Sanjay Kumar

Inspirational

4  

Sanjay Kumar

Inspirational

सुन्दर

सुन्दर

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एक दिन एक राजा अपने बगीचे में टहल रहा हैं उसके साथ उसके कुछ कर्मचारी भी साथ में है उनमें से कुछ कर्मचारी चापलूस हैं जो हमेशा राजा की तारीफ करते रहते हैं और राजा की चापलूसी करते करते अपनी जिंदगी को मौज से काट रहे हैं राजा के कर्मचारियों में अजय सिंह कर्मचारी ऐसा था जो ज्यादा नहीं बोलता था वह अपनी दुनिया में रहता था पर अपने सब कामों को ईमानदारी से करता था सुबह ना राजा की कभी चापलूसी करता है ना राजा की कभी तारीफ करता है हमेशा काम की बात पर ही बात करता है उसकी इस आदत से और कर्मचारी परेशान हैं चापलूस कर्मचारी हमेशा राजा से उसकी बुराई करते और कोशिश करते इसको वहां से निकलवा दिया जाए पर राजा उसको नहीं निकलता है क्योंकि वह उसके पिता के जमाने का कर्मचारी है राजा चलते-चलते बगीचे में अचानक एक फूल को देखकर बड़ा खुश होता है जो गुलाब का फूल है वह गुलाब का फूल बहुत सुंदर दिख रहा है तुरंत राजा बोला गुलाब के फूल को देखकर " कितना सुंदर फूल है ऐसे लग रहा है उपरवाले ने सारी खूबसूरती फूल को दें दी हो। तुरंत चापलूस कर्मचारी बोला "अरे महाराज यह फूल आपसे ज्यादा सुंदर नहीं है" 

तभी दूसरा कर्मचारी बोला वह चापलूसी करते हुए कहता हैं "महाराज यह सही कह रहे हैं यह फूल आपसे ज्यादा सुंदर नहीं है " यह सुनकर राजा बड़ा खुश होता है और फिर आगे बढ़ जाता है बगीचे से चमेली के फूलों की खुशबू आ रही है अभी राजा बोल पड़ता है" कितनी सुंदर खुशबू आ रही है" तुरंत चापलूस कर्मचारी बोलता है" महाराज यह जो खुशबू आ रही है पर आप पर जो लगे हुए इत्र से ज्यादा खुशबूदार नहीं है" राजा मुस्कुरा कर रह जाता है तभी राजा अपने कर्मचारी अजय सिंह से पूछता है "अजय सिंह तुम बताओ क्या मैं फूलों से ज्यादा सुंदर हूं और जो खुशबू मुझ पर इत्र की आ रही है वह फूलों की खुशबू से ज्यादा खुशबूदार है" इस पर अजय सिंह कर्मचारी कहता है "सच तो यह है इंसान को खूबसूरत उसका कर्म बनता है और फूलों को खूबसूरत प्रकृति बनती है आपके इत्र से ज्यादा खुशबूदार प्रकृति के दिए हुए फूलों की है " यह सुनकर चापलूस कर्मचारी कहता है "आप तो राजा साहब का अपमान कर रहे हो " तुरंत अजय सिंह कहता है " मैंने राजा साहब का कोई अपमान नहीं किया है जो राजा साहब ने पूछा है उसका ही जवाब दिया है" राजा साहब तभी बोलने लगते हो और कहते हैं "तुम इस बात को साबित करो कि इंसान का कर्म उसे सुंदर बनाता है ना कि उसका शरीर उसे सुंदर बनाता है " यह सुनकर अजय सिंह कहता है "ठीक है महाराज मुझे 2 दिन का समय दो मैं इस बात को साबित कर दूंगा" यह कहकर अजय सिंह वहाँ से चला जाता है उसके जाते चापलूस कर्मचारी खुश हो जाते हैं कि इस बहाने से अजय सिंह से पीछा छूट जाएगा दूसरे दिन राजा का बेटा बगीचे में खेल रहा है राजा रानी बगीचे में पास में बैठे हैं।

तभी अचानक एक हाथी जाकर महाराज के बेटे को अपनी सूंड में पकड़ कर ऊपर तान देता है बच्चा चिल्लाने लगता है राजा रानी देखकर एकदम चिल्लाने लगते हैं और कहते हैं "मेरे बेटे को बचाओ मेरे बेटे को बचाओ" तभी वहां पर अजय सिंह कर्मचारी भी आ जाता है अजय सिंह को देखकर राजा तुरंत कहता है "अजय सिंह मेरे बेटे की जान बचाओ " सैनिक हाथी की ओर जाते हैं तभी अजय सिंह आवाज लगाकर रोक देता है" हाथी के पास मत जाना वरना वह और चीड़ जाएगा" अजय सिंह महाराज से कहते हैं  "महाराज तुरंत इसके महावत बुलाए वही हाथी को नियंत्रित कर पाएगा " महाराज रोते हुए तुरंत सैनिकों से कहते हैं, " महावत को बुलवाया जाए ताकि मेरे बेटे की जान बच सके" इस बात अजय सिंह कहता है "पर महाराज वह महावत शक्ल सूरत से बहुत बदसूरत है और काला भी है" इस पर तुरंत महाराज कहते हैं " अरे अजय सिंह मुझे उसकी शक्ल सूरत से क्या लेना देना मुझे तो उसके कर्म से लेना देना है जल्दी से उसे बुलाओ" अजय सिंह कहता है "ठीक है" तुरंत महावत को बुलाया जाता है महावत आता है हाथी को शांत करके बच्चे को नीचे उतरवा देता है बच्चा दौड़कर महाराज के पास पहुंच जाता है महाराज उसे तुरंत गले लगा लेते हैं और रानी भी अपने बेटे को प्यार करने लगती है तभी अजय सिंह पास आकर कहते हैं "महाराज बताइए सुंदरता शरीर से होती है या कर्म से " महाराज उठाते हैं और अजय सिंह के पास आकर कहते हैं "आज मेरी समझ में आ गया सुंदरता शरीर से नहीं कर्म से होती है पर यह सबक सिखाने के लिए आपको मेरे बेटे की जान को खतरे में नहीं डालना था"

यह सुनकर अजय सिंह हाथ जोड़कर कहता है महाराज यह हाथी और महावत दोनों पहले से प्रशिक्षित हैं महावत ने पहले से हाथी को ट्रेनिंग दी है आपको सुंदरता का पाठ पढ़ने के लिए यह नाटक बनाया गया है और इस नाटक में आपके पुत्र भी हमारे साथ शामिल हैं और महाराज एक बात और कहना चाहता हूं चापलूस लोग आपकी चापलूसी कर के आपकी तारीफ करके आपका मान सम्मान तो बढ़ा सकते हैं पर कर्म को नहीं बदल सकते हैं इसलिए महाराज आपका कर्म है प्रजा की सेवा करना आपकी सेवा ही आपको सुंदर बनाएगी " इस पर राजा बहुत खुश होता है अजय सिंह को पुरस्कार देता है पर अजय सिंह पुरस्कार लेने से मना कर देता है और हाथ जोड़कर महाराज से कहता है "मेरा पुरस्कार तो यही है कि आप हमेशा प्रजा की सेवा करें" राजा उसी दिन से अपने चापलूसी कर्मचारियों को अपने पास से हटा देता है और प्रजा की सेवा में लग जाता है।


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