" निर्णय "

" निर्णय "

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बड़ी बेचैनी हो रही थी इरा को... अपने एक कमरे, एक बाल्कनी, छोटे से किचन वाले कमरे के घर में बड़ी बेचैनी से टहल रही थी। इंतजार था सुबोध का। वह और सुबोध एक ही कालेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। यह आखिरी साल था, एक सेमेस्टर और देना था फिर उड़ने के लिए असीम आकाश था और वह उड़ने वाले स्वतंत्र परिंदे। बहुत अच्छे खाते पीते घर के थे। आज़ाद ख्याल थे, शौक भी एक जैसे थे, क्लब पार्टी, तफरीह...।

एक जैसे शौक ने एक दूसरे के बेहद करीब ले आया। दोनो को एक दूसरे से प्रेम हो गया। दोनों ने होस्टल छोड़ वन बी एच के फ्लैट किराये पर ले लिया और इरा ने अपने घर वालों से कहा कि वह एक लड़की के साथ रूम शेयर कर रही है। और ठीक यही बात सुबोध ने अपने घर वालों से कहा कि होस्टल में पढ़ाई का कोई माहौल ही नहीं है और वह अपने एक दोस्त के साथ रूम शेयर कर रहा है। अब लिव इन रिलेशन शिप में रहना कोई अनहोनी तो रह नहीं गया है। बहुत दोस्त रहते थे, जब तक मन किया, साथ रहे, ऊब गये तो तू अपने रास्ते, मैं अपने। पिछले एक साल से दोनों इस फ्लैट में रह रहे थे। महानगर में किसे फुर्सत थी कि इधर झांके भी कि वे दोनों कौन थे ? क्या कर रहे थे ?

मकान मालिक को किराए से मतलब था, और वह उसे बदस्तूर मिल रहा था।

एक बार बारी बारी दोनों के माँ बाप आए थे। अब बच्चे नए ख्यालात के होते हैं, पर माँ--बाप सभी के पुराने ख्यालात के होते जो हैं। यह देखने के लिए कि वे कहाँ किसके साथ रह रहे थे। पर तू डाल--डाल तो मैं पात--पात.... इसका भी इंतज़ाम सारे दोस्त मिलकर कर लेते हैं। तब दिखावे के लिए इरा के साथ दिन भर एक सहेली रह गयी थी, और सुबोध के साथ एक दोस्त। अब दोनों के माँ--बाप संतुष्ट होकर गए , तो दोबारा देखने अभी तक नहीं आये। अपने बच्चों पर अविश्वास....न बाबा न। छुट्टियों में ये ही घर हो आते थे। उन्हें पता ही नहीं होने पाता था कि पीठ पीछे उनके बच्चे क्या कर रहे होते हैं ।

दोनों निश्चिंत होकर एक साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे थे। बस मौज़ थी। बेखौफ जिंदगी थी, कोई जिम्मेदारी नहीं थी। खर्च के पैसे आ ही जाते थे। दो दिन से थोड़ी तबियत खराब लग रही थी इरा को, चक्कर आ रहे थे, उल्टी उल्टी लग रही थी। सो आज डाक्टर को दिखाने चली गई थी। डाक्टर ने बीमारी का जो नाम बताया तो पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक गई थी। डाक्टर ने कहा कि वह दो महीने की प्रेग्नेंट थी। यह सुनने के बाद इरा को चैन ही नहीं आ रहा था, वह सोच रही थी कि सुबोध का क्या रिएक्शन होने वाला था। कुछ तो कदम उठाना ही पड़ेगा, वरना लोगों के सवालों का क्या जवाब देंगे ? आखिर बहुत इंतजार के बाद शाम को सुबोध आया, पूछा कि अब कैसी तबियत है ? डाक्टर ने क्या कहा ?

इरा ने छूटते ही कहा.... सुबोध अब हमें शादी कर लेनी चाहिए।

क्यों, क्या हुआ ? तबियत और शादी का क्या संबंध है, सुबोध ने पूछा ? मज़ाक मत करो सुबोध, डाक्टर ने कहा है कि दो महीने की प्रेग्नेंसी है मुझे .......इरा बोली। कितनी लापरवाह हो तुम, तुम्हें ध्यान रखना चाहिए था न,.....चलो कोई नहीं, अब जो हो गया तो हो गया है। कल ही डाक्टर से मिलकर एबार्शन करवा लो। सुबोध ने इरा को समझाते हुए कहा।

एबार्शन करवा लूं, नहीं सुबोध, हम शादी कर लेते हैं। फालतू बात तो करो नहीं इरा, जाओ....कल ही जाकर डाक्टर से मिलो, ज्यादा समय नहीं लगाना चाहिए। ऐसे क्यों बोल रहे हो सुबोध, यह हम दोनों का बच्चा है। इसे क्यों मारे, हम शादी कर लेते हैं । शादी....शादी....शादी, हम क्यों करें शादी? अपने माँ पापा पर हम खुद आश्रित है, अभी पढ़ाई तक पूरी हुई नहीं है.....और कह रही है शादी कर लें ? कब कहा था मैंने तुमसे कि मैं तुमसे शादी करूँगा ? क्यों, तुम मुझसे प्यार नहीं करते हो? इतनी बड़ी--बड़ी कसमें नहीं खाई थी प्यार की.... साल भर से हम साथ रह रहे है। यह बच्चा क्या अकेले मेरा है ? तुम्हारी कोई जिम्मेदारी है कि नहीं ? मेरी जिम्मेदारी क्यों है ? मैंने तुमसे कब शादी का वादा किया था। कभी तुम्हें मजबूर किया था कि तुम मेरे साथ रहो ? तुम अपनी मर्जी से मेरे साथ रहने आयी थी। तुम्हारे इतने मार्डन ख्यालात थे, इतनी बिंदास थीं....और आज एक टिपीकल लड़की जैसे जबर्दस्ती कर रही हो कि मैं तुमसे शादी कर लूं ? लिव इन रिलेशसन शिप में रहने का मतलब तो जानती हो न ? जब तक मन करेगा, साथ रहेंगे। फिर तुम अपने रास्ते मैं अपने, अब यह शादी बीच में क्या कर रही है ? लेकिन सुबोध, यह तो हम दोनों का बच्चा है। तुम्हारी कोई जिम्मेदारी बनती है कि नहीं बनती है ? क्यो बनती है? तू मेरी बीबी है क्या ?

तूने मेरे साथ रहना मंज़ूर किया....मैंने तेरे साथ, बात खत्म। कितनी घटिया बात कर रहे हो सुबोध तुम।

मैंने तुमसे प्यार किया है, तभी तुम्हारे साथ सबसे झूठ बोल कर रह रही हूँ। तुम्हें मुझसे शादी नहीं करनी थी तो क्यों रह रहे थे मेरे साथ ? मजबूर किया था क्या तुम्हें कि तुम मेरे साथ रहो। अपनी रजामंदी से आई थी न मेरे पास ? न तुम अबोध थी, न मैं, जो हुआ, दोनों की मर्ज़ी से हुआ। अब अकेले मुझे जिम्मेदार मत ठहराओ ? इतना कहकर सुबोध ने अपने वालेट से बिना गिने कुछ रूपये इरा की तरफ फेंका, और एक बैग में अपने कपड़े भरने लगा। यह क्या कर रहे हो सुबोध ? कपड़े क्यों पैक कर रहे हो.... ऐसी हालत में मुझे क्यों छोड़कर जा रहे हो ? हाँ, जा रहा हूँ, अब तुम्हारे साथ मुझे नहीं रहना ? रणचंडी बनी इरा ने झपटकर सुबोध को झिंझोड़ दिया...

मैं पुलिस के पास जाऊँगी, तुम्हारे खिलाफ कंपप्लेन लिखवाऊंगी कि कैसे तुमने मुझे झांसा देकर मेरा इस्तेमाल किया। साबित करूँगी कि यह तुम्हारा बच्चा है ? कर लेना, सुबोध ने कहा। वह एग्रीमेंट भी ले जाना, जिसमें मैंने तुमसे शादी का वादा किया था। वह सार्टिफिकेट भी साथ ले जाना, जो बताए कि तुम नाबालिग हो और मेरे झांसे में आ गई थी।

साबित हो जायेगा कि यह मेरा ही बच्चा है, तो जब कमाने लगूंगा....हर महीने इसके खर्च के लिए पैसे दे दूँगा। पर तुम जैसी लड़की से शादी सौ जनम तक नहीं करूंगा, जिसका कोई कैरेक्टर है ही नहीं ? और पैर पटकता हुआ, अपना सामान समेट कर सुबोध चला गया।

सारी बाते पिघले शीशे की तरह कानों में उतर रही थी इरा के। इरा बेतहाशा रो रही थी....रोये ही जा रही थी। क्या करे, कहाँ जाये ? तब भी निर्णय उसका था, लिव इन रिलेशनशिप में रहने का और अब आगे भी निर्णय उसे ही करना है कि क्या किया जाये ?"लिव इन रिलेशन शिप" यानी एक संबंध के अंतर्गत साथ साथ रहना।

यहाँ तो सिर्फ साथ साथ रहना था, संबंध कहाँ था ?

अगर कोई संबंध से बंधा होता तो क्या इतना आसान था सुबोध के लिए कि इस मुश्किल घड़ी में इतनी बेमुरव्वती से भाग खड़ा होता ?



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