manisha sahay

Romance

5.0  

manisha sahay

Romance

पहला प्यार

पहला प्यार

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आज इतने सालों बाद भी रोम रोम सिहर उठता है जब प्यार के उस अहसास को याद करती हुँ।कितनी शोख अल्हड़ मदमस्त दिन थे ,वो जब ना समय की परवाह, ना जमाने का डर, न लोक लाज की परवाह न ऊँच नीच की चिंता,बस हाथों मे हाथ लिये वह समय का गुजर जाना, भागते समय, ढलते दिन को साईकिल की तेज पैंडलों से भरपाई कर ,घर आकर बहानें पर बहाना बनाना, कभी साईकिल की चैन का उतर जाना, कभी ब्रेक का वो फ्री हो जाना ,इन सारे बहानों का बार बार दोहराना !

पहले प्यार का नशा उदंड वेगयुक्त सरिता की तरह किनारों को तोड़ता हुआ ,अपने लक्ष्य की ओर अग्रसरित हो जाता है जहाँ सरिता सागर में समा आपना असितत्व तो खो देती है पर लक्ष्य को पा लेती हैइसी तरह राखी और मनोज दुनिया से लड़कर, नई दुनिया बसाने निकल पड़े थे पर राहों की मुश्किलों ,तुफानो, झंझावातों का अनुभव और पता यदी पंक्षी को हो तो शायद वह उड़ान ही ना भरे जल्दी ही मनोज की नौकरी सेना में लग गई और वह ट्रेनिग पर चला गया।

राखी और मैं अपनी आगे की पढाई पूरी करने यानी स्नातकोत्तर करने के लिये पुन: कॉलेज में दाखिला लिया या कहूँ तो मनोज ने ही राखी को जबरदस्ती अपने सपनों को पूरा करने के लिये फिर से आकाश मुहैया कराया।

ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उसकी पोस्टिंग कश्मीर में हुई वह काफी खुश था, बड़े बड़े सपनों को आँखों में समाए, कठिन परिश्रम के मूलमंत्र पर चलता हुआ वह निरंतर सफलता की सीढीयों को चढता जा रहा था, इसी बीच नई खुशखबरी ने तो मानों उसके पैर जमीं से उपर ही कर दिये हो, सपनों के जहाँ में वह खवाबों की परी का दृशय लिये हजारो प्लान बनाने में जुटा था ,तभी अकस्मात उसे कारगिल के लिये सेना के नेतृत्व की जिम्मेदारी मिली और अपने पुरे शौर्य का परिचय देते हुए, दुशमनों से एक एक पोस्ट खाली करवाते हुए अंततः वह थक कर भारत माता के आँचल में सो गया पर मेरे जहन, मन व हिन्दुस्तान के इतिहास में अमर हो गया।

जरूरी नहीं है कि पहला प्यार आपका अंतिम प्यार हो, उन दोनों के साथ मैं हमेशा रही। मैंने बाद में राजीव जो कि मेरे कॉलेज के नये प्रेफेसर थे, उनके प्रेम अनुरोध को स्वीकार कर विवाह किया, वहीं मैं और राखी मिले। परी को कभी किसी तरह की कमी नहीं होने दी। आज भी हम एक अनोखी प्यार की डोर से बंधे हैं।


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