Rashmi Trivedi

Drama Romance Tragedy

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Rashmi Trivedi

Drama Romance Tragedy

नियति - भाग 8 (अंतिम भाग)

नियति - भाग 8 (अंतिम भाग)

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ज़िंदगी में आये एक बाद एक तूफानों के बाद नियति को संभलने में कुछ वक़्त तो लगा। यह ज़िंदगी भी कितनी अजीब होती है। यहाँ कभी किसी के आने या जाने से वह रुकती नही। इंसान कुछ पल के लिये यह ज़रूर समझ बैठता है की किसी के जाने के बाद वह जी नही पायेगा या उसकी ज़िंदगी में अब करने के लिए कुछ नही बचा है, लेकिन वक़्त सारे ग़म भूल देता है। समय के साथ साथ वह जो चला गया वह एक याद बनकर रह जाता है।

नियति के साथ भी यही हो रहा था। आकाश के जाने के एक साल बाद ही वह कुछ संभल चुकी थी। अपने मम्मी पापा के साथ मुंबई में रह रही नियति एक डांस अकेडमी में डांस ट्रेनर का काम कर रही थी। नए माहौल में नए लोगों के बीच अब उसे ज़िंदगी से जीने का सलीका फिर से आ गया था। आकाश की याद तो हर पल उसके साथ थी ही। वह उसके दर्दभरे लम्हों को भूल बस उन्हीं यादों को संजोये रखना चाहती थी जिनमें उसने और आकाश ने अपनी एक प्यारभरी दुनिया बसाई थी।

आकाश के जाने के बाद नियति के ज़िंदगी में सागर ने एक अच्छे दोस्त की भूमिका हमेशा निभाई। आज भी दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे।

अपने लंदन वाले नौकरी को छोड़ सागर ने भी अब अपने देश में अच्छी नौकरी ढूंढ ली थी। उसके माता पिता भी तो यही चाहते थे। एक वक़्त था, जब उन्होंने अपने बेटे के लिए नियति को चुना था। इसी वजह से नियति के घर के सामने ही तो घर ख़रीद लिया था। लेकिन तक़दीर को कुछ और ही मंज़ूर था तब, लेकिन आज एक बार फिर तक़दीर ने उन्हें मौका दिया था, नियति को अपनी बहु बनाने का।

यही सब सोच आज सागर के माता पिता नियति के घर आये थे। उनकी बात सुन नियति की मम्मी ने अपनी सहेली को गले लगा लिया था। नियति के ज़िंदगी का हर पहलू जानने के बाद भी उसे अपनाने की जो इच्छा और हिम्मत उन लोगों ने दिखाई थी, वह हर कोई नही कर पाता। हर किसी में यह समझ और सोच नही होती की अपने बेटे के लिए एक विधवा का हाथ माँगे। आख़िर वह लोग भी तो ऐसे ही समाज रहते थे जहाँ आज भी विधवा औरत को लोग अलग ही नज़रिए से देखते थे। सदियों से समाज ने महिलाओं की ख़ुशी का आधार ‘पति के साथ’ को बना दिया गया है। तलाक होने या पति की मौत होने पर महिलाओं से समाज उम्मीद रखता है कि महिलाएं अब एक नियंत्रित जीवन जिये और अपनी खुशियों का गला घोंट दे।

बेटी के माता पिता तो उसे हर छूट दे भी देते है लेकिन उनको भी समाज के तानों का सामना करना पड़ता है।

आज नियति के मम्मी पापा भी ज़िंदगी के उसी मोड़ पर थे, ऐसे में सागर का दोबारा रिश्ता आना नियति का सौभाग्य ही था।

सागर की मम्मी ने बताया, "नजाने क्या बात है?? नियति से रिश्ता ना जुड़ पाने के बाद सागर का कही ओर रिश्ता हुआ ही नही। मैंने तो उसे कई लड़कियां दिखाई, लेकिन वह हर बार मना कर देता था। हम दोनों ने उसे यहाँ तक कह दिया था कि अगर लंदन में उसे कोई पसंद हो तो वह हमें उससे मिलवा सकता है। उसकी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है। एक ही बेटा है, अब उस पर भी हम हमारी इच्छाओं का बोझ डाल देंगे तो कैसे चलेगा!!! लगता है तक़दीर भी यही चाहती है कि हमारे दो घरों की दोस्ती रिश्तेदारी में बदल जाए। नियति बेटी ने भी बहुत दुख देखे है, लेकिन तुम देखना, मेरा सागर उसकी दुनिया खुशियों से भर देगा!!!

एक माँ के लिए अपनी बेटी की खुशियों से बढ़कर और कुछ नही होता। अपनी सहेली की यह सब बातें सुन नियति के मम्मी का चेहरा खुशी से खिल उठा था। आज कितने दिनों बाद उनके दिल को कुछ सुकून मिला था।

आज तो केवल घर के बड़े लोगो ने ही बात की थी। सागर और नियति दोनों इस बात से अभी तक अनजान थे।

दूसरे दिन इतवार था, नियति घर पर ही थी। वैसे तो शनिवार इतवार दोनों दिन उसके काम की छुट्टी रहती थी, लेकिन कुछ ही दिनों में मुम्बई में ही उनका बहुत बड़ा स्टेज शो होने वाला था जिसकी तैयारियों में जुटी नियति को शनिवार को भी काम पर जाना पड़ रहा था।

नियति अपने कमरे की बालकनी में बैठी क़िताब पढ़ रही थी, मम्मी उसके लिए कॉफ़ी बनाकर लायी थी, दरअसल आज वह नियति से सागर के रिश्ते की बात करने आयी थी। थोड़ी देर इधर उधर की बात कर मम्मी ने नियति से अपने दिल की बात कही।

नियति - मम्मी, आप ऐसा सोच भी कैसे सकती है??? सागर मेरा बहुत अच्छा दोस्त है। जब पहले भी वह रिश्ते के लिए आया था, तब भी मैंने उसे इस नज़र से नही देखा था और अब तो सवाल ही नही आता। आकाश मेरी ज़िंदगी से ज़रूर चला गया है,लेकिन मेरे दिल में वह हमेशा रहेगा। मैंने अपने जीवनसाथी को तो खो ही दिया है, अब आप क्या चाहती है कि मैं अपने एक अच्छे दोस्त को भी खो दूँ। एक ही शादी में इतना सब कुछ देख लिया है कि अब शादी का नाम भी नही सुनना चाहती मैं!!!

नियति की मम्मी - लेकिन बेटा, ज़रा यह भी तो सोचकर देखो। इतनी लंबी ज़िंदगी बिना किसी साथी के कैसे गुज़ारोगी तुम अकेले?? हमारा क्या भरोसा है, आज है तो कल नही। तुम्हें यूँ अकेला देख मन बहुत दुखी हो जाता है बेटा!!! और तुम्हें अगर एक अच्छा दोस्त जीवनसाथी के रूप में मिले तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है???

नियति - मम्मी, मैं जानती हूँ, आप हर तरह की दलीलें सोचकर आयी है, लेकिन मुझसे यह नही होगा, प्लीज आप दोबारा कभी यह बात मत करना!!!

नियति की मम्मी - और शोभा को क्या जवाब दूँ मैं??? अपने बेटे का रिश्ता लेकर वही आयी थी दोबारा!! तुम्हारे पहली बार मना करने के बाद भी उसने कोई नाराज़गी नही दिखाई, अब कौन से मुँह से फिर से इंकार करूँ!??

नियति - क्या शोभा आँटी आयी थी आपसे बात करने??? क्या सागर ने उन्हें भेजा था??

कॉफ़ी का कप उठाते हुए मम्मी ने कहा, "नही, वह तो जानता भी नही है कि उसके माता पिता हमसे बात करने आये थे"। कुछ देर सोच, नियति ने कहा, "आप फ़िक्र मत कीजिये, मैं सागर से बात कर लुँगी, वह अपनी मम्मी से बात कर लेगा"।

एक बार फिर नियति के मम्मी के चेहरे को उदासी और परेशानियों ने घेर लिया था। वह चुपचाप उसके कमरे से बाहर चली गई। उस दिन नियति देर तक बालकनी में बैठी रही और सोचती रही, "और कितना आजमायेगी ज़िंदगी उसे, और कितनी कुर्बानियां देनी होगी उसे बस एक सुकून भरी ज़िंदगी के लिए!!! क्या अब उससे उसका सबसे अच्छा दोस्त भी छीन लेगी ज़िंदगी???

नियति की यह कैसी नियति थी, जो हर पल उसकी परीक्षा ले रही थी।

कुछ सोच उसने सागर को फ़ोन किया और शाम को कही बाहर चलने के लिए पूछा। इतवार की शाम ही थी तो सागर ने भी हाँ कह दिया है।

शाम को दोनों घूमते हुए जुहू चौपाटी पहुँचे। समंदर में उठती लहरों का शोर और पश्चिम में डूब रहे सूरज का नयनाभिराम दृश्य देख नियति को वह दुनिया की सबसे खूबसूरत जगह लग रही थी। दोनों एक अच्छी सी जगह देख रेत पर ही बैठ गए। चारों ओर लोगों की आवाजाही थी,फिर भी एक अजीब सा सुकून था वहाँ। ज्यादातर कॉलेज स्टूडेंट्स लग रहे थे जो अपने दोस्तों के साथ समूह में यहाँ-वहाँ मंडराते नज़र आ रहे थे और पानी के बीच अठखेलियां कर रहे थे। समंदर किनारे रेत के विशाल मैदान पर दौड़ते लड़के और लड़कियां दूर से किसी बगीचे में उड़ रहे रंग-बिरंग तितलियों की तरह दिखाई दे रहे थे।

नियति ने सागर से कहा,"मुझे तुमसे कुछ बात करनी है, इसीलिए बाहर चलने का पूछा था!!" इस तरह बात की शुरुआत कर उसने अपनी माँ से हुई सुबह की सारी बातें सागर को बता दी और साथ ही साथ अपने दिल की बात भी बता दी।

"देखो सागर, तुमसे तो कोई बात छिपी नही है। तुम ही तो मेरे और आकाश की शादी के लिए हामी भरने वाले पहले इंसान थे। जो बात मैंने अपने मम्मी पापा तक को नहीं बताई थी, वह मैंने सबसे पहले तुमसे शेयर की थी और मैं यह भी जानती हूँ कि मेरी और आकाश की शादी के लिए मेरे पापा ने तुम्हारी वजह से ही हाँ कही थी। उस रात जब तुम और पापा बात कर रहे थे, मैंने सब सुन लिया था। यक़ीन मानों, उस दिन से आज तक मैं तुम्हारी शुक्रगुज़ार हूँ।

अपनी शादी के बाद बहुत ही कम समय में मैंने कई कड़वे अनुभवों को सहा है, लेकिन अब मुझमें फिर से इन सबका सामना करने की हिम्मत नहीं है। मैं यह नहीं कहना चाहती कि तुम एक अच्छे पति साबित नही होंगे, लेकिन मैं यह ज़रूर जानती हूँ कि अब मैं एक अच्छी पत्नी नही बन सकती। तुम एक बहुत अच्छे इंसान हो, तुम्हें तुम्हारी ज़िंदगी खुशियों के साथ जीने का पूरा हक है, मेरे पास अब तुम्हें देने के लिए सिवाय दोस्ती के और कुछ नही है। मुझे उम्मीद है कि तुम अपने मम्मी पापा से बात करके मेरी ओर से उनसे माफ़ी मांग लोगे, हो सकता है, इसके बाद आँटी मुझसे नफ़रत करने लगे, लेकिन उनसे कहना, इसकी सजा वह मेरी माँ को ना दे। एक ही अच्छी सहेली है उनकी, मेरी वजह से वह भी रूठ गयी तो मैं कभी अपने आप को माफ़ नही कर पाऊँगी"।

अब तक चुपचाप नियति की बातें सुन रहा सागर, दूर समुंदर की लहरों को देख कहने लगा, "जानती हो नियति, यह समुंदर अपनी बेबसी किसीसे कह नही सकता, हजारों मीलों तक फैला है लेकिन बह नही सकता। मैं भी तो सागर ही हूँ, आज तक अपने दिल की बातों को अपने दिल में ही छिपाएं रखा है, इस रुके हुए सागर को आज बहने का एक रास्ता नज़र आया है। आज बात निकली है तो मैं तुमसे अपने दिल की बात कहना चाहता हूँ।

तुमसे पहली बार मिला और उसी दिन से मैं तुम्हें चाहने लगा था। तुम्हें देखते ही लगा था, हाँ यही है वह जिसके साथ मैं अपनी पूरी ज़िंदगी बिताना चाहता हूँ। तुम्हें याद है, पहले ही दिन आकाश की बात करने से पहले जब तुमने मुझे अपना मोबाइल नंबर दिया था, मैंने अपने फ़ोन में सेव करते वक़्त पहले तुम्हारा नाम लिखा था, फिर कुछ सोच, मैंने उसे बदल दिया था, जानती हो, मैंने किस नाम से तुम्हारा नंबर सेव किया है??? कॉल करो मुझे!!!

नियति ने बिना कुछ कहे, अपने मोबाइल से सागर को कॉल किया, सागर ने अपने फ़ोन की स्क्रीन नियति को दिखाई, स्क्रीन पर लिखा था,"वाइफ कॉलिंग".....

सागर - आज तक मैं इसे बदलने की हिम्मत नही जुटा पाया, तब भी नही जब तुम किसी ओर की पत्नी थी। लेकिन मेरा यक़ीन करो, मैंने हमेशा तुम्हारी और आकाश की खुशियाँ ही चाही है, मैंने कभी तुम्हें पाने की कोशिश नही की। सिर्फ पाने का नाम ही तो प्यार नही होता!!! आज भी मैं तुम्हें जल्दबाजी में कोई भी फ़ैसला लेने के लिए नही कहूँगा। तुम वही करना जो तुम्हारा दिल कहे!!

सागर की बातें सुन नियति और परेशान हो गयी। वह तो अपनी मुश्किलों को कम करने आई थी, लेकिन सागर की बातों ने उसे एक बार फिर उलझन में डाल दिया था। उसके बाद घर पहुँचने तक दोनों चुपचाप ही थे, घर पहुँचते ही नियति कार से उतर ही रही थी कि सागर ने उससे कहा,"देखो नियति, इन सब बातों का हमारी दोस्ती पर कोई असर नही पड़ेगा। मैं कल भी तुम्हारा दोस्त था,आज भी हूँ और हमेशा रहूँगा। जब भी तुम्हें लगे की यह दोस्त तुम्हारा जीवनसाथी बनने के काबिल है,बस अपना हाथ आगे बढ़ा देना, मुझे उस दिन का इंतज़ार रहेगा!!!

नियति बिना कुछ कहे,कार से उतरकर घर चली गयी। सागर उसे जाते देख वही कार में बैठा रहा।

उस दिन के बाद नियति ने अपने आप को अपने स्टेज शो के कामों में उलझा लिया था। बाकी कोई बात सोचने का मौक़ा ही ना मिले इस क़दर उसने ख़ुद को व्यस्त कर लिया था। ट्रेनिंग देने के साथ साथ उसे परफॉर्मेंस भी देनी थी तो काम तो ज्यादा था ही।कई दिनों की मेहनत के बाद आख़िर शो का दिन भी आ ही गया। पूरा शो नियति ने ही अरेंज किया था, इसीलिए वह सुबह से ही घर से निकल गयी थी। अब इतना बड़ा शो था तो जाहिर था कि उसके मम्मी पापा के साथ साथ सागर और उसके घरवाले भी शो देखने जाने वाले थे।

तय समयानुसार सब लोग ऑडिटोरियम में पहुँच चुके थे। शो शुरू हुआ और सब कुछ बहुत अच्छे से चल रहा था, तभी अचानक स्टेज के ऊपरी भाग से कोई जलती हुई चीज़ नीचे गिरी। सब कुछ अचानक ही हो गया। पता चला, स्टेज के ठीक ऊपर वाले फ्लोर पर भीषण आग लग गयी है। किसी को पता ही नही चला और आग तेज़ी से फ़ैलने लगी थी। सब तरफ़ अफरातफरी मच गई थी। हर कोई ऑडिटोरियम से बाहर निकलना चाहता था। नियति अपने साथी कलाकार और स्टूडेंट्स के साथ स्टेज पर ही मौजूद थी।

सागर ने अपने पापा से कहा कि वो बाकी सब को लेकर ऑडिटोरियम से बाहर निकले, वह नियति के पास जा रहा है। स्टेज पर भी लोग अब इधर उधर भागने की कोशिश कर रहे थे। स्टेज के दोनों तरफ भी अब आग फ़ैल चुकी थी। सागर ने चिल्लाकर नियति को ऑडिएंस की तरफ़ वाली साइड में आने के लिए कहा, वह भागते हुए सागर की ओर बढ़ी, तभी ऊपर से लकड़ी का एक जलता हुआ टुकड़ा नियति के बाएं हाथ पर आकर गिरा, वह उसके धक्के से नीचे गिर गई। उसके बाद क्या हुआ उसे पता नही। जब आँख खुली तो वो हॉस्पिटल में थी। खुशकिस्मती से उसके सिर्फ बाएं हाथ में चोट लगी थी, बाकी वह सुरक्षित थी। लेकिन उसका बायां हाथ बुरी तरह झुलस गया था।

उसने देखा, सब लोग उससे मिलने के लिए दरवाज़े के बाहर खड़े थे, लेकिन अभी अंदर जाने की किसी को इज़ाज़त नही मिली थी।

इधर कमरे के बाहर नियति के मम्मी का रो-रोकर बुरा हाल था,"नजाने भगवान ने मेरी बेटी की क़िस्मत में और कितने दुख लिखें है!!!"

सब लोग उन्हें दिलासा देने की कोशिश कर रहे थे। रात काफ़ी हो चुकी थी, सागर ने सब से कहा,सब लोग घर चले जाएं, वह रुकेगा हॉस्पिटल में!!! पहले तो नियति के मम्मी पापा ने किसी की एक न सुनी, लेकिन जब ख़ुद डॉक्टर ने आकर कहा, की इतने लोगों का वहाँ रुकने का कोई मतलब ही नही बनता क्यूँ की अभी वह किसी को भी नियति के करीब नही जाने देंगे। फायर केसेस में अक्सर ऐसा ही होता है, पेशंट्स को किसी से भी मिलने की इजाज़त नही होती।

उसके बाद कुछ दिनों तक यही सिलसिला चला, नियति के मम्मी पापा उसे हररोज़ बाहर से देख चले जाते, रात को सागर वही रुक जाता। नियति के हाथ का घाव अब भी बहुत भयावह था, लेकिन वह होश में थी,काँच की बनी दीवारों से हररोज़ रात को वह सागर को देखती, अक्सर वह इशारों से उससे बातें करता। सागर उसे हँसाने की कोशिश करता और जब नियति के चेहरे पर हँसी आ जाती तो गिरने का नाटक करता। कभी सागर को आने में देर हो जाती तो नियति बैचेन होकर काँच की दीवार की ओर देखती रहती या नर्स को बुलाकर पूछती। शायद अब प्यार का बीज नियति के दिल में भी अंकुरित होने लगा था।

कुछ दिनों बाद नियति को नॉर्मल रूम में शिफ्ट कर दिया गया। जहाँ सब लोग उससे मिल सकते थे, पर उसे तो आजकल सिर्फ सागर का इंतज़ार रहता था। वह हररोज़ उसके लिए खूबसूरत फूल लेकर आता था। घंटों बैठकर दोनों बातें करते थे।

कुछ ही दिनों में नियति को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज मिल गया। डिस्चार्ज वाले दिन सागर ने ही हॉस्पिटल की सारी औपचारिकताएं पूरी की, फिर सब लोग घर पहुँचे, नियति को अपने कमरे में पहुँचाकर सागर बस जाने ही वाला था कि नियति ने अपनी मम्मी से कहा, "मम्मी, मुझे सागर से अकेले में कुछ बात करनी है, क्या आप थोड़ी देर.....

उसकी मम्मी ने उसकी बात पूरी होने से पहले ही, हाँ हाँ क्यूँ नही, कहते हुए हामी भर दी।सागर वही रुक गया। मम्मी के जाने के बाद सागर ने पूछा,"हाँ कहो, कुछ चाहिए था तुम्हें???"

नियति ने लफ्ज़ों में तो कुछ नही कहा, बस उसने अपना दाहिना हाथ सागर की ओर बढ़ाया और मुस्कुराने लगी। सागर को यक़ीन ही नही हो रहा था, वह खुशी से झूम उठा। उसने दौड़कर नियति को गले लगाया, नियति के बाएं हाथ को धक्का सा लगा तो उसकी आह निकल गयी, सागर ने "आय एम सॉरी, आय एम सॉरी" कहते हुए अपने कान पकड़ लिए। अचानक दोनों के ठहाकों से कमरा गूंज उठा।

बड़ी ही सादगी के साथ कुछ ही दिनों में दोनों की शादी हो गयी। दोनों बहुत खुश थे और उन्हें खुश देख घरवालों की खुशी का भी कोई ठिकाना नही था।

एक दिन सुबह सुबह घर के लॉन में बैठे बैठे सागर पेपर पड़ रहा था, उसके मम्मी पापा भी वही बैठे थे। नियति सबके लिए चाय लेकर लॉन में आई। सागर ने उसके पापा से कहा, "पापा आपने यह न्यूज़ देखी?? दिल्ली के वालिया ग्रुप के बारे में तो आपने सुना ही होगा ना, उनका एकलौता बेटा अयान वालिया, उसकी कल रात कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई!!! लेकिन यह न्यूज़ वाले कह रहे है कि ड्रग्स का कुछ मामला था!!!"

अयान वालिया का नाम सुन नियति ने सागर से पूछा, "क्या नाम बताया???"

अयान....अयान वालिया....क्यूँ क्या हुआ??"

नियति ने कहा,"नही, कुछ नही,बस ऐसे ही पूछा!!!"

सबको चाय देकर नियति ने अपने लिए भी चाय का एक कप लिया और अजीब से सुकून के साथ चाय पीते पीते वह सोचने लगी, "इस ज़िंदगी में हरेक की हर पल पहले से एक निर्धारित नियति है, जिसके आगे शायद किसी की नही चलती....."

और इस तरह नियति ने एक कड़ी परीक्षा के बाद अपनी खुशियाँ पा ली थी.......


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