रोज़ी रोटी
रोज़ी रोटी
रेड लाईट पर कई बड़ी गाड़ीयाँ रूकती है, तब जिंदगी चलाने के लिये ग़रीब बच्चे शीशे से झाँकते हैं,आँखों में आस लिये इस आशा से कि उपर वाला शायद कोई मददगार भेज दे,
सोनु गरीबी और लचारी के हालात में रोज़ रेड लाईट पर मुर्तियाँ बेचने जाता है, कृष्ण व गणेश भगवान की सुंदर बोलती प्रतिमाएं... मानो अभी बोल उठेगी।
दोपहर की चिलचिलाती धूप करीब 3 बजे का समय बड़ी सी गाड़ी रूकती है, सोनू भागता है...'साब मुर्तियाँ ले लो' ! सिर्फ 100 रू की है। सुबह से एक भी नहीं बिकी है।
बत्ती हरी हो गई, गाड़ीयाँ आगे बढ़ गई, और वह रेड लाईट का इंतजार करता रहा!
फिर बड़ी सी चमचमाती गाड़ी रेड लाईट पर रूकी! शीशे के अंदर से एक सुंदर परी झांक रही थी!
सोनु एक पल को तो देखता ही रह गया, तभी आवाज़ आई.... "पापा वो वाली कान्हा जी वाली लेनी है।"
बस झट से शीशा उतरा और आवाज़ आई..."कितने की है?"
सोनू ..."साब बस 100 रू की।"
साब..."ठीक है दे दो!"
सोनू..."जी साब! ये गणपति विघ्नहरता, ये भी ले लो ना !"
साब...मुस्कुरा कर 100 का नोट बढातें है, बत्ती रही हो जाती है।
तभी पुलिस के साथ कुछ लोग आते है और सोनू को धमकाते है, "तुझे कहा था ना मुसलमान हो के भगवान की मुर्तियाँ बेचता है, इससे हमारा धर्म भ्रष्ट होता है। चल निकल यहाँ से।"
सोनु मुर्तियाँ समेटने लगता है!!
तभी दूसरे धर्म के लोग आते है और उसे थप्पड़ मार कर कहतें है, "बेशर्म मुसलमान हो काफिरों की तरह मूर्ति बनाता है, बेचता है और तो और संस्कृत के श्लोक किससे सीखें है? खबरदार कल से इधर..."
तभी कुछ लड़के व लडकीयों का ग्रूप उसे पिटता देख आ जाता है।
उनमें से एक लड़की, "क्यों मार रहे हो, बच्चे को...छोड़ो इसे!" और वह धमका कर चले जातें है।
वह सोनू से पूछते है, तब सोनू अपनी सारी कहानी, पिता का हाथ कट गया है, माँ गंभीर बीमार है, कोई भी मदद नहीं है, इसलिये गाँव के बूढ़े पंडित काका की मदद से वह कलात्मक कला सीख रहा है और जीवन यापन के लिये इन्हें बेचता है।
आर्ट एंड क्राफ्ट के वह स्टूडेंट, उसे उसके सारी कलात्मक वस्तुओं के साथ शिल्प मेला बजार में, उसका स्टाल लगावा देते है। जहाँ विदेशी तथा बड़े बड़े शिल्पकार ...उसकी कला को सम्मानित करने आते हैं। तो वह गाँव बस्ती से बूढे़ पंडित काका को सम्मान का सही हक़दार बताता है।