Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

न्यूज़ रिपोर्टर …

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आप, अपना त्यागपत्र वापिस लेने के लिए कितनी सेलरी हाईक चाहती हैं? वैसे तो पहले ही छह साल में आप, पैंतीस लाख पर आ चुकी हैं। 

सीईओ को इस पर मैंने उत्तर दिया - 

सर, मेरा यह त्यागपत्र (रेज़िग्नेशन ), तनख्वाह बढ़ाये जाने को लेकर नहीं है। 

सीईओ ने कहा - 

आप हमारी अति प्रतिभाशाली (टैलेंटेड) न्यूज़ रिपोर्टर हैं। आपने, हमारे साथ काम करते हुए हमारी चैनल के साथ ही, अपनी लोकप्रियता भी बहुत बढ़ाई है। ऐसे में हम, आपको, अपने से यूँ रिश्ता तोड़ता देखना नहीं चाहते हैं। आपने, अपना इस्तीफ़ा रखने के पहले ही इस विषय पर, मुझसे सीधे संवाद किया होता तो मैं प्रशंसा (अप्रिशियेट) करता। खैर छोड़ो, अब आप सीधे बता दो कि आखिर मुद्दा क्या है? 

मैंने, उन्हें बताया- 

सर, आपने मुझे अभी हाल ही में #हाथरस एवं फिर # निकिता के हादसों पर फील्ड रिपोर्टिंग का अवसर दिया। मुझे ख़ुशी है कि इन दोनों में ही हमारी न्यूज़ चैनेल ने प्रशासन पर इन पीड़ित मृतकाओं को न्याय दिलाने के लिए अच्छा दबाव बनाया था। (मैं चुप हुई)

सीईओ ने तब कहा - 

हाँ, आपने दोनों ही प्रकरण में अत्यंत सराहनीय रूप से खोज खबर ली एवं रिपोर्टिंग की, हमें भी इसे लेकर अत्यंत प्रसन्नता है।  

मैंने कहा - मेरी चैनल से शिकायत यह है कि अब दो माह हुए हम, उस पर कोई समाचार (अपडेट) नहीं दिखा रहे हैं। 

सीईओ ने उत्तर दिया - 

हमारी व्यावसायिक अपेक्षा से इस समय, दोनों ही प्रकरणों का महत्व अधिक रह नहीं गया है। अब #किसान #आंदोलन को लेकर, हमारे दर्शक ज्यादा उत्सुक हैं। हमें वह प्रसारण करना होता है जिसमें दर्शक को ज्यादा रस आ रहा हो साथ ही जिनसे हमारे हित भी सधते हैं। 

मैंने कहा - 

सर, यही बात मेरे त्यागपत्र में कारण है। हमारी तरह की समाचार एजेंसी का, एकमात्र प्रयोजन सिर्फ व्यावसायिक नहीं होना चाहिए। हमें समाज हित से भी सरोकार होना चाहिए। 

प्रमुख रूप से हमारा दायित्व, प्रकरणों के माध्यम से ऐसी प्रेरणा का प्रसारण होना चाहिए। जिससे कि ऐसे दुखद या/और घिनौने हादसे, समाज में कम किये जा सकें।  

सीईओ ने पूछा - 

सामाजिक सरोकार, हम एक सीमा तक ही निभा सकते हैं। हम कोई धर्म खाता नहीं चलाते हैं। हमें, आप जैसे रिपोर्टर/एंकर को हाई सेलरी और साथ ही फील्ड वर्क के लिए फाईव स्टार होटल स्टे एवं एयर टिकट की सुविधा भी देनी होती है। आप क्या, यह सब नहीं देख पा रही हैं? 

मैंने उत्तर दिया - 

सर, मैं चैनल मालिक नहीं हूँ। चीजों को अतएव मैं, इस दृष्टि से नहीं देखती हूँ। मैं, भारत की नागरिक हूँ। मैं, ऐसा मानती हूँ कि हमारे तरह के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने दर्शकों के सामने से परंपरागत सांस्कृतिक मंच समाप्त कर दिये हैं। 

दर्शक अब अपनी सभी अन्य गतिविधियों को छोड़ कर टीवी/मोबाइल पर हमारे दर्शक बने रहते हैं। ऐसे में मेरे विचार से हमें, वह सामाजिक सरोकार जो सांस्कृतिक मंच के होते थे, भी ग्रहण करने चाहिए। 

अर्थात हमारे माध्यम से लोगों को उनके कर्तव्य दायित्व के प्रति जागृति भी मिलनी चाहिए। हमारा कोई भी प्रसारण, किसी समाचार को सनसनीखेज दिखा कर सिर्फ टीआरपी पर ही फोकस नहीं कर दिया जाना चाहिए। 

मेरी बात पर सीईओ ने पूछा - 

अगर मैं, फाईव स्टार की जगह एक कामचलाऊ होटल का खर्च आपको दूँ तो क्या आप पसंद करेंगी? चलो मान लिया कि अपने सिद्धांत के लिए आप यह कर भी लें लेकिन ऐसे कितने और रिपोर्टर होंगे जो सुविधाओं में कटौती होने पर, हमारे साथ काम करना पसंद करेंगे?

(फिर निर्णय जैसा सुनाते हुए कहा)

मैं, अभी आपका त्यागपत्र स्वीकार नहीं कर रहा हूँ। आप कुछ समय लेकर पुनर्विचार कर लें। और अगर आपकी वेतन वृद्धि कहीं परोक्ष अपेक्षा है तो मैं, आपको 20% का हाईक का ऑफर दे सकता हूँ। 

मैंने उत्तर दिया - 

धन्यवाद सर, जानकर प्रसन्नता है कि आप, योग्यता को मान देना जानते हैं। मगर मुझे, प्रसन्नता तब होती जब आप, इस देश की उन्नति के विषय को भी गंभीरता से लेते, जिस पर हमारी आगामी पीढ़ियों का भविष्य निर्भर करता है।  

मैंने, अपना त्यागपत्र पूर्णतः विचार विमर्श के पश्चात ही रखा है। आप कृपया इसे स्वीकार कर लीजिये। 

अब सीईओ ने मुझ पर विचित्रता से दबाव बढ़ाने का प्रयास किया। उन्होंने पूछा - 

आप एक महीने की सेलरी, हमारे अकाउंट में डिपाजिट करने का विकल्प लेंगी या इस त्यागपत्र को मैं, वन मंथ नोटिस जैसा मानूँ? 

मैं, उनके इस अंदाज से आहत हुई मैंने कहा - 

सर, क्षमा कीजियेगा, आप इतनी चर्चा में भी मुझे, एवं मेरे अंतर्मन को पहचान नहीं सके हैं। मैं, धन की लालची होती तो आपने मुझे सात लाख की वार्षिक वेतन वृद्धि का ऑफर दिया है। मैं वह स्वीकार करती। कृपया आप, मेरे त्यागपत्र को तुरंत मंजूर कीजिये। मैं, अभी ही तीन लाख रुपये, मेरी एक माह की वेतन, चैनेल अकाउंट में ट्रांसफर कर रही हूँ। 

सीईओ, मेरे तेवर से नरम पड़ गए थे। उन्होंने पूछा - आपके पास क्या कहीं और का जॉब ऑफर है?

मैंने कहा - नहीं, अभी कुछ समय मैं घर ही बैठूंगी। 

सीईओ ने कहा - 

ऐसे अपने टैलेंट का व्यर्थ करने का, आपका आइडिया, मुझे प्रभावित (अपील) नहीं कर पाया है। 

मैंने कहा - 

सर, यही प्रश्न मेरा, आपसे है। क्या सिर्फ व्यावसायिक हितों पर फोकस कर आप, देश की प्रतिभा व्यर्थ नहीं कर रहे हैं? जो प्रतिभा (टैलेंट), देश निर्माण में लगना चाहिए वह सिर्फ मिल्यनेर/बिल्यनेर बनने की होड़ में नष्ट नहीं हो रही है?   

अगर यही टैलेंट का सदुपयोग है तो फिर व्यर्थ है देश की सीमाओं पर सैनिक एवं देश में पुलिस वीरों का बलिदान। साथ ही व्यर्थ हो जाता है सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंग या चंद्रशेखर आज़ाद जैसे मातृभूमि से प्रेम करने वालों का बलिदान। 

कदाचित सीईओ, स्वयं अपनी आगामी पीढ़ी का भविष्य अन्य देश में पलायन कर लेने में देख रहे थे। उन्होंने संवेदनविहीन ढंग से हमारी मीटिंग की अपनी आखिरी बात कही - 

मुझे यह देखने की जिज्ञासा रहेगी कि आप पर, आज हावी ये सिद्धांत एवं उसका बुखार उतरने में कितना समय लगेगा। यदि आपका यह बुखार जल्दी उतर जाए तो मेरा, आपको दिया 20% हाईक का ऑफर कुछ महीनों तक वैलिड रहेगा। और हाँ, आपको तीन लाख डिपाजिट करने की जरूरत नहीं। घर बैठने पर कुछ समय यह पैसा आपके काम आयेगा … 



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