Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Gulafshan Neyaz

Romance

4.0  

Gulafshan Neyaz

Romance

नीलम

नीलम

13 mins
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विदेश से पढ़ाई कर माधव गाँव बहुत वर्षो बाद लौटा वैसे तो वो गाँव आना नहीं चाहता था। क्या रखा था गाँव में पर पिता के तबियत ख़राब जवान बहनों की जिम्मेदारी ने उसे गाँव लौटने पर मजबूर कर दिया।

माधव के पिता दीनदयाल बाबू जाने माने जमींदार थे उनको एक ही पुत्र माधव और पुत्री रूचि थी।

गाँव मे पढ़ाई का अच्छा साधन ना होने की वजह से दीनदयाल ने उसे पढ़ने के लिए विदेश भेजा। दीनदयाल गाँव के लोगो के बारे में और उनके ज़रूरतों का ख्याल रखते।

गाँव के लोग दीनदयाल की बहुत इज़्ज़त करते। इसलिए दीनदयाल चाहते की उनका बेटा माधव भी पढ़ाई कर गाँव के लोगो के भलाई के लिए कुछ करे। पर इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद माधव को गाँव जाना बेकार लगने लगा। उसे गाँव मे अपना कोई फ्यूचर ही नहीं दिख रहा था।

इसलिए वो विदेश में ही रहने का मन बना लिए दीनदयाल ने बहुत समझया पर माधव के ज़िद के आगे मजबूर हो गए। वक़्त गुजरता गया और दीनदयाल जी की सेहत भी बिगड़ती गई। मरने पहले उनकी इच्छा थी की माधव गाँव आ जाय और सारी जिम्मेदारी संभाल ले बहन के हाथ पिले करने के बाद जो दिल में आये करे।

माधव पिता की ये इच्छा टाल ना सका उसे गाँव आना ही पड़ा। आज पूरे हवेली रौशनी से चमक रही थी हवेली को नई दुल्हन की तरह सजाया गया था। आज सारे व्यंजन माधव के पसंद के थे। सब रात के भोजन पर बैठे थे। तभी रूचि बोल री वाह आज तो सारा खाना भैया का मन पसंद मिला है। ऐसा लगता है जैसे मुझ से कोई प्यार ही नहीं करता। तभी माँ ने पीछे से थपकी मारी बदमाश लड़की। तो वो हँसने लगी। आज ऐसा लग रहा था। जैसे दीनदयाल जी बेटा के आने के खुशी मे फिर से जवान हो गई हो। आज बहुत वर्षो के बाद ऐसा लग रहा था। जैसे ख़ुशियाँ वापस आ गई हो। सब लोग सोने के लिए अपने कमरे मे चले गए। माधव को ये सब बहुत अजीब लग रहा था।

इतना जल्दी सब कुछ कैसे बदल गया सारा माहौल उसे बदला बदला लग रहा था। जैसे उसका यहां कुछ हो ही नहीं। परंतु दीनदयाल की मुस्कुराहट उसे अंदर ही अंदर सुकून दे गई।

वो बाहर बगीचे मे टहल ही रहा था। फूलों की भीनी भीनी खुश्बू उसे अंडर ही अंदर आनंदित कर रही थी। यही सब तो मिस कर रहा था वो प्रदेश मे तभी उसे रमेश की याद आयी एक ही तो था उसका बचपन का लगोटिया यार दोनों खूब मस्ती करते थे। वो फटाफट रमेश की घर की तरफ चल पड़ा

जाके उसने दरवाज़े का कुण्डी खटखटया तो कुछ देर के बाद एक औरत ने दरवाज़ा खोला। माधव थोड़ा अचकचा गया। अरे मीरा कौन है। मीरा ने उसे सवालिए नज़रों से देखा तो माधव बोल पड़ा मैं माधव रमेश का दोस्त, तो मीरा मुस्कुरा कर बोली, अरे माधव बाबू अंदर आये तब तक दरवाज़े पर रमेश भी आ गया। अरे माधव तुम कब आये आज ही अरे तुम अपने भाभी से मिले अरे माधव को दरवाजे पर ही खड़े रखोगे या अंदर भी बुलाएगा ।

दोनों दोस्त मे बहुत देर तक बातचीत होती रही माधव रमेश से मिल कर बहुत खुश हुआ।

धीरे धीरे माधव ने अपने पिता का कारोबार संभाल लिया अब वो गाँव की खेती बारी भी देखता। उसने गाँव के भलाई के लिए भी काम करना शुरू कर दिया। सड़क किनारे हैंडपंप लगवाया शाम के वक़्त गाँव के गरीब बच्चो को कॉपी किताब खरीद कर देता। उसे इन सब मे खुशी मिलती। धीरे धीरे माधव भी अपने पिता की तरह गाँव के लोगो का हो गया। गाँव के लोग भी माधव से बहुत प्यार करते। बरसात का समय था धन रोपनी चल रही थी। माधव और मुनीम जी खेतों में रोपनी करवा रहे थे। बहुत जोर की बारिश हो रही थी। तभी माधव की नज़र खेतों में गई जहाँ एक कोने मे बाकी मजदूरों से हटकर एक औरत सफ़ेद सारी पहने धान रोप रही थी। उसने अपना चेहरा साड़ी के पल्लू से छुपा रखा था। माधव की नज़र उस पर रुक गई भीगे साड़ी होने की वजह से उसका जिस्म बाहर झलक रहा था। जिसे वो बार बार छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। पता नहीं क्यों माधव को उसका चेहरा देखने की बेचैनी होने लगी।

पर वो देख नहीं पाया। सारे खेत मे रोपनी हो गई थी। माधव ने मुनीम जी को दिहाड़ी चुकाने का इशारा किया। मुनीम जी सब को बारी बारी से बुला कर पैसा देने लगे। तभी माधव ने नोटिस किया की मर्दो के मुकाबले औरतों को कम मजदूरी मिल रही थी। तभी माधव ने मुनीम जी से पूछा इन औरतों को मजदूरी कम क्यों। तभी मुनीम जी बोल परे राघव बाबू औरत को मर्द के मुकाबले कम दिहाड़ी मिलती है। उनसे उतना काम नहीं हो पता राघव ये सुन कर चौक गया।

चाचा ये कैसी बेवकूफी भरी बातें है। दोनों ने बराबर समय दिया है। बराबर मेहनत की इसलिए मजदूरी भी दोनों को बराबर होगी। आप सब को बराबर मजदूरी दे मुनीम जी राघव का मुँह देखने लगे तो राघव ने गर्दन हिलाते हाँ इशारा किया।

सारी औरते राघव को दुआ देने लगी तो राघव धीरे से बोला काकी मैंने कोई महान काम नहीं किया है ये तो आपका अधिकार है। अपना अधिकार के लिए लड़ना सीखीए।

गांव के कुछ जमींदार ने इसका विरोध किया पर उसने सब को मुँह तोड़जवाब दिया। शाम का वक़्त माधव और रमेश नदी किनारे बैठे डूबते हुए सूरज को देख और अपने बचपन कि बातें कर रहे थे। माधव को डूबता होवा सूरज नदी की लहरे ठंडी ठंडी हवा सब रोमांचित कर रही थी। तभी किनारे छप्पाक की आवाज़ हुए तो देखा वही खेत वाली लड़की किनारे कपड़ा धो रही थी झुकी होने के कारण उसकी बालों की लटे उसके चेहरों को छुपाये हुई थी। माधव उसे घूर कर देखने लगा तभी रमेश ने उसे झिकोरा कहाँ खो गए माधव बाबू गोरी मेम की याद आ गई, तो वो मुस्कुरा दिया नहीं यार ऐसा कुछ नहीं। पर कहीं ना कहीं आँखें उस किनारे वाले लड़की पर ही ठहरी हुई थी ।

शाम बहुत हो चुकी थी। तो रमेश और माधव अपने अपने घर चले गए ।

माधव के खेतो मे अक्सर वो लड़की काम करती पर माधव ने अभी तक उसका चेहरा नहीं देखा उसके चेहरा हमेशा साड़ी के पल्लू या या बालों की लटों से ढका रहता। आज सुबह सुबह मौसम बहुत सुहाना था। हलकी हलकी बूँदें पड़ रही थी। माधव खेतो की तरह गया। आज सारे मजदूर थे। पर वो लड़की नहीं थी। माधव की नज़र उसे बेचैनी के साथ ढूंढने लगी पर वो खेत के किसी कोने मे ना दिखी सारे मजदूर काम कर के चले गए। पर माधव का दिमाग़ अब भी उसी लड़की में उलछा हुआ था ।

आखिर क्यों नहीं आई शायद कोई काम होगा कल आयेगी। पर कल भी वो लड़की नहीं थी। अब माधव की बेचैनी बढ़ने लगी।

वो नदी किनारे शांत लहरों मे पत्थर फेंक नदी मे हलचल कर रहा था। कहीं ना कहीं कुछ हलचल उसके अंदर मची थी। उस लड़की को लेकर कोई आये या ना आये उसे क्या फर्क पड़ता है यही सब सोच सोच कर वो आस पास से कंकड़ समेट समेट कर नदी में फेंक रहा था। तभी नदी किनारे छप्पाक की आवाज़ हुई । माधव की नज़र आवाज़ की तरफ गई अरे ये तो वही लड़की है। लड़की कपड़ा धोने मे मगन थी। अचानक माधव के कदम अपने आप उस लड़की के तरफ बढ़ने लगे वो एक बैक उस लड़की के पीछे जाके खड़ा हो गया अपने पीछे किसी आदमी को देख वो लड़की हरबड़ा गई हरबड़ाहट मे उसके पाँव फिसल गए। तुरंत माधव ने उसके हाथ पकड़ लिए अचानक लड़की का पल्लू हट गया उसकी लट्टे पीछे की तरफ चोटी के साथ हवा मे झूलने लगी। अचानक माधव की आंखे उस लड़की की तरफ टिक गए। कितना सुन्दर चेहरा बड़ी बड़ी आंखे गुलाब की पंखुड़ी की तरह होठ सब कुछ लगता था। जैसे कुदरत ने उसे संवारा हो उस लड़की ने खुद को सँभालते हुए अपना हाथ छुड़ाया तो माधव को भी होश आया उसने झिझकते हुए कहा तुम खेत पर नहीं आई इसलिए तुम्हें यहां देखा तो पूछने चला आया लड़की चुप रही उसे घूरते हुए आगे बढ़ गई। माधव की नज़र नीचे छूकी थी। जैसे उसने कोई कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो। तभी उसके कंधे पर किसी की हाथ पड़ा तो माधव चौक गया

अरे रमेश तुम हाँ किसी और का इंतज़ार था। अच्छा ये नीलम इतनी तेज़ क्यों दौड़ रही थी तभी माधव चौंकते हुए बोला, कौन नीलम अरे यही जो अभी नदी के किनारे से दौड़ती गई। मुझे नहीं पता उसका नाम नीलम है..

अच्छा महीनों से तुम्हारे खेतो मे काम करती है और तुम्हें नहीं मालूम रमेश ने हँसते हुए कहा तो माधव भी पूछ बैठा आखिर ये लड़की है कौन हमेशा चेहरा छुपा कर रखती। रमेश ने गहरी साँस लेते हुए बोला, नीलम हमारे पड़ोस की गाँव की भूलन चाचा की बेटी है बेचारे के चार बेटा है। पर कोई किसी काम का नहीं सब खुद मे मस्त और मगन नीलम भूलन चाचा की छोटी बेटी है। भूलन चाचा ने जमीन जायदाद बेच कर नीलम की शादी की थी सब कुछ ठीक चल रहा था। शादी के एक महीना के बाद ही नीलम के पति के पेट मे दर्द हुआ वैध जी के पास ले जाते जाते उसने रास्ते मे ही दम तोड़ दिया।

ससुराल वालो ने कुलच्छनी कुलटा कह कर पीछा छुड़ा लिया। भाई को तो पहले भी कुछ नहीं पड़ी थी। अब क्या फ़र्क पड़ता। भूलन चाचा बेटी के ग़म मे बीमार पड़ गए और बिस्तर पकड़ लिया। तब से नीलम मजदूरी कर के उनका इलाज बात और घर का खर्च चलाती है। शाम बहुत हो गई थी। रमेश जा चुका था। पर माधव नदी किनारे ही बैठा डूबते हुए सूरज को देख रहा था

एक अजीब सी हलचल मच गई थी। नीलम के बारे मे जानकर इतनी छोटी सी उम्र मे उसने कितना कुछ सहा। अचानक वो उठा। अचानक उसके कदम नीलम के गाँव की तरफ बढ़ गए ।

कुछ लोगो से पता करने पर उसे नीलम का घर भी दिख गया। दो खपरैल मकान से एक टूटी फूटी झोपड़ी थी जिसके छप्पड़ लटक रहे थे। फूस बिखरे पड़े थे। झोपड़ी के बाहर खाट पर एक बूढ़ा लेटा बार बार खांस रहा था। शायद यहीं भूलन चाचा होंगे। मन ही मन सोचा पर उसे नीलम कहीं नहीं दिखी रात काफी हो चुकी थी। इसलिए वो उदास मन से वापस चला आया। सूरज सर चढ़ चुका था।

रूचि की आवाज़ कानों मे गई भैया आज उठना नहीं है। हड़बड़ा कर उठते हुए आज इतनी लेट वो मुझे खेत भी जाना है। वो लपकते हुए बाथरूम की तरफ भागा। बिना नाश्ता किये हुए वो खेत की तरफ चल पड़ा, आज माधव की नज़र बार बार सिर्फ नीलम पर ही जा रही थी। जिसे नीलम ने भी महसूस किया। अब माधव नीलम से बात करने की कोशिश करता पर नीलम अपनी मजदूरी लेती और चलती बनती। एक दिन माधव की मुराद पूरी हो ही गई।

नीलम नदी किनारे उसे कपड़ा धुलती मिल ही गई। उसने नीलम से बात करने की कोशिश पर उसे थोड़ा हिचक महसूस हुआ। पर उसने खुद को सँभालते हुए हिम्मत दिखाई। उसने धीरे से कहा नीलम।

नीलम ने उसे पलट कर घूरते हुए कहा। कहिये कोई काम था।

माधव झेंप गया। तो नीलम धीरे से मुस्कुरा दी। जिस से माधव को हिम्मत मिली। मुझे गाँव घूमना है। और मैं यहाँ किसी को जनता भी नहीं अगर तुम मेरी मदद करो तो माधव एक ही साँस मे बोल गया तो नीलम मुस्कुराते हुए बोली, आज नहीं कल शाम मे मुझे आज थोड़ा काम है। इतना कह कर वो चलती बनी। माधव वही पर खड़ा रहा। उसका चेहरा चमक उठा होठों पर एक हलकी सी मुस्कुराहट अपने आप आ गई। उसके लिए कल का इंतजार करना मुश्किल हो रहा था। कल माधव की नींद सुबह सुबह खुल गई। और वो तैयार होकर अच्छे कपड़े पहन कर खुद को शीशे में ऊपर से नीचे तक का जायज़ा लिया ।

खेत के सारे काम खत्म हो गए। मजदूर घर चले गए। माधव जल्दी से नदी की तरफ गया। तो नीलम उसका इंतजार कर रही थी। एक अजीब सी सादगी थी उसके चेहरे पर जो माधव को दीवाना बना रही थी। माधव को देखते हुए बोली बड़ी जल्दी आ गए माधव बाबू। सॉरी थोड़ा लेट हो गया। और हाँ तुम मुझे माधव बाबू नहीं सिर्फ माधव कहो।

तो कहिये कहाँ घूमना है आपको। जहाँ तुम ले चलो माधव ने उसके आँखों मे झाकते हुए कहा तो उसने अपनी पलकें नीची कर ली।

माधव को नीलम बाग़ बगीचे खेत खलिहान घूमा रही थी। माधव को जैसे वो देखने मे शांत लगती थी। वो बिलकुल उसकी उलटी थी। चंचल थी वो लहरों जैसा उफान था उसके अंदर। पंख लगे हो जैसे। माधव को बड़ा मज़ा आ रहा था ।

उसके साथ घूमने मे वक़्त गुज़रता गया माधव और नीलम पास आते गए। ये दोस्ती प्यार मे कब बदली पता ही नहीं चला। पूरे गाँव मे अब नीलम और माधव के ही चरचे थे।

पूरे गाँव मे आग की तरह खबर फैल गई। जो भाई और भाभी को नीलम की फ़िक्र नहीं थी। अब उनके भी कान खड़े हो गए। कुल्छणी कहीं की पहले तो पति को खा गई। उसके बाद हमारे ही कलेजा पर मूंग दल रही। उस से भी चैन ना मिला तो उस विदेशी छोरे के साथ रास रचाकर हमारा नाक कटाने चली कुलटा कहीं की। अब नीलम का गाँव मे निकलना मुश्किल हो गया। लोग उस पर तरह तरह की फब्तियां कसते ।

माधव अब हम नहीं मिलेंगे। भूल जाओ हमें। हमारा और तुम्हारा मिलन मुश्किल है। हम नदी के उस दो किनारे की तरह है जो साथ तो चल सकते है। पर मिल नहीं सकते। माधव ने नीलम के आँखों मे देखते हुए तुम मत घबराओ हमारा मिलन जरूर होगा। हम शादी कर लेते है। उसके बाद सब की बोलती बंद हो जायेगी। माधव तुम्हारे परिवार वाले और मेरे परिवार वाले और ये समाज हमारे रिश्ते को कभी मंजूरी नहीं देगा।

मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं आज ही पिता जी से बात करता हूँ ...

माधव ने जैसे ही परिवार मे ये बात बताई। तूफान आ गया। माँ ने तो कलेजा ही पीटना शुरू कर दिया। कैसी कुलटा है जो मेरे बेटे को फंसा लिया। जादूगरनी है बेटा ऐसा क्या है उस छोरी मे जो तू बावला हो गया तेरे लिए एक सुन्दर सी दुल्हन लाऊँगी

पर माधव नहीं माना। सुन बेटा कम से कम रूचि का तो सोच कौन करेगा उस से ब्याह। माँ मैं कोई चोरी नहीं कर रहा। मैं तो बस नीलम को अपनाना चाहता हूँ। अगर उसका पति मर गया तो उसमे उस बेचारी की क्या गलती। दीनदयाल साहब खामोश रहे। बेटा मनहूस है वो। माँ अगर मैं शादी करूंगा तो सिर्फ नीलम से वरना नहीं।

तो सुन ले नीलम इस घर की बहु कभी नहीं बनेगी...

माधव नदी किनारे नीलम का इंतजार कर रहा था। तभी नीलम आ गई। चलो नीलम हम गाँव छोड़ देते है। और शादी कर यहाँ से दूर चले जाते है। ये गाँव वाले और ये परिवार के लोग हमारे प्यार को कभी नहीं समझेंगे। तुम मेरा साथ दोगी ना नीलम।

नहीं माधव मैं गाँव छोड़ कर नहीं जा सकती। मेरे बाबू बीमार है। उनका देखभाल करने के लिए मेरे अलावा कोई नहीं। भूल जाओ मुझे। मेरा और तुम्हारा मेल नहीं हो सकता। इतना कह कर नीलम रोते हुए चली गई। माधव खामोश खड़ा रहा। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके पाँव से ज़मीन छीन ली। उसने नीलम से कई बार मिलने की कोशिश की पर नीलम ने इंकार कर दिया ।

माधव को सदमा लगा। और वो अपनी सुध बुध खोने लगा। अपने एकलौते बेटे का ये हाल दीनदयाल और उनकी पत्नी बर्दाश्त ना कर सकी। और जाती समाज के बंधन को तोड़ उन्हें नीलम को अपनी बहु बनाना पड़ा। आज नीलम लाल जोड़े मे सज पर सर झुकाये माधव का इंतजार कर रही थी। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। की आखिर उसे उसका प्यार मिल गया। जिस चाँद की तमन्ना की वो उसे मिल गया दुख के बादल छट चुके थे।

माधव और नीलम बहुत ख़ुश थे। माधव ने नीलम के पैरो तले के सारे कांटे चुन कर उसके नसीब मे फूल ही फूल बिछा दिए। अगर इश्क़ सच्चा हो तो मिलता है जरूर।



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