निर्णय
निर्णय
अचानक रोहित को बरसों बाद देख कर मैं स्तब्ध थी। वही अस्त व्यस्त बाल, आँखों पर चश्मा और हाथों में मोटी सी किताब मानों अभी अभी कॉलेज से लौट कर आ रहा हो। एक पल को तो लगा की समय ठहर सा गया है। मैं फिर से बीस साल पुराने समय में लौट आई हुँ... हाँ वही हमारे कॉलेज के दिन!
उस समय रोहित, सीमा, अनु,अकाश और मेरी जोड़ी पूरे कॉलेज में फेमस थी। नहीं नहीं वह आजकल वाली ब्वाय फ्रेंड, गर्ल फ्रेंड वाली जोड़ी नहीं थी... यह रूहानी और जज्बाती मित्रता थी। हम एक दुसरे से जलते भी थे, यदी किसी को किसी पेपर में नम्बर यदी उम्मीद से ज्यादा आ जाये तो समझो बोलचाल बंद और रिश्तों मे खटास।
हाँ एक बार रोहित को मैथ में पुरे 100 में 100 आ गये तो हमने ही फिर से उसकी कॉपी चेक करने का आवेदन दे डाला था। जब उसे पता चला की यह महान काम हमने किया है तो कहने लगा, तुम्हारे जैसे दोस्त जिसके हो उन्हे दुश्मनों की जरूरत नहीं है।
जैसे ही रोहित ने मेरा हाथ पकड़ हिलाया मानो... मैं पुराने दिनों से एकाएक वर्तमान में लौट आई। अपनी खुशी और गम दोनों को संभालते मैने पूछा... “अरे यहाँ कैसे मतलब मेरा पता किसने दिया और तुम कॉलेज से एकाएक कहाँ गायब हो गये थे। हमनें मतलब तुम्हें अपनी मित्र मंडली तो याद है सबने कहाँ कहाँ नही ढुंढा तुम्हें... तब पता चला की तुमने किसी इंटेलिजेंस सर्विस का इग्जाम निकाल गुप्त सेवा के तहत विदेश किसी मिशन पर चले गये हो। आज इतने दिन के बाद कैसे यहाँ...”
रोहित ने ठंडी साँस लेते हुए कहा, “ये कागज लो!! बहुत जरूरी है, इसपर पता लिखा है, किसी भी हालत में कितने भी दिन लगे, यह इस पते पर पहुँचा देना! अपना ख्याल रखना, मेरे पास समय नही है! बहुत दूर जा रहा हुँ...”
अभी मैं कुछ पूछती की... वह अंधेरे में गुम हो गया... मानो कोई हवा का झोंका आया और यादों की करवट दिला गायब हो गया... उसे देखने या ढुॅंढने बाहर निकली तो स्वीडन की पुलिस की भीड़ थी, जब पूछा तो पता चला की कोई टेररिस्ट मारा गया है!
मैने वापस आकर टीवी खोला तो रोहित का चेहरा देख शुन्य हो गई!! जब उन कागज को पलट कर देखा तो... आँखें नम थी, पर दोस्त और दोस्ती पर गर्व हो रहा था, खुद से ही वादा किया और रोहित के मिशन को पूरा करने का निर्णय ले... इंडिया चल दी।