manisha sahay

Drama

5.0  

manisha sahay

Drama

किंडरगार्डन

किंडरगार्डन

3 mins
450



बड़ा शहर नया वातावरण तेज रफ्तार जिंदगी में किसी के पास किसी के लिए समय कहाँ होता है। दौड़ती भागती जिंदगी में एकाकी परिवार में पति-पत्नी व एकमात्र बच्चे का जीवन भी समय की रफ्तार की तरह भागता रहता है । मुंबई शहर में ट्रांसफर होते ही ,जिंदगी में आए बदलाव को शायद मैं गंभीरता से समझने की कोशिश कर रही थी । परी लगभग 3 साल की हो चुकी थी और उसे क्रैच में रहने की आदत हो चुकी थी। 

   छोटे शहर में लोग ज्यादा प्रोफेशनल नहीं होते हैं , कहीं ना कहीं उनमें अपनत्व और पारिवारिक भाव प्रगाढ़ रहता है जिसके कारण परी को भी क्रैच में घर का वातावरण मिला था और मुझे निश्चिंत हो नौकरी करने का सौभाग्य ।

  अब पढ़ लिखकर जी जान लगा , नौकरी के लिए कंपटीशन निकाल इंटरव्यू इसलिये तो नही निकाला था कि परिस्थितियों के आगे घुटने टेक दुँ। एक तरफ मेरी नन्ही सी जान परी जिंदगी की प्रथम पाठशाला में जाने के लिए कदम बढ़ा रही थी, वही मेरे अंतर्मन में अनेक विचारों की उथल पुथल चल रही थी।

  स्कूल में दाखिले की फॉर्मेलिटी पूरी हो चुकी थी । ड्रेस , स्कूल बैग, किताबें ,टिफिन डब्बा, वाटर बोतल सभी देख परी अत्यंत उत्साहित और खुश नजर आ रही थी .....पर पता नहीं क्यों मेरे अंदर एक डर सा सता रहा था कि क्या वह स्कूल में एडजस्ट कर पाएगी या नहीं ? ....2 दिन के बाद उसके स्कूल का पहला दिन था , यह 2 दिन निकालना मुश्किल हो रहा था। ऐसे में रोज ही उससे सुबह 9:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक अलग रहती थी। पता नहीं क्यों ऐसा लग रहा था जैसे कि उसने अपने बचपन का एक पड़ाव पार कर .......एक नए अध्याय में प्रवेश लिया हो।  

   सचमुच हमारे समय में दादा दादी व अन्य पूरे परिवार से मेरी परी की जिंदगी कितनी अलग और एकाकी है, यह मुझे आज अहसास हो रहा था। दिन भर क्रैच में रहना फिर स्कूल में और फिर शाम को जब हम उसे लेने जाते हैं , तो हम भी थके रहते हैं .....जैसे कि हम उस पर एहसान कर रहे हो !!

आज उसकी स्कुल की नई ड्रेस प्रेस करते समय इतने सारे सवालों ने मुझे घेर लिया है । सुबह-सुबह स्कुल के पहले दिन के लिये मैं लाईन में खड़ी थी , सभी बच्चे अपने पिता के साथ लाइन में खड़े थे, कुछ रो रहे थे । परी बार बार मेरा मुख मुड़ कर देखती मानों आंखों के मनोभाव को पढ़ने की कोशिश कर रही हो.... मैं मैं हर बार हल्की सी मुस्कान बिखेर देती थी और वह आत्मबल से भरपूर हो जाती थी । जैसे ही कुछ आगे के बच्चों को टीचर हाथ पकड़ स्कूल के अंदर ले लेती है , वह जोर से रोने लगते हैं और परी फिर मुड़कर मेरी तरफ देखती है..... मानो मौन आंखों से संवाद के द्वारा वह आश्वासन दे रही है कि मैं नहीं रोऊंगी ! मैं ठीक हूं क्योंकि मुझे आप पर भरोसा है , फिर उसके मुख पर मुस्कान फैल जाती है...तभी टीचर हाथ पकड़ उसे स्कूल के अंदर ले लेती है और वह मुस्कुराती हुई चली जाती है.... और अनायास ही मेरी आँखे छलक उठती है.... उसने मुझे अपनी मुस्कान से मानो निर्भीकता, आत्मबल,स्वालंबन के साथ एक आश्वासन दिया की मै कमजोर नही हुँ..... शायद मातृत्व के किंडरगार्डन का यह मेरा पहला दिन था।





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