manisha sahay

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यादें जो जीना सिखाएं

यादें जो जीना सिखाएं

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 यह संस्मरण तब का है, जब मैं 10 वर्ष की थी, और मेरा भाई बिट्टू 8 वर्ष का था । हमारे दादा और दादी जी गांव में रहते थे। दादाजी शहर के बड़े चिकित्सक थे । परंतु रिटायरमेंट के बाद गांव में निशुल्क चिकित्सालय खोल सेवा में लगे थे ।

सभी गांव वाले के लिए वह भगवान के समान थे ।पेशे से चिकित्सक होने के बाद भी दादाजी भगवान में पूर्ण विश्वास रखते थे ।खासकर कृष्ण भगवान के परम भक्त थे ।जन्माष्टमी के उत्सव पर हमारा व बुआ जी का परिवार लोग जन्माष्टमी मनाने जाते थे । गांव का घर पूरा छोटे-छोटे बल्बों से सजा रहता था, फूलों के तोरण से घर का द्वार सजाया रहता था।

हमारे पहुंचते ही दादाजी बिट्टू को उठा गले लगा लेते है। और कहते ......आ गया मेरा नंदलाला, गोपाला !! तभी दादी जी ने सभी को आदेश दिया सभी नहा लो तभी कुछ खाने को मिलेगा।


जब हम खा पीकर हॉल में वापस आए तो वहां कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारी चल रही थी। दादा बड़े से आसन पर बैठे थे । गांव की औरत और आदमी पालने सजा रहे थे । बाहर आंगन में हलवाई तरह-तरह के पकवान बना रहे थे । बिट्टू से रहा नहीं गया और वह दादाजी से पूछ बैठा..... "दादा जी! कृष्णा बेबी जन्म होते के साथ इतना कुछ खाएगा ? बेबी तो केवल मिल्क पीता है!"

दादाजी जी हंस दिए....."हां बेबी तो मिल्क ही पिएगा, यह तो हम सब लोग खाएंगे।"

बस यही तो बिट्टू सुनना चाहता था। बड़े-बड़े थाल में मेवा पाघकर रखी गई थी , लड्डू से थाल भरा हुआ था , नमकीन भी कई प्रकार के थे, फल भी बहुत सारे थे ,पूरी हलवा बहुत कुछ था।

बिट्टू दादा जी के बगल में बैठ तरह तरह के प्रश्न पूछ रहा था और दादी जी रह रहकर उसे आंख दिखाकर चुप रहने के लिए कह रहे थे।

पंडित जी जोर-जोर से गीता का पाठ कर रहे थे।

 करीब रात के 8:00 बजे दादाजी ने पंडित जी से कहा अब थोड़ा भजन कीर्तन कर लेते हैं। उसके बाद गीता का अंतिम अध्याय पढ़ियेगा।

 सभी भजन कीर्तन में मगन हो गए तभी दादाजी ने मम्मी से कहा "बहु जाकर पूजा घर से लड्डू गोपाल को ले आओ।" दादा जी बड़े से भिगोना में दूध, दही, शहद, घी सब मिला रहे थे। जब मम्मी लड्डू गोपाल जी को ले आई तो दादाजी ने उन्हें गंगाजल से स्नान करा भिगोने में डाल दिया।

 हम आश्चर्य में थे !! जब आधा घंटे के बाद दादाजी ने उन्हें बाहर निकाला तो वह सोने के जैसा चमक रहे थे।

फिर उन्हें बाहर निकालकर खीरे के अंदर छुपा कर रख दिया और बाहर से लाल कपड़ा लपेट दिया । जब हमने पूछा तो कहने लगे .....अब 12:00 बजे इनका जन्म होगा , तब तक भजन आराधना करेंगे ।सभी लोग गाने बजाने लग गए।

तभी गांव का एक किसान आया और कहने लगा डॉक्टर बाबू जल्दी चलिए नहीं तो मेरी बीवी मर जाएगी । उसके पीछे पीछ

हॉस्पिटल की नर्स भी खड़ी थी ।

दादाजी ने बिट्टू को पूजा के आसन पर बैठा दिया , और कहां पंडित जी यदि मुझे देर हो जाए तो बिट्टू से भगवान का जन्म करवा दीजिएगा , और नर्स के साथ चले गए। 

बिट्टू और मेरी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं था, बड़े से आसन पर हम दोनों विराजमान हो गए। करीब 11:30 बजे पंडित जी ने जोर से कहा अथाष्टादशोधयायः समाप्त...... सभी जोर से जयकारा लगाने लगे।

पर दादा जी अभी तक नहीं लौटे थे । सभी जयकारा लगाने लगे । जैसे ही बिट्टू ने कन्हैया जी को खीरे से बाहर निकाला..... घड़ी घंटी,शंख बजाने लगे तभी दादाजी ने जोर से कहा "नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की।" दादाजी को देखकर सभी खुश हो गए। दादा जी ने कहा कि ....."वह ऑपरेशन कर आ रहे हैं, हरिया को बेटा पैदा हुआ है ,मैंने उसका नाम कान्हा रख दिया है । अब मैं अशुद्ध हो गया हूं, इसलिए बिट्टू ही जन्म कराएगा।" 

दादा जी ने यह भी घोषणा कर दी कि अब हर साल जन्माष्टमी के पर्व पर बिट्टू ही जन्मोत्सव की पूजा करेगा । 

आज दादाजी तो इस दुनिया में नहीं है ,पर हर साल मेरा और मेरे भाई (बिटटू) का परिवार कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाने गांव जाते हैं।




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