभी शेखर को गए दो महीने ही हुए थे कि एक दिन माँ ने फोन कर उसे शिखा की शादी के बारे में बताया और साथ ही साथ उसे डांट कर इतनी अच्छी लड़की हाथ से निकल जाने का दुख भी जताया। माँ इतना गुस्सा थी कि शेखर की हिम्मत ही नहीं हुई निधि के बारे में बताने की। उसने माँ से माफ़ी भी मांगी पर माँ शिखा के रिश्ता हाथ से निकल जाने के कारण बहुत दुखी थी।
शिखा की शादी के बाद से ही शेखर को डर लगने लगा था कि कहीं निधि की शादी भी तय ना हो जाए। वैसे भी ज्यादा फर्क नहीं था दोनों बहनों की उम्र में। इसलिए वो निर्धारित समय से पूर्व ही अपना प्रोजेक्ट पूरा कर वापस अपने शहर आ गया। शेखर अपने घर वापिस आकर बड़ा खुश था। बाहर जाना तो उसकी मजबूरी थी। और फिर वापस आकर ही तो वो निधि से शादी की कोशिश कर सकता था।
अब बस उसे सबको अपने मन की बात समझानी थी। सबसे पहले उसने निधि से ही शुरू करने की सोची। उसके कॉलेज का नाम तो उसने तभी पूछ लिया था जब उसकी बहन को देखने गया था। सो शेखर अब रोज़ ऑफ़िस से हॉफ लीव लेकर उसके कॉलेज के आस पास घूमने लगा। एक दिन किस्मत से निधि दिख भी गई पर नज़र मिलते ही शेखर उसकी आँखों में अपने लिए गुस्सा देख पीछे हट गया। उसे समझ आ गई कि निधि उससे बात नहीं करने वाली। फिर भी शेखर ने दस पन्द्रह दिन बड़ी कोशिश की निधि से बात करने की पर सफल नहीं हो पाया। उसे तो अपनी ज़िंदगी ही व्यर्थ लगने लगी लेकिन वो भी हार मानने वाला नहीं था। निधि के बिना जीवन की कल्पना भी मुश्किल थी तो ऐसे में हार मानने का क्या फायदा।
शेखर ने अपनी माँ से बात करने की कोशिश की पर माँ तो शिखा, निधि का नाम सुनते ही नए सिरे से आगबबूला हो गई और उन्होंने शेखर से बात करनी बंद कर दी। पिताजी तो घरेलू मामलों में दखल ही नहीं देते थे बल्कि आराम से कह देते कि ये डिपार्टमेंट तो तुम्हारी माँ का है, वहीं संभालेगी।
शेखर मायूस होकर रह गया। निधि को पाने का कोई तरीका उस दिखाई नहीं दे रहा था। ऐसे ही एक दिन उसे अचानक मॉल में शिखा दिखाई दी। उसके साथ शायद उसके पति थे। बस शेखर को तो ऐसे लगा जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया। वो तेज़ी से शिखा की ओर बढ़ा। हालांकि उसे पता था कि उसके बर्ताव के कारण शिखा भी उससे गुस्सा होगी लेकिन ये मौका वो छोड़ना नहीं चाहता था।
जैसे ही वो शिखा के पास पहुंचा, शिखा ने उसे देखकर गुस्से में मुंह फेर लिया। शेखर ने उसके पति को नमस्ते कर के अपना परिचय दिया तभी शिखा बोल पड़ी कि "अब क्या चाहते हो, जाओ यहां से। कोई तुमसे बात नहीं करना चाहता। बड़ा घमंड है ना तुम्हें तभी कोई जवाब तक नहीं आया तुम्हारी तरफ से।"
शेखर ने उन दोनों के आगे हाथ जोड़ दिए और कहा कि "आप एक बार मेरी बात सुन लीजिए और फिर भी अगर मुझे से नाराज़गी रहे तो मैं यहां से चला जाऊंगा।" शिखा के पति ने शिखा के कंधे पर हाथ रख कर उसे शांत किया और शेखर को बोलने का इशारा किया। शायद उन्हें शेखर की हालत देखकर समझ आ गया था कि उसे कोई बहुत ज़रूरी बात बतानी है या उस पर तरस आ गया था। खैर जो भी हो, शेखर के लिए तो ये लगातार बरसात में धूप खिलने जैसा था।
शेखर ने सबसे पहले शिखा से अपने किए की माफ़ी मांगी और उन्हें बताया कि कैसे उसे पहली नज़र में ही निधि से प्यार हो गया था जिस कारण उसने अपनी माँ और शिखा को कोई जवाब नहीं दिया था और चुपचाप दूसरे शहर चला गया था। मैं ना कहकर आपका अपमान नहीं करना चाहता था इसलिए कोई जवाब नहीं दिया था। अब भी तुम्हारी शादी का सुनकर ये सोच कर भागा आया हूं कि कहीं निधि का रिश्ता ना तय हो जाए अब। प्लीज़ अब मेरे जीवन की नैया सिर्फ आप ही पार लगा सकते हैं।
हालांकि शिखा के में में शेखर के लिए बहुत गुस्सा था पर शेखर की बेचारगी से भरी सूरत देखकर और उसकी बातें सुनकर शिखा को हँसी आ गई। उसने कहा कि "एक तो तुम मेरी बहन से प्यार करते हो और अपने पति कि ओर इशारा करते हुए बोली कि दूसरे तुम्हारे जवाब ना देने के कारण ही मेरी इतने अच्छे इंसान से शादी हुई, सो जाओ तुम्हें माफ़ किया।" शिखा की बात सुनकर सब हँस पड़े। शिखा और उसके पति ने निधि और शेखर की शादी करवाने की सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली।
शिखा ने अपना वादा पूरा करके दिखाया और पहले अपने मम्मी पापा को सारी बात बताकर तैयार किया और उन्होंने ही शेखर कि मम्मी पापा से बात की। दोनों तरफ के घरवालों को शेखर के दिल का हाल बताकर शिखा ने तैयार कर लिया। लेकिन निधि को मनाने में उसे बहुत मेहनत करनी पड़ी। निधि से अपनी बहन का अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ था लेकिन शिखा ने ज़बरदस्ती शेखर औेर निधि की दो चार मुलाकातें करवाई। निधि भी शेखर के सुलझे शांत स्वभाव के कारण उसे पसंद करने लगी। और उसने शादी के लिए हां कह दी। शेखर की माँ भी सारी बात समझकर बेटे की खुशी में खुश हो गई।
दो महीने हो गए उन सब बातों को और शेखर और निधि की आज शादी है। सब बहुत खुश हैं। शेखर को आज जा कर थोड़ा चैन आया है कि बस थोड़ी देर में निधि उसकी हो जाएगी और वो अपने नसीब का शुक्रगुजार हो रहा है कि इतनी रुकावटें आने पर भी उसे अपना पहला प्यार मिल ही गया। ये सोचकर मुस्कराते हुए शेखर स्टेज की ओर बढ़ गया। आज उसे ऐसा लग रहा था कि मानो सारा जहां उसके साथ खुशी में नाच रहा है। आज उसकी मंज़िल, उसकी निधि जो उसकी हमसफ़र बनने वाली थी।

