पार्ट 4-मालवन में 'वो'
पार्ट 4-मालवन में 'वो'
आपने पिछले पार्ट में पढ़ा कि मंजरी अपने जॉब से रिजाइन करने जाती है.. .और राहुल की बातों से प्रभावित होकर वही अपने केबिन में बैठ जाती है ..जहां तन्वी उसे प्रोजेक्ट के बारे में बताने लगती है ..तभी उसे खिड़की पर किसी के होने का एहसास होता है ...अब आगे..
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मंजरी ने आगे बढ़कर खिड़की खोल दी और पंजो के बल खड़े होकर वो बाहर की ओर झुककर देखने लगी..खिड़की से नीचे दायी तरफ देखा तो..लगभग पूरी सड़क जहां तक नजर जा सके खाली ही थी ..सड़क किनारे लगी रोड लैम्प पर दो कबूतर बैठे थे और जब उसने बायीं ओर देखा कुछ बच्चे आपस में बातें कर रहे थे..और पास ही रखे डस्टबिन में कुछ कुत्ते खाने की खोजबीन में धमाचौकड़ी मचाये हुए थे ...और जहाँ से झुक कर वो नीचे झांक रही थी..उसके पास में एक पाइप खिड़की से शुरू होकर नीचे सड़क तक जा रहा था..फिर सड़क में जैसे कहीं गुम हो गया था..लेकिन कोई भी खिड़की पर नहीं दिखा..वहाँ कोई खड़ा हो सके इतनी जगह भी नहीं थी.....वो बापस पलटी और जैसे ही नजर तन्वी पर पड़ी वो बापस अपनी सीट पर बैठ गयी ..
"मैम आप ठीक है ना" तन्वी ने जिस अंदाज में पूछा, मंजरी समंझ गयी कि तन्वी उसे कुछ असामान्य समंझ रही है,उसने
'हाँ' में सिर हिलाया फिर तन्वी उसे एक फाइल दिखाते हुए बोली
" डिजाइनर टीम ने रिसॉर्ट् के पर्दे, कुशन और स्टाफ की ड्रेस में एकरूपता रखने की कोशिश की है ..और मुझे ये सैम्पल डिजाइन पसंद भी आये....लेकिन राहुल सर कहते हैं कि ड्रेस कोड आप ही फाइनल करेंगी "
"तन्वी ..मैं बुलाती हूँ तुम्हें ...राहुल से बात करके" वो बोली
"आर यू श्योर " तन्वी ने पूछा, इसपर मंजरी ने "हांमी " में सिर हिलाया..और अगले पल तन्वी, मंजरी के केविन से बाहर निकल गयी...उसके बाद मंजरी, राहुल के केबिन में गयी..राहुल पेपर्स पर कुछ लिख रहा था..जब मंजरी को देखा तो अपनी दो उंगलियों से पेन को झूला सा झुलाने लगा,
"कैसा लगेगा जब कमरे में लगे पर्दे ओढ़कर होटेल का स्टाफ खाना सर्व करेगा ..क्या ये गेस्ट के लिए उलझन का सबब नहीं होगा"? मंजरी के बोलने के बाद राहुल कुछ पल के लिए स्तब्ध रहा फिर बोला
"पर्दे ओढ़कर ..? भला स्टाफ पर्दे क्यों ओढ़ेगा .."? राहुल हँसते हुए बोला
" राहुल..क्या है ये..पर्दे और ड्रेस कोड एक जैसा" वो अपनी गर्दन एक तरफ झुकाकर खड़ी हो गयी
"ओह्ह समझा.(समझते हुए) ..क्या बात कही है...वाह
..एकदम ठीक ..मैंने पहले ही कहा था..ये सब नही हो सकता मुझसे ( दोनो हथेलियाँ मंजरी को दिखाते हुए) ..मंजरी जो तुम्हें ठीक लगे तुम वो करो" राहुल प्रभावित होकर बोला तो मंजरी को हँसी आ गई
"ठीक है मुझे लगता है एक बार रिसॉर्ट देख लूँ तो बेहतर आइडिया लग जायेगा" मंजरी बोली
"हॉं क्यों नहीं ...मैं साथ चलूँ" बड़ा उत्साहित होकर राहुल अपनी सीट से उठते हुए बोला
"नहीं तुम काम करो मैं तन्वी के साथ चली जाऊँगी" वो मुस्कुरा कर बोली
"ठीक है " राहुल ने मुस्कुरा कर कहा..
***
मंजरी अपनी गाड़ी में और तन्वी एक दूसरे एम्प्लोयी के साथ रिसोर्ट देखने पहुँचे...शानदार रिसॉर्ट का वैभव देखते ही बनता था....70 कमरों का दो मंजिला रिसोर्ट देखकर मंजरी अभिभूत थी...ज्यादातर सफेद और नीले रंग का प्रयोग हुआ था ..रिसोर्ट में..डिजाइनर काम कर रहे थे साज़ सज्जा पर ...वहाँ से जल्द ही बापसी करते वक़्त मंजरी अपनी कार उसी जंगल के पास रोककर बोली
"तन्वी तुम लोग जाओ... मैं कुछ देर यहाँ अकेले रहना चाहती हूँ"
"यहाँ..."तन्वी ने आँखे फैलाते हुए पूछा..इस पर मंजरी ने हामी में सिर हिलाया और तन्वी मुँह सिकोड़ते हुए वहाँ से ऑफिस के उस एम्प्लोयी के साथ बापस चली गयी ..तब मंजरी ने कार की खिड़की से ही अपना चेहरा बाहर की ओर निकाला और चीख कर बोली
"देबू..क्या तुम यहीं हो..आवाज दो ...देबू"
शाम का झुरपुटा सा होने लगा था या ज्यादा पेड़ होने की वजह से अंधेरा महसूस होता था... तेज़ सर्द हवा चल रही थी..मंजरी ने घबराकर अपनी कार का शीशा बन्द कर लिया... और अगले ही पल उसे अपने कार के शीशे पर देबू दिख गया...मंजरी की आँखों मे खुशी तैर गयी वो कार का दरवाजा खोल कर जल्दी से बाहर आयी..
"तुमने बुलाया और हम चले आये " डेबू मुस्कुरा कर बोला
"हा हा हा ...तुम अब भी नही बदले..ये बताओ यहाँ कर क्या रहे थे...
"तुम्हारा इंतज़ार..." वो खिलखिला कर हंसा,
"ओहहो ..बताओ भी"
"यूँ ही घूमने निकला... तुम्हारा मिलना संयोग रहा"
मंजरी चलती हुई पेड़ो के झुरमुट तक पहुँची ..देवांश उसके साथ-साथ चलने लगा ..फिर एक ठीक सी जगह देख मंजरी ने मुँह से फूंक मार कर अतिरिक्त धूल साफ की
और फिर बैठते हुए बोली
" देबू मुझे मदद चाहिए तुम्हारी...करोगे"?
"बोल कर देखो तो..अच्छा पहले वहाँ देखो .(वो भी उसके पास बैठते हुए बोला, एक मंदिर की ओर इशारा किया उसने ..थोड़ी दूरी पर एक मंदिर बना हुआ था जिसकी चोटी पर लगा एक छोटा सा झंडा हवा में फड़फड़ा रहा था.
उसके चेहरे पर मुस्कान आ गयी..उसने मुस्कुरा कर "हम्म" कहा और कहीं खो सी गयी
**...बारहवीं क्लास के फेयरवेल पार्टी के खत्म होते होते देर शाम हो गयी थी वो दोनो इसी जगह पर आ गए थे..और देवांश जिसे वो देबू पुकारती थी...उससे मंजरी ने मंदिर की ओर इशारा करके पूछा था
"देबू..वो देखो, कितना सुंदर लग रहा है ना मंदिर.."?
उस दिन भी बारिश के बाद मौसम बहुत खुसगवांर हो गया था..बहुत प्यारी हवा चल रही थी..उसके बाल उड़ रहे थे..और देवांश उसे बड़ी हसरत से देख रहा था,
"मंजरी..पसंद करती हो ना तुम मुझे"उसने पूछा..अंधेरे में भी मंजरी को देवांश की नजरें खुद को छूती सी लगी..एक गुदगुदी सी हुई थी उसे और वो शर्मा गयी..फिर झेंप छुपाने को बोली "बताओ ना..देबू ..मंदिर सुंदर लग रहा है ना"
"जो पूछा है उसका जवाब दो ना मंजरी ..पसंद करती हो ना मुझे " उसने फिर अपनी बात दोहराई
"मुझे देर हो रही है...घर जाना चाहिए" वो मुड़ कर जाने लगी थी
"बोलो ना मंजरी" देवांश ने उसका हाथ पकड़ लिया था इस बार..".. मन में रखने से क्या फायदा"
देबू की छुअन से एक खुशी की फुरफुरी सी उसके हाथ मे से होते हुए उसके चेहरे तक पहुंची ..सांसों में बढ़ी गर्मी को संभालना मुश्किल हो गया था..उसने हाथ छुड़ाने की कोशिश की..लेकिन देबू ने नहीं छोड़ा ..वो कसमसा कर रह गयी..
"पहले जवाब दो मंजरी" देबू फिर बोला ...बदले में उसने "हामी में सिर हिलाया और घर की ओर दौड़ गयी थी
"अर..मंजरी... रुको..मैं तुम्हें छोड़ने चल रहा हूँ" कहता हुआ देवांश उसके पीछे पीछे दौड़ा....लेकिन मंजरी आगे दौड़ने लगी और देवांश उसके पीछे वो 'रुको मंजरी...रुको तो " बोलता जा रहा था ..लेकिन मंजरी अपने घर जाकर ही रुकी .. देवांश ने जब उसे घर मे जाते देखा तो ..उसकी ओर देखकर मुस्कुराया और बापस हो लिया था ..
...
"मंजरी ..मंजरी कहाँ खो गयी " देवांश की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई
"नहीं ..कुछ नहीं..बस्स यूं ही" वो मुस्कुराती हुई अतीत से बाहर आ गयी
देवांश को भी वही मंजर याद हो आया और उसके चेहरे पर भी मुस्कान ठहर गयी,
"कितने खूबसूरत दिन थे ना मंजरी "
" देबू...मैं अर्जुन से बहुत प्यार करती हूँ..और .वो नाराज होकर दूर हो गया है मुझसे ...क्या ..क्या तुम उसे मेरी जिंदगी में बापस ला सकते हो "..बिना एक भी पल गवाएं मंजरी ने अपनी बात कह दी..
देवांश के चेहरे पर मुस्कुराहट में फैले होंठ सिकुड़कर छोटे होते गये...उसने अपने दांतों को आपस मे भींच लिया ..और मुंह फेरकर दुसरीं ओर शून्य में देखने लगा... फिर एक उड़ते हुए जुगनू पर और देवांश की नजरें टिक गयीं...जुगनू अपनी धुन में कभी दाएं मुड़ता तो कभी बाएं ..फिर एकाएक बिल्कुल उसके पास तक आ जाता..जैसे अपने आजाद जीवन का आनन्द उत्सव मना रहा हो...ना जाने क्यों देवांश को वो उसका मजाक उड़ाता सा दिखा...उसके माथे पर बल पड़ गए..वो उस जुगनू को पकड़ने के लिए अपनी जगह से उठा....कि तभी
"देबू..बोलो ना ....ला सकते हो ना उसे ..मैं अर्जुन के बिना नहीं जी सकती" मंजरी ने देबू को खुद की बातों में रुचि ना लेते देख फिर से पूछा
"हम्म..लाऊँगा ..ये तो बताओ रूठा क्यों है अर्जुन तुमसे"
वो उस जुगनू को छोड़ मंजरी के पास आकर धीरे से बोला
(एक गहरी साँस लेकर) "वो नहीं चाहता मैं राहुल के साथ काम करुँ"
"और इसकी वजह"? (फिर से मंजरी के पास बैठते हुए)
"उसे लगता है कि राहुल मन ही मन मुझे पसंद करता है"
"हम्म..और तुम्हें "?
"यार क्या फर्क पड़ता है..उसने कुछ कहा तो नहीं ना आजतक.. इसीलिए मैंने उसे स्पेशली बताया कि अर्जुन मेरी जिंदगी में है..ताकि कुछ हो भी उसके मन मे तो, सब क्लीयर रहे.."
-(सिर हिलाते हुए ) हम्म"
"मैं तीन सालों से पागलों की तरह काम कर रही हूँ..राहुल के साथ..मेरा काम दिखा उसे, तभी उसने ये प्रोजेक्ट मुझे दिया है...
(देवांश बस्स सिर हिलाता है ...और उंगलियों से पास की घास तोड़ने लगता है)
"सिर्फ इसीलिए कि उसके मन मे मेरे लिए सॉफ्ट फीलिंग हैँ... मैं इतना अच्छा मौका छोड़ दूँ?.राहुल मेरे और अर्जुन के बारे में सब जानता है ..फिर भी रहती हैं मन मे फीलिंग तो रहें ...मेरी बला से...क्या दोष है मेरा बोलो देबू ? ...
-"समझाया नहीं तुमने उसे"? वो जुगनू उसकी बांह पर आकर बैठ गया था ...इस बार देवांश ने उसे देखा लेकिन हटाया नहीं.
"समझाऊँ तो तब ना जब वो सुने..सीधे ब्रेकअप कर दिया"
"तब तुम क्यों दुखी हो..जाने दो ना उसे '
"मतलब ? तुम पागल हो क्या..? कैसे जाने दूँ..प्यार करती हूँ उससे मैं.. देबू"
-" लेकिन वो तो समझता तक नहीं ...प्यार क्या खाक करेगा"
"तुम जानते ही कितना हो उसके बारें में..आं ? वो नाराज है बस्स ....अर्जुन ना मिला मुझे तो मर जाऊँगी मैं "
(आँखे बंद कर ली उसने और आँसू उसकी आँखों के किनारे भिगो गये )
(उसे रोता देख... घबराकर) अच्छा मैंने तो ऐसे ही कहा था तुम ये मरने वरने की बातें दुबारा मत करना मंजरी ..और बन्द करो रोना ...अर्जुन चाहिये ना तुम्हें बापस, मैं लाऊँगा उसे"?
"सच देबू..(खुश होकर) मैं कभी भी तुम्हारा एहसान नहीं भूलूंगी देबू."
-"अर्जुन भागकर आएगा तुम्हारे पास मंजरी..ये वादा रहा मेरा (फिर उठते हुए) तुम्हें भी अब जाना चाहिए बहुत रात हो गयी है..."
कपड़े झाड़ती हुई मंजरी उठी और दोंनो कार की ओर चल दिये ..कदम से कदम मिलाते ..झींगुरों की आवाज और जुगनुओं की छटा साथ ही अर्जुन की बापसी का वादा,खुश होकर मंजरी अंधेरे में ही कभी उसकी ओर देखती तो कभी उस माहौल को... और कार का दरवाजा खोल वो उसमें बैठी तो अर्जुन ने उसका दरवाजा बंद करते हुए कहा
"बेफिक्र जाओ मंजरी..जल्द ही अर्जुन तुम्हारे पास होगा"
"मैं इस वक़्त कुछ और सोच रही थी"
"क्या?"
"यही कि रात में डर लगता था मुझे ..और जब से वो गुंडे मिले मुझे और डरना चाहिए था..लेकिन तुम साथ होते हो ना देबू..बिल्कुल डर नहीं लगता" वो मुस्कुरा कर बोली और अँधेरे में ही उसके चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करने लगी
(मुस्कुराते हुए) डरने की जरूरत भी नहीं है मंजरी
..पहले भी कहा था..जब भी वो गुंडे दिखे बस्स ये कार उन पर चढ़ा देना...हा हा हा"
"हा हा हा..और जेल कौन जाएगा" ?
"मंजरी वो गुंडे जेल में ही है "
"सच"
"हां भाई एकदम सच"
"कब मिलोगे अब देबू"?
"जब तुम चाहो..बस्स यहीं रहता हूँ ज्यादातर ...फिर भी जब भी और जहाँ भी तुम याद करोगी..मैं आ जाऊँगा"
"(आश्चर्य से..जंगल की ओर हाथ फैलाते हुए) यहाँ?
"हम्म"
"तुम करते क्या हो देबू "?
(खोई हुई आवाज में)"इंतज़ार"
"किसका "?
"कुछ बातें अगली दफा के लिए भी रखो मंजरी"
"(हँसते हुए) ठीक है..(फिर कुछ सोचते हुए) तुम अर्जुन को पहचानोगे कैसे..?
-"तुम चिंता मत करो मैं पहचान लूँगा
(फिर जैसे खुद ही जवाव मिल गया हो ..जल्दी से अपना मोबाइल खोलकर उसमे से अर्जुन की फ़ोटो उसे दिखाते हुए..) ये देखो ये है अर्जुन..."
कहते हुए उसने मोबाइल देवांश की ओर कर दिया मोबाइल की फ्लैश लाइट जब देवांश के चेहरे पर पड़ी तो 'आह ' की एक तेज़ चीख निकली मंजरी के मुँह से..और मोबाइल नीचे गिर गया..देवांश की आंखे जो इतनी अंदर धँसी थी कि दिख ही नहीं रही थी मैले- कुचैले ढीले ढाले कपड़ो में था देबू..उसके बाल भी ऐसे बिखरे थे..जैसे महीनों से उन पर कंघी ना की गई हो..वो मुंह पर हाथ रखे बैठी थी.अपनी की गई इस प्रतिक्रिया पर शर्मिंदगी महसूस करती हुई..कुछ बोलते नहीं बन रहा था...देवांश ने उसका मोबाइल उठा कर उसे पकड़ाया और बोला
"दिन रात जंगलों में रहता हूँ ना इसलिए कुछ -कुछ जंगलियों जैसा दिखने लगा हूँ..(हँसते हुए) माफ करना मेरे कारण तुम्हें तकलीफ हुई"
-(ना में सिर हिलाते हुए) ऐसा कुछ नहीं.. तो ..चलूँ"?
देवांश ने अपने हाथ से उसकी कार की छत पर हल्की सी एक थपकी मारी और जंगल की ओर मुड़ गया ..मंजरी उसे देखती रही ..जब वो अंधेरे में गुम हो गया तो मंजरी ने अपनी कार स्टार्ट की और खुद से बोली " अर्जुन जल्दी आ जाओ ..तुम्हारी जुदाई ने पागल करना शुरू कर दिया है मुझे "
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*हेवेनली होम्स रियल स्टेट*
गोवा की खूबसूरत लोकेशन में बने शानदार ऑफ़िस, जिसमें कम से कम 900 से 1000 का सिटिंग अरेंजमेंट होगा ...वहीँ बने एक सबसे बड़े केविन में अर्जुन दोनों हाथों से अपना सिर पकड़े बैठा था और अपनी मेज़ घूर रहा था...
"सर..हमारा "गोल्डन मनी बैक प्लान" भी पूरी तरह से फ्लॉप हो गया है..कस्टमर्स की एक लंबी फेहरिस्त ने हम पर केस कर दिया है.." लगभग चालीस साल के चितरंजन प्रसाद ने केविन में आते ही बोलना शुरू कर दिया..जिसे सुनकर अर्जुन ने सिर उठाया और खुद के बाल खींचते हुए मुँह से एक गहरी सांस छोड़ दी..फिर अपने बायें हाथ के अगूंठे और उसके पास वाली उँगली से आँखो के किनारे दवाते हुए बोला
"हम्म.. ..एक के बाद एक प्लान बुरी तरह से फेल हो रहे हैं..क्या करूँ कुछ समंझ नहीं आ रहा.. प्रसाद यार.. अच्छा सोच कर ग्राहकों से पैसा उठाया था..वादा किया था दुगुना पैसा बापसी का ..लेकिन मार्केट में इतना घाटा लगेगा ..मैंने सपने में भी नहीं सोचा था..कुछ भी समंझ नहीं आ रहा"
हताश अर्जुन को देखकर चितरंजन प्रसाद को दुख तो बहुत हुआ लेकिन उसने आँख बंद कर पलभर में तैयार किया खुद को और बोला
"चिंता मत कीजिये अर्जुन सर, रावत के अनुसार गोल्डन होम्स में अच्छी बुकिंग होने के आसार हैं..लोग फ्लैट खरीद रहे हैं...वहाँ का पैसा हम इस प्रोजेक्ट से जुड़े ग्राहकों को दे सकते हैं..ना सही व्याज मूल रकम ही चुकता की जा सकती है"
प्रसाद ने अर्जुन को सांत्वना देने की कोशिश की, तभी रावत बदहवास सा केविन में आया और बोला...
"सबसे पहले तो इस समस्या का अंत कीजिये..जो ऑफिस के बाहर है"
"अब कौन सी समस्या आन पड़ी..." अर्जुन ने हैरत से घबराकर पूछा
"सर, एक पेरेंट्स हैं अपनी जवान बेटी की लाश लिए ऑफिस के बाहर बैठे हैं ..."
ये सुनकर अर्जुन बस्स हैरत से रावत को घूरता रहा, रावत ने कहना जारी रखा
.."वो कहते हैं घर में रखी एक एक पाई ये सोच कर जमा कर दी थी ..कि जब अच्छी रकम मिलेगी वो धूमधाम से बेटी की शादी करेंगे...और जैसे ही इस प्लान का डूबना सुना..उनकी बेटी सदमें से चल बसी ..उनके पास अपनी बेटी के दाह संस्कार के लिए भी पैसे नहीं हैं"....
अर्जुन ने कुर्सी पर अपना सिर पीछे की ओर टिका दिया..और कुछ पल छत को घूरता रहा..इस बीच रावत और प्रसाद एकदूसरे को देखते रहे फिर जैसे एकदूसरे से आँखो ही आँखो में ये कहा हो कि "हमें अर्जुन की मदद करनी चाहिए"
"सर, एकाउंट में देखे क्या. कि कितना पैसा है" प्रसाद ने धीरे से कहा ...तो अर्जुन थोड़ा संयत हुआ और बोला
"हम्म ..देखो कितना है, ले आओ जल्दी..और रावत उन्हें बाहर जाकर तसल्ली दो..देखो मीडिया का ड्रामा नहीं होना चाहिए " ये कहते ही अर्जुन लैपटॉप पर अपना बैंक बैलेंस चैक करने लगा..रावत और प्रसाद बाहर निकल गए..कि अर्जुन ने अपने कानों में चूड़ियों की खन- खन की आवाज सुनी ..तो चौंक कर अपने लैपटॉप से नजर हटाई, सामने मंजरी खड़ी थी...
"मंजरी ...तु ...म" ? अर्जुन हैरत से बोला
मंजरी ने एक बैग उसकी मेज पर रखा और बोली
"इसमें दस लाख रुपये हैं..उन्हें दे दो.. वो अपनी बेटी की मौत से पहले ही बहुत दुखी हैं, उन्हें और इंतजार मत करवाओ अर्जुन"
इतना कहकर वो मुड़ी और केविन से बाहर निकल गयी ..अर्जुन तेज़ी से उठा और उसके पीछे पीछें चल पड़ा ....मंजरी उस के केबिन से निकल बाहर आयी और लम्बी लॉबी को पार करती हुई वहाँ पहुँची जहाँ लड़की की लाश रखे उसके माता-पिता बैठे थे..मंजरी उस लड़की की लाश के पास गई और उसके ऊपर लेट गयी...ये देख अर्जुन हैरत में पड़ गया और "मंजरी...मंजरी " कहते हुए दौड़ा और उस लाश के पास पहुंचकर उसे हिलाते हुए "मंजरी...मंजरी" चीखने लगा ...सब हतप्रत से एक दूसरे की ओर देखने लगे.....
....................क्रमशः..........