हाय रे मोबाइल
हाय रे मोबाइल


बेचारे ईशा की ज़िन्दगी बड़े आराम से कट रही थी। खुशहाल परिवार था, ईशा खेती बारी करता। उसकी पत्नी खेती बारी में हाथ बंटाती। मवेशी को चारा पानी डालती चूल्हा चौका करती थी और ईशा को समय पर नाश्ता पानी देती।
जब वो शाम को खेत से थका मादा घर आता तो बेचारी पाँव भी दबाती बड़ी ही खुशहाल परिवार था। एक दिन उसके हँसते खेलते परिवार को नज़र लग गई।
हुआ यूं की ईशा के साला ने अपनी बहन को एक मोबाइल खरीद कर दे दिया। उसी दिन से बेचारे ईशा के ज़िन्दगी मे तूफ़ान आ गए। अब ईशा की घरवाली खेतों मे काम करते हुए कम नज़र आती। अक्सर अब वो खेतों के मेड़ पर सड़क के किनारे खेतों मे घुमते हुए अक्सर उसके कानों में मोबाइल नज़र आता। पता नहीं कहाँ से ढूंढ ढूंढ कर रिस्तेदारों का नंबर निकाल डाला मरोवा मौसी बरहेता वाली चाची मोरसंड वाली फुआ बेचारी दिन भर वयस्त नज़र आती। बे
चारा ईशा अब उसके पीछे किसी काम के लिए मेढ़क की तरह टर्र टर्र करता रहता। मगर उसे कहाँ परवाह। अब अक्सर उसके घर के झगड़े की आवाज़ आती कभी खाना बनने में देर हो गया तो कभी मवेशी खेतों मे रह गया बेचारे छोटे से मोबाइल ने ईशा की हँसती खेलती ज़िन्दगी बर्बाद कर दी है।
सच तो यहीं है की हम सभी मोबाइल के बिना दो मिनट रहना असम्भव लगता है। हम सभी परिवार के बीच बैठे होते हुए भी परिवार से दूर होते है क्योंकि हमारा सारा ध्यान तो मोबइल के तरफ होता है। ये मोबाइल भी अजीब बीमारी है जिसके बिना ज़िन्दगी अधूरी लगती है मोबाइल का प्रयोग करे पर जरूरत के हिसाब से करे उसके कीड़ा ना बने। थोड़ा समय अपने परिवार के लिए भी निकाले। वैसे भी आजकल रिचार्ज सस्ता होता है। कॉल अनलिमिटेड होता है। इसलिए कुछ महिलाओ और पुरुष इसका भरपूर यूज़ करने के चक्कर मे चूल्हा चौका बाल बच्चा सब भूल बैठी है। ईशा की बीवी की तरह।