निष्ठुर
निष्ठुर
सुंदर सलोनी रमिया का फूल सा चेहरा दर्द से भरा हुआ था। पैर भारी थे उसके नौवां महिना चल रहा था। रात भर दर्द से कराहती रही थी, शायद जचकी का वक्त आ गया था। चंदू बेफिक्री से बीड़ी फूंकता हुआ अधलेटा सा बिस्तर पर पड़ा उसे देख रहा था।
गांव से रोजी के लिए शहर आए साल भर हुआ था, और उसकी शादी को भी। बमुश्किल एक कपड़े की दुकान में मजदूरी करके पाँच हजार रूपये कमाता था, और रमिया दो चार घरों में खाना बनाकर उसका गृहस्थी का बोझ अपने कंधो पर भी लेती थी। ठीकठाक ही चल रहा था, खूबसूरत और समझदार बीवी पाकर चंदू गर्व करता था खुद पर,बहुत खयाल रखती थी वो उसका। समय से खाना, चाय, नहाने को गर्म पानी और साफ धुले इस्त्री किए हुए कपडे।
... उसके दोस्त सराहते थे उसकी किस्मत को। मगर आज वो इतना निष्ठुर बना था । उसे यह सब साधारण सी बात लग रहा था। उसकी चीखों को भी नही सुन रहा था। आखिर बच्चे के जन्म लेते ही वह चल बसी।