जन्मदिन का तोहफा
जन्मदिन का तोहफा


सुहासिनी जब डाक्टर बन कर दादा-दादी से मिलने गाँव जा रही थी। बस में बैठे बैठे सीट से सिर टिकाकर आंखें बंद करते ही यादों के पन्ने खुलने लगे माँ बताती थी वो हमारे जन्म के समय गाँव में आ गई थी यहाँ हमारे कट्टर विचारों वाले दादा जी जिन्हें आगे अपनी सम्पत्ती को संभालने के लिए पोता चाहिए था।
माँ को जब प्रसव पीड़ा शुरु हुई तो शहर से नर्स को बुला लिया गया था। पिताजी और दादाजी बेसब्री से शिशु के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे। कुछ ही देर बाद बच्चे के रोने की आवाज आई तो उनकी उत्सुकता और बढ़ गई नर्स ने कमरे से बाहर आकर बताया आपकी बहू ने स्वस्थ सुंदर लड़की को जन्म दिया है। दादा जी ने कोई जवाब नहीं दिया कुछ देर यूं ही बैठे रहे। पिताजी को मुझसे मिलने की बहुत बेचैनी हो रही थी लेकिन पिता की आज्ञा के बगैर वे हमें देख नहीं सकते थे। इस वजह से कमरे में बेचैनी से टहलने लगे। कुछ ही देर में दादी मुंह लटकाकर जच्चा के कमरे से बाहर निकली और दादाजी की बगल में जा कर बैठ गई। इतनी शांति की सुई भी गिरे तो आवाज आए हमने रो रो कर घर की शांति भंग कर दी।
हम्म ....ऐ जी ऐसे ही बैठ कर लड़की होने का मातम मनाते रहेंगे चलिए देख तो लीजिए।
दादाजी ने हमारे पिताजी को अपने पीछे आने के लिए कहा दादी भी उनके पीछे पीछे हो ली सभी जच्चा के कमरे में पहुंच गए।
दादाजी जी ने हमें रोते हुए देख कर पिताजी से कहा देख देख तेरी बेटी पंचम स्वर लगा रही है।
पिताजी की हँसी छूट गई।
माँ जो अब तक सहमी हुई थी उनके चेहरे पर पसीने के बूंदें छलकी पड़ रही थी। चेहरे पर मुस्कान आ गई।
दादाजी ने हमें अपनी गोद में ले लिया हमने भी रोना भूलकर उन्हें टुकुर-टुकुर ताकना चालू कर दिया। गम्भीर मुद्रा का लबादा ओढ़े दादाजी के चेहरे पर अनायास मुस्कान खिल उठी। हमें पिताजी की गोद में देते हुए खुशी जाहिर की और कहा ले अपनी लक्ष्मी को संभाल।
इसकी इतनी मनमोहक मुस्कान कि पत्थर दिल को भी पिघला दिया था।
दादा जी ने ऐलान किया आज से हम इसे सुहासिनी बुलायेंगे।
पिताजी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा उन्होंने हमें अपनी बांहों में ले लिया।
दादाजी ने किसी को भी मेरे पैदा होने का दुख नहीं मनाने दिया। माँ ओर पिता जी तो दादाजी के इस व्यवहार से मन ही मन बहुत खुश थे। दादी का जरूर कुछ दिन मुँह फुल कर कुप्पा रहा। लेकिन हमारी मन मोहिनी मुस्कान ने उनपर भी जादू कर दिया वो भी हमारी सेवा टहल में मगन हो गई। तीन महीने बाद कारोबार के चलते मां-बाप के साथ शहर आ गई। तीज त्यौहार पर दादाजी के पास आती रहती थी लेकिन जब से मेडिकल की पढ़ाई शुरु हुई इसकी की वजह से समय नहीं मिला मिलने का आज कई साल बाद पढ़ाई पूरी कर सोचा पहले दादाजी आशीर्वाद ले लूँ कल मेरा जन्मदिन भी है।
बस से उतर कर घर के अंदर पहुंच कर देखा दादाजी सामने ही बैठे थे। मुझे देखते उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा गले लगाया आशीर्वादों की झड़ी लगा दी दादी भी कहां पीछे रहने वाली थी खूब दुलार किया।
दादी जी ने सुहासिनी से कहा हम तुम्हारे लिए खाना बनाते हैं तुम नहा धोकर कर आ जाओ रसोईघर में वहीं ढेर सारी बात करेंगे।
सुहासिनी बैग से कपड़े निकाल कर स्नान घर में नहाने चली गई।
सुहासिनी के दादाजी रसोईघर की तरफ आए।
सुनंदा तुम सुहासिनी से कुछ मत कहना समझी तुम्हारे पेट में बात टिकती ही नहीं है इसलिए कह रहा हूँ।
खाना बनाते बनाते सुनंदा ने हाँ में सिर हिला दिया।
सुहासिनी नहा कर बाल सुखाने लगी तो दादी के हाथ के बने खाने की खशबू से भूख और बढ़ गई। सीधे भगवान के कक्ष में गई पूजा से निवृत्त होकर दादी के पास पहुंच गई। दादी ने थाली परोस कर पटला बिछा दिया बैठो बेटा। सुहासिनी ने मुस्कुराते हुए खाना शुरू किया दादी उसकी पढ़ाई मम्मी-पापा के बारे में पूछती रही खाना खत्म कर हाथ धोकर दादी पोती देर रात तक बातें करते देख दादाजी भी चक्कर लगाने आए अब सो जाओ दोनों दादी को हिदायत दे कर सोने चले गए।
सुबह सोकर उठी तो देखा उसके तकिए के पास ढेर सारे फूल रखे थे पीछे मुड़कर देखा तो दादाजी मुस्करा रहे थे।
बिटिया को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ।
सुहासिनी उठ कर दादाजी के चरणों में झुक गई अरे बिटिया हम पर पाप मत चढ़ाओ और झट से उठा कर गले से लगा लिया।
दादी की रसोई से पकवान की खुशबू आ रही थी सीधा रसोई में पहुंची तो सुहासिनी मेरी बच्ची जुग जुग जियो आओ चाय पी लो अभी आई दादी कह सुहासिनी फ्रेश होने चली गई।
सुहासिनी तैयार होकर बाहर आई दादाजी जी ने गरमा गरम चाय दी और खुद पूजा का थाल सजाने लगी।
सुहासिनी बिटिया अपनी दादी को साथ लेकर जल्दी आओ चले पहाड़ी वाली माता के दर्शन करने।
सभी लोग गाड़ी में बैठ कर चल दिए रास्ते में ड्राइवर काका ने सुहासिनी बिटिया को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी सुहासिनी तो आज बहुत प्रसन्न थी।
मंदिर की सीढ़ियों के पास गाड़ी खड़ी हुई तो सामने पापा की गाड़ी खड़ी देखकर चौक गई।
माँ और पापा गाड़ी से बाहर निकल आए। सुहासिनी एक दम नन्ही बच्ची की तरह उनकी तरफ भागी। माँ और पापा ने गले लगाया जन्मदिन की शुभकामनाएँ दी।
सुहासिनी ने दादाजी की तरफ देखा वे खड़े खड़े मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। माँ और पिता जी ने दादाजी और दादीजी के पैर छुए।
सभी लोग मंदिर की सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर गए और माँ के दर्शन किये।
वापसी पर अपनी-अपनी गाड़ियों से घर की और लौट रहे थे की ड्राइवर काका ने गाड़ी एक नई बनी बिल्डिंग के पास रोक दी उस पर लगा बोर्ड कपड़े से ढका था।
दादाजी ये हम कहां आ गए ?
अपनी दादी को सहारा दे कर उतारो सब बताते हैं।
सुहासिनी दादाजी को उतार ही रही थी तब पापा की गाड़ी भी पहुंच गई। मां और पापा भी दादाजी के पास आ गए। सुहासिनी दादीजी को सहारा देकर उतारा और जहां सब खड़े थे दादी जी को वहीं लेकर पहुंच गई।
दादाजी ने मुस्कुराते पुकारा सुहासिनी बिटिया जरा इधर आओ !
सुहासिनी दादाजी के पास पहुंची तो दादा जी की बगल में पंडित जी पूजा की तैयारी कर रहे थे।
सुहासिनी बेटा आओ तुम पूजा पर बैठो।
दादाजी किस चीज की पूजा है ?
सुहासिनी बेटा ये बिल्डिंग तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा है।
पूजा के उपरांत तुम्हें उद्घाटन करना है।
पंडित जी ने हवन करा कर पूजा संपन्न की। सभी लोग बिल्डिंग के गेट पर पहुंच गए पंडित जी ने सुहासिनी के हाथ से रिबिन कटवाया और नारियल फोड़ा। सुहासिनी ने जैसे ही बोर्ड पर लगे परदे की डोर खींची तो अवाक रह गई, बोर्ड पर लिखा था सुहासिनी अस्पताल। दादाजी आपने इतना खूबसूरत तोहफा मेरे जन्मदिन दिया। दादाजी आई एम ग्लेड। बड़ा वाला सरप्राइज दिया।
मुझे आप पर गर्व है। दादाजी ने मुस्करा कर अस्पताल की चाबियां मेरी हथेली में रख दी। सुहासिनी ने दादी जी की तरफ देखा और कहा इसका मतलब दादी जी आप .... भी दादाजी के साथ मिल गई। मुझे किसी ने कुछ नहीं बताया पापा मम्मी आप लोगों को सब पता था।