पछतावा
पछतावा
“इंगलिश पढ़ने आता है?” होने वाले ससुर जी कि कड़कती आवाज से काँप गई थी, ”साँवली सी, साधारण रूप रंग की, कांता।”
पापा का हकलाना और ससुर जी की बातों का गोल मोल जवाब देना। ये देख कर कांता को रोने का मन कर रहा था। ठीक है, ठीक है! उसकी ज़रूरत नहीं, ”जतिन ने परिस्थिति को सँभाल लिया था।”
विधी विधान, रस्मों और सात वचनों को पल्लू में बांध कांता जतिन की हो गई।
मुँह दिखाई के वक्त बुआ सास के कहे शब्द -हे !भगवान “हमार हीरे जैसे भतीजा को कोयला मिल गया! “पिघलते शीशे की तरह कानों को चीर गए थे शब्द। जतिन ने पहली बार आग बरसाया था और सभी चुप। जतिन का चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े रहना ठंडी फुहार की तरह मेरे अंतर्मन को भिगो दिया था।
वक्त के साथ ही साथ, बदलते मौसम की तरह मेरे जीवन में भी बदलाव आने लगे।
जतिन ने ना सिर्फ़ मुझे पढ़ाया, लिखाया बल्कि एक कामयाब डॉक्टर बना दिया।
बीमार बुआ सास, पंद्रह दिनों से मेरे घर पर आकर इलाज करवा रही थी। बढ़े हुए डायबिटीज़ के कारण उन्हें खीरा, ककड़ी खाने को देती तो कहती अरे! “सेब, अंगूर खाओ इतना कमाती हो!” तब उन्हें मैंने मौसमी फलों और सब्ज़ियों के गुण बताए। बुआ जी ने कहा-बताओ तो !”हमको तो ज़रा भी नहीं सोहाता है। हम समझते थे इ सब गरीबन सब का फल है।”
कांता ने, बुआ जी के इलाज में जी जान लगा दिया था। ठीक होकर वापस अपने घर जाते वक्त बुआ जी ने कहा -मेरी बहू को हीरा बना दिया मेरे भतीजे ने ...”बहू !तेरा यह उपकार मैं कैसे उतारूँगी?”
बुआ जी के गालों पर लुढ़कते आँसुओं के सैलाब को पोंछने के लिए जब कांता ने रूमाल बढ़ाया तो बुआ जी ने कहा “बेटा बहने दो यह शर्मिंदगी के आँसू है...।”