sonal johari

Horror Romance Fantasy

4.3  

sonal johari

Horror Romance Fantasy

पार्ट -13 --क्या अनामिका वापस आएगी ??

पार्ट -13 --क्या अनामिका वापस आएगी ??

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आपने पिछले पार्ट में पढ़ा कि अंकित ऑफिस जा रहा था और एक पत्थर से जा टकराया और गिर पड़ा... उठने की कोशिश भी की लेकिन नहीं उठ पाया,कि तभी किसी ने सहारा देने के लिए हाथ बढ़ाया ...अब आगे ...

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

नजर उठाकर देखा तो रुचिका मुस्कुराती हुई सामने खड़ी थी..

"आप .."

"जी हां मैं... लाइये हाथ दीजिये...दीजिये"

अंकित ने उसकी ओर अपना हाथ बढ़ा दिया और रुचिका ने अपनी ताकत लगाते हुए अंकित को उठने में मदद की..और पूछा

"आप ठीक तो हैं"?

"अहह... हाँ ..ठीक हूँ "अंकित ने अपने कपड़े झाड़ते हुए कहा

"मुझे तो नहीं लगता...आपके घुटने से खून बह रहा है..देखिये"

रुचिका ने अंकित के घुटने की ओर इशारा करते हुए कहा

"अररे हाँ... लेकिन बहुत नहीं है.. कोई चिंता की बात नहीं "उसने अपने घुटने पर हाथ रखते हुए कहा

"मुझे लगता है आपको डिस्पेंसरी चलना चाहिये.. चलिये गाड़ी में बैठिए" रुचिका ने आगे बढ़कर अपनी कार का दरवाजा खोल दिया और अंकित को बैठने का इशारा किया

"आप ऑफिस जाइये..मेरी वजह से आप भी लेट हो जाएंगी"

"आप मेरी जगह होते तो तो मुझे ऐसे हाल में छोड़ कर चले जाते"? वो ड्राइविंग सीट पर बैठ गयी 

अंकित ने मन मे कहा ..हरगिज नहीं ..इंसानियत भी कोई चीज है 

"मुझे लगता है आपको ...आपका जवाब मिल गया होगा, बैठिये जल्दी से

और अंकित बगल वाली सीट पर बैठ गया..जैसे ही उसने सीट बेल्ट बांधी रुचिका ने गाड़ी डिस्पेंसरी की ओर मोड़ दी...डिस्पेंसरी पहुंचे अंकित को डॉ ने एक इंजेक्शन लगाया और चोट पर मरहमपट्टी कर दी। 

"आप ना होती तो जाने कब तक वही पड़ा रहता मैं" अंकित ने रुचिका को बोला

"ऐसा भी कुछ नहीं कर दिया मैंने... खैर ये बताइये घर जाएंगे या ऑफिस ? रुचिका हँसते हुए बोली


"घर का तो कोई मतलब नहीं.. ऑफिस ही चलते हैं" अंकित ने उठते हुए कहा और कार की तरफ मुड़ गया..पीछे पीछे रुचिका भी मुड़ गयी और बोली

"मैं आपसे रिक्वेस्ट करूँगी कि आप आज आराम करें... आराम करेंगे तो जल्दी ठीक हो जाएंगे "


"रुचिका जी, मेरा ऑफिस जाना बहुत जरूरी है ...कल कुछ इम्पोर्टेन्ट मीटिंग्स हैं.. जिनकी तैयारी करनी है"


"इसीलिए तो कह रही हूँ, आज आराम कीजिये ताकि कल आराम से मीटिंग कर लें... बाकी आपकी मर्जी " रुचिका ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा और अंकित को बैठ जाने का इशारा किया..अंकित को रुचिका की बात ठीक लगी, क्यों ना आज का दिन अनामिका के साथ बिताया जाए ..हम्म ये ठीक रहेगा... आज ऑफिस में कोई ऐसा काम भी नहीं जो उसके ना जाने से रह जाये ...

"मुझे लगता है आप ठीक कह रही हैं...प्लीज़ राव सर को बता देना आप कि...

"आप फिक्र मत कीजिये मैं उन्हें जरूर बता दूंगी...आप बैठिये मैं आपको घर तक छोड़ देती हूँ"

"नहीं ...उसकी जरूरत नहीं, एक दोस्त रहता है यहीं उसी को बुला लूंगा, आप जाइये" उसने रुचिका को भेजने के लिए झूठ बोल दिया

"अच्छा ...ठीक है " बोलकर उसने गाड़ी बढ़ा ही पायी थी कि अंकित ने उसे हाथ का इशारा दे रोक दिया...

"रुचिका जी...माफी चाहूंगा...मैंने कभी आपसे ठीक से बात तक नहीं की... वो असल में राखी की जगह किसी को देखना अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन उसमें किसी का क्या दोष ?...कभी कभी होता है ना, सब पता होता है फिर भी हम बच्चों सी हरकतें करने लगते हैं "


"आप काफी इमोशनल हैं (मुस्कुराते हुए) मैं आपकी जगह होती तो शायद ...कभी बात ही ना कर पाती, सब आपकी तरह अच्छे नहीं होते ना...अपना ख्याल रखिये. " और स्टार्ट गाड़ी में एक्सीलेटर बढ़ा, कार को सड़क पर दौड़ा दिया...अंकित कुछ सेकंड सड़क तक दौड़ती, रुचिका की गाड़ी को देखता रहा और फिर अनामिका के घर की ओर मुड़ गया...


आज बाहर ही खड़ी थी उसे देखते ही मुस्कुराती हुई सामने आकर खड़ी हो गयी बोली..

"तुम इस वक़्त "?

अंकित ने खुशी से उसकी चमकती हुई आंखें देखी तो बड़ा खुश हो गया 

"हम्म, तुमसे मिलने का बहुत मन था"

"अच्छा...सच "?

"हम्म... चलो कहीं बाहर चलते हैं "उसने अनामिका का हाथ पकड़ते हुए कहा

"बाहर?"

"हाँ बाहर ...किसी खूबसूरत जगह ...चलो ना"

"खूबसूरत जगह ...कैसी "

"खूबसूरत ...उम्म ...जहाँ प्यारी हवा हो...दूर दूर तक कोई ना हो, तुम हो और मैं ...बस्स

..और वहाँ से ये खूबसूरत पहाड़ियां और खूबसूरत दिखे ..."


"अच्छा"

"हाँ ...घंटों वही बैठेंगे हम...फिर शाम को खाना और वापस ...या फिर ...वापस जाना भी क्यों ...हम्म"

उसने शरारत से मुस्कुराते हुए कहा 

"जहाँ मैं ले चलूँ, वहां चलोगे?"

"तुम तो कहीं भी ले चलो ..मना कर दूँ तो कहना...इस दुनिया तो क्या ..इस दुनिया के पार भी तुम्हारे साथ चलूँगा"

"अच्छा?"

"हाँ"

"फिलहाल तो इसी दुनिया में आओ" और अनामिका, अंकित का हाथ पकड़कर उसे बंगले के पीछे ले जाने लगी ...जैसे ही बंगले के पीछे गए दोनों...अंकित खुशी से अपनी एड़ी पर घूम गया..खुशबूदार हल्की ठंडी हवा...नीले पहाड़ मानो किसी ने अभी अभी रंग भरा हो ...एक छोटा और खूबसूरत तालाब और उसमें तैरती एक प्यारी सी बत्तख...अंकित खुशी से झूमता हुआ बोला "इतनी खूबसूरत जगह यहां होगी ..मैंने सोचा भी ना था "

अनामिका वहीं खड़ी होकर अंकित को ऐसे खुश होते देख रही थी और हँस रही थी

"अनामिका ये जगह तो कमाल है " वो दोनों हाथ हवा में फैलाये आसमान की ओर देख रहा था

"यहां आओ ना ...मेरे पास बैठो "अनामिका बोली तो अंकित भागता हुआ उसके पास आकर बैठ गया ...


"सच कहूँ... बड़ी बेसब्री से तुम्हारे पेरेंट्स का इंतजार कर रहा हूँ...वो जल्दी से आये और मैं उनसे हमारी शादी की बात करूं" अंकित अपना सिर अनामिका की गोद में रखते हुए बोला

"शादी इतनी जल्दी क्यों... ये वक़्त लौट कर नहीं

आएगा ...इसका अपना मज़ा है...नहीं है क्या ?"


"हम्म ..तुम भी ठीक कहती हो... तुम्हें खुश रख पाऊँ .. और तुम्हारे पेरेंट्स भी खुश हों मुझसे मिलकर...इसलिए तरक्की करना भी जरूरी है"


अनामिका ने इस पर कोई जवाब नहीं दिया..तो अंकित उसे अपनी चोट दिखाते हुए बोला 

"देखो कितनी चोट लगी आज मुझे" अनामिका ने उसके घुटने को देखने के लिए हाथ बढ़ाया ..अभी दूर ही था उसका हाथ कि अंकित के मुंह से निकला "अहह ...बहुत दर्द है" 

अनामिका ने उसके कंधे पर हाथ मारते हुए कहा 

"बड़े ड्रामेबाज हो तुम...चलो खाना खाते हैं"

"तुम में बहुत खूबियां हैं ...तुम खाना भी बहुत अच्छा बनाती हो" अंकित ने तारीफ की तो अनामिका मुस्कुरा भर दी..

बातें करते करते शाम हो गयी ..अंकित ने अनामिका की चिंता करते हुए रुकना चाहा... तो अनामिका ने उसे मना कर दिया और वो अपने घर की ओर चल दिया.........

अभी बस्स सड़क पर आ ही पाया था कि थोड़ी दूर से ही उसे रुचिका की गाड़ी दिखी ...रुचिका ने उसे देखा तो गाड़ी उसी ओर मोड़ दी ...साथ में नीरू भी थी ...जो उसे देख गाड़ी से नीचे उतर, उसके पास आ गयी थी और बोली

"रुचिका ने बताया आपको चोट लगी है ...कैसे हो अब ? "

"बस्स जरा सी चोट लगी है...ठीक हूँ.. आप लोग तो बेकार में परेशान हैं मेरे लिए"

"आप यहाँ? वो भी.इस रोड पर ...क्या कर रहे हैं" 

रुचिका ने गाड़ी में बैठे बैठे ही पूछा

"क्यों इस रोड पर क्या प्रॉब्लम है "अंकित ने पूछा

"अरे ...आपको नहीं पता "

"क्या..."?

"इस रोड के अंदर ...@@@ एक बड़ी तेज़ पी पी की आवाज ने मानो कान और सिर भींद दिया ...वो फिर भी बोल रही थी अपनी आवाज को तेज करके ..लेकिन अंकित को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था...उसने अपने दोनों हाथ कान पर रखे और डमरू की तरह उन्हें रुचिका के सामने ये जताते हुए हिला दिया कि उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा...पी पी की आवाज और नजदीक आ गयी थी... तीनों ने एक साथ अपने कानों पर हाथ रखकर रोड की तरफ देखा तो इससे पहले कोई कुछ समझ पाता..उस ट्रक ने पूरी स्पीड से रुचिका की कार में टक्कर दे मारी ...एक जोरदार ` धड़ाक` की आवाज के साथ रुचिका की गाड़ी हवा में उछल गयी और हवा में ही पलटते हुए दूर सड़क पर जा गिरी..

.

"रु.......चि.......का " चीखती हुई नीरू रुचिका की कार की ओर भागी ...और अंकित उस ट्रक की ओर ..कि नीरू ने अंकित को बुलाने के लिए जोर से चीखते हुए उसे बुलाया


"अंकि...त ...जल्दी ...जल्दी " और अंकित रुचिका की कार की तरफ पूरी ताकत से दौड़ गया............क्रमशः.................



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