पहले प्यार का स्पर्श

पहले प्यार का स्पर्श

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राहुल काफी देर से पागलों की भाँति दीप्ति का नंबर मिलाने की कोशिश कर रहा था। , आखिरी बार " यह नंबर अभी स्वीच्ड ऑफ है" सुनकर उसने निराशा से अपनी मोबाइल फोन को बिस्तर के दूसरे सिरे पर पटक दिया। फिर पास बैठी हुई नर्स से पूछा,

" सिस्टर, क्या दीप्ति नाम की कोई लड़की कल मुझसे मिलने आई थी ? जब मैं सो रहा था ?"

सिस्टर को उसकी इस बेचैनी पर मजा आ रहा था। "कितनी कशीश है ! ! प्यार का नोकझोंक हैं ! जरूर, वह लड़की गुस्सा गई होगी किसी कारण। तभी इसका फोन नहीं उठाती !" सोचकर वह मुस्करा दी, एवं प्रकट रूप से बोली,

" चिंता न करें, राहुल सर। किसी काम में फँस गई होगी। मेरा मन कहता है कि आज शाम के विज़िटिंग ऑवर में वह जरूर आपसे मिलने आएगी।"

दीप्ति, राहुल की गर्लफ्रेंड थी। उसका पहला सच्चा प्यार ! वह भी उसे उतना ही चाहती है, जितना कि वह। उसकी हर एक छोटी - छोटी जरूरतों का कितना खयाल रखती है। फिर, उसके इस एक्सीडेंट का समाचार पाकर भी उससे मिलने क्यों नहीं आई ? रह रहकर राहुल के दिमाग में यही बात आ रही थी।

राहुल का एक बहुत बड़ा सा अक्सीडेंट हुआ था। उसदिन जब वह बाइक चला रहा था और मुख्य सड़क पर तेजी से आते हुए एक ट्रक से उसकी टक्कर हो गई थी। उसके दाहिने पैर की हड्डियाँ तीन जगहों पर टूट गई है। इसलिए इस समय उसके उस पैर में एक मोटा सा प्लास्टर लगा है और उसे स्टैण्ड के सहारे से लटका कर रखा गया है। बाये हाथ की भी हालत बुरी है। कोहनी और उसके नीचले हिस्से की हड्डियाँ टूटकर चूरचूर हो गई हैं। साथ ही कमर और कूल्हों की हड्डियों पर भी बहुत ज्यादा चोटें आई हैं। आजकल वह बमुश्किल बैठ पाता है। माँ कहती हैं कि उनके खाटू श्याम जी की असीम कृपा है कि वह जान से बच गया !


किंतु दीप्ति कहाँ रह गई ? उसके एकबार भी मिलने न आने से राहुल परेशान हो रहा था। कहीं वह उसे भूल तो न गई। या उसे कोई और तो नहीं मिल गया ?राहुल इस समय जरा असुरक्षित महसूस कर रहा था।

काश, कि वह इस समय एकबार उसकी गोदी में सर रख पाता ! ! तो वह अपने सारे दर्दों को आसानी से भूल जाता ! ! राहुल अपनी आँखो को मुंदकर दीप्ति का चेहरा याद करने लगा। फिर काॅलेज का वह दिन उसे याद आया जब उसने पहलीबार दीप्ति को देखा था। धीरे-धीरे राहुल अतीत का पन्ना पलटने लगा।

काॅलेज का नया-नया सत्र शुरु हुआ था। नए आए हुए विद्यार्थियों की खूब रैगिंग चल रही थी। जब भी कोई पिरियड खाली रहता सीनियर छात्र जुनियर कक्षाओं में घुस जाते और उनकी खूब खिंचाई करते। राहुल इन रैगरों का सरगना था। वैसे, वह विद्यार्थी कौंसिल का सचिव हुआ करता था और अर्थशास्त्र के तृतीय वर्ष में था। उन्हीं दिनों राहुल ने दीप्ति को पहलेपहल देखा था।

काॅलेज में जो बच्चे बड़े शहरों से आए थे, वे अकसर स्मार्ट और चालाक होते थे। इसलिए उनको रैगिंग का कम निशाना बनना पड़ता। और वे बच्चें आसानी से रैगिंग का काट भी निकाल लेते थे। परंतु सबसे ज्यादा दुर्गति उन बच्चों की थी जो छोटे कस्बों या गाँव से ताल्लुकात रखते थे। वे लोग अभी तक इस शहर के हालचाल से पूरी तरह वाकिफ न हो पाए थे। इसलिए वे ही हमेशा सिनयरों के छेड़छाड़ की नोक पर रहते। दीप्ति भी एक छोटे से कस्बे से आगे की पढ़ाई हेतु शहर आई थी। और बुआ के घर पर रहकर अपना ग्रेजुएशन पूरा करना चाहती थी।

दीप्ति पाँच फुट आठ इंच कद की एक लंबी और छरहरी लड़की थी। उसकी मासूम हिरणी सी बड़ी-बड़ी कजरारी आँखे उसके गोरे मुखरे पर मानो चार चाँद लगा देते थे। उसको देखकर कोई भी अनायास यह कहता कि यह लड़की तो माॅडल बनने के लायक है। परंतु माॅडल जैसा फैशन -सेन्स उसके पास कहाँ था ?

वह तो सलवार-कमीज और दुपट्टे में सलीके से सजी बहनजी लगती थी। बुआ के घर पर रहने की शर्त भी यही थी कि माॅडर्न कपड़े बिलकुल नहीं पहन सकते ! इस कारण भी उसपर रैगरों की बड़ी कृपादृष्टि थी। उसे कभी कहा जाता था कि कैटवर्क करके दिखाओ तो कभी गाना गाओ, कभी किसी लड़के को प्रोपोज़ करके दिखाओ।

इसी सिलसिले में एकदिन काॅलेज का सबसे शरीर लड़का वीकी ने अपनी जुनियर दीप्ति से राहुल को सबके सामने प्रोपोज करने को कहा । दीप्ति पहले तो बहुत झेंपी, परंतु ना कहने का मतलब और अपमान झेलना था। इसलिए किसी तरह जाकर उसने राहुल से वे तीन लफ्ज़ बोल दिए। इस पर वहाँ खड़े सभी लोग उन दोनों को चिढ़ाने लगे।

राहुल अमीर माता -पिता का बिगड़ा हुआ औलाद था।उसके माँ- बाप ने काफी पैसे इस काॅलेज को बतौर डोनेशन दिए थे।इसलिए प्रोफेसर भी उसका मुँह न लगते थे।

राहुल लड़कियों को खिलौने से ज्यादा कुछ नहीं समझता था। और विद्यार्थी कौंसिल का सचिव होने के कारण तो लड़कियाँ अपने काम निकलवाने के लिए और उसकी जरा सी कृपा पाने हेतु उसके इर्द-गिर्द चक्कर लगाया करती थीं। राहुल भी उनके साथ पूरी मस्ती करता था। अब उसके पास मौका था तो उसका फायदा क्यों न उठाता ?

इधर उसदिन के बाद दीप्ति जहाँ भी जाती राहुल के साथ उसका नाम जोड़कर उसके दोस्त उसे सुनासुनाकर तरह तरह की बातें करते। जैसे-

" सबलोग सावधान, राहुल की बीवी पधार रही है।"

" आइए बेगम साहिबा, आपके शाहंशाह अभी-अभी ऊधर तशरीफ ले गए हैं।"

दीप्ति अगर किसी भी बात पर हँसती तो, " अभी, अभी राहुल को किस करके आई है। तभी इसकी बहुत हँसी छूट रही है।"और भी ऐसी कितनी ही बातें वे लोग रोज उसके बारे में कहा करते थे।

यहाँ तक कि उसके सभी सहपाठी भी उसे यूं चिढ़ाया करते थे। उसका कोई भी दोस्त न था। सब उसे आते देखकर हँस पड़ते थे। दीप्ति को यह सब बिलकुल अच्छा न लगता था। वह एक संस्कारी लड़की थी। शहर सिर्फ पढ़ाई करने हेतु आई था। परंतु कुछ भी कहने का मतलब आग को हवा देने वालीबात जैसी थी। इसलिए वह अकसर चुप रहती।

एकदिन काॅलेज समाप्त होने के बाद दीप्ति घर लौटने के लिए बस स्टाॅप पर आई थी। तभी उसे वहाँ अपने काॅलेज के लड़कों का एक झुंड दिखाई दी, जिनमें राहुल भी था। वह चुपचाप वहाँ से निकल जाना चाहती थी। तभी किसी शरारती लड़के की नजर उस पर पड़ी और वह सीटी मार बैठा। फिर बोला,

" अरे राहुल देख तेरी वाली जा रही है।"

दूसरे ने कहा, " अरे तेरीवाली नहीं, बोल कि उसकी घरवाली जा रही है।" और सारे लड़के कहकहा लगाकर हँसने लगे।

यह सुनकर दीप्ती के दोनों कान अपमान से लाल हो गए। क्रोध से उसका माथा दपदपाने लगा। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शरीर का सारा खून उसके माथे के नसों में जमा हो गया है और वे नसें, अब फटी, तब फटी। उसने अपने मन में कहा, " अब बस ! !बहुत हुआ।"

दीप्ति ने राहुल की ओर देखा, वह अब भी हँसे जा रहा था। वह कुछ निश्चय कर आगे बढ़ी। और वहाँ पहुँचकर तपाक् से राहुल के गाल पर एक तमाचा जड़ दिया, और बोली,

" बहुत हुआ यह छिछोरापन ! अब भी बंद नहीं किए तो मैं पुलिस को फोन करूँगी।"

फिर सबकी ओर एक नज़र डालकर वह बोली,

"क्या तुम लोगो को पता नहीं कि रैगिंग करना कानूनन जुर्म है। तुम लोगों ने जो भी मेरे साथ किया है उसका मेरे फोन पर सबूत है। एक आखिरी मौका देती हूँ तुम लोगो को। अगर अब भी नहीं सुधरे तो मजबूरन मुझे काॅलेज प्रशासन और पुलिस को सबकुछ बताना पड़ेगा।

और फिर पैर पटकती हुई वहाँ से चली गई।


आश्चर्य ! !उसदिन के बाद राहुल सचमें सुधर गया। अब लड़कियों को छेड़ना उसे अच्छा न लगता था। वह अपना पूरा समय पढ़ाई में देने लगा था। आजतक तो लड़कियाँ उसके आगे पीछे घूमा करती थी। क्योंकि वह बड़ा हैंडसम भी था। इसलिए उसका गर्लफ्रेंड बनना उनके लिए गौरव का विषय था। वह भी उनका ध्यान पाने को आदी हो चुका था। परंतु तीन वर्षों में आज पहली बार ऐसा हुआ कि किसी लड़की ने न केवल उसे भाव न दिया, बल्कि बीच सड़क पर चांटा लगाकर उसके अक्ल पर पड़े पत्थर को भी हटा दिया। उसे अपने अपमान की तीव्रता जब महसूस हुई तो उसने जाना कि उस लड़की ने भी उनके कारण क्या क्या नहीं झेला ! !

इसके बाद से राहुल सुधरने लगा। जिसका असर उसके अंकों पर भी पड़ा। और वह तृतीय वर्ष की अंतिम परीक्षा में पूरे काॅलेज में टाॅप रहा।

दीप्ति भी अब शांति से अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे पा रही थी। उसकी अच्छाइयों को देखते हुए उसके कुछ दोस्त भी बन गए थे।

इधर राहुल के मन में धीरे -धीरे दीप्ति के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा। दीप्ति की अच्छाइयों के कुछ छींटे उसपर भी पड़े थे। एकबार उसने उसकी मदद भी की थी। उसे एक प्रोफेसर के हाथों मार खाने से बचाया था।

राहुल दीप्ति के कारण ही उसी काॅलेज में पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए रुक गया। उसका काॅलेज मानद विश्वविद्यालय था और इसलिए वहाँ स्नातोकत्तोर पढ़ाई की सुविधाएँ भी उपलब्ध थी। हालाॅकि राहुल को दूसरे अच्छे विश्वविद्यालय से भी ऑफर आया था। परंतु दीप्ति को रोज़ एक बार देख पाने की लालच में उसने उसे ठुकरा दिया। उसे जब भी मौका मिलता था वह चोर नजरों से उसे देखा करता था।

अब दीप्ति द्वितीय वर्ष में थी। एक बार किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में उसे और कुछ छात्रों को राहुल की देखरेख में कोई प्रेजेन्टेशन तैयार करना था। इस दौरान दोनों की अच्छी दोस्ती हो गई थी। फिर दोनों अकसर काॅलेज कैंटीन और बाहर भी मिलने लगे। दोनों को साथ देखकर उनके दोस्त दबी दबी जुबान में अब भी इनके बारे में कुछ कहते, परंतु प्रकट रूप में कुछ कहने की हिम्मत किसी की न होती थी।

इधर प्यार का असर दीप्ति पर भी धीरे -धीरे हो रहा था। उसका मन भी अब राहुल के प्रति आकर्षित था। पहले जैसी कड़वाहट उसके अंदर नहीं रही। छुट्टी के दिनों में वह राहुल के साथ शाॅपिंग करने अथवा मूवी देखने जाने लगी। रात को वह उसे उसकी बुआ के घर पर छोड़ देता था। दीप्ति की बुआ की भी राहुलसे जान पहचान हो गई थी।

दीप्ति के सान्निध्य में राहुल भी नए रूप में ढल चुका था। उसका छिछोरापन काफी हद तक कम हो गया था। आजकल वह भी औरतों को सम्मान के नजरिए से देखने लगा था। और दीप्ति का तो वह खास खयाल रखा करता था। चौबिसों घंटे उसी की छवि उसके दिलो दिमाग पर छाई रहती थी।

देखते- देखते प्रेम का महीना, फरवरी आ गया। 14 फरवरी को काॅलेज के बच्चों ने अपने अपने अंदाज से इस दिन को मनाने की ठानी थी। जिनके गर्लफेंड थे उनका तो पक्का घूमने जाने का प्रोग्राम बन गया और जिनके नहीं थे उन्हें इस 14 वैलेन्टाइन डे तक कम से कम एक लड़की को पटा लेने की आशा थी।

राहुल ने इस दिन के लिए शानदार प्लाॅन किया। वह और दीप्ति एक फाइव स्टार होटल में दिनभर उनकी सेवाओं का लुत्फ उठाएंगे और प्रेम के इस दिन को भलीभाॅति पालन करेंगे । फिर शाम को वह दीप्ति को उसके घर पर छोड़ देगा। इसके लिए उसने दोनों परिवार से रजामंदी ले ली थी।

दोनों के परिवार वाले अबतक उनदोनों के संबंध के बारे में सबकुछ जान गए थे और उनके रिश्तों को अपनी सहमतियाँ भी दे चुके थे। राहुल अच्छे खानदान का था। इसलिए दीप्ति के घरवालों को लगा कि यदि वे खुद ढूंढते तो भी इतना अच्छा रिश्ता न पाते। और इधर राहुल के घरवाले दीप्ति की सुशील और संस्कारी व्यवहार के पहले ही कायल हो चुके थे। उनको तो बस उसदिन का इंतजार था कि कब इन दोनों की पढ़ाई समाप्त होगी और दीप्ति को वे अपना बहू बनाकर अपने घर लाएंगे।

" आज कैसा है ,मेरा बेटा ?

आपने खाना खाया, राहुल ?" अपनी माँ की आवाज़ पर राहुल ने अपनी आँखें खोली। उसने अपनी माँ को देखा।

उसकी माँ तब सिस्टर से पूछ रही थी,

" आज डाॅक्टर साहब ने क्या कहा ? राहुल कब तक घर जा सकेगा ?"

" मैडम, थोड़ा टाइम और लगेगा।" सिस्टर ने कहा।

माँ ने राहुल को जगा देखकर मुस्कराकर उसकी पसंद की आलू के परांठे का डिब्बा राहुल की ओर बढ़ाया।

डिब्बा लेते हुए राहुल ने पूछा,

" माँ, आपकी दीप्ति से बात हुई ? वह इतनी क्या व्यस्त रहती है आजकल कि मुझसे मिलने एकबार भी न आई, और न ही कोई फोन किया ! !आपको फोन करे तो उसे खूब डाँटना।"

" काॅलेज की परीक्षाएँ चल रही है, बेटा। इसलिए न आ सकी, वह। जैसे ही उसकी परीक्षा समाप्त होगी, वह सबसे पहले आपसे मिलने आएगी, बेटा।

उसने फोन पर बोला था यह मुझे।" माँ बोली।

राहुल डब्बा खोलकर परांठे खाने लगा।

इधर उसकी माँ कमरे के बाहर निकलकर दीवार पर सर रखकर जोर जोर से रोने लगी।

उसदिन वैलेन्टाइन डे के दिन राहुल का बाइक ट्रक से टकरा गया था। 

इस हादसे में राहुल वर्तमान की सारी याददाश्त खो बैठा था। उसे तो यह भी याद नहीं कि बाइक के पीछे बैठी दीप्ति की वहीं घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई थी।

परंतु माँ अपने लाडले से यह बात कैसे कहे ?

दिमाग पर चोट लगने की वजह से राहुल अक्सीडेंट के समय की सारी बातें भूल गया। इसे Amnesia अथवा temporary loss of memory ( अस्थायी स्मृति का लोप हो जाना) कहते हैं। सर पर भारी आघात लगने पर ऐसा कभी-कभी होता है।

डाॅक्टर साहब का कठोर निदेश था कि इस समय राहुल अपने दिमाग पर ज्यादा जोर न डाले। शरीर का दर्द तो जल्द ही ठीक हो जाएगा, लेकिन दिमाग पर लगी चोट ठीक होने में अकसर बहुत समय लगता है। इसलिए उसे नकारात्मक यादों से दूर ही रखा जाए।

पर माँ रोज रोज अपने बेटे से कितना झूठ बोले ?


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