Sanjay Kumar

Inspirational

4  

Sanjay Kumar

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पहचान

पहचान

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एक दिन विजय अपने ऑफिस में बैठा है उसके साथ उसके कुछ ऑफिस के साथी भी बैठे हैं ऑफिस के काम के बाद सब लोग बैठकर आपस में बातचीत कर रहे हैं सब अपने-अपने परिवार की बात कर रहे हैं विजय सब की बात सुनकर उदास हो जाता है पर किसी से कुछ कहता नहीं है तभी उसके साथ का एक कर्मचारी बोलता है "सर आप भी अपने परिवार के बारे में कुछ बताएं" यह सुनकर विजय बोलता है" क्या बताऊं परिवार के बारे में मेरे पर बेटा हैं बेटी है मेरा बहुत बड़ा परिवार है और उनको पालने की मेरी पूरी जिम्मेदारी है इसलिए अपना काम जिम्मेदार के साथ कर रहा हूं" यह कहकर विजय वहां से चला गया विजय के जाने के बाद सब कर्मचारी आपस में बातचीत करने लगते हैं "अरे हमने सुना है विजय का कोई परिवार नहीं है वह कैसे कह सकते है इसका पर बेटा बेटियों और बड़ा परिवार है। "

दूसरा कर्मचारी कहता हैं "हां बात तो सही है हमने भी सुना है कि उन्होंने शादी नहीं की है" तो तीसरा कर्मचारी कहता है तो फिर यह कहते हैं" कि मेरा इतना बड़ा परिवार है मेरे बेटा बेटी भी हैं " तभी चौथा कर्मचारी कह रहा है "अरे छुट्टी का टाइम हो गया अपने मेरे घर चलो सब कर्मचारी अपने घर चले जाते हैं" दूसरे देश सब कर्मचारी ऑफिस में आ जाते हैं और सुबह-सुबह बातचीत शुरू कर देते हैंएक कर्मचारी कहता हैं "जब से ऑफिस में विजय सर आए हैं हमारे काम करने का तरीका ही बदल गया है वह हम लोगों से समय से काम लेते हैं और समय से ही हमारी छुट्टी कर देते हैं उनको ना ज्यादा हंस देना है बोलने की आदत हैं बस अपना काम किया हो सीधे ऑफिस से अपने घर चले जाते हैं पता नहीं कैसी जिंदगी जीते हैं" तभी दूसरा कर्मचारी आगे कहता है "अरे यही तो उनकी पहचान है" तीसरा कर्मचारी बोलता है "यह कौन सी पहचान होती है कि आप लोगों से बातचीत मत करो अपने काम पर ध्यान दो काम करने के बाद चुपचाप चले जाओ ना किसी से बोलो ना किसी बातचीत करो ना ना बोलो " तभी चौथा कर्मचारी कहता है "हर इंसान का अपना-अपना स्वभाव होता है उनका इस प्रकार का स्वभाव है तो उसमें हम लोग क्या कर सकते हैं चलो अब काम का समय जल्दी से कम करो विजय सर आते होंगे" तभी ऑफिस में विजय आ जाता हैं सबको काम समझता हैं और समझने के बाद खुद काम करने लगते हैं शाम को छुट्टी होने पर वापस जाने लगता हैं तभी कर्मचारी उन्हें टोक कर कहता है "सर एक बात पूछना चाहता हूं" विजय मुस्कुरा कर कहता है "पूछो क्या पूछना चाहते हो" कर्मचारी कहता है "सर आपके बारे में सब बातचीत करते रहते हैं कि आपका कोई परिवार नहीं है ना ही अपने शादी की है तो आप इतने बड़ा परिवार हो बेटा बेटी की बात कैसे करते हैं सबके इसी बात को लेकर पेट में दर्द हो रहा है।"

यह सुनकर विजय सर को बहुत ही हंसी आती है और उसे कर्मचारी से कहते हैं 'ठीक है भाई मैं अपना परिवार सबको दिखाऊंगा बेटा बेटी भी दिखाऊंगा समय आने दो" और विजय अपने घर निकल जाता है कुछ दिनों के बाद ऑफिस में सब कर्मचारी काम कर रहे होते हैं तभी चपरासी आकर इनविटेशन कार्ड सबके हाथ में रख देताहैं है सब कर्मचारी उसे इनविटेशन कार्ड को पढ़ते हैं पढ़ने के बाद बड़े खुश हो जाते हैं उनमें से कर्मचारी बोलता है "अरे वह विजय सर ने पार्टी रखी है और उनकी बेटी का जन्मदिन भी है अब वहां जाकर पता चल जाएगा उनका कितना बड़ा परिवार है और कितने बेटा बेटी है और यह बात भी गलत साबित हो जाएगी उनका कोई भी परिवार नहीं है ना उन्होंने शादी की है" निमंत्रण पत्र की तारीख पर सब कर्मचारी वहां पर पहुंच जाते हैं या विजय सर उन लोगों को बुलाते हैं वहां जाकर देखते हैं तो एक बहुत बड़ा पंडाल लगा हुआ है वहां बहुत सारे बच्चे खाना खा रहे हैं एक तरफ बहुत सारे बुजुर्ग खाना खा रहे हैं सब कर्मचारी देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं तब यह कर्मचारी की नजर एक बोर्ड पर पड़ती है

जहां पर आश्रम लिखा हुआ सब कर्मचारी आशीष चकित हो जाते हैं समझ जाते हैं कि विजय सर अपना इतना बड़ा परिवार कैसे कहते हैं इतने बेटा बेटी कैसे कहते है सब कर्मचारी अपनी गलती पर शर्मिंदगी महसूस करते हैं सीधे विजय सर के पास जाकर हाथ जोड़कर माफी मांगते रहते हैं "सर हम से गलती होगी हमको नहीं पता था आप इतने अच्छे इंसान है" यह सुनकर विजय हंस के कहता है "आपकी कोई गलती नहीं है मैं अपने परिवार में सबसे बड़ा था छोटे-छोटे भाई बहन थे उनकी शादी ब्याह करने में मुझे पूरी जिंदगी लग गई उम्र बढ़ गई फिर मैं कैसे शादी करता इसलिए मैं गरीब अनाथ बच्चों को और बुजुर्गों को अपना परिवार समझ लिया अब मैं जो भी कमाता हूं उनके लिए कमाता हूं इन्हीं पर खर्च करता हूं अब यही मेरा परिवार है यही मेरे बेटा बेटी है यह मेरी पहचान है " यह कहकर विजय बुजुर्गों को खाना खाने में लग जाता है सब कर्मचारियों का एक साथ ताली बजाने का मन करता है पर उनकी आंखों से आंसू निकल रहे हैं शायद आंखों से बहते हुए आंसू ही ताली बजा रहे हैं…


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