प्रीति शर्मा

Romance

4.5  

प्रीति शर्मा

Romance

"पहला सावन "

"पहला सावन "

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अभी-अभी जुलाई के महीने में ही कामना की शादी हुई थी।सावन का महीना शुरू हो गया था और भाई उसको लेने आ गया था।रिवाज के अनुसार कामना को पहली तीज मायके में ही मनानी थी और फिर राखी करके वापस जाना था।

कामना भी मायके में आकर बड़ी उत्साहित थी।शादी के बाद पहली बार सखि-सहेलियों से मिलना जुलना होगा और शादी की सभी बातें उनके साथ शेयर करेगी।जब भाई के साथ आ रही थी तो सुभाष ने हंसकर उससे पूछा था, "कितने दिन लगा कर आओगी...।"उसने खुशी-खुशी कहा,"पन्द्रह दिन तो लगेंगे ही।अभी पहले तीज आएगी और उसके बाद राखी ।"

सुभाष उसकी बात सुनकर चुप रह गया फिर बोला, "अच्छा चलो अच्छी बात है...।"

अपने घरवालों के साथ कुछ दिन रह लोगी,कहते कहते वह कुछ चुप सा हो गया।उसने खुशी-खुशी सुभाष की तरफ देखा लेकिन अपने उत्साह में उसने ध्यान ही नहीं दिया कि सुभाष उसके जाने की बात सुनकर और ऊपर से इतने दिन की बात सुनकर थोड़ा सा उदास हो गया था।

कामना तो जब से उसका भाई आया था तब से ही मायके जाने की तैयारी में लग गई थी।उसकी सास ने उसको कुछ तीज- त्यौहार की रस्मों के बारे में बताया,उसको साड़ी सिंगार का सामान दिया।उसने ध्यान से उनकी सारी बातें सुनी और फिर भाई के साथ चल पड़ी।यहां तक कि जाने के उत्साह में चलते समय सुभाष से बात करना भी ज्यादा मुनासिब नहीं समझा ।

मायके में उसके चेहरे पर आये नूर को देखकर सब खुश थे।उसके कपड़े गहने चेहरे पर प्रसन्नता सभी को सुकून दे रहे थे। दो दिन तो उसके सभी से बातचीत में ससुराल की बातें बताने में ही निकल गए।वह बड़े चाव से अपनी सारी बातें उन्हें बता रही थी।वहां सब कैसे हैं, क्या होता है ,क्या खाते पीते हैं ,...

सबकी बातें हो रही थी लेकिन सुभाष के बारे में उसने कोई खास बात नहीं की किसी से।उसकी सहेली नंदिनी ने उसे टोक दिया,

" क्या बात हमारे जीजा जी की बातें राज रखनी हैं क्या ?"

"उनके बारे में तो कुछ भी नहीं बताया ।"

"उनके बारे में क्या बताऊं...?"

"वो भी अच्छे ...मतलब बहुत अच्छे हैं।"

 उसकी बात सुनकर नंदिनी हंसने लगी, तू तो बिल्कुल वैसी की वैसी है, कोई बदलाव नहीं ..

"शादी करके क्या बदलाव आ जाता है ...?" कामना हंसते हुए बोली।

"अच्छा चल ठीक है कोई बात नहीं ..तू ऐसे ही अच्छी लगती है हंसती मुस्कुराती।" नन्दिनी ने कहा। 

तीज से पहली रात उसने मेंहदी लगवाई तो भाभी ने सुभाष का नाम लेकर छेड़ा,कामना को कुछ झिझक सी महसूस हुई।

 तीज वाले दिन सुबह आराम से उठी और मेहंदी का रंग देखा बहुत गाढा था और उसे भाभी की बात याद आ गई,साथ ही सास की सभी बातें याद आ गईं। कैसे पूजा करनी है, सब याद करते करते उसे सुभाष की भी याद आई। इन दिनों में सुभाष की तो यादों उसे आई ही नहीं थी जैसे भूल गई हो।

लेकिन जब उसने घर में भाई-भाभी को पूजा करते और एक दूसरे से चुहल करते देखा,तब उसने वो महसूस किया जो उसने ध्यान ही नहीं दिया था अभी तक।उसे पहली बार लगा सुभाष भी उसके साथ होता तो..... 

उसने अपने मन में एक अनजानी मीठी सी भावना को महसूस किया और सुभाष की याद आते ही उसे उसके साथ बिताए पिछले दिन याद आने लगे। सुभाष कितना ध्यान रखते हैं उसका। कैसे तारीफ करते हैं और फिर उसे याद आ गया जब वह आ रही थी तब कैसे उदास हो गये थे..?

और उसने तो आने के बाद से फोन भी नहीं किया और फिर उसने अपने माथे पर हाथ मारा..

कामना तू कितनी बेवकूफ है, तूने एक फोन भी नहीं किया।जैसे सोये एहसास के जगते ही उसके मन में सुभाष के प्रति प्रेम की भावना भी जागृत होने लगी।वास्तव में सावन की तीज विवाहित लड़कियों के लिए क्या होती है,यह महशूस होने लगा और उसका मन करने लगा कि वह सुभाष को फोन करे।

तैयार होकर उसने पूजा की,सास के लिए बायना निकाला और मौका देख चुपके से घर के टेलीफोन के पास गई और सुहास के पड़ोसी का नंबर डायल किया।मिलने पर सुभाष से बात करने के लिए बुलाने को कहा।दस मिनट बाद उसे पता लगा सुभाष तो है ही नहीं वहां,वह तो बाहर गया हुआ है।

कामना मायूस हो गई।लगता है सुभाष उससे नाराज हैं।उसने फोन नहीं किया तो क्या ...उन्हें तो करना चाहिए था।वह तो अपने मां के घर आई थी पहली बार ...तो भूल गई लेकिन वह क्या.. ...उसको उसकी कमी महसूस नहीं हुई।अब प्यार के साथ-साथ उसे मान का भी अहसास होने लगा।

अभी वह अपने विचारों में गुम थी कि तभी रिमझिम बारिश शुरू हो गई और वह आकर बरामदे में डले झूले पर आकर बैठ गई।

उसके मायके में हर साल सावन आते ही बरामदे में झूला पड़ जाता और घर का हर सदस्य स्त्री-पुरुष बच्चा जब मर्जी उस झूले पर बैठ कर पेंगे लिया करते और सावन की तीज वाले दिन सभी घर-पड़ौस की महिलाएं इकठ्ठी होकर गाना गाती सावन कजरी के और झूला झूलतीं।घर के सभी काम हो चुके थे मौसम भी सुहाना हो गया था। रिमझिम बारिश के बीच झूला और सावन कजरी गाने सभी बरामदे में आगये।कामना नवविवाहिता थी तो झूले पर बैठने की शुरुआत उसी से हुई और उसकी मम्मी, भाभी,मामियां,बहनें सावन कजरी गाने लगीं।

श्याम रंग छाये सखि बदरा, घटा घिरी घनघोर।

झूले पड़े अमवा की डार,झोटा देत चितचोर।।

कौन रे झूले कौन झुलावै कौन रे पेगें देय...

राधा झूलें रुक्मिणी झुलावैं,कृष्णा पेंगे लेय...

श्याम रंग...कामना ने भी उनका साथ दिया लेकिन पंगें लेते- लेते ‌और गाना गाते-गाते उसका ध्यान पूरा का पूरा सुभाष की तरफ चला गया।पिछले दिनों जिसको वह बिल्कुल भूल चुकी थी।वह उतनी ही तीव्रता से उसको याद आ रहा था।उसको समझ नहीं आ रहा था यह मौसम का असर है या त्यौहार का।

या अब क्योंकि मन शांत है,उसकी सारी बातचीत सबके साथ समाप्त हो गईं इसलिए अब उसकी भावनाएं उसको समझ आ रही हैं। झूला झूलते उसे लगने लगा, काश.. इस समय सुभाष भी उसके साथ होते और उसको झोटे देते। सोचो मैं वह इतनी गुम हुई कि गाना ही भूल गई तभी भाभी ने टोक दिया, क्या हुआ ..कामना ..?

तुमने गाना क्यों बंद कर दिया... लगता है सुभाष जी की याद आ गई ...और खिलखिला कर हंस पड़ीं,साथ में सभी हंस दिये।

कामना कुछ शरमाई ,झिझकी मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो,मुस्कुराते हुए बोली, नहीं.. भाभी...ऐसी कोई बात नहीं...लेकिन इस बार उसकी हंसी फीकी थी क्योंकि अब अन्तर में सुभाष की कमी महसूस कर रही थी।

"हां याद तो आयेगी भई पहला.. सावन और पहली तीज ...और हमारे यहां ससुराल से तीज लेकर भी तो आते हैं ना...पर इसकी सास ने तो इसके साथ ही भेज दी थी।लगता है जब लेने आयेंगे तभी ननदजी की तीज मनेगी।"

सभी जितनी चुहलबाज़ी कर रहे थे, कामना में विरह भाव उतना ही तीव्र हो रहा था।आज उसने समझा था कि जो भी कवि लेखक कुछ लिखते हैं, सावन के मौसम में बिना पी के पत्नियां कैसा महशूस करतीं हैं, वह सब सच ही होता है।उनके हृदय को सावन की रिमझिम बौछारें आनंदित,सिंचित नहीं करतीं बल्कि जलाती हैं, विरहाग्नि भड़कातीं हैं।

ऐसा ही कुछ हाल उसका हो रहा था।सुभाष के प्यार की रिमझिम बारिश की चाहत अब उसे तड़पा रही थी।

काश..! वह भी यहां होते...काश आ जाएं.... ....उसका दिल बार-बार यही आवाज लगा रहा था।उसने गाने में सभी का साथ देने की कोशिश की।

बारिश लगभग बंद हो चुकी थी टिप-टिप कुछ कुछ बादलों में रुकीं बूंदें टपक रहीं थीं।गाना बजाना भी बंद हो चुका था।शाम ढलने लगी थी और सब फिर अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए।

कामना वापस आकर झूले पर बैठ गई और आंखें बंद कर सुभाष की छवि याद कर मन ही मन गुनगुनाने लगी।

आ जाओ तुम प्रियतम प्यारे ,

सावन गुजरा जाए।

रिमझिम बदरा मुझे जलाए,

और सहा ना जाए...।।

आ जाओ.. आ जाओ...

 तभी उसके कंधों पर किसी का स्पर्श हुआ, कुछ पहचाना सा। उसने आंखें खोली तो पलकें झपकना भूल गईं।

सामने सुभाष खड़े हैं।उसने आंखों को फिर से बंद किया और फिर हाथों से मलकर खोला,यह तो सच में सुभाष ही हैं।उसकी आंखों में खुशी के साथ-साथ आश्चर्य भर गया। वह झूला छोड़कर एकदम से खड़ी हो गई।सुभाष ने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा,

"किसके ख्यालों में खोई हो ....सुभाष का इतना बोलना था कि पता नहीं कामना को क्या हुआ वह प्रेमातिरेक में एकदम से सुभाष के गले लग गई

"तुम्हारे..."अस्फुट से स्वर निकले।

वह भूल गई कि अपने मायके में है।उसके इस रूप और अपने प्रति प्यार को देख कर सुभाष का चित्त प्रफुल्लित हो उठा और उसने उसे बाहों में कस लिया।थोड़ी देर बाद जब कामना को होश आया कि वह कहां है तो याद आते हैं कामना सकुचाकर अलग हुई और शर्मा कर भाग गई।

जिसके लिए व्याकुल थी जिसकी वह कामना कर रही थी सुबह से..अब उसके सामने था।

वास्तव में सही अर्थों में शादी के बाद सुभाष के प्रति आंतरिक प्यार उसने आज ही पहली बार महसूस किया था।यह शायद उससे दूर होने और सावन के त्यौहार का असर था जो उसे सुभाष के प्रति अपने प्यार का एहसास हुआ था और उधर सुभाष पिछले तीन-चार दिन में अपने मन को किसी तरह समझा रहा था।

आज कामना के इस रूप को देखकर फूला नहीं समा रहा था। उसकी शादी के बाद का पहला सावन वास्तव में यादगार खुशनुमा हो चुका था।ये पल उसकी जिंदगी में सदा के लिए मधुर और अविस्मरणीय हो गये। 


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