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Arvina Ghalot

Abstract

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Arvina Ghalot

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फागुन

फागुन

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 नारायण ने गुरुजी से पूछा "और कितनी दूर है मंदिर ?" 

"नारायण अभी तो चार ही किलोमीटर चले हैं अभी दस किलोमीटर दूर है चलते रहो नहीं तो रात हो जायेगी।" नारायण कभी इतना पैदल चला नहीं था उसे थकान हो रही थी लेकिन गुरुजी तेज कदमों से चल रहे थे । 

"गुरु जी ....... ...वो .....वो सड़क के उस तरफ देखिए मलबे में वहाँ कुछ हिल डुल रहा है । अभी अभी डम्फर मलबा फैक कर गया है ।" नारायण की तो सांस ही अटक गई लेकिन गुरु जी ने अपने कदम उस और बढ़ा दिए पीछे-पीछे नारायण भी पहुंच गया मलबे में से एक हाथ बाहर दिख रहा था । गुरुजी ने नब्ज टटोली देखा कि नब्ज चल रही थी । 

"नारायण ये जिंदा है जल्दी-जल्दी मलबा हटाओ शायद बच जाय ।" नारायण तेजी से हाथों से मलबा हटाने लगा कुछ देर के प्रयास के बाद आदमी दिखाई देने लगा गुरु जी और नारायण ने मिलकर उठाकर बाहर लिटाया सर में चोट लगी थी रक्त बह रहा था । नारायण उधर दस कदम पर चौड़ी सड़क है कोई वाहन दिखे तो रोको इसे अस्पताल ले चलना होगा ।नारायण चल पड़ा आगे उसे सड़क पर कोई वाहन नजर नहीं आ रहा था । वापस मुडा ही था कि ट्रक की लाइट से आँखे चोधिया गई उसने हाथ उठाकर रुकने का इशारा किया । नारायण के पास आकर ट्रक रुक गया क्लिनर ने झांक कर देखा । 

"अरे नारायण भाईं यहां कैसे ? तुम और बाबा के वेश में यहाँ क्या कर रहे हो ।"

" कहानी लम्बी है फुर्सत से बताऊंगा फिलहाल में अपने गुरु जी के साथ शहर के मंदिर जा रहा था कि रास्ते में मलबे के ढेर से एक आदमी मिला है वह घायल हैं उसे अस्पताल ले चलना है । कैलाश मेरी मदद करो ।"

"अच्छा बताओ कहां है मरीज ? चलो मैं वहां ले चलता हूँ।"दोनों शीघ्र ही गुरुजी के पास पहुंच गए गुरुजी ने तब तक उस व्यक्ति के सिर पर एक कपड़ा बांध दिया था नारायण और क्लीनर ने मिलकर अजनबी आदमी को उठाया और ट्रक में पीछे जगह बना कर लिटा दिया ।नारायण और गुरुजी पीछे ट्रक में चढ़ कर बैठ गए । ट्रक चल पड़ा । गुरु जी ने क्लीनर को बोला कि "आगे मोड़ पर जो मंदिर पड़ता है वहां से पुजारी को साथ में लेने के लिए ट्रक रोक दे ।"  क्लीनर कैलाश ने हां में सिर हिलाया और ट्रक पर सवार हो गया।कुछ दूर चलने के बाद ट्रक रुका कैलाश ने आवाज लगाई गुरुजी मंदिर आ गया । गुरु जी जल्दी से उतर कर पुजारी के पास पहुंचे और सारी बात संक्षेप में बताई और अपने साथ ले आए , पुजारी जी के कई डॉ . पहचान के थे उन्होंने क्लीनर को नर्सिग होम का पता बताया और खुद कैलाश के साथ आगे ट्रक में सवार हो गए।

ट्रक ड्राइवर ने गाड़ी सीधा नर्सिग होम पर रोक दी । नारायण और कैलाश ने आदमी को उतारा तब तक पुजारी जी ने पर्चा बनवा लिया । "नारायण अब मैं चलूँ , तुम्हारी कहानी नहीं जान पाने का अफसोस रहेगा , लेकिन तुमने इस आदमी को अस्पताल लाने का कार्य किया बहुत अच्छा किया" गर्व से अपने दोस्त के गले मिला । हाथ हिलाता हुआ ट्रक पर सवार होकर चला गया।

नारायण अस्पताल में अन्दर पहुंचा तब तक पुजारी जी ने डॉ मनमोहन से बात कर अजनबी का इलाज शुरू कर दिया । जाँच में पता चला की सिर में चोट लगने से मेमोरी पर असर पड़ा है ।होश में आने पर ही स्थति स्पष्ट होगी । सिर पर टांके लगाकर पट्टी बांध दी । और वार्ड में शिफ्ट कर दिया । पुजारी डॉक्टर गुरु जी और नारायण आपस में बैठकर बातें करने लगे डॉक्टर ने कहा आखिर कौन लोग थे जो इस तरह इसे मलबा के साथ फैक गए । हमें पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा देनी चाहिए । नारायण और पुजारी ने थाने जाकर सब की सहमती से पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी । रात के बारह बज चुके थे नारायण , गुरु जी और पुजारी सब वार्ड में बैठे थे मरीज के होश में आने का इंतजार कर रहे थे । नारायण ने देखा मरीज कुछ हिला डुला डॉ मनमोहन ने उस का चेकअप किया अब वह धीरे-धीरे होश में आ रहा है ‌। होश में आने पर बता पायेगा ये कौन है ? डॉक्टर ने एक इंजेक्शन लगा दिया मरीज ने कुछ ही देर में आँखे खोल दी । गुरु जी ने भगवान का लाख-लाख धन्यवाद किया । मरीज ने कराहते हुए अपने आप को अजनबियों से घिरा देख आँखे फाड़ कर इधर उधर देखने लगा पूछा मैं कहां हूँ और आप लोग कौन हैं । डाक्टर ने उसे बताया कि वह अस्पताल में है । उसे कुछ याद नहीं आ रहा था कि वह अस्पताल कैसे पहुँच गया । 

"डाक्टर साहब मैं यहां कैसे आया ? मुझे कौन यहां लाया ?"

"तुम्हारे सामने खड़े गुरु जी मंदिर के पुजारी और उनके शिष्य नारायण यहां लेकर आए हैं ।" नारायण के चेहरे पर संतोष के भाव थे मरीज को होश में आया देखकर उसने उठकर खिड़की का पर्दा सरकाया देखा सुबह हो चुकी थी चारों और रंग बिखरे रहे थे लोग फाग गा रहे थे नाच रहे थे दूर से लाउडस्पीकर पर गाना बज रहा था रंग रंगिलो फागुन आयो री!


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