Sanjay Kumar

Inspirational

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Sanjay Kumar

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सर्दी

सर्दी

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सर्दी का मौसम चल रहा है हवाएं बहुत तेज चल रही है चारों तरफ तेज ठंड पड़ रही है ठंड भी बहुत तेज है बाहर चौकीदार की नौकरी करते हैं रात को ड्यूटी रहती है सुबह 6:00 ड्यूटी खत्म होकर अपने घर पर आते हैं गेट को खटखटाते हैं अजय की मम्मी बिस्तर पर से उठकर गेट को खोल देती है दरवाजे के खटखटाना से अजय की नींद खुल जाती है और अजय बुरा सा मुंह बनाते हो कहता है" इन पापा को भी चैन नहीं है इतनी सुबह-सुबह आ जाते हैं गेट को खटखटा देते हैं और मेरी नींद खराब हो जाती है फिर सोने का मजा नहीं आता है मैं इनसे परेशान हो गया हूँ " यह सुनकर अजय की पिताजी हंस के कहते हैं "बेटा यह तुम्हारी उम्र है सोने की खूब सोओ काम करने की उम्र मेरी है मैं काम कर रहा हूं " अजय मुंह बना दे रजाई ओढ़ कर सो जाता है 9:30 बजे उठकर बैठता है तो देखता है पिताजी सो रहे होते हैं अजय हो फिर उठकर ना आता है नहाने के बाद खाना पीना खाकर बाहर दोस्तों के साथ घूमने चला जाता है शाम को वापस आता है तो पिता तैयार होकर ड्यूटी के लिए जा रहे हैं पिताजी को देखकर कहते हैं "बेटा मैं ड्यूटी जा रहा हूं और हां आज तुम्हारा कोई कॉल लेटर आया है उसे देख लो " अजय तुरंत कॉल लेटर को उठना है पढ़ने लगता पढ़ कर कहता हैं  मेरा बड़े शहर में टेस्ट निकल आया है मैं दूसरे से टेस्ट देने जाऊंगा परसों की तारीख है यह सुनकर अजय की पिताजी कहते हैं "ठीक है बेटे चले जाना उसकी तैयारी करो" अजय कहता है "परसों टेस्ट इसलिए मुझे कल ही निकालना पड़ेगा" इस पर अजय के पिता कहते हैं "ठीक है बेटे चल निकल जाना अपना सामान पैक कर लो " अजय दूसरे दिन अपना सामान पैक करके दूसरे शहर निकल जाता है बस में बैठकर दूसरे शहर पहुंच जाता है रात हो जाती है उसे शहर में बहुत तेज ठंड पड़ रही होती है अजय सोचता है रात कैसे बिताई जाए उसके पास ज्यादा पैसे भी नहीं है कि होटल में कमरा ले सके। अजय को बहुत तेज ठंड लग रही है कुछ धर्मशाला में भी गया पर वहां पर भी कमरा खाली नहीं है एक बिल्डिंग का बरामदा दिखाई देता है बरामदा में ही बैठ जाता है और ठंड से कंपकंपाने लगता हैं तभी बिल्डिंग का चौकीदार आ जाता है और पूछता है "तुम यहां कैसे से बैठे हो" अजय हाथ जोड़कर कहता है "कल मेरा यहां पर टेस्ट है मुझे किसी धर्मशाला में कोई कमरा नहीं मिलना होटल लायक मेरे पास पैसे नहीं है इसलिए रात गुजरने के लिए बैठ गया हूं " अजय की बात सुनकर चौकीदार कहता है "ठीक है बैठ जाओ यहां पर आग जला लेते हैं इस सर्दी भी कम लगेगी और इस बहाने से रात भर जागता भी रहूंगा"

अजय आसपास सी लकड़ी इकट्ठी करता है चौकीदार और दोनों मिलकर आग जला लेते हैं दोनों में बातचीत का सिलसिला चालू हो जाता है अजय चौकीदार से पूछता है "आप कहाँ के रहने वाले हैं" यह सुनकर चौकीदार कहता है" बेटा मैं दूसरे शहर से आया हूं अपने बेटे की पढ़ाई के लिए नौकरी कर रहा हूं ताकि वह पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बन सके " तभी अजय कहता है" इस शहर में ठंड बहुत पड़ती है आपको तो बहुत ठंड लगती होगी" यह सुनकर चौकीदार कहता है "बेटे की पढ़ाई पढ़ाई के लिए हर प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है" चौकीदार की बात सुनकर अजय को अपने पिता याद आते हैं और अपनी गलती का एहसास भी होने लगता है कि मेरे पिता कितनी ठंड में नौकरी करते होंगे जब जाकर मेरी पढ़ाई का खर्चा उठा रहे हैं और एक मैं हूं जो 9:00 बजे सो कर उठता हूं और सुबह अपने पिताजी को भी डांट देता हूं तभी चौकीदार कहता है "बेटा क्या सोचने लग गए" अजय हंस कर कहता है "जो मेरे सामने अंधेरी रात थी उजाले में बदल रही है आपकी नौकरी और आपकी बातें मुझे हमेशा याद रहेगी " धीरे-धीरे रात कट रही है अजय अपना टेस्ट देने जाता है टेस्ट देकर अपने शहर वापस लौट आता है 5:30 में उठ जाता है जैसे उसके पिता घर को खटखटाते हैं तुरंत बाहर निकाल कर आता है गेट को खोलता हैं अजय को गेट खोलने देखकर पिता कहते हैं "अरे बेटा तुम जाग रहे हो " अजय अपने पिता के पैर छूता और कहता है "पिताजी बहुत समय से मैं सो रहा था अब जाकर जागा हूं आप हाथ मुंह धो लो में आपके लिए चाय बना कर लाता हूं" अजय चाय बना कर लाता है बाप बेटे दोनों चाय पीते हैं चाय पीने के बाद अजय अपने कमरे में चला जाता है अपनी किताबें खुलता है पढ़ने में लग जाता है अपने बेटे अजय को पढ़ते देख बड़ा खुश होता है पिता भी अपने कमरे में चला जाता है 


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