फ्लैट न0.212
फ्लैट न0.212
ठंड हवाए, सुनी सड़के और रात की खामोशी और वंही किसी खम्बे के लाइट के नीचे एक चाय के ठेले पर खड़ा राहुल चाय पी रहा था। ठंड तो थी ही पर सन सन चलती हवाई ठंड को और ज्यादा बढ़ा रही थी। रात के करीब 10 बज रहे थे ठेले वाला भी अब बोरीया बिस्तर समेंटने को था। इतने मेंं राहुल के मोबाइल मेंं s m s अलर्ट की आवाज़ आयी राहुल ने मोबाइल मेंं देखा एक आर्डर आया था।
ऑर्डर डिलीवर करने का पता कुछ यूं था
ग्रीन वाटिका , बी विंग - फ्लैट नम्बर 212 , 6थ फ्लोर।
और आर्डर करने वाले का नाम था
रागिनी खन्ना।
" चलो इस लास्ट डिलीवरी के साथ आज की ड्यूटी खत्म हो जाएगी और फिर घर निकल लूंगा "
राहुल अपने मन में बोला।
उसने चाय की आखरी सिप मारी फिर अपनी बाइक स्टार्ट की और पिकप प्लेस की और रवाना हुआ। पिकप प्लेस यानी उस रेस्तरां या होटल की तरफ जंहा से आर्डर बनवाया जाता है।
राहुल एक स्टूडेंट है जो कॉलेज मेंं पढ़ाई करने के अलावा पार्ट टाइम swiggy मेंं फ़ूड डिलीवरी पर्सन के रूप मेंं काम भी करता है। सुबह पढ़ाई और शाम 6 से 10:30 जॉब। इस काम को पकड़े हुए अभी ज्यादा दिन नही हुए थे कुछ 8-10 दिन ही हुए थे शायद।
आधुनिकता और मोबाइल ऐप्प के बढ़ते चलन की वजह से आज कई ऐसे बिज़नेस बाजार मेंं उपलब्ध हो गए है कि जिनके बारे मेंं आज से पहले सोच पाना मुश्किल था। जरा सोचिए न घर बैठे मोबाइल से अपनी मन चाही डिश अपने आस पास के किसी भी मन चाही या किफायती रेस्तरां से मंगाना और कुछ ही मिनटों मेंं आपके दरवाजे पर मंगाई हुई चीज का पहुंच जाना इससे पहले ऐसी सुविधाएं कंहा थी।
बस पिज़्ज़ा के तौर पे फ़ास्ट फ़ूड मंगवा कर खाया जाता था वो भी कॉल कर के आर्डर करना पड़ता था।
अब इंटरनेट , स्मार्ट फोन और इनसे जुड़े अदभुद आडियाज की वजह से रोज़मर्रा की जिंदगी बहुत आराम दयाक हो चुकी है। sweegy और ऐसे ही और भी ऑनलाइन बेस्ड बिज़नेस मॉड्यूल अब भारत मेंं उभरने लगे है जिनसे आम लोगो को लाभ भी मिल रहा है साथ ही बहुतो को रोजगार भी मिल रहा है।
राहुल रेस्टोरेंट पहुच गया। वंहा कुछ पल इंतेज़ार करने के बाद जब आर्डर तैयार हो गया तब राहुल ने आर्डर को पिक किया और फिर डेस्टिनेशन की तरफ निकल गया। रोड पे ज्यादा भीड़ नही थी ठंड का मौसम था ऐसे मेंं 10 बजे के बाद लोग दिखना भी कम हो जाते है। अपनी मोबाइल मेंं मैप्स पर दिखाए दे रहे इंडीकेटर की मदद से राहुल आसानी से पते पर पहुंच गया ।
बाइक के गेट के पास लगा कर राहुल ने थोड़ा मुआयना किया की पता सही है या नही। पता बिल्कुल ठीक था। गेट पर कोई सिक्योरिटी गार्ड भी नही दिखा। राहुल ने 2 पल इधर उधर देखा लेकिन आस पास कोई नही दिखा। पर क्योंकि उसे देर हो रही थी इसलिए वो ज्यादा सोचे बिना अंदर चला गया। अंदर 2 - 3 बिल्डिंग्स थे जो एक जैसे ही थे पुराने बेरंग से। राहल ने बी विंग वाले बिल्डिंग को तलाशा चूंकि कोई बहुत बड़ा कॉलोनी जैसा तो कुछ था नही तो आसानी से राहुल को सही पता मिल गया। बी विंग मेंं राहुल 6वी मंज़िल तक लिफ्ट की मदद से आसानी से पहुंच गया। फ्लैट नंबर 212 उसे सामने ही दिखाई पड़ गया। उसने दरवाजे के आगे खड़े होकर बेल बजाया। कुछ ही सेकंड मेंं दरवाजा खुला तो उसके सामने एक 25-26 साल की लड़की खड़ी थी। जो दिखने ने काफी अलग थी। उसका रंग काफी गोरा था। उस लड़की ने काले रंग की साडी पहनी हुई थी , उसके माथे मेंं काली गोल बड़ी बिंदी थी साथ ही होंठ भी काले रंग मेंं लिपटे हुए थे। जब उसने आर्डर रिसीव कर सिग्नेचर किया तब उसके कलाई मेंं भी काली चुडिया थी और उसके नोकीले नाखून भी काले नेल पॉलिश से रंगे हुए थे।
"शायद इसको ब्लैक कुछ ज्यादा ही पसंद है" राहुल अपने मन में सोचा उस लड़की को देखते हुए।
राहुल ने आर्डर डिलीवर किया, साइन करवाया और आर्डर के पैसे ले कर वंहा से निकल आया।
जब वो नीचे आया तो गेट पर उसे गार्ड मौजूद मिला। राहुल ने देखा मठमैले रंग की खाकी स्वेटर मेंं एक 45-50 के उम्र वाला आदमी उसके सामने खड़ा था। उसके हाथ मेंं एक मोटी सी लाठी थी, चेहरे पर सफेद मूछ, माथे पर कान तक ढकने वाली टोपी।
गार्ड ने राहुल को रोका।
कौन हो तुम ? किस काम से आये थे ? गार्ड ने पूछा
राहुल ने कहा;
जी मैं डिलीवरी पर्सन हूँ और यंहा फ़ूड डिलीवरी करने आया था।
गार्ड ने रजिस्टर मेंं झांका और फिर अपनी भौ गड़ाते हुए खुद मेंं दबी स्वर मेंं बुदबुदाया एंट्री तो नही है यंहा। फिर राहुल को देखते हुए पूछा, तुम बिना एंट्री के कैसे घुसे ?
सच सच बोलो क्या करने आये थे यंहा। कंही तुम चोर तो नही। गार्ड ने धमकाते हुए कहा।
अर्रे जब मैं यंहा आया था तब यंहा गेट पर कोई नही था। मुझे देर हो रही थी इसलिए मैं बिल्डिंग के अंदर चला गया। राहुल ने गार्ड को समझाते हुए कहा।
गार्ड ने राहुल को बताया कि मैं तो शाम से यंही हूँ गेट पर। फिर तुम बिना एंट्री के कैसे घुस गए। यंहा अनजान लोगो को बिना एंट्री किये घुसने नही दिया जाता है।
आखिरकार राहुल ने उसे अपना आईडी प्रूफ दिखाया और उसे एहसास कराने की कोशिश की कि वो कोई चोर नही है।
आईडी कार्ड और यूनिफार्म को ध्यान से देखने के बाद गार्ड को थोड़ा भरोसा हुआ।
रेजिस्टर को आगे खिसकाते हुए गार्ड ने राहुल को रजिस्टर पर एंट्री करने को बोला। रजिस्टर मेंं एक तालिका बनी हुई थी जिसमें आते जाते लोगो की एंट्रीज दर्ज थी।
राहुल ने रजिस्टर पे गार्ड के सामने एंट्री और एक्सिट दोनो की टाइमिंग और किसके पते पर आए थे उसका नाम , फ्लैट नंबर, और खुद का नाम भी लिखा जैसा कि गार्ड ने उसे लिखने को कहा था।
जब गार्ड ने रेजिस्टर पर उसके लिखे हुए डेटा पर नज़र डाला तो उसे कुछ शक सा हुआ और अजीब नज़रो से राहुल को देखने लगा।
तुम यंहा फ्लैट नंबर 212 पर डिलीवरी देने आए थे ?
गार्ड ने पूछा।
जी हाँ। राहुल ने जबाब दिया।
गार्ड थोड़ा असामंजस्य मेंं पड़ गया।
पक्का 212 मेंं ही डिलीवरी दिया तुमने ?
गार्ड ने फिर पूछा।
हां .. देकर आ रहा हूँ। क्यों क्या बात है ?
अब क्या हो गया ? राहुल ने कहा।
गार्ड के चेहरे पर अजीब सी लकीरे छप गयी।
लेकिन ये कैसे हो सकता है ? गार्ड खुद मेंं बुदबुदाया।
अर्रे क्या दिक्कत है चाचा आपको ? क्या नही हो सकता? राहुल उक गया था गार्ड की बैचैनी और सवालो से।
राहुल के पूछने पर गार्ड ने उसे बताया कि जिस 212 की बात राहुल कर रहा है और जंहा फ़ूड डिलीवरी करने की बात बोल रहा है असल में वो पिछले 4 दिनों से बंद है। उसपे ताला लगा हुआ है।
" अरे ऐसा कुछ नही है अभी तो मैंने डिलीवरी दिया है। वंहा कोई ताला वाला नही है। एक लड़की ने पार्सल रिसीव किया। " राहुल ने बिंदास जवाब दिया।
गार्ड ने उसे दो टक देखा और कहा :
"अच्छा ऐसा है? तो फिर चलो दिखाओ किसने डिलीवरी लिया। "
राहुल को समझ नही आ रहा था कि गार्ड की समस्या क्या है और ये क्यों ऐसी बाते बोल रहा है।
खैर वो दोनों 212 की और चल दिये। गार्ड सीढ़ियों से जाने को बढ़ा तो राहुल ने कहा कि लिफ्ट से चलते है चाचा जल्दी भी होगा और आराम भी।
गार्ड ने कहा, लिफ्ट सुबह से खराब पड़ा हुआ है। मेंन्टेन्स वाला आएगा बोला था मगर आया ही नही।
" क्या !
कौन बोला ?
मैं खुद इसी लिफ्ट से तभी ऊपर गया भी था और निचे भी इसी लिफ्ट से आया। " राहुल ने गार्ड से कहा।
लेकिन जब राहुल ने लिफ्ट को देखा तो सच में लिफ्ट खराब था। एक भी बटन काम नही कर रहा था। राहुल को समझ नही आ रहा था ये हो क्या रहा है। उसे अब अजीब सा एहसास होने लगा था।
गार्ड और राहुल दोनो सीढ़ियों से होते हुए 6वी मंजिल पर जा पहुंचे। वंहा सामने ही फ्लैट नंबर 212 था। राहुल ने देखा कि सच में उसपे ताला लगा हुआ था। ये देख कर राहुल बुरी तरह से सिहर गया। उसका दिमाग सुन सा हो गया और आँखे जैसे फटी रह गयी।
"लेकिन ये कैसे संभव है ? मैंने खुद कुछ देर पहले यंहा इसी 212 पर फ़ूड डिलीवरी किया और एक लड़की ने मुझसे पार्सल लिया था।" राहुल ने बुरी तरह हैरान होकर कहा। उसके माथे पर से पसीना रिसने लगा था।
"ऐसा हो ही नहीं सकता है क्योंकि जिस लड़की की तुम बात कर रहे हो 4 दिन पहले ही उसकी मौत हुई है।" गार्ड ने कहा
ये सुनकर राहुल चौक गया।
यहाँ रागिनी नाम की लड़की रहती थी पिछले 2 साल से। मुझसे अक्सर बात होती थी उसकी इसलिए मैं थोड़ा बहुत परिचित था उससे। लेकिन पता नही क्या हुआ था उस रात। रागिनी ने बिल्डिंग की छत से छलांग लगा कर खुद खुसी कर ली। क्यों, किस लिए, किसी को नही मालूम। यंहा के न्यूज़ पेपर मेंं भी तो ये खबर छपी थी।
गार्ड ने 212 की कहानी बताई।
राहुल ये सब बातें जानकर बुरी तरह कॉप उठा था। लेकिन वो अब भी यकीन नही कर पा रहा था कि ऐसा कैसे हुआ अभी कुछ देर पहले ही तो उसने डिलीवरी किया था मगर यहाँ सच में ताला था। उसने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और लास्ट आर्डर को चेक किया। मगर उसे रागिनी खन्ना यानी 212 का कोई आर्डर दिखा ही नही। बल्कि इस आर्डर से पहले जो आर्डर कंप्लीट हुआ था लास्ट आर्डर के रूप मेंं शो कर रहा था। मानो जैसे 212 से कोई आर्डर आया ही नही .. न ही कोई डिलीवरी हुई।
उसे लगा कि कंही वो कोई बुरा सपना तो नही देख रहा या कंही उसे कोई भृम तो नही हो गया। उसने अपने जेब में हाथ डाला और उन पैसो को चेक किया जो उसे 212 से मिले थे। कमाल की बात तो ये थी कि पैसे मौजूद थे उसकी जेब में। यानी ये राहुल का कोई भृम नही था। डिलीवरी हुई थी और इसका प्रमाण था जेब से मिले पैसे। राहुल की आंखे दो पल के लिए फटी रह गयी उन पैसो को देख कर। उसके हाथ पैर ठंडे पड़ गए थे और डर के अजीब एहसास से वो भीतर तक सिहर गया था। इतने मेंं कॉरिडोर की लाइट्स झिलमिलाने लगी। डर से राहुल का गला सुख सा गया। गार्ड और राहुल दोनो एक दूसरे को देखने लगे।
जितनी जल्दी हो सके यंहा से निकल जाना ही बेहतर है ये सोच कर गार्ड की परवा किया बिना अपनी जान बचाते हुए राहुल 2 पल भी वंहा रुके बगैर फटाफट सीढ़ियों से भागता हुआ नीचे आ गया। बिना कुछ सोचे बस दौड़ते हुए वो गेट के पास खड़ी की हुई अपनी बाइक तक आ पहुंचा। फटाफट बाइक पर स्टार्ट किया। जाने से पहले राहुल ने एक बार फिर उस बिल्डिंग की और देखा
उसे 6वी मंजिल के बालकनी पर एक साया सा नज़र आया जो शायद राहुल को देख कर मुस्कुरा रही थी।
राहुल फटाफट अपनी बाइक स्टार्ट कर निकल गया।
उस रात वो ठीक से सो भी नहीं पाया। उसके आंखों के आगे बस दो ही तस्वीर आ रही थी। उस लड़की का चेहरा और फ्लैट 212 का ताला लगा हुआ दरवाजा। और कानों मेंं गार्ड के कहे अल्फ़ाज़ गूंज रहे थे :" चार दिन पहले ही तो उसकी मौत हुई थी"
इस घटना से राहुल इतना डर गया कि उसने उस काम को ही छोड़ दिया। राहुल 2 दिन तक तेज़ भुखार के कारण बिस्तर से उठ भी नही पाया। इस घटना से वो ये जान चुका था कि इस दुनिया के अलावा भी कोई दुनिया है और भगवान के साथ साथ भूत प्रेत और आत्माये भी होती है।
आज भी जब राहुल उस इलाके से कभी गुजरता है तो उस रात की घटना उसे याद आ जाती है और वो सिहर जाता है।
