manisha sahay

Drama

5.0  

manisha sahay

Drama

ईशवर है।

ईशवर है।

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350


मंदिर मे चारों ओर शोर था। पूरा मंदिर भक्तों की भीड़ से भरा पड़ा था। क्या चढ़ावा और क्या भेंट लोग उमड़े चले आ रहे थे।  प्रसाद, अगरबत्ती, फूल बेचने वाले जल्दी जल्दी अपनी दुकान लगाने में व्यस्त हो गए। दूध बेचने वाले भी आनन-फानन में दुकान लगा कर के बैठ गए। वहीं कुछ दबंग लोग लाइन लगाने के बहाने दर्शन पर्ची भी काटने लगे। सुबह के 10 बजे मानो मंदिर परिसर हजारों लोगों की भीड़ से खचाखच भर गया था।

मेरा घर इस मंदिर से पास ही था अतः उत्सुकतावश मै भी वहाँ पहुँच गया। एक पल के लिये मेरी आँखें ठिठक सी गईआशचर्य का ठिकाना ना था। एक ऐसा दृश्य या भ्रम जो हमेशा अविस्मरणीय रहेगावह गणेश भगवान का दुग्ध पान करना। अपनी खूली आँखों से मैनै देखा की पंडित जी भगवान के समक्ष दूध से भरा पात्र ले जा रहे थे और वह खाली हो जा रहा था। मुझे यकीन नहीं हो रहा था ।

मैं भागते हुए दादा जी के पास आयादादा जी चलो बगल के मंदिर में भगवान दूध पी रहै है तभी दादी कहती है घंटे भर से कह रही हूँ। वैसे तो रोज घंटों पूजा करते रहते हैं पर ना जाने आज क्या हो गया है, अब तो न्यूज वाले भी दिखा रहै है।

तभी मुहल्ला कमीटी के लोग भी आ गये  श्रीधर बाबू आपने सुना गणेश भगवान दूध पी रहे हैं आप मंदिर नहींं आए क्या बात है क्या आप भी इसे अंधविश्वास मानते हैं।

दादा जी वेद व पूराणो के ज्ञाता थे अतः उनकी बात पूरे मोहल्ले में बहुत मायने रखती थी

दादा जी ने कहा विश्वास और अंधविश्वास में बहुत महीन अंतर है यदि ज्ञान के चक्षु ना खुले तो हर विश्वास अंधविश्वास में ही परिणित हो जाता है और यही आज आपके साथ हुआ है।

क्योंकि आपका विश्वास पक्का नहींं था। इसीलिए आप प्रयोग करने चले गए और प्रयोग के परिणाम आते ही आप विचलित हो उठे।

मैं तो हर रोज सुबह भोजन ग्रहण से पहले भगवान को भोजन हुआ जल अर्पण करता हूं और इस विश्वास से करता हूं भगवान ग्रहण कर रहे हैं अतः छोटी अकस्मात घटना मेरे विश्वास को विचलित नहींं करती ।आप जो चीज सत्यापित करना चाह रहे हैं वह सत्य मैं रोज स्वीकार करता हूं अतः मुझे यह बाह्य आडंबर की आवश्यकता नहींं रही बात दूध के लुप्त होने की तो उसके भी बहुत सारी कारण हो सकते हैं। हमारे डर व अंधविश्वास ने भगवान को व्यवसायिक बना दिया है। अब मेरी दृष्टि के आगे से अंधविश्वास का पर्दा हट चुका था और दादा जी के दृढ संकल्प मे बसे भगवान का अर्थ भी समझ आ चुका था। अतः प्रकृति रूप रचना कृत भगवान है परन्तु मनुष्य रूपी गढ़ा भगवान नहीं है।


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